Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 254

Page 254

ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਗਨਿ ਮਿਨਿ ਦੇਖਹੁ ਮਨੈ ਮਾਹਿ ਸਰਪਰ ਚਲਨੋ ਲੋਗ ॥ हे जिज्ञासु ! अपने चित्त में भलीभाँति विचार कर देख लो, कि लोगों ने इस दुनिया से निश्चित ही चले जाना है।
ਆਸ ਅਨਿਤ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਟੈ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਅਰੋਗ ॥੧॥ हे नानक ! क्षणभंगुर पदार्थों की तृष्णा गुरु की शरण लेने से ही मिटती है। केवल भगवान् के नाम में ही अरोग्यता है ॥१॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी
ਗਗਾ ਗੋਬਿਦ ਗੁਣ ਰਵਹੁ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਜਪਿ ਨੀਤ ॥ ग - (हे जिज्ञासु !) अपने प्रत्येक श्वास से गोविन्द की गुणस्तुति करते रहो और नित्य उसका भजन करो।
ਕਹਾ ਬਿਸਾਸਾ ਦੇਹ ਕਾ ਬਿਲਮ ਨ ਕਰਿਹੋ ਮੀਤ ॥ शरीर के ऊपर क्या विश्वास किया जा सकता है ? हे मेरे मित्र ! देरी न कर।
ਨਹ ਬਾਰਿਕ ਨਹ ਜੋਬਨੈ ਨਹ ਬਿਰਧੀ ਕਛੁ ਬੰਧੁ ॥ चाहे बचपन हो, जवानी हो, बुढ़ापा हो, मृत्यु को आने से किसी समय भी रुकावट नहीं है।
ਓਹ ਬੇਰਾ ਨਹ ਬੂਝੀਐ ਜਉ ਆਇ ਪਰੈ ਜਮ ਫੰਧੁ ॥ उस वक्त का पता नहीं लग सकता कि कब यमराज का रस्सा गले में आ पड़ता है।
ਗਿਆਨੀ ਧਿਆਨੀ ਚਤੁਰ ਪੇਖਿ ਰਹਨੁ ਨਹੀ ਇਹ ਠਾਇ ॥ यह बात समझ लो चाहे कोई ज्ञानी हो, चाहे कोई ध्यानी हो, चाहे कोई चतुर हो, किसी ने भी दुनिया में सदा नहीं रहना।
ਛਾਡਿ ਛਾਡਿ ਸਗਲੀ ਗਈ ਮੂੜ ਤਹਾ ਲਪਟਾਹਿ ॥ मूर्ख ही उन वस्तुओं की प्राप्ति में लगते हैं, जिन्हें समूचा जगत् त्याग गया है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸਿਮਰਤ ਰਹੈ ਜਾਹੂ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗ ॥ जिसके माथे पर शुभ भाग्य लिखा हुआ है, वह गुरु की कृपा से प्रभु का भजन करता रहता है।
ਨਾਨਕ ਆਏ ਸਫਲ ਤੇ ਜਾ ਕਉ ਪ੍ਰਿਅਹਿ ਸੁਹਾਗ ॥੧੯॥ हे नानक ! जिन्हें प्रियतम प्रभु का सौभाग्य प्राप्त है, उनका ही इस संसार में आगमन सफल है॥ १६॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਘੋਖੇ ਸਾਸਤ੍ਰ ਬੇਦ ਸਭ ਆਨ ਨ ਕਥਤਉ ਕੋਇ ॥ मैंने समस्त शास्त्र एवं वेद अध्ययन करके देख लिए हैं। कोई भी यह नहीं बताता किं भगवान् के अतिरिक्त कोई अन्य भी हमेशा रहने वाला है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਹੁਣਿ ਹੋਵਤ ਨਾਨਕ ਏਕੈ ਸੋਇ ॥੧॥ हे नानक ! केवल परमेश्वर ही सृष्टि के आदि में, युगों के आरम्भ में था, अब है और हमेशा ही रहने वाला है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी।
