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ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਰੰਗ ਸੰਗਿ ਬਿਖਿਆ ਕੇ ਭੋਗਾ ਇਨ ਸੰਗਿ ਅੰਧ ਨ ਜਾਨੀ ॥੧॥
रंग संगि बिखिआ के भोगा इन संगि अंध न जानी ॥१॥
मनुष्य मिथ्या सांसारिक सुखों में उलझा रहता है; इन क्षणिक सुखों के बीच अंधा मूर्ख सत्य को नहीं समझ पाता। ॥ १॥
ਹਉ ਸੰਚਉ ਹਉ ਖਾਟਤਾ ਸਗਲੀ ਅਵਧ ਬਿਹਾਨੀ ॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ संचउ हउ खाटता सगली अवध बिहानी ॥ रहाउ ॥
कि उसका संपूर्ण जीवन इसी भ्रम में व्यतीत हो जाता है कि वह सांसारिक धन अर्जित कर रहा है और उसे संचित कर रहा है।॥ रहाउ॥
ਹਉ ਸੂਰਾ ਪਰਧਾਨੁ ਹਉ ਕੋ ਨਾਹੀ ਮੁਝਹਿ ਸਮਾਨੀ ॥੨॥
हउ सूरा परधानु हउ को नाही मुझहि समानी ॥२॥
वह कहता है कि मैं शूरवीर हूँ, मैं प्रधान हूँ, मेरे समान दूसरा कोई नहीं ॥ २॥
ਜੋਬਨਵੰਤ ਅਚਾਰ ਕੁਲੀਨਾ ਮਨ ਮਹਿ ਹੋਇ ਗੁਮਾਨੀ ॥੩॥
जोबनवंत अचार कुलीना मन महि होइ गुमानी ॥३॥
वह समझता है कि मैं यौवन सम्पन्न, शुभ आचरण वाला एवं उच्च जाति का हूँ। अपने हृदय में वह इस तरह अभिमानी बना हुआ है॥ ३॥
ਜਿਉ ਉਲਝਾਇਓ ਬਾਧ ਬੁਧਿ ਕਾ ਮਰਤਿਆ ਨਹੀ ਬਿਸਰਾਨੀ ॥੪॥
जिउ उलझाइओ बाध बुधि का मरतिआ नही बिसरानी ॥४॥
झूठी बुद्धि वाला जीव मोह-माया में फँसा रहता है, मृत्यु के समय भी वह अहंकार को नहीं भूलता ॥ ४॥
ਭਾਈ ਮੀਤ ਬੰਧਪ ਸਖੇ ਪਾਛੇ ਤਿਨਹੂ ਕਉ ਸੰਪਾਨੀ ॥੫॥
भाई मीत बंधप सखे पाछे तिनहू कउ स्मपानी ॥५॥
वह मरने के पश्चात अपने भाई, मित्र, सगे-संबंधी एवं साथियों को ही अपनी दौलत-सम्पत्ति सौंपकर इस दुनिया से चला जाता है।॥५॥
ਜਿਤੁ ਲਾਗੋ ਮਨੁ ਬਾਸਨਾ ਅੰਤਿ ਸਾਈ ਪ੍ਰਗਟਾਨੀ ॥੬॥
जितु लागो मनु बासना अंति साई प्रगटानी ॥६॥
मनुष्य अपने जीवन भर जिस भी आसक्ति में डूबा रहता है, वही उसकी अंतिम घड़ी में स्वरूप धारण कर लेती है।॥ ६॥
ਅਹੰਬੁਧਿ ਸੁਚਿ ਕਰਮ ਕਰਿ ਇਹ ਬੰਧਨ ਬੰਧਾਨੀ ॥੭॥
अह्मबुधि सुचि करम करि इह बंधन बंधानी ॥७॥
अहंकार से प्रेरित होकर किए गए सभी धर्म-कर्म आत्मा के लिए बंधन का कारण बनते हैं, और वह आत्मा इन्हीं बंधनों में उलझी रह जाती है। ॥ ७॥
ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਕਿਰਪਾ ਕਰਹੁ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਸਾਨੀ ॥੮॥੩॥੧੫॥੪੪॥ ਜੁਮਲਾ
दइआल पुरख किरपा करहु नानक दास दसानी ॥८॥३॥१५॥४४॥ जुमला
नानक कहते हैं कि हे दयालु अकालपुरुष ! मुझ पर अपनी कृपा करो और अपने दासों का दास बना लो ॥८॥३॥१५॥४४॥ जुमला
ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिनामु करता पुरखु गुरप्रसादि ॥
अद्वितीय, शाश्वत, सृष्टिकर्ता परमात्मा — जिसे केवल गुरु की कृपा से अनुभव किया जा सकता है। ॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਛੰਤ ਮਹਲਾ ੧ ॥
रागु गउड़ी पूरबी छंत महला १ ॥
राग गौड़ी पूरबी, छंद, प्रथम गुरु द्वारा: १ ॥
ਮੁੰਧ ਰੈਣਿ ਦੁਹੇਲੜੀਆ ਜੀਉ ਨੀਦ ਨ ਆਵੈ ॥
मुंध रैणि दुहेलड़ीआ जीउ नीद न आवै ॥
पति-प्रभु की जुदाई में जीव-स्त्री के लिए रात्रि बड़ी दुःखदायक है। अपने प्रियतम केवियोग में उसे नींद नहीं आती।
ਸਾ ਧਨ ਦੁਬਲੀਆ ਜੀਉ ਪਿਰ ਕੈ ਹਾਵੈ ॥
सा धन दुबलीआ जीउ पिर कै हावै ॥
अपने पति-प्रभु के विरह की वेदना में जीव-स्त्री कमजोर हो गई है।
ਧਨ ਥੀਈ ਦੁਬਲਿ ਕੰਤ ਹਾਵੈ ਕੇਵ ਨੈਣੀ ਦੇਖਏ ॥
धन थीई दुबलि कंत हावै केव नैणी देखए ॥
पति-वियोग की पीड़ा में वह आत्मवधू धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही है; ऐसी दशा को वह अपनी आँखों से भला कैसे देख सकती है?
