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ਪ੍ਰਭ ਪਾਏ ਹਮ ਅਵਰੁ ਨ ਭਾਰਿਆ ॥੭॥
प्रभ पाए हम अवरु न भारिआ ॥७॥
एक ईश्वर को मैंने पा लिया है और अब मैं किसी दूसरे को नहीं ढूंढता॥ ७॥
ਸਾਚ ਮਹਲਿ ਗੁਰਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ॥
साच महलि गुरि अलखु लखाइआ ॥
गुरु जी ने मुझे अदृश्य प्रभु के सत्य मन्दिर में दर्शन करवा दिए हैं।
ਨਿਹਚਲ ਮਹਲੁ ਨਹੀ ਛਾਇਆ ਮਾਇਆ ॥
निहचल महलु नही छाइआ माइआ ॥
उसने मन की ऐसी अवस्था प्राप्त कर ली है जहाँ माया प्रभावित नहीं करती।
ਸਾਚਿ ਸੰਤੋਖੇ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੮॥
साचि संतोखे भरमु चुकाइआ ॥८॥
सत्य द्वारा संतोष प्राप्त होता है और दुविधा दूर हो जाती है॥ ८ ॥
ਜਿਨ ਕੈ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥
जिन कै मनि वसिआ सचु सोई ॥
जिसके हृदय में सत्यस्वरूप परमात्मा निवास करता है,
ਤਿਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਈ ॥
तिन की संगति गुरमुखि होई ॥
उनकी संगति में प्राणी धर्मात्मा बन जाता है।
ਨਾਨਕ ਸਾਚਿ ਨਾਮਿ ਮਲੁ ਖੋਈ ॥੯॥੧੫॥
नानक साचि नामि मलु खोई ॥९॥१५॥
हे नानक ! सत्य नाम विकारों की मलिनता को स्वच्छ कर देता है॥ ९॥ १५ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
राग गौड़ी, प्रथम गुरु: १ ॥
ਰਾਮਿ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਰਾਪੈ ਜਾ ਕਾ ॥
रामि नामि चितु रापै जा का ॥
जिस व्यक्ति का हृदय राम के नाम में मग्न रहता है,
ਉਪਜੰਪਿ ਦਰਸਨੁ ਕੀਜੈ ਤਾ ਕਾ ॥੧॥
उपज्मपि दरसनु कीजै ता का ॥१॥
उसके दर्शन प्रात:काल उठते ही करने चाहिए॥ १॥
ਰਾਮ ਨ ਜਪਹੁ ਅਭਾਗੁ ਤੁਮਾਰਾ ॥
राम न जपहु अभागु तुमारा ॥
हे भाई ! यदि तुम राम का भजन-सिमरन नहीं करते तो यह तुम्हारा दुर्भाग्य है।
ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਰਾਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जुगि जुगि दाता प्रभु रामु हमारा ॥१॥ रहाउ ॥
युग-युगों से हमारा प्रभु राम हमें नियामतें देता आ रहा है॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰਮਤਿ ਰਾਮੁ ਜਪੈ ਜਨੁ ਪੂਰਾ ॥
गुरमति रामु जपै जनु पूरा ॥
जो व्यक्ति गुरु की मति द्वारा राम का नाम जपता रहता है, वही व्यक्ति पूर्ण बन जाता है।
ਤਿਤੁ ਘਟ ਅਨਹਤ ਬਾਜੇ ਤੂਰਾ ॥੨॥
तितु घट अनहत बाजे तूरा ॥२॥
ऐसे पूर्ण व्यक्ति के हृदय में अनहद मधुर बाजे बजते रहते हैं।॥ २॥
ਜੋ ਜਨ ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਪਿਆਰਿ ॥
जो जन राम भगति हरि पिआरि ॥
जो व्यक्ति राम एवं राम की भक्ति से प्रेम करते हैं,
ਸੇ ਪ੍ਰਭਿ ਰਾਖੇ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥੩॥
