Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 253

Page 253

ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ਯਯਾ ਜਾਰਉ ਦੁਰਮਤਿ ਦੋਊ ॥ अपनी दुर्बुद्धि एवं द्वैतवाद को जला दो।
ਤਿਸਹਿ ਤਿਆਗਿ ਸੁਖ ਸਹਜੇ ਸੋਊ ॥ इनको त्याग कर सहज सुख में निद्रा करो।
ਯਯਾ ਜਾਇ ਪਰਹੁ ਸੰਤ ਸਰਨਾ ॥ जाकर उन संतों की शरण में पड़ जाओ,
ਜਿਹ ਆਸਰ ਇਆ ਭਵਜਲੁ ਤਰਨਾ ॥ जिनकी सहायता से भवसागर से पार हुआ जा सकता है।
ਯਯਾ ਜਨਮਿ ਨ ਆਵੈ ਸੋਊ ॥ वह व्यक्ति बार-बार संसार में जन्म नहीं लेता
ਏਕ ਨਾਮ ਲੇ ਮਨਹਿ ਪਰੋਊ ॥ जिस ने एक ईश्वर का नाम अपने मन में पिरो लिया है।
ਯਯਾ ਜਨਮੁ ਨ ਹਾਰੀਐ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਟੇਕ ॥ पूर्ण गुरु के आश्रय से अनमोल मनुष्य जीवन व्यर्थ नहीं जाता।
ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜਾ ਕੈ ਹੀਅਰੈ ਏਕ ॥੧੪॥ हे नानक ! जिसके हृदय में एक परमेश्वर ही विद्यमान है, वह आत्मिक सुख प्राप्त कर लेता है ॥१४॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਅੰਤਰਿ ਮਨ ਤਨ ਬਸਿ ਰਹੇ ਈਤ ਊਤ ਕੇ ਮੀਤ ॥ जो इस लोक एवं परलोक में जीव का मित्र है, वह उसके मन-तन में रहता है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਉਪਦੇਸਿਆ ਨਾਨਕ ਜਪੀਐ ਨੀਤ ॥੧॥ हे नानक ! पूर्ण गुरु ने मुझे हमेशा प्रभु का भजन करने का उपदेश प्रदान किया है। ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी॥
ਅਨਦਿਨੁ ਸਿਮਰਹੁ ਤਾਸੁ ਕਉ ਜੋ ਅੰਤਿ ਸਹਾਈ ਹੋਇ ॥ रात-दिन उसका सिमरन करो, जो अन्तिम समय में जीव का सहायक बनता है।
ਇਹ ਬਿਖਿਆ ਦਿਨ ਚਾਰਿ ਛਿਅ ਛਾਡਿ ਚਲਿਓ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥ मोह-माया का यह विष केवल चार अथवा छ: दिनों का ही है। सभी इसे छोड़कर चले जाते हैं।
ਕਾ ਕੋ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਧੀਆ ॥ माता, पिता, पुत्र एवं पुत्री कोई भी किसी का संगी नहीं है।
ਗ੍ਰਿਹ ਬਨਿਤਾ ਕਛੁ ਸੰਗਿ ਨ ਲੀਆ ॥ कोई भी जीव घर, पत्नी एवं अन्य पदार्थ कुछ भी साथ लेकर नहीं जाता।
ਐਸੀ ਸੰਚਿ ਜੁ ਬਿਨਸਤ ਨਾਹੀ ॥ इसलिए ऐसा नाम-धन संचित करो जो कभी नाश नहीं होता
ਪਤਿ ਸੇਤੀ ਅਪੁਨੈ ਘਰਿ ਜਾਹੀ ॥ और जो सम्मानपूर्वक अपने घर (परलोक) में जा सके।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਕਲਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਇਆ ॥ हे नानक ! जो लोग अपने जीवन में सत्संग में प्रभु का भजन गायन करते हैं,
