Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 252

Page 252

ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी
ਰੇ ਮਨ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਜਹ ਰਚਹੁ ਤਹ ਤਹ ਬੰਧਨ ਪਾਹਿ ॥ रे मन बिनु हरि जह रचहु तह तह बंधन पाहि ॥ हे मेरे मन ! परमेश्वर के अतिरिक्त जिस किसी (मोह) में भी तू प्रवृत्त होता है, वहाँ ही तुझे बन्धन जकड़ लेते हैं।
ਜਿਹ ਬਿਧਿ ਕਤਹੂ ਨ ਛੂਟੀਐ ਸਾਕਤ ਤੇਊ ਕਮਾਹਿ ॥ जिह बिधि कतहू न छूटीऐ साकत तेऊ कमाहि ॥ शाक्त जीव वही कर्म करता है, जिससे उसको कभी मुक्ति नहीं मिल सकती।
ਹਉ ਹਉ ਕਰਤੇ ਕਰਮ ਰਤ ਤਾ ਕੋ ਭਾਰੁ ਅਫਾਰ ॥ हउ हउ करते करम रत ता को भारु अफार ॥ कर्मों के प्रेमी अपने शुभ-अशुभ कर्मों का अहंकार करते रहते हैं, इस अहंकार का असह्य बोझ उन्हें ही सहन करना पड़ता है।
ਪ੍ਰੀਤਿ ਨਹੀ ਜਉ ਨਾਮ ਸਿਉ ਤਉ ਏਊ ਕਰਮ ਬਿਕਾਰ ॥ प्रीति नही जउ नाम सिउ तउ एऊ करम बिकार ॥ जब प्रभु के नाम से प्रेम नहीं तो यह कर्म विकार भरे हैं।
ਬਾਧੇ ਜਮ ਕੀ ਜੇਵਰੀ ਮੀਠੀ ਮਾਇਆ ਰੰਗ ॥ बाधे जम की जेवरी मीठी माइआ रंग ॥ जो मधुर माया से प्रेम करते हैं, वे मृत्यु की फाँसी में फँसे हुए हैं।
ਭ੍ਰਮ ਕੇ ਮੋਹੇ ਨਹ ਬੁਝਹਿ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਹੂ ਸੰਗ ॥ भ्रम के मोहे नह बुझहि सो प्रभु सदहू संग ॥ दुविधा में फँसे हुए प्राणी समझते नहीं कि ईश्वर सदैव उनके साथ है।
ਲੇਖੈ ਗਣਤ ਨ ਛੂਟੀਐ ਕਾਚੀ ਭੀਤਿ ਨ ਸੁਧਿ ॥ लेखै गणत न छूटीऐ काची भीति न सुधि ॥ जब उनके कुकर्मों का लेखा-जोखा किया जाता है उनको मुक्ति नहीं मिलती। मिट्टी और रेत की कच्ची दीवार कभी स्वच्छ नहीं हो सकती।
ਜਿਸਹਿ ਬੁਝਾਏ ਨਾਨਕਾ ਤਿਹ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਰਮਲ ਬੁਧਿ ॥੯॥ जिसहि बुझाए नानका तिह गुरमुखि निरमल बुधि ॥९॥ हे नानक ! जिस मनुष्य को प्रभु स्वयं सूझ प्रदान करता है, उस गुरमुख की बुद्धि निर्मल हो जाती है।॥९॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਟੂਟੇ ਬੰਧਨ ਜਾਸੁ ਕੇ ਹੋਆ ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ॥ टूटे बंधन जासु के होआ साधू संगु ॥ जिस जीव के (माया के) बन्धन कट जाते हैं, उसे संतों की संगति मिल जाती है।