से प्रभि राखे किरपा धारि ॥३॥
उनको ईश्वर कृपा करके भवसागर से बचा लेता है॥ ३॥
ਜਿਨ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੋਈ ॥
जिन कै हिरदै हरि हरि सोई ॥
जिन लोगों के हृदय में हरि-परमेश्वर वास करता है,
ਤਿਨ ਕਾ ਦਰਸੁ ਪਰਸਿ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੪॥
तिन का दरसु परसि सुखु होई ॥४॥
उनके दर्शन करने से आत्मिक सुख प्राप्त होता है॥ ४॥
ਸਰਬ ਜੀਆ ਮਹਿ ਏਕੋ ਰਵੈ ॥
सरब जीआ महि एको रवै ॥
समस्त जीवों के भीतर एक ईश्वर उपस्थित है।
ਮਨਮੁਖਿ ਅਹੰਕਾਰੀ ਫਿਰਿ ਜੂਨੀ ਭਵੈ ॥੫॥
मनमुखि अहंकारी फिरि जूनी भवै ॥५॥
अहंकारी पुरुष अंततः योनियों में भटकता रहता है॥ ५॥
ਸੋ ਬੂਝੈ ਜੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਏ ॥
सो बूझै जो सतिगुरु पाए ॥
जिसे सतगुरु मिल जाता है, उसे ज्ञान हो जाता है।
ਹਉਮੈ ਮਾਰੇ ਗੁਰ ਸਬਦੇ ਪਾਏ ॥੬॥
हउमै मारे गुर सबदे पाए ॥६॥
ऐसा प्राणी अपना अहंकार से निवृत्त करके गुरु के शब्द में लीन होकर ईश्वर को प्राप्त कर लेता है॥ ६॥
ਅਰਧ ਉਰਧ ਕੀ ਸੰਧਿ ਕਿਉ ਜਾਨੈ ॥
अरध उरध की संधि किउ जानै ॥
भक्ति-उपासना के बिना कोई जीव आत्मा से परमात्मा के मिलन को किस तरह जान सकता है?
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੰਧਿ ਮਿਲੈ ਮਨੁ ਮਾਨੈ ॥੭॥
गुरमुखि संधि मिलै मनु मानै ॥७॥
केवल वही गुरुमुख जीव जिसका मन नाम के ध्यान में दृढ़ता एवं मन में संतोष रखता है वह जीवात्मा प्रभु के मिलन को जान जाता है॥ ७॥
ਹਮ ਪਾਪੀ ਨਿਰਗੁਣ ਕਉ ਗੁਣੁ ਕਰੀਐ ॥
हम पापी निरगुण कउ गुणु करीऐ ॥
हे प्रभु! हम जीव गुणविहीन एवं पापी हैं, और हमें कृपा करके गुणवान बना दो।
ਪ੍ਰਭ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ਨਾਨਕ ਜਨ ਤਰੀਐ ॥੮॥੧੬॥
प्रभ होइ दइआलु नानक जन तरीऐ ॥८॥१६॥
हे नानक ! जब प्रभु दया करते हैं तो जीव भवसागर से पार हो जाता है।॥८॥१६॥
ਸੋਲਹ ਅਸਟਪਦੀਆ ਗੁਆਰੇਰੀ ਗਉੜੀ ਕੀਆ ॥
सोलह असटपदीआ गुआरेरी गउड़ी कीआ ॥
यह राग ग्वाररी गौड़ी में प्रथम गुरु की सोलह अष्टपदी का अंत है। ॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੧
गउड़ी बैरागणि महला १
राग गौड़ी बैरागन, प्रथम गुरु: १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜਿਉ ਗਾਈ ਕਉ ਗੋਇਲੀ ਰਾਖਹਿ ਕਰਿ ਸਾਰਾ ॥
जिउ गाई कउ गोइली राखहि करि सारा ॥
जैसे एक ग्वाला अपनी गायों की देखभाल करता है,
ਅਹਿਨਿਸਿ ਪਾਲਹਿ ਰਾਖਿ ਲੇਹਿ ਆਤਮ ਸੁਖੁ ਧਾਰਾ ॥੧॥
अहिनिसि पालहि राखि लेहि आतम सुखु धारा ॥१॥
वैसे ही प्रभु प्राणियों का दिन-रात पोषण एवं रक्षा करता है और उनके हृदय में आत्मिक सुख स्थापित करता है॥ १॥
ਇਤ ਉਤ ਰਾਖਹੁ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥
इत उत राखहु दीन दइआला ॥