ਨਾਨਕ ਤੇ ਤੇ ਬਹੁਰਿ ਨ ਆਇਆ ॥੧੫॥ वह पुनः जन्म-मरण के चक्र में फँसकर इस संसार में नहीं आते॥ १५॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਅਤਿ ਸੁੰਦਰ ਕੁਲੀਨ ਚਤੁਰ ਮੁਖਿ ਙਿਆਨੀ ਧਨਵੰਤ ॥ यदि कोई व्यक्ति अति सुन्दर, कुलीन, चतुर एवं उच्चकोटि का ज्ञानी एवं धनवान हो तो भी
ਮਿਰਤਕ ਕਹੀਅਹਿ ਨਾਨਕਾ ਜਿਹ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਹੀ ਭਗਵੰਤ ॥੧॥ हे नानक ! जिनके हृदय में भगवान् की प्रीति नहीं है वे मृतक ही कहलाए जाएँगे। ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ਙੰਙਾ ਖਟੁ ਸਾਸਤ੍ਰ ਹੋਇ ਙਿਆਤਾ ॥ कोई व्यक्ति शास्त्रों का ज्ञाता हो,
ਪੂਰਕੁ ਕੁੰਭਕ ਰੇਚਕ ਕਰਮਾਤਾ ॥ वह योगी की भाँति श्वास अन्दर खींचने, बाहर निकालने एवं रोकने का कर्म करता हो,
ਙਿਆਨ ਧਿਆਨ ਤੀਰਥ ਇਸਨਾਨੀ ॥ वह ज्ञान (धार्मिक) चर्चा, मनन, तीर्थ यात्रा एवं स्नान करता हो,
ਸੋਮਪਾਕ ਅਪਰਸ ਉਦਿਆਨੀ ॥ वह अपना भोजन स्वयं पकाता हो, किसी को छूने नहीं देता हो एवं जंगल में रहता हो,
ਰਾਮ ਨਾਮ ਸੰਗਿ ਮਨਿ ਨਹੀ ਹੇਤਾ ॥ यदि उसके हृदय में प्रभु के नाम से प्रीति नहीं
ਜੋ ਕਛੁ ਕੀਨੋ ਸੋਊ ਅਨੇਤਾ ॥ तो सब कुछ जो वह करता है, वह नाशवान है।
ਉਆ ਤੇ ਊਤਮੁ ਗਨਉ ਚੰਡਾਲਾ ॥ हे नानक ! उससे उत्तम उस चंडाल को समझो,
ਨਾਨਕ ਜਿਹ ਮਨਿ ਬਸਹਿ ਗੁਪਾਲਾ ॥੧੬॥ जिसके मन में गोपाल निवास करते हैं ॥१६॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਕੁੰਟ ਚਾਰਿ ਦਹ ਦਿਸਿ ਭ੍ਰਮੇ ਕਰਮ ਕਿਰਤਿ ਕੀ ਰੇਖ ॥ मनुष्य अपने किए कर्मों के संस्कारों के अनुसार संसार के चारों कुण्ट एवं दसों दिशाओं में भटकता रहता है।
ਸੂਖ ਦੂਖ ਮੁਕਤਿ ਜੋਨਿ ਨਾਨਕ ਲਿਖਿਓ ਲੇਖ ॥੧॥ हे नानक ! सुख-दुःख, मोक्ष एवं योनि (आवागमन) लिखी हुई किस्मत अनुसार ही मिलता है॥१॥
ਪਵੜੀ ॥ पौड़ी॥
ਕਕਾ ਕਾਰਨ ਕਰਤਾ ਸੋਊ ॥ परमात्मा स्वयं ही संयोग बनाने वाला है।
ਲਿਖਿਓ ਲੇਖੁ ਨ ਮੇਟਤ ਕੋਊ ॥ कोई भी प्राणी विधाता के विधान को मिटा नहीं सकता।
ਨਹੀ ਹੋਤ ਕਛੁ ਦੋਊ ਬਾਰਾ ॥ ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो उसे फिर से करना पड़े,
ਕਰਨੈਹਾਰੁ ਨ ਭੂਲਨਹਾਰਾ ॥ परमात्मा कभी भूल नहीं करता।
ਕਾਹੂ ਪੰਥੁ ਦਿਖਾਰੈ ਆਪੈ ॥ कुछ जीवों को वह स्वयं ही सन्मार्ग दिखा देता है।
