Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 240

Page 240

ਜਿਨਿ ਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਦੀਨਾ ਜੀਉ ॥ जिस गुरु ने मुझे आध्यात्मिक जीवन दिया है,
ਆਪੁਨਾ ਦਾਸਰਾ ਆਪੇ ਮੁਲਿ ਲੀਉ ॥੬॥ उसने मुझे स्वयं खरीद लिया है और अपना सेवक बना लिया है ॥६॥
ਆਪੇ ਲਾਇਓ ਅਪਨਾ ਪਿਆਰੁ ॥ गुरु ने मुझे स्वयं प्रेम की देन प्रदान की है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕਉ ਕਰੀ ਨਮਸਕਾਰੁ ॥੭॥ उस महान गुरु को मैं सदा-सर्वदा नम्रता और श्रद्धा सहित प्रणाम करता हूँ॥७॥
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਭੈ ਭ੍ਰਮ ਦੁਖ ਲਾਥਾ ॥ मेरे झगड़े, क्लेश, भय, भ्रम एवं समस्त दुःख दूर हो गए हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰਾ ਗੁਰੁ ਸਮਰਾਥਾ ॥੮॥੯॥ नानक कहते हैं - मेरे गुरु सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और कृपालु हैं॥८॥९॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਮਿਲੁ ਮੇਰੇ ਗੋਬਿੰਦ ਅਪਨਾ ਨਾਮੁ ਦੇਹੁ ॥ हे मेरे गोबिन्द ! कृपया अपनी उपस्थिति का आभास कराएं और मुझे अपने प्रेम से आशीर्वादित करें।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਅਸਨੇਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ नामविहीन सांसारिक प्रेम को धिक्कार है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਜੋ ਪਹਿਰੈ ਖਾਇ ॥ भगवान के नाम बिना जीव जो कुछ पहनता एवं खाता रहता है,
ਜਿਉ ਕੂਕਰੁ ਜੂਠਨ ਮਹਿ ਪਾਇ ॥੧॥ वह उस कुत्ते की तरह है जो जूठे पत्तलों में मुँह मारता रहता है।॥ १॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਜੇਤਾ ਬਿਉਹਾਰੁ ॥ भगवान् के नाम की स्मृति बिना समस्त कार्य-व्यवहार
ਜਿਉ ਮਿਰਤਕ ਮਿਥਿਆ ਸੀਗਾਰੁ ॥੨॥ मृतक के हार-श्रृंगार की तरह व्यर्थ है ॥२॥
ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਕਰੇ ਰਸ ਭੋਗ ॥ जो व्यक्ति नाम को भुलाकर भोग-विलास में पड़ता है,
ਸੁਖੁ ਸੁਪਨੈ ਨਹੀ ਤਨ ਮਹਿ ਰੋਗ ॥੩॥ उसको स्वप्न में भी सुख नहीं मिलता और उसका शरीर रोगी हो जाता है ॥३॥
ਨਾਮੁ ਤਿਆਗਿ ਕਰੇ ਅਨ ਕਾਜ ॥ प्रभु के नाम को त्याग कर यदि मनुष्य दूसरे काम धन्धे करता है,
ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਝੂਠੇ ਸਭਿ ਪਾਜ ॥੪॥ तो उसके झूठे आडम्बर सब के सब नाश हो जाते हैं।॥ ४ ॥
ਨਾਮ ਸੰਗਿ ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਲਾਵੈ ॥ जो जीव अपने हृदय में प्रभु का प्रेम नहीं लगाता,
ਕੋਟਿ ਕਰਮ ਕਰਤੋ ਨਰਕਿ ਜਾਵੈ ॥੫॥ ऐसा व्यक्ति नरक में जाता है, चाहे वह करोड़ों ही कर्म-धर्म करता रहे ॥५॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਿਨਿ ਮਨਿ ਨ ਆਰਾਧਾ ॥ जो व्यक्ति अपने हृदय में परमेश्वर के नाम की आराधना नहीं करता,
ਚੋਰ ਕੀ ਨਿਆਈ ਜਮ ਪੁਰਿ ਬਾਧਾ ॥੬॥ वह यमलोक में चोर की भाँति पकड़ा जाता है। ६॥
ਲਾਖ ਅਡੰਬਰ ਬਹੁਤੁ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਝੂਠੇ ਪਾਸਾਰਾ ॥੭॥ लाखों ही आडम्बर एवं अनेक प्रसार,प्रभु के नाम बिना ये सब झुठे दिखावे हैं॥७॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਸੋਈ ਜਨੁ ਲੇਇ ॥ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਦੇਇ ॥੮॥੧੦॥ हे नानक वो ही व्यक्ति भगवान् के नाम का सिमरन करता है,जिस व्यक्ति को भगवान् कृपा-दृष्टि करके देता है ॥८॥१०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी माझ, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਆਦਿ ਮਧਿ ਜੋ ਅੰਤਿ ਨਿਬਾਹੈ ॥ ਸੋ ਸਾਜਨੁ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਚਾਹੈ ॥੧॥ जो सृष्टि के आदि, मध्य, अंतकाल में जीव का साथ निभाता है,मेरा मन तो उस साजन-परमात्मा से मिलने का ही इच्छुक बना हुआ है॥ १॥
