Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 248

Page 248

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥ राग गौड़ी, पांचवें गुरु: ॥
ਮੋਹਨ ਤੇਰੇ ਊਚੇ ਮੰਦਰ ਮਹਲ ਅਪਾਰਾ ॥ मोहन तेरे ऊचे मंदर महल अपारा ॥ हे मेरे मोहन ! आपके मन्दिर बहुत ऊँचे हैं और आपके महल अनन्त है।
ਮੋਹਨ ਤੇਰੇ ਸੋਹਨਿ ਦੁਆਰ ਜੀਉ ਸੰਤ ਧਰਮ ਸਾਲਾ ॥ मोहन तेरे सोहनि दुआर जीउ संत धरम साला ॥ हे मोहन ! आपके द्वार अति सुन्दर हैं। वें साधु-संतों के लिए पूजा-स्थल हैं।
ਧਰਮ ਸਾਲ ਅਪਾਰ ਦੈਆਰ ਠਾਕੁਰ ਸਦਾ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਵਹੇ ॥ धरम साल अपार दैआर ठाकुर सदा कीरतनु गावहे ॥ आपके मन्दिर में संत जन सदैव ही अनन्त एवं दयावान प्रभु का भजन गायन करते रहते हैं।
ਜਹ ਸਾਧ ਸੰਤ ਇਕਤ੍ਰ ਹੋਵਹਿ ਤਹਾ ਤੁਝਹਿ ਧਿਆਵਹੇ ॥ जह साध संत इकत्र होवहि तहा तुझहि धिआवहे ॥ जहाँ साधु एवं संतों की सभा होती है, वहाँ वह आपकी ही आराधना करते हैं।
ਕਰਿ ਦਇਆ ਮਇਆ ਦਇਆਲ ਸੁਆਮੀ ਹੋਹੁ ਦੀਨ ਕ੍ਰਿਪਾਰਾ ॥ करि दइआ मइआ दइआल सुआमी होहु दीन क्रिपारा ॥ हे दया के सागर ! आप दया एवं कृपा करो तथा दीनों पर कृपालु हो जाओ।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਰਸ ਪਿਆਸੇ ਮਿਲਿ ਦਰਸਨ ਸੁਖੁ ਸਾਰਾ ॥੧॥ बिनवंति नानक दरस पिआसे मिलि दरसन सुखु सारा ॥१॥ नानक विनती करता है - मैं आपके दर्शनों हेतु प्यासा हूँ। आपके दर्शन करके मैं सभी सुख प्राप्त कर लेता हूँ॥ १॥
ਮੋਹਨ ਤੇਰੇ ਬਚਨ ਅਨੂਪ ਚਾਲ ਨਿਰਾਲੀ ॥ मोहन तेरे बचन अनूप चाल निराली ॥ हे मोहन ! आपकी वाणी बड़ी अनूप है और आपकी मर्यादा बड़ी अनोखी है।
ਮੋਹਨ ਤੂੰ ਮਾਨਹਿ ਏਕੁ ਜੀ ਅਵਰ ਸਭ ਰਾਲੀ ॥ मोहन तूं मानहि एकु जी अवर सभ राली ॥ हे मन को मोहित करने वाले! आप ही एकमात्र हैं जिन्हें समस्त जीव शाश्वत मानते हैं; शेष तो सब क्षणिक है, नश्वर है।
ਮਾਨਹਿ ਤ ਏਕੁ ਅਲੇਖੁ ਠਾਕੁਰੁ ਜਿਨਹਿ ਸਭ ਕਲ ਧਾਰੀਆ ॥ मानहि त एकु अलेखु ठाकुरु जिनहि सभ कल धारीआ ॥ हे अतुलनीय स्वामी ! सभी जीव आप पर विश्वास करते हैं, क्योंकि आपकी दिव्य शक्ति सर्वत्र व्याप्त है
ਤੁਧੁ ਬਚਨਿ ਗੁਰ ਕੈ ਵਸਿ ਕੀਆ ਆਦਿ ਪੁਰਖੁ ਬਨਵਾਰੀਆ ॥ तुधु बचनि गुर कै वसि कीआ आदि पुरखु बनवारीआ ॥ हे मोहन ! गुरु के उपदेश द्वारा आपने अपने भक्तों को अपने बंधन में बांध लिया है।
ਤੂੰ ਆਪਿ ਚਲਿਆ ਆਪਿ ਰਹਿਆ ਆਪਿ ਸਭ ਕਲ ਧਾਰੀਆ ॥ तूं आपि चलिआ आपि रहिआ आपि सभ कल धारीआ ॥ हे मोहन ! आपने स्वयं ही सृष्टि में अपनी सत्ता व्याप्त की हुई है, आप स्वयं संसार से प्रस्थान कर रहे हैं, आप स्वयं इसमें रह रहे हैं और आप अपनी शक्ति से हर चीज का समर्थन करते हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਪੈਜ ਰਾਖਹੁ ਸਭ ਸੇਵਕ ਸਰਨਿ ਤੁਮਾਰੀਆ ॥੨॥ बिनवंति नानक पैज राखहु सभ सेवक सरनि तुमारीआ ॥२॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु ! मेरी मान-प्रतिष्ठा की रक्षा कीजिए! आपके समस्त सेवक आपकी शरण ढूंढते हैं॥ २॥
