Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 247

Page 247

ਮਾਇਆ ਬੰਧਨ ਟਿਕੈ ਨਾਹੀ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ ਦੁਖੁ ਸੰਤਾਏ ॥ माया के बन्धन में जकड़ा हुआ मन स्थिर नहीं रहता। क्षण-क्षण पीड़ा उसको मानसिक पीड़ा पीड़ित करती है।
ਨਾਨਕ ਮਾਇਆ ਕਾ ਦੁਖੁ ਤਦੇ ਚੂਕੈ ਜਾ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥੩॥ हे नानक ! सांसारिक माया का दुःख केवल तभी दूर होता है, जब मनुष्य अपने मन को गुरु के शब्द में मिला लेता है ॥३॥
ਮਨਮੁਖ ਮੁਗਧ ਗਾਵਾਰੁ ਪਿਰਾ ਜੀਉ ਸਬਦੁ ਮਨਿ ਨ ਵਸਾਏ ॥ हे मेरे प्रिय मन ! स्वेच्छाचारी जीव मूर्ख एवं अनाड़ी हैं। प्रभु के नाम को तुम अपने हृदय में नहीं बसाते।
ਮਾਇਆ ਕਾ ਭ੍ਰਮੁ ਅੰਧੁ ਪਿਰਾ ਜੀਉ ਹਰਿ ਮਾਰਗੁ ਕਿਉ ਪਾਏ ॥ हे मेरे प्रिय मन ! माया के भ्रम कारण तुम ज्ञान से अन्धे हो गए हो। तुम प्रभु का मार्ग किस तरह प्राप्त कर सकते हो ?
ਕਿਉ ਮਾਰਗੁ ਪਾਏ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭਾਏ ਮਨਮੁਖਿ ਆਪੁ ਗਣਾਏ ॥ सच्चे गुरु की शिक्षाओं के बिना, अहंकारी व्यक्ति स्वेच्छाचारी ईश्वर की ओर जाने वाले मार्ग को नहीं पहचान सकता, क्योंकि उसका ध्यान आत्म-प्रदर्शन और दूसरों से श्रेष्ठ बनने में लगा रहता है।
ਹਰਿ ਕੇ ਚਾਕਰ ਸਦਾ ਸੁਹੇਲੇ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥ प्रभु के सेवक भक्त सदैव ही सुखी हैं। वह अपने मन को गुरु के चरणों से लगाते हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਹਰਿ ਜੀਉ ਕਰੇ ਕਿਰਪਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥ ईश्वर जिस व्यक्ति पर अपनी कृपा करते हैं, वह सदैव प्रभु की गुणस्तुति करता रहता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਜਗਿ ਲਾਹਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ॥੪॥੫॥੭॥ हे नानक ! इस संसार में केवल नाम के रत्न का ही लाभ है। गुरमुखों को प्रभु स्वयं यह सूझ प्रदान करता है ॥४॥५॥७॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੫ राग गौड़ी, छंद, पंचम गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਬੈਰਾਗੁ ਭਇਆ ਜੀਉ ਕਿਉ ਦੇਖਾ ਪ੍ਰਭ ਦਾਤੇ ॥ मेरे मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया है। मैं किस तरह अपने परमेश्वर प्रभु के दर्शन करूं ?
ਮੇਰੇ ਮੀਤ ਸਖਾ ਹਰਿ ਜੀਉ ਗੁਰ ਪੁਰਖ ਬਿਧਾਤੇ ॥ पूज्य परमेश्वर, सर्वशक्तिमान विधाता ही मेरा मित्र एवं सखा है।
ਪੁਰਖੋ ਬਿਧਾਤਾ ਏਕੁ ਸ੍ਰੀਧਰੁ ਕਿਉ ਮਿਲਹ ਤੁਝੈ ਉਡੀਣੀਆ ॥ हे भाग्य विधाता ! हे श्रीधर ! आपसे विमुख, मैं व्याकुल आपसे किस तरह मिल सकता हूँ?
ਕਰ ਕਰਹਿ ਸੇਵਾ ਸੀਸੁ ਚਰਣੀ ਮਨਿ ਆਸ ਦਰਸ ਨਿਮਾਣੀਆ ॥ हे प्रभु ! मेरे हाथ तेरी सेवा-भक्ति करते हैं। मेरा सिर तेरे चरणों पर झुका हुआ है और मेरे विनीत मन में तेरे दर्शनों की अभिलाषा है।
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਨ ਘੜੀ ਵਿਸਰੈ ਪਲੁ ਮੂਰਤੁ ਦਿਨੁ ਰਾਤੇ ॥ हे ईश्वर ! श्वास-श्वास और एक घड़ी भर के लिए मैं आपको विस्मृत नहीं करता। हर क्षण, मुहूर्त एवं दिन-रात मैं आपका स्मरण करता हूँ।
ਨਾਨਕ ਸਾਰਿੰਗ ਜਿਉ ਪਿਆਸੇ ਕਿਉ ਮਿਲੀਐ ਪ੍ਰਭ ਦਾਤੇ ॥੧॥ हे नानक ! हे दाता प्रभु ! हम जीव पपीहे की भाँति प्यासे हैं। तुझ से किस तरह मिलेंगे ? ॥ १॥