ਹਰਿ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦਾ ਸੰਗਿ ਚਾਲੈ ॥ ईश्वर का प्रेम सदा प्राणी के साथ जाता है।
ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ सर्वव्यापक एवं दया का घर परमात्मा समस्त जीव-जन्तुओं का पालन पोषण करता है॥१॥ रहाउ ॥
ਬਿਨਸਤ ਨਾਹੀ ਛੋਡਿ ਨ ਜਾਇ ॥ ईश्वर न तो कभी नष्ट होते हैं और न ही वह कभी प्राणियों का त्याग करता है।
ਜਹ ਪੇਖਾ ਤਹ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੨॥ जहाँ कहीं मैं देखता हूँ, वहाँ ईश्वर उपस्थित हैं॥ २॥
ਸੁੰਦਰੁ ਸੁਘੜੁ ਚਤੁਰੁ ਜੀਅ ਦਾਤਾ ॥ ईश्वर अति सुन्दर, बुद्धिमान, चतुर एवं प्राणदाता है।
ਭਾਈ ਪੂਤੁ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮਾਤਾ ॥੩॥ वह ही मेरा भाई, पुत्र, पिता एवं माता है॥ ३॥
ਜੀਵਨ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ਮੇਰੀ ਰਾਸਿ ॥ वह मेरा जीवन एवं प्राणों का आधार है और वही मेरी जीवन पूँजी है।
ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਈ ਕਰਿ ਰਿਦੈ ਨਿਵਾਸਿ ॥੪॥ मेरे हृदय में निवास करके प्रभु ने मेरे साथ प्रीति लगाई है ॥४॥
ਮਾਇਆ ਸਿਲਕ ਕਾਟੀ ਗੋਪਾਲਿ ॥ सृष्टि के पालनहार गोपाल ने मेरे माया के बन्धन काट दिए हैं।
ਕਰਿ ਅਪੁਨਾ ਲੀਨੋ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥੫॥ मेरी ओर कृपा-दृष्टि से देखकर प्रभु ने मुझे अपना बना लिया है ॥५॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਕਾਟੇ ਸਭਿ ਰੋਗ ॥ उनका सिमरन करने से सभी रोग (दुःख) दूर हो गए हैं।
ਚਰਣ ਧਿਆਨ ਸਰਬ ਸੁਖ ਭੋਗ ॥੬॥ उसके चरणों में वृत्ति लगा कर सर्व सुख प्राप्त कर लिए जाते हैं।॥ ६॥
ਪੂਰਨ ਪੁਰਖੁ ਨਵਤਨੁ ਨਿਤ ਬਾਲਾ ॥ सर्वव्यापक प्रभु सदा नवांगतुक एवं यौवन सम्पन्न है।
ਹਰਿ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਖਵਾਲਾ ॥੭॥ भीतर एवं बाहर ईश्वर ही मेरा रखवाला है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪਦੁ ਚੀਨ ॥ ਸਰਬਸੁ ਨਾਮੁ ਭਗਤ ਕਉ ਦੀਨ ॥੮॥੧੧॥ हे नानक ! जो प्रभु-परमेश्वर के महान पद की अनुभूति करता है, उस भक्त को वह दुनिया का सर्वस्व अपने नाम के रूप में दे देता है ॥८॥११॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ राग गौड़ी माझ महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਖੋਜਤ ਫਿਰੇ ਅਸੰਖ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰੀਆ ॥ असंख्य प्राणी भगवान् को खोजते रहे हैं लेकिन किसी प्राणी को भी भगवान् की महिमा का अन्त प्राप्त नहीं हुआ।
ਸੇਈ ਹੋਏ ਭਗਤ ਜਿਨਾ ਕਿਰਪਾਰੀਆ ॥੧॥ जिन पर भगवान् की कृपा-दृष्टि होती है, ऐसे व्यक्ति ही भगवान् के भक्त बनते हैं॥ १॥
ਹਉ ਵਾਰੀਆ ਹਰਿ ਵਾਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे प्रभु ! मैं आप पर तन एवं मन से न्यौछावर हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਪੰਥੁ ਡਰਾਉ ਬਹੁਤੁ ਭੈਹਾਰੀਆ ॥ भवसागर भयानक मार्ग बारे सुन-सुन कर मैं अत्यंत भयभीत हो गया हूँ।
ਮੈ ਤਕੀ ਓਟ ਸੰਤਾਹ ਲੇਹੁ ਉਬਾਰੀਆ ॥੨॥ अंततः, मैंने भगवान के भक्तों का आश्रय लिया और उनसे प्रार्थना की कि वे मुझे रक्षा प्रदान करें।॥ २॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top