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ਮੋਹਨ ਲਾਲ ਅਨੂਪ ਸਰਬ ਸਾਧਾਰੀਆ ॥
हे मन को मुग्ध करने वाले अनूप प्रभु! आप समस्त जीवों को सहारा देने वाले हैं।
ਗੁਰ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗਉ ਪਾਇ ਦੇਹੁ ਦਿਖਾਰੀਆ ॥੩॥
मैं विनम्रतापूर्वक गुरु के सामने झुकता हूं और उनसे अनुरोध करता हूं कि वह मुझे आपका अनुभव कराने में सहायता करें।॥३॥
ਮੈ ਕੀਏ ਮਿਤ੍ਰ ਅਨੇਕ ਇਕਸੁ ਬਲਿਹਾਰੀਆ ॥
मैंने अनेक मित्र बनाए हैं, लेकिन मैं केवल एक पर ही बलिहारी जाता हूँ।
ਸਭ ਗੁਣ ਕਿਸ ਹੀ ਨਾਹਿ ਹਰਿ ਪੂਰ ਭੰਡਾਰੀਆ ॥੪॥
किसी में भी सभी गुण विद्यमान नहीं हैं। लेकिन भगवान् गुणों का परिपूर्ण भण्डार है॥ ४॥
ਚਹੁ ਦਿਸਿ ਜਪੀਐ ਨਾਉ ਸੂਖਿ ਸਵਾਰੀਆ ॥
हे प्रभु! आपका नाम सर्वत्र स्मरण किया जाता है और जो भी श्रद्धा से आपके नाम का ध्यान करता है, उसे परम शांति की प्राप्ति होती है।
ਮੈ ਆਹੀ ਓੜਿ ਤੁਹਾਰਿ ਨਾਨਕ ਬਲਿਹਾਰੀਆ ॥੫॥
हे नानक, मैं आपकी शरण चाहता हूँ और पूर्णतः आपके प्रति समर्पित हूँ। ॥ ५॥
ਗੁਰਿ ਕਾਢਿਓ ਭੁਜਾ ਪਸਾਰਿ ਮੋਹ ਕੂਪਾਰੀਆ ॥
अपनी भुजा आगे बढ़ाकर गुरु ने मुझे सांसारिक मोह के कुएँ में से बाहर निकाल लिया है।
ਮੈ ਜੀਤਿਓ ਜਨਮੁ ਅਪਾਰੁ ਬਹੁਰਿ ਨ ਹਾਰੀਆ ॥੬॥
मैंने अनमोल मनुष्य जीवन विजय कर लिया है, जिसे मैं दुबारा नहीं हारूंगा॥ ६॥
ਮੈ ਪਾਇਓ ਸਰਬ ਨਿਧਾਨੁ ਅਕਥੁ ਕਥਾਰੀਆ ॥
मैंने सर्व भण्डार ईश्वर को पा लिया है, जिसकी कथा वर्णन से बाहर है।
ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਸੋਭਾਵੰਤ ਬਾਹ ਲੁਡਾਰੀਆ ॥੭॥
ईश्वर के दरबार में शोभायमान होकर मैं प्रसन्नतापूर्वक अपनी भुजा लहराऊँगा ॥ ७ ॥
ਜਨ ਨਾਨਕ ਲਧਾ ਰਤਨੁ ਅਮੋਲੁ ਅਪਾਰੀਆ ॥
नानक को अनन्त एवं अमूल्य रत्न मिल गया है कि
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਭਉਜਲੁ ਤਰੀਐ ਕਹਉ ਪੁਕਾਰੀਆ ॥੮॥੧੨॥
गुरु की सेवा द्वारा भयानक संसार सागर पार किया जाता है। मैं सबको ऊँचा बोलकर यही बताता हूँ ॥८॥१२॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु:५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਨਾਰਾਇਣ ਹਰਿ ਰੰਗ ਰੰਗੋ ॥
हे जीव ! अपने मन को नारायण प्रभु के प्रेम में रंग ले।
ਜਪਿ ਜਿਹਵਾ ਹਰਿ ਏਕ ਮੰਗੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अपनी जिह्वा से ईश्वर के नाम का जाप करता रह और केवल उसे ही मांग ॥ १॥ रहाउ॥
ਤਜਿ ਹਉਮੈ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਭਜੋ ॥
अपना अहंकार त्यागकर गुरु के ज्ञान का चिन्तन करता रह।
ਮਿਲਿ ਸੰਗਤਿ ਧੁਰਿ ਕਰਮ ਲਿਖਿਓ ॥੧॥
आदि से जिस मनुष्य के भाग्य में लिखा होता है, केवल वही संतों की संगति में मिलता है। १॥
ਜੋ ਦੀਸੈ ਸੋ ਸੰਗਿ ਨ ਗਇਓ ॥
जो कुछ भी दृष्टिगोचर होता है, वह मनुष्य के साथ नहीं जाता।
ਸਾਕਤੁ ਮੂੜੁ ਲਗੇ ਪਚਿ ਮੁਇਓ ॥੨॥
भगवान् से विमुख मूर्ख मनुष्य गल-सड़ कर मर जाता है॥ २॥
ਮੋਹਨ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਰਵਿ ਰਹਿਓ ॥
मुग्ध करने वाले मोहन का नाम सदा के लिए उपस्थित है।
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕਿਨੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਲਹਿਓ ॥੩॥