ਇਕ ਬਿਨਉ ਕਰਉ ਜੀਉ ਸੁਣਿ ਕੰਤ ਪਿਆਰੇ ॥ हे मेरे प्रिय प्राणनाथ ! मैं एक विनती करती हूँ, इसे सुनिए।
ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਮੋਹਿ ਲੀਆ ਜੀਉ ਦੇਖਿ ਚਲਤ ਤੁਮਾਰੇ ॥ आपकी अद्भुत लीलाएँ देखकर मेरा मन एवं तन मुग्ध हो गए हैं। तेरी आश्चर्यजनक लीलाएँ देखकर मैं मुग्ध हो गई हूँ।
ਚਲਤਾ ਤੁਮਾਰੇ ਦੇਖਿ ਮੋਹੀ ਉਦਾਸ ਧਨ ਕਿਉ ਧੀਰਏ ॥ मैं तेरी अद्भुत लीला देखकर मोहित हो गया हूँ; लेकिन ऐसी आत्मवधु आपके साथ मिलन के बिना कैसे संतुष्ट हो सकती है।
ਗੁਣਵੰਤ ਨਾਹ ਦਇਆਲੁ ਬਾਲਾ ਸਰਬ ਗੁਣ ਭਰਪੂਰਏ ॥ हे गुणों के स्वामी !आप बहुत दयालु, यौवन-सम्पन्न एवं समस्त गुणों से परिपूर्ण है।
ਪਿਰ ਦੋਸੁ ਨਾਹੀ ਸੁਖਹ ਦਾਤੇ ਹਉ ਵਿਛੁੜੀ ਬੁਰਿਆਰੇ ॥ हे सुखों के दाता ! आप दोष-रहित हैं। अपने पापों से मैं आपसे जुदा हो गई हूँ।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਇਆ ਧਾਰਹੁ ਘਰਿ ਆਵਹੁ ਨਾਹ ਪਿਆਰੇ ॥੨॥ नानक विनती करते हैं, हे मेरे प्रिय पति ! दया करो और मेरे हृदय घर में आ बसो॥२॥
ਹਉ ਮਨੁ ਅਰਪੀ ਸਭੁ ਤਨੁ ਅਰਪੀ ਅਰਪੀ ਸਭਿ ਦੇਸਾ ॥ मैं अपनी आत्मा समर्पित करता हूँ, मैं अपना समूचा शरीर समर्पित करता हूँ एवं अपनी समस्त इ्द्रियाँ समर्पित करता हूँ।
ਹਉ ਸਿਰੁ ਅਰਪੀ ਤਿਸੁ ਮੀਤ ਪਿਆਰੇ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਦੇਇ ਸਦੇਸਾ ॥ मैं अपना शीश उस प्रिय मित्र को समर्पित करता हूँ, जो मुझे मेरे प्रभु का सन्देश दे।
ਅਰਪਿਆ ਤ ਸੀਸੁ ਸੁਥਾਨਿ ਗੁਰ ਪਹਿ ਸੰਗਿ ਪ੍ਰਭੂ ਦਿਖਾਇਆ ॥ परम प्रतिष्ठित निवास वाले गुरु जी को मैंने अपना शीश समर्पित किया है और उन्होंने प्रभु को मेरे साथ ही दिखा दिया है।
ਖਿਨ ਮਾਹਿ ਸਗਲਾ ਦੂਖੁ ਮਿਟਿਆ ਮਨਹੁ ਚਿੰਦਿਆ ਪਾਇਆ ॥ एक क्षण में मेरे तसभी दुःख दूर हो गए हैं और मेरे मन की अभिलाषा पूरी हो गयी।
ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਰਲੀਆ ਕਰੈ ਕਾਮਣਿ ਮਿਟੇ ਸਗਲ ਅੰਦੇਸਾ ॥ दिन-रात अब जीवात्मा आनन्द प्राप्त करती है और उसकी सभी चिन्ताएँ मिट गई हैं।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਕੰਤੁ ਮਿਲਿਆ ਲੋੜਤੇ ਹਮ ਜੈਸਾ ॥੩॥ नानक वन्दना करते हैं कि उनको अपना मनपसन्द पति प्राप्त हो गया है॥ ३ ॥
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਜੀਉ ਵਜੀ ਵਾਧਾਈ ॥ मेरे हृदय में आनंद विद्यमान है और बधाइयां मिल रही हैं।
ਘਰਿ ਲਾਲੁ ਆਇਆ ਪਿਆਰਾ ਸਭ ਤਿਖਾ ਬੁਝਾਈ ॥ मेरा प्रियतम मेरे हृदय घर में आ गया है और मेरी प्यास बुझ गई है।
ਮਿਲਿਆ ਤ ਲਾਲੁ ਗੁਪਾਲੁ ਠਾਕੁਰੁ ਸਖੀ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ॥ मैं गोपाल ठाकुर जी को मिल गई हूँ और मेरी सखियों ने मंगल गीत गायन किए हैं।
ਸਭ ਮੀਤ ਬੰਧਪ ਹਰਖੁ ਉਪਜਿਆ ਦੂਤ ਥਾਉ ਗਵਾਇਆ ॥ मेरे समस्त मित्र एवं सगे-संबंधी आनंदपूर्वक हैं और मेरे कट्टर (कामादिक) शत्रुओं का नामोनिशान मिट गया है।
ਅਨਹਤ ਵਾਜੇ ਵਜਹਿ ਘਰ ਮਹਿ ਪਿਰ ਸੰਗਿ ਸੇਜ ਵਿਛਾਈ ॥ अब मेरे हृदय में अनहद भजन गूंज रहा है और मेरे तथा मेरे प्रियतम हेतु सेज बिछाई गई है।
ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕੁ ਸਹਜਿ ਰਹੈ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਕੰਤੁ ਸੁਖਦਾਈ ॥੪॥੧॥ नानक वन्दना करते हैं कि अब मैं सहज में रहता हूँ। मेरा सुखों का दाता पति-परमेश्वर मुझे मिल गया है॥ ४॥ १॥


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