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ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी
ਰੇ ਮਨ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਜਹ ਰਚਹੁ ਤਹ ਤਹ ਬੰਧਨ ਪਾਹਿ ॥
हे मेरे मन ! परमेश्वर के अतिरिक्त जिस किसी (मोह) में भी तू प्रवृत्त होता है, वहाँ ही तुझे बन्धन जकड़ लेते हैं।
ਜਿਹ ਬਿਧਿ ਕਤਹੂ ਨ ਛੂਟੀਐ ਸਾਕਤ ਤੇਊ ਕਮਾਹਿ ॥
शाक्त जीव वही कर्म करता है, जिससे उसको कभी मुक्ति नहीं मिल सकती।
ਹਉ ਹਉ ਕਰਤੇ ਕਰਮ ਰਤ ਤਾ ਕੋ ਭਾਰੁ ਅਫਾਰ ॥
कर्मों के प्रेमी अपने शुभ-अशुभ कर्मों का अहंकार करते रहते हैं, इस अहंकार का असह्य बोझ उन्हें ही सहन करना पड़ता है।
ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਹੀ ਜਉ ਨਾਮ ਸਿਉ ਤਉ ਏਊ ਕਰਮ ਬਿਕਾਰ ॥
जब प्रभु के नाम से प्रेम नहीं तो यह कर्म विकार भरे हैं।
ਬਾਧੇ ਜਮ ਕੀ ਜੇਵਰੀ ਮੀਠੀ ਮਾਇਆ ਰੰਗ ॥
जो मधुर माया से प्रेम करते हैं, वे मृत्यु की फाँसी में फँसे हुए हैं।
ਭ੍ਰਮ ਕੇ ਮੋਹੇ ਨਹ ਬੁਝਹਿ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਹੂ ਸੰਗ ॥
दुविधा में फँसे हुए प्राणी समझते नहीं कि ईश्वर सदैव उनके साथ है।
ਲੇਖੈ ਗਣਤ ਨ ਛੂਟੀਐ ਕਾਚੀ ਭੀਤਿ ਨ ਸੁਧਿ ॥
जब उनके कुकर्मों का लेखा-जोखा किया जाता है उनको मुक्ति नहीं मिलती। मिट्टी और रेत की कच्ची दीवार कभी स्वच्छ नहीं हो सकती।
ਜਿਸਹਿ ਬੁਝਾਏ ਨਾਨਕਾ ਤਿਹ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਰਮਲ ਬੁਧਿ ॥੯॥
हे नानक ! जिस मनुष्य को प्रभु स्वयं सूझ प्रदान करता है, उस गुरमुख की बुद्धि निर्मल हो जाती है।॥९॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਟੂਟੇ ਬੰਧਨ ਜਾਸੁ ਕੇ ਹੋਆ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ॥
जिस जीव के (माया के) बन्धन कट जाते हैं, उसे संतों की संगति मिल जाती है।
ਜੋ ਰਾਤੇ ਰੰਗ ਏਕ ਕੈ ਨਾਨਕ ਗੂੜਾ ਰੰਗੁ ॥੧॥
हे नानक ! जो जीव एक ईश्वर के प्रेम रंग में मग्न रहते हैं, उनका रंग बहुत गहरा होता है, जो कभी उतरता नहीं॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਰਾਰਾ ਰੰਗਹੁ ਇਆ ਮਨੁ ਅਪਨਾ ॥
अपने इस मन को प्रभु के प्रेम से रंग लो।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਜਪੁ ਰਸਨਾ ॥
अपनी रसना से प्रभु-परमेश्वर के नाम का बार-बार भजन करो।
ਰੇ ਰੇ ਦਰਗਹ ਕਹੈ ਨ ਕੋਊ ॥
प्रभु के दरबार में तुझे कोई तिरस्कृत शब्द नहीं बोलेगा।
ਆਉ ਬੈਠੁ ਆਦਰੁ ਸੁਭ ਦੇਊ ॥
सभी यह संबोधन करके तेरा स्वागत करेंगे, "आइए पधारिए"।
ਉਆ ਮਹਲੀ ਪਾਵਹਿ ਤੂ ਬਾਸਾ ॥