ਘਘਾ ਘਾਲਹੁ ਮਨਹਿ ਏਹ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਦੂਸਰ ਨਾਹਿ ॥ अपने मन में यह बात दृढ़ कर लो कि प्रभु के अतिरिक्त कोई नहीं।
ਨਹ ਹੋਆ ਨਹ ਹੋਵਨਾ ਜਤ ਕਤ ਓਹੀ ਸਮਾਹਿ ॥ वहाँ न कभी कोई था और न वहाँ कोई होगा। वह प्रभु सर्वव्यापक है।
ਘੂਲਹਿ ਤਉ ਮਨ ਜਉ ਆਵਹਿ ਸਰਨਾ ॥ हे मन ! यदि तू प्रभु की शरण लेगा तो ही प्रभु में लीन होगा।
ਨਾਮ ਤਤੁ ਕਲਿ ਮਹਿ ਪੁਨਹਚਰਨਾ ॥ इस कलियुग में प्रभु का नाम ही वास्तविक प्रायश्चित कर्म है।
ਘਾਲਿ ਘਾਲਿ ਅਨਿਕ ਪਛੁਤਾਵਹਿ ॥ दुविधा में मेहनत-परिश्रम करके अनेकों पश्चाताप करते हैं।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਕਹਾ ਥਿਤਿ ਪਾਵਹਿ ॥ भगवान् की भक्ति के अतिरिक्त कैसे शांति मिल सकती हैं ?
ਘੋਲਿ ਮਹਾ ਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਤਿਹ ਪੀਆ ॥ हे नानक ! केवल उसी व्यक्ति ने नाम के परम अमृत का पूर्ण आनंद लिया है,
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਰਿ ਜਾ ਕਉ ਦੀਆ ॥੨੦॥ जिसे गुरु हरि रूप अमृत प्रदान करते हैं॥ २०॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक ॥
ਙਣਿ ਘਾਲੇ ਸਭ ਦਿਵਸ ਸਾਸ ਨਹ ਬਢਨ ਘਟਨ ਤਿਲੁ ਸਾਰ ॥ ईश्वर ने प्रत्येक जीव के लिए सांसों और दिनों का निश्चित लेखा-जोखा तय कर रखा है, जिसे न कोई बढ़ा सकता है, न घटा सकता है — यह सृष्टि का अटल नियम है।
ਜੀਵਨ ਲੋਰਹਿ ਭਰਮ ਮੋਹ ਨਾਨਕ ਤੇਊ ਗਵਾਰ ॥੧॥ हे नानक ! जो व्यक्ति भ्रम एवं मोह में जिंदगी जीना चाहते हैं, ऐसे व्यक्ति मूर्ख हैं।॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी
ਙੰਙਾ ਙ੍ਰਾਸੈ ਕਾਲੁ ਤਿਹ ਜੋ ਸਾਕਤ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨ ॥ काल (मृत्यु) उसे अपना ग्रास बना लेता है, जिसे प्रभु ने नास्तिक बना दिया है।
ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਜਨਮਹਿ ਮਰਹਿ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਨ ਚੀਨ ॥ जो व्यक्ति प्रभु राम को अनुभव नहीं करते, वे अनेकों योनियों में भटकते रहते हैं।
ਙਿਆਨ ਧਿਆਨ ਤਾਹੂ ਕਉ ਆਏ ॥ केवल वही व्यक्ति ज्ञान एवं ध्यान को प्राप्त करता है,
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਹ ਆਪਿ ਦਿਵਾਏ ॥ जिस पर ईश्वर स्वयं कृपा करते हैं।
ਙਣਤੀ ਙਣੀ ਨਹੀ ਕੋਊ ਛੂਟੈ ॥ केवल अपने अच्छे कर्मों की गिनती करने मात्र से मुक्ति नहीं मिलती।
ਕਾਚੀ ਗਾਗਰਿ ਸਰਪਰ ਫੂਟੈ ॥ यह शरीर मिट्टी की कच्ची गागर है जिस ने निश्चित ही टूट जाना है,
ਸੋ ਜੀਵਤ ਜਿਹ ਜੀਵਤ ਜਪਿਆ ॥ आध्यात्मिक दृष्टि से वही वास्तव में जीवित है, जो जीवन रहते ईश्वर का स्मरण करता है;