ਮੋਹਨ ਤੁਧੁ ਸਤਸੰਗਤਿ ਧਿਆਵੈ ਦਰਸ ਧਿਆਨਾ ॥ मोहन तुधु सतसंगति धिआवै दरस धिआना ॥ हे मोहन ! साधु-संतों की संगति (सत्संग) आपके भजन करती है और आपके दर्शनों का ध्यान करती है।
ਮੋਹਨ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਤੁਧੁ ਜਪਹਿ ਨਿਦਾਨਾ ॥ मोहन जमु नेड़ि न आवै तुधु जपहि निदाना ॥ हे चितचोर मोहन ! जो प्राणी अन्तिम समय आपको स्मरण करते हैं, यमदूत उसके निकट नहीं आता।
ਜਮਕਾਲੁ ਤਿਨ ਕਉ ਲਗੈ ਨਾਹੀ ਜੋ ਇਕ ਮਨਿ ਧਿਆਵਹੇ ॥ जमकालु तिन कउ लगै नाही जो इक मनि धिआवहे ॥ जो प्राणी हृदय से प्रभु का भजन करता है, उसे मृत्यु का भय स्पर्श नहीं कर सकता।
ਮਨਿ ਬਚਨਿ ਕਰਮਿ ਜਿ ਤੁਧੁ ਅਰਾਧਹਿ ਸੇ ਸਭੇ ਫਲ ਪਾਵਹੇ ॥ मनि बचनि करमि जि तुधु अराधहि से सभे फल पावहे ॥ हे मोहन ! जो पुरुष अपने मन, वचन एवं कर्म द्वारा आपकी आराधना करते हैं, वह समस्त फल प्राप्त कर लेते हैं।
ਮਲ ਮੂਤ ਮੂੜ ਜਿ ਮੁਗਧ ਹੋਤੇ ਸਿ ਦੇਖਿ ਦਰਸੁ ਸੁਗਿਆਨਾ ॥ मल मूत मूड़ जि मुगध होते सि देखि दरसु सुगिआना ॥ जो प्राणी अत्यन्त मलिन, मूर्ख एवं ज्ञानहीन हैं, वह आपके दर्शन करके श्रेष्ठ ज्ञानी हो जाते हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਰਾਜੁ ਨਿਹਚਲੁ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖ ਭਗਵਾਨਾ ॥੩॥ बिनवंति नानक राजु निहचलु पूरन पुरख भगवाना ॥३॥ नानक प्रार्थना करते हैं कि, हे मेरे पूर्ण सर्वव्यापक भगवान् ! आपकी सत्ता सदैव स्थिर है॥ ३॥
ਮੋਹਨ ਤੂੰ ਸੁਫਲੁ ਫਲਿਆ ਸਣੁ ਪਰਵਾਰੇ ॥ मोहन तूं सुफलु फलिआ सणु परवारे ॥ हे मोहन ! आप गुणों से भरपूर हैं और पूरा विश्व आपका परिवार है।
ਮੋਹਨ ਪੁਤ੍ਰ ਮੀਤ ਭਾਈ ਕੁਟੰਬ ਸਭਿ ਤਾਰੇ ॥ मोहन पुत्र मीत भाई कुट्मब सभि तारे ॥ हे मोहन ! आपने पुत्र, मित्र एवं कुटुंब सहित सबका कल्याण कर दिया है।
ਤਾਰਿਆ ਜਹਾਨੁ ਲਹਿਆ ਅਭਿਮਾਨੁ ਜਿਨੀ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥ तारिआ जहानु लहिआ अभिमानु जिनी दरसनु पाइआ ॥ हे मोहन ! आपने समस्त विश्व का कल्याण कर दिया है। जिन्होंने तेरे दर्शन किए आपने उनका अभिमान त्याग दिया है।
ਜਿਨੀ ਤੁਧਨੋ ਧੰਨੁ ਕਹਿਆ ਤਿਨ ਜਮੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਇਆ ॥ जिनी तुधनो धंनु कहिआ तिन जमु नेड़ि न आइआ ॥ हे मोहन ! जो आपको धन्य कहते हैं अर्थात् आपकी गुणस्तुति करते हैं, यमदूत उनके कदापि निकट नहीं आता।
ਬੇਅੰਤ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਕਥੇ ਨ ਜਾਹੀ ਸਤਿਗੁਰ ਪੁਰਖ ਮੁਰਾਰੇ ॥ बेअंत गुण तेरे कथे न जाही सतिगुर पुरख मुरारे ॥ हे मुरारी ! हे सच्चे गुरु ! आपके गुण अनन्त हैं, जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਟੇਕ ਰਾਖੀ ਜਿਤੁ ਲਗਿ ਤਰਿਆ ਸੰਸਾਰੇ ॥੪॥੨॥ बिनवंति नानक टेक राखी जितु लगि तरिआ संसारे ॥४॥२॥ नानक वन्दना करते हैं-हे प्रभु ! मैंने वह सहारा पकड़ा है, जिससे जुड़कर समूचे जगत् का उद्धार हो जाता है॥ ४॥ २ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ ॥ राग गौड़ी, पांचवें गुरु ५ ॥