ਸੀਗਾਰ ਮਿਠ ਰਸ ਭੋਗ ਭੋਜਨ ਸਭੁ ਝੂਠੁ ਕਿਤੈ ਨ ਲੇਖਏ ॥
सीगार मिठ रस भोग भोजन सभु झूठु कितै न लेखए ॥
उसके लिए हार शृंगार, मीठे रस, काम-भोग एवं भोजन सभी झूठे हैं और किसी गणना में नहीं।
ਮੈ ਮਤ ਜੋਬਨਿ ਗਰਬਿ ਗਾਲੀ ਦੁਧਾ ਥਣੀ ਨ ਆਵਏ ॥
मै मत जोबनि गरबि गाली दुधा थणी न आवए ॥
वह अपनी युवावस्था के घमंड में डूबकर स्वयं को विनाश की ओर ले जा चुकी है, और उसे इस बात का एहसास तक नहीं कि यह जवानी फिर लौटकर नहीं आएगी।
ਨਾਨਕ ਸਾ ਧਨ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਈ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਨੀਦ ਨ ਆਵਏ ॥੧॥
नानक सा धन मिलै मिलाई बिनु पिर नीद न आवए ॥१॥
हे नानक ! जीव-स्त्री अपने प्रभु-पति से तभी मिल सकती है, यदि वह उसको अपने साथ मिलाता है। प्रभु-पति के बिना उसको नींद नहीं आती॥ १॥
ਮੁੰਧ ਨਿਮਾਨੜੀਆ ਜੀਉ ਬਿਨੁ ਧਨੀ ਪਿਆਰੇ ॥
मुंध निमानड़ीआ जीउ बिनु धनी पिआरे ॥
अपने प्रियतम प्रभु के बिना जीव-स्त्री आदरहीन है।
ਕਿਉ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈਗੀ ਬਿਨੁ ਉਰ ਧਾਰੇ ॥
किउ सुखु पावैगी बिनु उर धारे ॥
उसको अपने हृदय के साथ लगाए बिना वह सुख-शांति किस तरह प्राप्त कर सकती है ?
ਨਾਹ ਬਿਨੁ ਘਰ ਵਾਸੁ ਨਾਹੀ ਪੁਛਹੁ ਸਖੀ ਸਹੇਲੀਆ ॥
नाह बिनु घर वासु नाही पुछहु सखी सहेलीआ ॥
पति-प्रभु के बिना घर रहने के योग्य नहीं चाहे अपनी सखियों-सहेलियों से पूछ लो।
ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੁ ਨਾਹੀ ਵਸਹਿ ਸਾਚਿ ਸੁਹੇਲੀਆ ॥
बिनु नाम प्रीति पिआरु नाही वसहि साचि सुहेलीआ ॥
नाम के बिना कोई प्रीति एवं स्नेह नहीं। अपने सच्चे स्वामी के साथ वह सुख में वास करती है।
ਸਚੁ ਮਨਿ ਸਜਨ ਸੰਤੋਖਿ ਮੇਲਾ ਗੁਰਮਤੀ ਸਹੁ ਜਾਣਿਆ ॥
सचु मनि सजन संतोखि मेला गुरमती सहु जाणिआ ॥
सत्य एवं संतोष द्वारा मित्र प्रभु का मिलन प्राप्त होता है और गुरु के उपदेश द्वारापति-परमेश्वर समझा जाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਛੋਡੈ ਸਾ ਧਨ ਨਾਮਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਣੀਆ ॥੨॥
नानक नामु न छोडै सा धन नामि सहजि समाणीआ ॥२॥
हे नानक ! जो दुल्हन (जीव-स्त्री) नाम को नही त्यागती, वह नाम के द्वारा प्रभु में लीन हो जाती है ॥२॥
ਮਿਲੁ ਸਖੀ ਸਹੇਲੜੀਹੋ ਹਮ ਪਿਰੁ ਰਾਵੇਹਾ ॥