प्रभु के दरबार में तुझे निवास मिलेगा।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਨਹ ਹੋਇ ਬਿਨਾਸਾ ॥
प्रभु के दरबार में कोई जन्म, मृत्यु एवं विनाश नहीं।
ਮਸਤਕਿ ਕਰਮੁ ਲਿਖਿਓ ਧੁਰਿ ਜਾ ਕੈ ॥
हे नानक ! जिसके माथे पर शुम कर्मों द्वारा कृपा का लेख लिखा होता है,
ਹਰਿ ਸੰਪੈ ਨਾਨਕ ਘਰਿ ਤਾ ਕੈ ॥੧੦॥
उसी व्यक्ति के हृदय-घर में हरि-नाम रूपी संपत्ति होती हैं। ॥१०॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਲਾਲਚ ਝੂਠ ਬਿਕਾਰ ਮੋਹ ਬਿਆਪਤ ਮੂੜੇ ਅੰਧ ॥
हे नानक ! जो व्यक्ति लालच, झूठ, पाप, सांसारिक मोह के बन्धनों में फंस जाते हैं, उन ज्ञानहीन मूर्खों पर यह विकार दबाव डालते रहते हैं।
ਲਾਗਿ ਪਰੇ ਦੁਰਗੰਧ ਸਿਉ ਨਾਨਕ ਮਾਇਆ ਬੰਧ ॥੧॥
माया में फँसे हुए वे कुकर्मों में ही लगे रहते हैं॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी
ਲਲਾ ਲਪਟਿ ਬਿਖੈ ਰਸ ਰਾਤੇ ॥
मनुष्य पाप से भरे विकारों में लिपटे रहते हैं।
ਅਹੰਬੁਧਿ ਮਾਇਆ ਮਦ ਮਾਤੇ ॥
वह अहंबुद्धि एवं माया के नशे में मग्न रहते हैं।
ਇਆ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਜਨਮਹਿ ਮਰਨਾ ॥
इस माया के जाल में फँसकर प्राणी जन्म-मरण के चक्र में पड़कर संसार में आते-जाते रहते हैं
ਜਿਉ ਜਿਉ ਹੁਕਮੁ ਤਿਵੈ ਤਿਉ ਕਰਨਾ ॥
लेकिन प्राणी के वश में कुछ नहीं जैसे-जैसे ईश्वर की आज्ञा होती है, वैसे ही प्राणी करते हैं।
ਕੋਊ ਊਨ ਨ ਕੋਊ ਪੂਰਾ ॥
कोई भी प्राणी अधूरा नहीं और कोई पूर्ण भी नहीं।
ਕੋਊ ਸੁਘਰੁ ਨ ਕੋਊ ਮੂਰਾ ॥
अपने आप न कोई चतुर है और न ही कोई मूर्ख।
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਲਾਵਹੁ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗਨਾ ॥
जहाँ कहीं भी प्रभु प्राणी को लगाता है, वहीं वह लग जाता है।
ਨਾਨਕ ਠਾਕੁਰ ਸਦਾ ਅਲਿਪਨਾ ॥੧੧॥
हे नानक ! ईश्वर हमेशा माया के प्रभाव से निर्लिप्त रहता है॥ ११॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक ॥
ਲਾਲ ਗੁਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਪ੍ਰਭ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰ ਅਥਾਹ ॥
वह गोविन्द गोपाल हम सबके प्रिय है। मेरा प्रियतम प्रभु सर्वज्ञाता, धैर्यवान एवं विशाल हृदय वाला तथा अथाह है।
ਦੂਸਰ ਨਾਹੀ ਅਵਰ ਕੋ ਨਾਨਕ ਬੇਪਰਵਾਹ ॥੧॥
हे नानक ! उस जैसा दूसरा कोई नहीं। वह बिल्कुल बेपरवाह है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਲਲਾ ਤਾ ਕੈ ਲਵੈ ਨ ਕੋਊ ॥
उसके समान दूसरा कोई नहीं।
ਏਕਹਿ ਆਪਿ ਅਵਰ ਨਹ ਹੋਊ ॥
वह ईश्वर एक है, उस जैसा दूसरा कोई होगा भी नहीं।