ਜੋ ਰਾਤੇ ਰੰਗ ਏਕ ਕੈ ਨਾਨਕ ਗੂੜਾ ਰੰਗੁ ॥੧॥ जो राते रंग एक कै नानक गूड़ा रंगु ॥१॥ हे नानक ! जो जीव एक ईश्वर के प्रेम रंग में मग्न रहते हैं, उनका रंग बहुत गहरा होता है, जो कभी उतरता नहीं॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਰਾਰਾ ਰੰਗਹੁ ਇਆ ਮਨੁ ਅਪਨਾ ॥ रारा रंगहु इआ मनु अपना ॥ अपने इस मन को प्रभु के प्रेम से रंग लो।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਜਪੁ ਰਸਨਾ ॥ हरि हरि नामु जपहु जपु रसना ॥ अपनी रसना से प्रभु-परमेश्वर के नाम का बार-बार भजन करो।
ਰੇ ਰੇ ਦਰਗਹ ਕਹੈ ਨ ਕੋਊ ॥ रे रे दरगह कहै न कोऊ ॥ प्रभु के दरबार में तुझे कोई तिरस्कृत शब्द नहीं बोलेगा।
ਆਉ ਬੈਠੁ ਆਦਰੁ ਸੁਭ ਦੇਊ ॥ आउ बैठु आदरु सुभ देऊ ॥ सभी यह संबोधन करके तेरा स्वागत करेंगे, "आइए पधारिए"।
ਉਆ ਮਹਲੀ ਪਾਵਹਿ ਤੂ ਬਾਸਾ ॥ उआ महली पावहि तू बासा ॥ प्रभु के दरबार में तुझे निवास मिलेगा।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਨਹ ਹੋਇ ਬਿਨਾਸਾ ॥ जनम मरन नह होइ बिनासा ॥ प्रभु के दरबार में कोई जन्म, मृत्यु एवं विनाश नहीं।
ਮਸਤਕਿ ਕਰਮੁ ਲਿਖਿਓ ਧੁਰਿ ਜਾ ਕੈ ॥ मसतकि करमु लिखिओ धुरि जा कै ॥ हे नानक ! जिसके माथे पर शुम कर्मों द्वारा कृपा का लेख लिखा होता है,
ਹਰਿ ਸੰਪੈ ਨਾਨਕ ਘਰਿ ਤਾ ਕੈ ॥੧੦॥ हरि स्मपै नानक घरि ता कै ॥१०॥ उसी व्यक्ति के हृदय-घर में हरि-नाम रूपी संपत्ति होती हैं। ॥१०॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਲਾਲਚ ਝੂਠ ਬਿਕਾਰ ਮੋਹ ਬਿਆਪਤ ਮੂੜੇ ਅੰਧ ॥ लालच झूठ बिकार मोह बिआपत मूड़े अंध ॥ हे नानक ! जो व्यक्ति लालच, झूठ, पाप, सांसारिक मोह के बन्धनों में फंस जाते हैं, उन ज्ञानहीन मूर्खों पर यह विकार दबाव डालते रहते हैं।
ਲਾਗਿ ਪਰੇ ਦੁਰਗੰਧ ਸਿਉ ਨਾਨਕ ਮਾਇਆ ਬੰਧ ॥੧॥ लागि परे दुरगंध सिउ नानक माइआ बंध ॥१॥ माया में फँसे हुए वे कुकर्मों में ही लगे रहते हैं॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी
ਲਲਾ ਲਪਟਿ ਬਿਖੈ ਰਸ ਰਾਤੇ ॥ लला लपटि बिखै रस राते ॥ मनुष्य पाप से भरे विकारों में लिपटे रहते हैं।
ਅਹੰਬੁਧਿ ਮਾਇਆ ਮਦ ਮਾਤੇ ॥ अह्मबुधि माइआ मद माते ॥ वह अहंबुद्धि एवं माया के नशे में मग्न रहते हैं।
ਇਆ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਜਨਮਹਿ ਮਰਨਾ ॥ इआ माइआ महि जनमहि मरना ॥ इस माया के जाल में फँसकर प्राणी जन्म-मरण के चक्र में पड़कर संसार में आते-जाते रहते हैं