ਪ੍ਰਗਟ ਭਏ ਨਾਨਕ ਨਹ ਛਪਿਆ ॥੨੧॥ हे नानक ! भगवान् का सिमरन करने वाला मनुष्य छिपा नहीं रहता अपितु जगत् में प्रसिद्ध हो जाता है।॥२१॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਚਿਤਿ ਚਿਤਵਉ ਚਰਣਾਰਬਿੰਦ ਊਧ ਕਵਲ ਬਿਗਸਾਂਤ ॥ अपने चित्त में प्रभु के सुन्दर चरणों का चिन्तन करने से मेरा विपरीत मन कमल की भाँति प्रफुल्लित हो गया है।
ਪ੍ਰਗਟ ਭਏ ਆਪਹਿ ਗੋੁਬਿੰਦ ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਮਤਾਂਤ ॥੧॥ हे नानक ! संतजनों के उपदेश से गोविन्द स्वयं ही प्रकट हो जाते हैं॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ਚਚਾ ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰ ਲਾਗਾ ॥ जब कोई गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण करता है और उनकी शिक्षाओं का हृदय से पालन करता है,
ਧਨਿ ਧਨਿ ਉਆ ਦਿਨ ਸੰਜੋਗ ਸਭਾਗਾ ॥ वह दिन बड़ा शुभ है, वह संयोग भी भाग्यशाली है ।
ਚਾਰਿ ਕੁੰਟ ਦਹ ਦਿਸਿ ਭ੍ਰਮਿ ਆਇਓ ॥ मैं चारों तरफ एवं दस दिशाओं से भटक कर आया हूँ।
ਭਈ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤਬ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਓ ॥ जब प्रभु ने कृपा की तो ही मुझे गुरु के दर्शन प्राप्त हुए।
ਚਾਰ ਬਿਚਾਰ ਬਿਨਸਿਓ ਸਭ ਦੂਆ ॥ विचार शुद्ध हो जाते हैं, माया का मोह समाप्त हो जाता है,
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲ ਹੂਆ ॥ संतों की संगति में मेरा मन निर्मल हो गया है।
ਚਿੰਤ ਬਿਸਾਰੀ ਏਕ ਦ੍ਰਿਸਟੇਤਾ ॥ हे नानक ! वह चिन्ता को भूल जाता है और वह एक ईश्वर के दर्शन कर लेता है,
ਨਾਨਕ ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਜਿਹ ਨੇਤ੍ਰਾ ॥੨੨॥ जिसके नेत्रों में ज्ञान का सुरमा पड़ जाता है ॥२२॥
ਸਲੋਕੁ ॥ श्लोक॥
ਛਾਤੀ ਸੀਤਲ ਮਨੁ ਸੁਖੀ ਛੰਤ ਗੋਬਿਦ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥ गोविन्द की महिमा के छंद गायन करने से हृदय शीतल एवं मन सुखी हो जाता है।
ਐਸੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਸਾਇ ॥੧॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि हे मेरे प्रभु! मुझ पर ऐसी कृपा-दृष्टि करो कि मैं तेरे दासों का दास बन जाऊँ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पौड़ी ॥
ਛਛਾ ਛੋਹਰੇ ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ॥ मैं आपका दास बालक हूँ।
ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੇ ਪਾਨੀਹਾਰੇ ॥ मैं आपके दासों के दासों का जल भरने वाला हूँ।
ਛਛਾ ਛਾਰੁ ਹੋਤ ਤੇਰੇ ਸੰਤਾ ॥ मैं आपके संतों की चरण-धूलि बन जाऊँ,


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