करोड़ों में कोई विरला ही गुरु के माध्यम से नाम को प्राप्त करता है॥ ३॥
ਹਰਿ ਸੰਤਨ ਕਰਿ ਨਮੋ ਨਮੋ ॥
हे जीव ! संतजनों को नमन करते रहो।
ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਵਹਿ ਅਤੁਲੁ ਸੁਖੋ ॥੪॥
इस तरह तुझे नौ भण्डार एवं अनन्त सुख प्राप्त हो जाएगा ॥४॥
ਨੈਨ ਅਲੋਵਉ ਸਾਧ ਜਨੋ ॥
अपने नयनों से संतजनों के दर्शन करो।
ਹਿਰਦੈ ਗਾਵਹੁ ਨਾਮ ਨਿਧੋ ॥੫॥
अपने हृदय में नाम-भण्डार का यश गायन करो ॥५॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭੁ ਮੋਹੁ ਤਜੋ ॥
हे जीव ! कामवासना, क्रोध, लालच एवं सांसारिक मोह को त्याग दे।
ਜਨਮ ਮਰਨ ਦੁਹੁ ਤੇ ਰਹਿਓ ॥੬॥
इस तरह जन्म-मरन दोनों के चक्र से मुक्ति प्राप्त हो जाएगी।॥६ ॥
ਦੂਖੁ ਅੰਧੇਰਾ ਘਰ ਤੇ ਮਿਟਿਓ ॥
तेरे हृदय घर से दुःख का अन्धेरा निवृत हो जाएगा
ਗੁਰਿ ਗਿਆਨੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਓ ਦੀਪ ਬਲਿਓ ॥੭॥
जब तेरे हृदय में गुरु ने ज्ञान दृढ़ कर दिया और प्रभु ज्योत प्रज्वलित कर दी ॥ ७॥
ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਸੋ ਪਾਰਿ ਪਰਿਓ ॥
हे नानक ! जिन्होंने भगवान् की सेवा-भक्ति की है, वे भवसागर से पार हो गए हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਗਤੁ ਤਰਿਓ ॥੮॥੧॥੧੩॥
गुरु के माध्यम से जगत् ही पार हो जाता है ॥८॥१॥१३॥
ਮਹਲਾ ੫ ਗਉੜੀ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਕਰਤ ਭਰਮ ਗਏ ॥
हरि-परमेश्वर का सिमरन एवं गुरु को याद करते हुए मेरे भ्रम दूर हो गए हैं।
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਸਭਿ ਸੁਖ ਪਾਇਓ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मेरे मन ने सभी सुख प्राप्त कर लिए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਬਲਤੋ ਜਲਤੋ ਤਉਕਿਆ ਗੁਰ ਚੰਦਨੁ ਸੀਤਲਾਇਓ ॥੧॥
कामादिक विकारों से मेरे सुलगते एवं दुग्ध मन पर चन्दन की भाँति शीतल गुरु ने अपनी वाणी का जल छिड़क दिया है। ॥१॥
ਅਗਿਆਨ ਅੰਧੇਰਾ ਮਿਟਿ ਗਇਆ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਦੀਪਾਇਓ ॥੨॥
गुरु के ज्ञान की ज्योति से मेरा अज्ञानता का अँधेरा मिट गया है॥ २॥
ਪਾਵਕੁ ਸਾਗਰੁ ਗਹਰੋ ਚਰਿ ਸੰਤਨ ਨਾਵ ਤਰਾਇਓ ॥੩॥
विकारों का यह अग्नि सागर बहुत गहरा है, नाम की नैया पर सवार होकर सन्तजनों ने मेरा कल्याण कर दिया है॥ ३॥
ਨਾ ਹਮ ਕਰਮ ਨ ਧਰਮ ਸੁਚ ਪ੍ਰਭਿ ਗਹਿ ਭੁਜਾ ਆਪਾਇਓ ॥੪॥
हमारे पास शुभ कर्म, धर्म तथा पवित्रता नहीं। लेकिन फिर भी परमेश्वर ने भुजा से पकड़ कर मुझे अपना बना लिया है ॥४॥
ਭਉ ਖੰਡਨੁ ਦੁਖ ਭੰਜਨੋ ਭਗਤਿ ਵਛਲ ਹਰਿ ਨਾਇਓ ॥੫॥
भगवान् का नाम भय को नाश करने वाला, दुःख नाश करने वाला और भक्तवत्सल है ॥५॥
ਅਨਾਥਹ ਨਾਥ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਦੀਨ ਸੰਮ੍ਰਿਥ ਸੰਤ ਓਟਾਇਓ ॥੬॥
परमेश्वर अनाथों का नाथ, दीनदयालु, सर्वशक्तिमान एवं संतजनों का सहारा है ॥६॥
ਨਿਰਗੁਨੀਆਰੇ ਕੀ ਬੇਨਤੀ ਦੇਹੁ ਦਰਸੁ ਹਰਿ ਰਾਇਓ ॥੭॥
हे प्रभु पातशाह ! मुझ गुणविहीन की यही प्रार्थना है कि मुझे अपने दर्शन दीजिए ॥७॥
ਨਾਨਕ ਸਰਨਿ ਤੁਹਾਰੀ ਠਾਕੁਰ ਸੇਵਕੁ ਦੁਆਰੈ ਆਇਓ ॥੮॥੨॥੧੪॥
हे ठाकुर जी ! नानक आपकी शरण में है और आपका सेवक नानक आपके द्वार पर आया है ॥८॥२॥१४॥