ਜਿਉ ਜਿਉ ਹੁਕਮੁ ਤਿਵੈ ਤਿਉ ਕਰਨਾ ॥ जिउ जिउ हुकमु तिवै तिउ करना ॥ लेकिन प्राणी के वश में कुछ नहीं जैसे-जैसे ईश्वर की आज्ञा होती है, वैसे ही प्राणी करते हैं।
ਕੋਊ ਊਨ ਨ ਕੋਊ ਪੂਰਾ ॥ कोऊ ऊन न कोऊ पूरा ॥ कोई भी प्राणी अधूरा नहीं और कोई पूर्ण भी नहीं।
ਕੋਊ ਸੁਘਰੁ ਨ ਕੋਊ ਮੂਰਾ ॥ कोऊ सुघरु न कोऊ मूरा ॥ अपने आप न कोई चतुर है और न ही कोई मूर्ख।
ਜਿਤੁ ਜਿਤੁ ਲਾਵਹੁ ਤਿਤੁ ਤਿਤੁ ਲਗਨਾ ॥ जितु जितु लावहु तितु तितु लगना ॥ जहाँ कहीं भी प्रभु प्राणी को लगाता है, वहीं वह लग जाता है।
ਨਾਨਕ ਠਾਕੁਰ ਸਦਾ ਅਲਿਪਨਾ ॥੧੧॥ नानक ठाकुर सदा अलिपना ॥११॥ हे नानक ! ईश्वर हमेशा माया के प्रभाव से निर्लिप्त रहता है॥ ११॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक ॥
ਲਾਲ ਗੁਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਪ੍ਰਭ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰ ਅਥਾਹ ॥ लाल गुपाल गोबिंद प्रभ गहिर ग्मभीर अथाह ॥ वह गोविन्द गोपाल हम सबके प्रिय है। मेरा प्रियतम प्रभु सर्वज्ञाता, धैर्यवान एवं विशाल हृदय वाला तथा अथाह है।
ਦੂਸਰ ਨਾਹੀ ਅਵਰ ਕੋ ਨਾਨਕ ਬੇਪਰਵਾਹ ॥੧॥ दूसर नाही अवर को नानक बेपरवाह ॥१॥ हे नानक ! उस जैसा दूसरा कोई नहीं। वह बिल्कुल बेपरवाह है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी ॥
ਲਲਾ ਤਾ ਕੈ ਲਵੈ ਨ ਕੋਊ ॥ लला ता कै लवै न कोऊ ॥ उसके समान दूसरा कोई नहीं।
ਏਕਹਿ ਆਪਿ ਅਵਰ ਨਹ ਹੋਊ ॥ एकहि आपि अवर नह होऊ ॥ वह ईश्वर एक है, उस जैसा दूसरा कोई होगा भी नहीं।
ਹੋਵਨਹਾਰੁ ਹੋਤ ਸਦ ਆਇਆ ॥ होवनहारु होत सद आइआ ॥ वह अब भी अस्तित्व में है, वही होगा और सदा होता आया है।
ਉਆ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਕਾਹੂ ਪਾਇਆ ॥ उआ का अंतु न काहू पाइआ ॥ उसका अन्त कभी किसी को भी नहीं मिला।
ਕੀਟ ਹਸਤਿ ਮਹਿ ਪੂਰ ਸਮਾਨੇ ॥ कीट हसति महि पूर समाने ॥ चींटी से लेकर हाथी तक सब में प्रभु उपस्थित है।
ਪ੍ਰਗਟ ਪੁਰਖ ਸਭ ਠਾਊ ਜਾਨੇ ॥ प्रगट पुरख सभ ठाऊ जाने ॥ सर्वव्यापक परमेश्वर हर तरफ प्रत्यक्ष गोचर है।
ਜਾ ਕਉ ਦੀਨੋ ਹਰਿ ਰਸੁ ਅਪਨਾ ॥ जा कउ दीनो हरि रसु अपना ॥ हे नानक ! जिस किसी को भी प्रभु अपना हरि-रस प्रदान करता है,
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਿਹ ਜਪਨਾ ॥੧੨॥ नानक गुरमुखि हरि हरि तिह जपना ॥१२॥ वह गुरु के आश्रय द्वारा हरि-परमेश्वर का भजन करता रहता है। ॥१२॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਆਤਮ ਰਸੁ ਜਿਹ ਜਾਨਿਆ ਹਰਿ ਰੰਗ ਸਹਜੇ ਮਾਣੁ ॥ आतम रसु जिह जानिआ हरि रंग सहजे माणु ॥ जो व्यक्ति प्रभु के अमृत के स्वाद को जानता है, वह सहज ही हरि के प्रेम का आनंद लेता है।
