Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 229

Page 229

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ गउड़ी महला १ ॥ राग गौड़ी, प्रथम गुरु द्वारा: १ ॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੂਝਿ ਲੇ ਤਉ ਹੋਇ ਨਿਬੇਰਾ ॥ गुर परसादी बूझि ले तउ होइ निबेरा ॥ हे जिज्ञासु ! यदि गुरु की कृपा से प्राणी ईश्वर की महिमा को समझ ले तो उसे आवागमन से मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
ਘਰਿ ਘਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨਾ ਸੋ ਠਾਕੁਰੁ ਮੇਰਾ ॥੧॥ घरि घरि नामु निरंजना सो ठाकुरु मेरा ॥१॥ हे प्राणी ! जिसका नाम निरंजन (पवित्र) है और उसका नाम प्रत्येक हृदय में समा रहा है, वही मेरा ठाकुर है॥ १॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦ ਨ ਛੂਟੀਐ ਦੇਖਹੁ ਵੀਚਾਰਾ ॥ बिनु गुर सबद न छूटीऐ देखहु वीचारा ॥ गुरु के शब्द बिना मनुष्य को मुक्ति प्राप्त नहीं होती। इस बात का विचार करके देख ले।
ਜੇ ਲਖ ਕਰਮ ਕਮਾਵਹੀ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਅੰਧਿਆਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जे लख करम कमावही बिनु गुर अंधिआरा ॥१॥ रहाउ ॥ मनुष्य चाहे लाखों धर्म-कर्म कर ले परन्तु गुरु के ज्ञान बिना अन्धेरा ही अन्धेरा है॥ १॥ रहाउ॥
ਅੰਧੇ ਅਕਲੀ ਬਾਹਰੇ ਕਿਆ ਤਿਨ ਸਿਉ ਕਹੀਐ ॥ अंधे अकली बाहरे किआ तिन सिउ कहीऐ ॥ हम उन्हें क्या कह सकते हैं जो ज्ञान से अंधे एवं बुद्धि से विहीन हैं?
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪੰਥੁ ਨ ਸੂਝਈ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਨਿਰਬਹੀਐ ॥੨॥ बिनु गुर पंथु न सूझई कितु बिधि निरबहीऐ ॥२॥ गुरु के बिना सत्य मार्ग दिखाई नहीं देता, तब मनुष्य का किस तरह निर्वाह चले ? ॥ २॥
ਖੋਟੇ ਕਉ ਖਰਾ ਕਹੈ ਖਰੇ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣੈ ॥ खोटे कउ खरा कहै खरे सार न जाणै ॥ ऐसा आध्यात्मिक रूप से अंधा व्यक्ति सांसारिक धन को वास्तविक मानता है जिसका भगवान् के दरबार में कोई मूल्य नहीं है। उसे वास्तविक धन, नाम के मूल्य का एहसास नहीं है।
ਅੰਧੇ ਕਾ ਨਾਉ ਪਾਰਖੂ ਕਲੀ ਕਾਲ ਵਿਡਾਣੈ ॥੩॥ अंधे का नाउ पारखू कली काल विडाणै ॥३॥ यह कलियुग का समय आश्चर्यजनक है कि ज्ञानहीन मनुष्य को बुद्धिमान कहा जा रहा है॥ ३॥
ਸੂਤੇ ਕਉ ਜਾਗਤੁ ਕਹੈ ਜਾਗਤ ਕਉ ਸੂਤਾ ॥ सूते कउ जागतु कहै जागत कउ सूता ॥ बड़ी अदभुत बात है कि संसार अज्ञानता की निद्रा में सोए हुए जीव को जागृत कहता है और जो जीव भगवान की भक्ति में जागृत रहता है उसे दुनिया सोया हुआ कह रही है।
ਜੀਵਤ ਕਉ ਮੂਆ ਕਹੈ ਮੂਏ ਨਹੀ ਰੋਤਾ ॥੪॥ जीवत कउ मूआ कहै मूए नही रोता ॥४॥ जो व्यक्ति भगवान् की भक्ति में मग्न रहता है, उसे दुनिया मृत कहती है और लेकिन वास्तव में मृतकों के लिए विलाप नहीं करता ॥ ४ ॥
ਆਵਤ ਕਉ ਜਾਤਾ ਕਹੈ ਜਾਤੇ ਕਉ ਆਇਆ ॥ आवत कउ जाता कहै जाते कउ आइआ ॥ जो व्यक्ति गुरु के मार्ग पर आता है, उसका आगमन हारा हुआ माना जाता है और जो सांसारिक धन-संपत्ति में फँस जाता है, उसका आगमन फलदायी माना जाता है।
ਪਰ ਕੀ ਕਉ ਅਪੁਨੀ ਕਹੈ ਅਪੁਨੋ ਨਹੀ ਭਾਇਆ ॥੫॥ पर की कउ अपुनी कहै अपुनो नही भाइआ ॥५॥ मनुष्य पराए को अपना कहता है और अपने को पसंद नहीं करता ॥ ५ ॥