मिलु सखी सहेलड़ीहो हम पिरु रावेहा ॥
आओ मेरी सखियो एवं सहेलियों ! हम अपने प्रियतम प्रभु का यशगान करें।
ਗੁਰ ਪੁਛਿ ਲਿਖਉਗੀ ਜੀਉ ਸਬਦਿ ਸਨੇਹਾ ॥
गुर पुछि लिखउगी जीउ सबदि सनेहा ॥
मैं अपने गुरदेव से पूँछूगी और उनके उपदेश को अपने सन्देश के तौर पर लिखूँगी।
ਸਬਦੁ ਸਾਚਾ ਗੁਰਿ ਦਿਖਾਇਆ ਮਨਮੁਖੀ ਪਛੁਤਾਣੀਆ ॥
सबदु साचा गुरि दिखाइआ मनमुखी पछुताणीआ ॥
सच्चा शब्द गुरु ने मुझे दिखा दिया है लेकिन स्वेच्छाचारी पश्चाताप करेंगे।
ਨਿਕਸਿ ਜਾਤਉ ਰਹੈ ਅਸਥਿਰੁ ਜਾਮਿ ਸਚੁ ਪਛਾਣਿਆ ॥
निकसि जातउ रहै असथिरु जामि सचु पछाणिआ ॥
जब मैंने सत्य को पहचान लिया तो मेरा दौड़ता मन स्थिर हो गया है।
ਸਾਚ ਕੀ ਮਤਿ ਸਦਾ ਨਉਤਨ ਸਬਦਿ ਨੇਹੁ ਨਵੇਲਓ ॥
साच की मति सदा नउतन सबदि नेहु नवेलओ ॥
सत्य का बोध हमेशा नवीन होता है और सत्य नाम का प्रेम सदैव नवीन रहता है।
ਨਾਨਕ ਨਦਰੀ ਸਹਜਿ ਸਾਚਾ ਮਿਲਹੁ ਸਖੀ ਸਹੇਲੀਹੋ ॥੩॥
नानक नदरी सहजि साचा मिलहु सखी सहेलीहो ॥३॥
हे नानक ! सत्यस्वरूप परमेश्वर की कृपा-दृष्टि से सुख-शांति प्राप्त होती है। मेरी सखियों एवं सहेलियों उससे मिलो ॥३॥
ਮੇਰੀ ਇਛ ਪੁਨੀ ਜੀਉ ਹਮ ਘਰਿ ਸਾਜਨੁ ਆਇਆ ॥
मेरी इछ पुनी जीउ हम घरि साजनु आइआ ॥
मेरी कामना पूरी हो गई है और मेरा साजन प्रभु मेरे (मन के) घर में आ गया है।
ਮਿਲਿ ਵਰੁ ਨਾਰੀ ਮੰਗਲੁ ਗਾਇਆ ॥
मिलि वरु नारी मंगलु गाइआ ॥
पति व पत्नी के मिलन पर मंगल गीत गायन किया गया।
ਗੁਣ ਗਾਇ ਮੰਗਲੁ ਪ੍ਰੇਮਿ ਰਹਸੀ ਮੁੰਧ ਮਨਿ ਓਮਾਹਓ ॥
गुण गाइ मंगलु प्रेमि रहसी मुंध मनि ओमाहओ ॥
पति-प्रभु की महिमा एवं प्रेम में मंगल (खुशी के) गीत गायन करने से जीव-स्त्री की आत्मा प्रसन्न हो गई है।
ਸਾਜਨ ਰਹੰਸੇ ਦੁਸਟ ਵਿਆਪੇ ਸਾਚੁ ਜਪਿ ਸਚੁ ਲਾਹਓ ॥
साजन रहंसे दुसट विआपे साचु जपि सचु लाहओ ॥
मित्र प्रसन्न हैं और शत्रु (विकार) अप्रसन्न हैं। सद्पुरुष का भजन करने से सच्चा लाभ प्राप्त होता है।
ਕਰ ਜੋੜਿ ਸਾ ਧਨ ਕਰੈ ਬਿਨਤੀ ਰੈਣਿ ਦਿਨੁ ਰਸਿ ਭਿੰਨੀਆ ॥
कर जोड़ि सा धन करै बिनती रैणि दिनु रसि भिंनीआ ॥
जीव-स्त्री हाथ जोड़कर विनती करती है कि रात-दिन वह अपने प्रभु के प्रेम में लीन रहे।
ਨਾਨਕ ਪਿਰੁ ਧਨ ਕਰਹਿ ਰਲੀਆ ਇਛ ਮੇਰੀ ਪੁੰਨੀਆ ॥੪॥੧॥
नानक पिरु धन करहि रलीआ इछ मेरी पुंनीआ ॥४॥१॥
हे नानक ! अब प्रियतम प्रभु एवं उसकी पत्नी (जीवात्मा) मिलकर आत्मिक आनन्द भोगते हैं और मेरी कामना पूर्ण हो गई है ॥४॥ १॥