ਨਾਨਕ ਧਨਿ ਧਨਿ ਧੰਨਿ ਜਨ ਆਏ ਤੇ ਪਰਵਾਣੁ ॥੧॥ नानक धनि धनि धंनि जन आए ते परवाणु ॥१॥ हे नानक ! वे व्यक्ति भाग्यशाली हैं एवं उनका इस संसार में जन्म लेना सफल है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥ पौड़ी
ਆਇਆ ਸਫਲ ਤਾਹੂ ਕੋ ਗਨੀਐ ॥ आइआ सफल ताहू को गनीऐ ॥ उसका इस जगत् में आगमन सफल गिना जाता है
ਜਾਸੁ ਰਸਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਭਨੀਐ ॥ जासु रसन हरि हरि जसु भनीऐ ॥ जिसकी जिह्वा प्रभु-परमेश्वर की महिमा करती रहती है।
ਆਇ ਬਸਹਿ ਸਾਧੂ ਕੈ ਸੰਗੇ ॥ आइ बसहि साधू कै संगे ॥ वह संसार में आकर संतों से संगति करता है
ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹਿ ਰੰਗੇ ॥ अनदिनु नामु धिआवहि रंगे ॥ और रात-दिन प्रेमपूर्वक नाम का ध्यान करता है।
ਆਵਤ ਸੋ ਜਨੁ ਨਾਮਹਿ ਰਾਤਾ ॥ आवत सो जनु नामहि राता ॥ उस जीव का जन्म सफल है, जो प्रभु के नाम में मग्न हुआ है।
ਜਾ ਕਉ ਦਇਆ ਮਇਆ ਬਿਧਾਤਾ ॥ जा कउ दइआ मइआ बिधाता ॥ और जिस पर विधाता की दया एवं कृपा हुई है।
ਏਕਹਿ ਆਵਨ ਫਿਰਿ ਜੋਨਿ ਨ ਆਇਆ ॥ एकहि आवन फिरि जोनि न आइआ ॥ ऐसा जीव संसार में एक बार ही जन्म लेता है और पुनः योनि के चक्र में नहीं पड़ता।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੈ ਦਰਸਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧੩॥ नानक हरि कै दरसि समाइआ ॥१३॥ हे नानक ! ऐसा व्यक्ति प्रभु के दर्शनों में ही समा जाता है॥ १३॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਯਾਸੁ ਜਪਤ ਮਨਿ ਹੋਇ ਅਨੰਦੁ ਬਿਨਸੈ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ॥ यासु जपत मनि होइ अनंदु बिनसै दूजा भाउ ॥ हे नानक ! जिस ईश्वर का भजन करने से मन में प्रसन्नता उत्पन्न होती है, द्वैतवाद का मोह मिट जाता है।
ਦੂਖ ਦਰਦ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝੈ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਉ ॥੧॥ दूख दरद त्रिसना बुझै नानक नामि समाउ ॥१॥ एवं दुःख, दर्द व सांसारिक तृष्णा का नाश हो जाता है, उसके नाम में समा जाओ॥ १॥


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