ਸਲੋਕੁ ॥ सलोकु ॥ श्लोक॥
ਪਤਿਤ ਅਸੰਖ ਪੁਨੀਤ ਕਰਿ ਪੁਨਹ ਪੁਨਹ ਬਲਿਹਾਰ ॥ पतित असंख पुनीत करि पुनह पुनह बलिहार ॥ हे प्रभु ! असंख्य पापियों को आप पवित्र पावन करते हो, मैं आप पर बार-बार बलिहारी जाता हूँ।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਪਾਵਕੋ ਤਿਨ ਕਿਲਬਿਖ ਦਾਹਨਹਾਰ ॥੧॥ नानक राम नामु जपि पावको तिन किलबिख दाहनहार ॥१॥ हे नानक ! राम नाम के भजन की अग्नि पापों को जला देने वाली है॥ १॥
ਛੰਤ ॥ छंत ॥ छंद॥
ਜਪਿ ਮਨਾ ਤੂੰ ਰਾਮ ਨਰਾਇਣੁ ਗੋਵਿੰਦਾ ਹਰਿ ਮਾਧੋ ॥ जपि मना तूं राम नराइणु गोविंदा हरि माधो ॥ हे मेरे मन ! तू राम, नारायण, गोविन्द, हरि का भजन कर, जो सृष्टि का रक्षक एवं माया का पति है।
ਧਿਆਇ ਮਨਾ ਮੁਰਾਰਿ ਮੁਕੰਦੇ ਕਟੀਐ ਕਾਲ ਦੁਖ ਫਾਧੋ ॥ धिआइ मना मुरारि मुकंदे कटीऐ काल दुख फाधो ॥ हे मेरे मन ! तू मुकुंद मुरारी का चिन्तन कर, जो दुःखदायक मृत्यु की फाँसी को काट देता है।
ਦੁਖਹਰਣ ਦੀਨ ਸਰਣ ਸ੍ਰੀਧਰ ਚਰਨ ਕਮਲ ਅਰਾਧੀਐ ॥ दुखहरण दीन सरण स्रीधर चरन कमल अराधीऐ ॥ हे प्राणी ! प्रभु के सुन्दर चरणों की आराधना कर, जो दुःखों का नाशक, निर्धनों का सहारा एवं लक्ष्मी का स्वामी श्रीधर है।
ਜਮ ਪੰਥੁ ਬਿਖੜਾ ਅਗਨਿ ਸਾਗਰੁ ਨਿਮਖ ਸਿਮਰਤ ਸਾਧੀਐ ॥ जम पंथु बिखड़ा अगनि सागरु निमख सिमरत साधीऐ ॥ एक क्षण भर के लिए प्रभु को स्मरण करने से मृत्यु के विषम मार्ग एवं अग्नि के सागर से उद्धार हो जाता है।
ਕਲਿਮਲਹ ਦਹਤਾ ਸੁਧੁ ਕਰਤਾ ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਅਰਾਧੋ ॥ कलिमलह दहता सुधु करता दिनसु रैणि अराधो ॥ हे प्राणी ! दिन-रात प्रभु का चिन्तन कर, जो कल्पना को नाश करने वाला एवं विकारों की मैल को पवित्र पावन करने वाला है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਕਰਹੁ ਕਿਰਪਾ ਗੋਪਾਲ ਗੋਬਿੰਦ ਮਾਧੋ ॥੧॥ बिनवंति नानक करहु किरपा गोपाल गोबिंद माधो ॥१॥ नानक प्रार्थना करते हैं - हे सृष्टि के पालनहार गोपाल ! हे गोबिन्द ! हे माधव ! मुझ पर कृपा करो।॥ १॥
ਸਿਮਰਿ ਮਨਾ ਦਾਮੋਦਰੁ ਦੁਖਹਰੁ ਭੈ ਭੰਜਨੁ ਹਰਿ ਰਾਇਆ ॥ सिमरि मना दामोदरु दुखहरु भै भंजनु हरि राइआ ॥ हे मेरे मन ! उस परमात्मा दामोदर को स्मरण कर, जो दुःख दूर करने वाले और भय का नाश करने वाले है।
ਸ੍ਰੀਰੰਗੋ ਦਇਆਲ ਮਨੋਹਰੁ ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਬਿਰਦਾਇਆ ॥ स्रीरंगो दइआल मनोहरु भगति वछलु बिरदाइआ ॥ हे बन्धु ! अपने स्वभाव अनुसार दयालु प्रभु लक्ष्मीपति, मन को चुराने वाले मनोहर एवं भक्तवत्सल है।


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