ਮੀਠੇ ਕਉ ਕਉੜਾ ਕਹੈ ਕੜੂਏ ਕਉ ਮੀਠਾ ॥ मीठे कउ कउड़ा कहै कड़ूए कउ मीठा ॥ जो मीठा है, उसको वह कड़वा कहता है और कड़वे को वह मीठा बताता है।
ਰਾਤੇ ਕੀ ਨਿੰਦਾ ਕਰਹਿ ਐਸਾ ਕਲਿ ਮਹਿ ਡੀਠਾ ॥੬॥ राते की निंदा करहि ऐसा कलि महि डीठा ॥६॥ भगवान की भक्ति में मग्न हुए भक्त की दुनिया निन्दा करती है। दुनिया में ऐसा तमाशा मैंने कलियुग में देखा है॥ ६॥
ਚੇਰੀ ਕੀ ਸੇਵਾ ਕਰਹਿ ਠਾਕੁਰੁ ਨਹੀ ਦੀਸੈ ॥ चेरी की सेवा करहि ठाकुरु नही दीसै ॥ मनुष्य दासी (माया) की सेवा करता है परन्तु ठाकुर को वह देखता ही नहीं।
ਪੋਖਰੁ ਨੀਰੁ ਵਿਰੋਲੀਐ ਮਾਖਨੁ ਨਹੀ ਰੀਸੈ ॥੭॥ पोखरु नीरु विरोलीऐ माखनु नही रीसै ॥७॥ तालाब का जल मथने से मक्खन नहीं निकलता, उसी प्रकार सांसारिक धन से शांति प्राप्त नहीं की जा सकती। ॥ ७ ॥
ਇਸੁ ਪਦ ਜੋ ਅਰਥਾਇ ਲੇਇ ਸੋ ਗੁਰੂ ਹਮਾਰਾ ॥ इसु पद जो अरथाइ लेइ सो गुरू हमारा ॥ जो इस परम अवस्था के अर्थ को समझता है, वह मेरा गुरु है।
ਨਾਨਕ ਚੀਨੈ ਆਪ ਕਉ ਸੋ ਅਪਰ ਅਪਾਰਾ ॥੮॥ नानक चीनै आप कउ सो अपर अपारा ॥८॥ हे नानक ! जो अपने आत्म-स्वरूप को समझता है, वह अनन्त एवं अपार है॥ ८॥
ਸਭੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਆਪੇ ਭਰਮਾਇਆ ॥ सभु आपे आपि वरतदा आपे भरमाइआ ॥ परमेश्वर स्वयं ही सर्वव्यापक हो रहा है और स्वयं ही प्राणियों को भ्रमित करता है।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਬੂਝੀਐ ਸਭੁ ਬ੍ਰਹਮੁ ਸਮਾਇਆ ॥੯॥੨॥੧੮॥ गुर किरपा ते बूझीऐ सभु ब्रहमु समाइआ ॥९॥२॥१८॥ गुरु की कृपा से मनुष्य यह समझता है कि ईश्वर सर्वव्यापक है॥ ९ ॥ २ ॥ १८ ॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ਅਸਟਪਦੀਆ रागु गउड़ी गुआरेरी महला ३ असटपदीआ राग गौड़ी ग्वारयरी, तीसरे गुरु द्वारा: अष्टपदी
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮਨ ਕਾ ਸੂਤਕੁ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ॥ मन का सूतकु दूजा भाउ ॥ किसी के मन की अशुद्धता उस व्यक्ति के ईश्वर के स्थान पर सांसारिक चीज़ों के प्रति प्रेम के कारण होती है।
ਭਰਮੇ ਭੂਲੇ ਆਵਉ ਜਾਉ ॥੧॥ भरमे भूले आवउ जाउ ॥१॥ दुविधा के कारण मोह-माया में ग्रस्त हुआ मनुष्य आवागमन के चक्र में पड़कर संसार में जन्मता-मरता रहता है॥ १॥
ਮਨਮੁਖਿ ਸੂਤਕੁ ਕਬਹਿ ਨ ਜਾਇ ॥ मनमुखि सूतकु कबहि न जाइ ॥ स्वेच्छाचारी जीव के मन का सूतक (अपवित्रता) तब तक निवृत्त नहीं होता,
ਜਿਚਰੁ ਸਬਦਿ ਨ ਭੀਜੈ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिचरु सबदि न भीजै हरि कै नाइ ॥१॥ रहाउ ॥ जब तक वह गुरु के उपदेश अनुसार ईश्वर के नाम में तल्लीन नहीं होता॥ १॥ रहाउ॥
ਸਭੋ ਸੂਤਕੁ ਜੇਤਾ ਮੋਹੁ ਆਕਾਰੁ ॥ सभो सूतकु जेता मोहु आकारु ॥ सांसारिक वस्तुओं के प्रति मोह ही मन की सारी अशुद्धियों का आधार है।
ਮਰਿ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥੨॥ मरि मरि जमै वारो वार ॥२॥ परिणामस्वरूप प्राणी पुनः पुनः मर मर कर जन्म लेता है॥ २॥
ਸੂਤਕੁ ਅਗਨਿ ਪਉਣੈ ਪਾਣੀ ਮਾਹਿ ॥ सूतकु अगनि पउणै पाणी माहि ॥ अशुद्धता अग्नि, पवन एवं जल में विद्यमान है।
ਸੂਤਕੁ ਭੋਜਨੁ ਜੇਤਾ ਕਿਛੁ ਖਾਹਿ ॥੩॥ सूतकु भोजनु जेता किछु खाहि ॥३॥ सभी भोजन जो हम सेवन करते हैं, वह भी दूषित होता है॥ ३॥