ਹੋਵਨਹਾਰੁ ਹੋਤ ਸਦ ਆਇਆ ॥
वह अब भी अस्तित्व में है, वही होगा और सदा होता आया है।
ਉਆ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਕਾਹੂ ਪਾਇਆ ॥
उसका अन्त कभी किसी को भी नहीं मिला।
ਕੀਟ ਹਸਤਿ ਮਹਿ ਪੂਰ ਸਮਾਨੇ ॥
चींटी से लेकर हाथी तक सब में प्रभु उपस्थित है।
ਪ੍ਰਗਟ ਪੁਰਖ ਸਭ ਠਾਊ ਜਾਨੇ ॥
सर्वव्यापक परमेश्वर हर तरफ प्रत्यक्ष गोचर है।
ਜਾ ਕਉ ਦੀਨੋ ਹਰਿ ਰਸੁ ਅਪਨਾ ॥
हे नानक ! जिस किसी को भी प्रभु अपना हरि-रस प्रदान करता है,
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਿਹ ਜਪਨਾ ॥੧੨॥
वह गुरु के आश्रय द्वारा हरि-परमेश्वर का भजन करता रहता है। ॥१२॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਆਤਮ ਰਸੁ ਜਿਹ ਜਾਨਿਆ ਹਰਿ ਰੰਗ ਸਹਜੇ ਮਾਣੁ ॥
जो व्यक्ति प्रभु के अमृत के स्वाद को जानता है, वह सहज ही हरि के प्रेम का आनंद लेता है।
ਨਾਨਕ ਧਨਿ ਧਨਿ ਧੰਨਿ ਜਨ ਆਏ ਤੇ ਪਰਵਾਣੁ ॥੧॥
हे नानक ! वे व्यक्ति भाग्यशाली हैं एवं उनका इस संसार में जन्म लेना सफल है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी
ਆਇਆ ਸਫਲ ਤਾਹੂ ਕੋ ਗਨੀਐ ॥
उसका इस जगत् में आगमन सफल गिना जाता है
ਜਾਸੁ ਰਸਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਭਨੀਐ ॥
जिसकी जिह्वा प्रभु-परमेश्वर की महिमा करती रहती है।
ਆਇ ਬਸਹਿ ਸਾਧੂ ਕੈ ਸੰਗੇ ॥
वह संसार में आकर संतों से संगति करता है
ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹਿ ਰੰਗੇ ॥
और रात-दिन प्रेमपूर्वक नाम का ध्यान करता है।
ਆਵਤ ਸੋ ਜਨੁ ਨਾਮਹਿ ਰਾਤਾ ॥
उस जीव का जन्म सफल है, जो प्रभु के नाम में मग्न हुआ है।
ਜਾ ਕਉ ਦਇਆ ਮਇਆ ਬਿਧਾਤਾ ॥
और जिस पर विधाता की दया एवं कृपा हुई है।
ਏਕਹਿ ਆਵਨ ਫਿਰਿ ਜੋਨਿ ਨ ਆਇਆ ॥
ऐसा जीव संसार में एक बार ही जन्म लेता है और पुनः योनि के चक्र में नहीं पड़ता।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੈ ਦਰਸਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧੩॥
हे नानक ! ऐसा व्यक्ति प्रभु के दर्शनों में ही समा जाता है॥ १३॥
ਸਲੋਕੁ ॥
श्लोक॥
ਯਾਸੁ ਜਪਤ ਮਨਿ ਹੋਇ ਅਨੰਦੁ ਬਿਨਸੈ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ॥
हे नानक ! जिस ईश्वर का भजन करने से मन में प्रसन्नता उत्पन्न होती है, द्वैतवाद का मोह मिट जाता है।
ਦੂਖ ਦਰਦ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝੈ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਉ ॥੧॥
एवं दुःख, दर्द व सांसारिक तृष्णा का नाश हो जाता है, उसके नाम में समा जाओ॥ १॥