ਕਾਹੂ ਉਦਿਆਨ ਭ੍ਰਮਤ ਪਛੁਤਾਪੈ ॥ कुछ जीवों को वह भयानक जंगल में भटकाता रहता है।
ਆਪਨ ਖੇਲੁ ਆਪ ਹੀ ਕੀਨੋ ॥ यह समूचा जगत्-खेल भगवान ने स्वयं ही रचा है।
ਜੋ ਜੋ ਦੀਨੋ ਸੁ ਨਾਨਕ ਲੀਨੋ ॥੧੭॥ हे नानक ! जो कुछ भी प्रभु प्राणियों को देता है, वही उन्हें मिल जाता है॥ १७॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक ॥
ਖਾਤ ਖਰਚਤ ਬਿਲਛਤ ਰਹੇ ਟੂਟਿ ਨ ਜਾਹਿ ਭੰਡਾਰ ॥ ईश्वर-भक्त प्रभु-नाम के अमूल्य धन का रस लेते हैं और उसे सबके साथ बाँटते हैं — फिर भी यह दिव्य खजाना कभी क्षीण नहीं होता।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਤ ਅਨੇਕ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਹਿ ਸੁਮਾਰ ॥੧॥ हे नानक ! हरि-परमेश्वर के नाम का अनेकों ही मनुष्य भजन करते रहते हैं, जो कि गणना से परे है॥ १ ॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी॥
ਖਖਾ ਖੂਨਾ ਕਛੁ ਨਹੀ ਤਿਸੁ ਸੰਮ੍ਰਥ ਕੈ ਪਾਹਿ ॥ परमात्मा जो समस्त शक्तियों का स्वामी है, उसके घर में किसी वस्तु की कोई कमी नहीं।
ਜੋ ਦੇਨਾ ਸੋ ਦੇ ਰਹਿਓ ਭਾਵੈ ਤਹ ਤਹ ਜਾਹਿ ॥ जो कुछ प्रभु ने देना है, वह देता जा रहा है। मनुष्य चाहे जहाँ मन करता है, वहाँ चलता रहे।
ਖਰਚੁ ਖਜਾਨਾ ਨਾਮ ਧਨੁ ਇਆ ਭਗਤਨ ਕੀ ਰਾਸਿ ॥ उनके भक्तों के लिए नाम का धन खर्च करने की पूंजी है।
ਖਿਮਾ ਗਰੀਬੀ ਅਨਦ ਸਹਜ ਜਪਤ ਰਹਹਿ ਗੁਣਤਾਸ ॥ सहनशीलता, नम्रता, आनंद एवं सहजता से वह गुणों के भण्डार प्रभु का जाप करते जाते हैं।
ਖੇਲਹਿ ਬਿਗਸਹਿ ਅਨਦ ਸਿਉ ਜਾ ਕਉ ਹੋਤ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ॥ परमेश्वर जिन पर कृपा करता है, वह आनंदपूर्वक जीवन का खेल खेलते हैं और सदैव प्रसन्न रहते हैं।
ਸਦੀਵ ਗਨੀਵ ਸੁਹਾਵਨੇ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗ੍ਰਿਹਿ ਮਾਲ ॥ जिनके हृदय घर में राम के नाम का पदार्थ है, वह सदैव ही धनवान एवं सुन्दर हैं।
ਖੇਦੁ ਨ ਦੂਖੁ ਨ ਡਾਨੁ ਤਿਹ ਜਾ ਕਉ ਨਦਰਿ ਕਰੀ ॥ ईश्वर जिन पर कृपा-दृष्टि करते हैं, उनको न ही कोई कष्ट होता है, न ही कोई पीड़ा एवं दण्ड मिलता है।
ਨਾਨਕ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਣਿਆ ਪੂਰੀ ਤਿਨਾ ਪਰੀ ॥੧੮॥ हे नानक ! जो प्रभु को भले लगते हैं, वह पूर्णतया सफल हो जाते हैं।॥१८॥


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