ਸੂਤਕਿ ਕਰਮ ਨ ਪੂਜਾ ਹੋਇ ॥ सूतकि करम न पूजा होइ ॥ मनुष्य के कर्मों में भी सूतक विद्यमान है, क्योंकि वह प्रभु की पूजा-अर्चना नहीं करता।
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥੪॥ नामि रते मनु निरमलु होइ ॥४॥ प्रभु के नाम में मग्न हो जाने से मन पवित्र हो जाता है॥ ४॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਐ ਸੂਤਕੁ ਜਾਇ ॥ सतिगुरु सेविऐ सूतकु जाइ ॥ सतगुरु की सेवा करने से दुषिता दूर हो जाता है।
ਮਰੈ ਨ ਜਨਮੈ ਕਾਲੁ ਨ ਖਾਇ ॥੫॥ मरै न जनमै कालु न खाइ ॥५॥ गुरु की शरण में आने से न मनुष्य मरता है, न ही पुनः संसार में जन्म लेता है। न ही मृत्यु उसे निगलती है॥ ५॥
ਸਾਸਤ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸੋਧਿ ਦੇਖਹੁ ਕੋਇ ॥ सासत सिम्रिति सोधि देखहु कोइ ॥ कोई व्यक्ति शास्त्रों एवं स्मृतियों का अध्ययन करके देख ले।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਕੋ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥੬॥ विणु नावै को मुकति न होइ ॥६॥ ईश्वर नाम के बिना कोई भी मुक्त नहीं होता ॥ ६॥
ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਨਾਮੁ ਉਤਮੁ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥ जुग चारे नामु उतमु सबदु बीचारि ॥ चारों युगों (सतयुग, त्रैता, द्वापर एवं कलियुग) में नाम एवं शब्द का चिन्तन सर्वश्रेष्ठ पदार्थ है।
ਕਲਿ ਮਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਉਤਰਸਿ ਪਾਰਿ ॥੭॥ कलि महि गुरमुखि उतरसि पारि ॥७॥ लकिन कलियुग में केवल गुरमुख का ही उद्धार होता है॥ ७ ॥
ਸਾਚਾ ਮਰੈ ਨ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥ साचा मरै न आवै जाइ ॥ सत्यस्वरूप परमेश्वर अनश्वर है और आवागमन के चक्र में नहीं पड़ता।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੮॥੧॥ नानक गुरमुखि रहै समाइ ॥८॥१॥ हे नानक ! गुरमुख सत्य में ही समाया रहता है॥ ८ ॥ १॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ गउड़ी महला ३ ॥ राग गौड़ी, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਾ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰਾ ॥ गुरमुखि सेवा प्रान अधारा ॥ भगवान् की भक्ति ही गुरमुख के प्राणों का आधार है।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਰਾਖਹੁ ਹਿਰਦੈ ਉਰ ਧਾਰਾ ॥ हरि जीउ राखहु हिरदै उर धारा ॥ अतः पूज्य परमेश्वर को ही अपने हृदय एवं अन्तर्मन में बसाकर रखो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੋਭਾ ਸਾਚ ਦੁਆਰਾ ॥੧॥ गुरमुखि सोभा साच दुआरा ॥१॥ गुरमुख को सत्य के दरबार में बड़ी शोभा प्राप्त होती है॥ १॥
ਪੰਡਿਤ ਹਰਿ ਪੜੁ ਤਜਹੁ ਵਿਕਾਰਾ ॥ पंडित हरि पड़ु तजहु विकारा ॥ हे पण्डित ! भगवान् की महिमा का चिन्तन कर और विकारों को त्याग दे।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਉਜਲੁ ਉਤਰਹੁ ਪਾਰਾ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरमुखि भउजलु उतरहु पारा ॥१॥ रहाउ ॥ गुरमुख भयानक संसार सागर से पार हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥


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