हे दीन दयालु ईश्वर ! इहलोक एवं परलोक में मेरी रक्षा कीजिए।
ਤਉ ਸਰਣਾਗਤਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तउ सरणागति नदरि निहाला ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु! मैं तेरी शरण में आया हूँ। इसलिए मुझ पर कृपा-दृष्टि कीजिए॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਦੇਖਉ ਤਹ ਰਵਿ ਰਹੇ ਰਖੁ ਰਾਖਨਹਾਰਾ ॥
जह देखउ तह रवि रहे रखु राखनहारा ॥
हे रक्षक प्रभु! जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, वहाँ आप व्याप्त हो। मेरी रक्षा कीजिए।
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਭੁਗਤਾ ਤੂੰਹੈ ਤੂੰ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰਾ ॥੨॥
तूं दाता भुगता तूंहै तूं प्राण अधारा ॥२॥
हे ईश्वर ! आप देने वाला दाता है, आप ही भोगने वाले हैं और आप ही मेरे प्राणों का आधार है॥ २॥
ਕਿਰਤੁ ਪਇਆ ਅਧ ਊਰਧੀ ਬਿਨੁ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰਾ ॥
किरतु पइआ अध ऊरधी बिनु गिआन बीचारा ॥
ज्ञान को सोचने विचारने के बिना प्राणी अपने कर्मों अनुसार नीचे गिरता अथवा उच्च हो जाता है।
ਬਿਨੁ ਉਪਮਾ ਜਗਦੀਸ ਕੀ ਬਿਨਸੈ ਨ ਅੰਧਿਆਰਾ ॥੩॥
बिनु उपमा जगदीस की बिनसै न अंधिआरा ॥३॥
सृष्टि के स्वामी जगदीश की उपमा के बिना (मोह-माया का) अंधकार दूर नहीं होता ॥ ३॥
ਜਗੁ ਬਿਨਸਤ ਹਮ ਦੇਖਿਆ ਲੋਭੇ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥
जगु बिनसत हम देखिआ लोभे अहंकारा ॥
लालच एवं अभिमान में फँसकर मैंने जगत् का विनाश होते देखा है।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਸਚੁ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਾ ॥੪॥
गुर सेवा प्रभु पाइआ सचु मुकति दुआरा ॥४॥
गुरु की सेवा द्वारा परमेश्वर एवं मोक्ष का सच्चा द्वार प्राप्त होता है। ४॥
ਨਿਜ ਘਰਿ ਮਹਲੁ ਅਪਾਰ ਕੋ ਅਪਰੰਪਰੁ ਸੋਈ ॥
निज घरि महलु अपार को अपर्मपरु सोई ॥
अनन्त परमेश्वर का आत्मस्वरूप प्राणी के अपने हृदय में विद्यमान है और वह परमेश्वर अपरम्पार है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਥਿਰੁ ਕੋ ਨਹੀ ਬੂਝੈ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੫॥
बिनु सबदै थिरु को नही बूझै सुखु होई ॥५॥
प्रभु नाम के बिना कुछ भी स्थिर नहीं। ईश्वर के बोध द्वारा आत्मिक सुख प्राप्त होता है।॥ ५॥
ਕਿਆ ਲੈ ਆਇਆ ਲੇ ਜਾਇ ਕਿਆ ਫਾਸਹਿ ਜਮ ਜਾਲਾ ॥
किआ लै आइआ ले जाइ किआ फासहि जम जाला ॥
हे भाई ! इस जगत् में तुम क्या लेकर आए थे और जब तुझे मृत्यु का फँदा लगा तो क्या लेकर जाओगे ?
ਡੋਲੁ ਬਧਾ ਕਸਿ ਜੇਵਰੀ ਆਕਾਸਿ ਪਤਾਲਾ ॥੬॥
डोलु बधा कसि जेवरी आकासि पताला ॥६॥
रस्सी के साथ बंधे हुए कुएँ के डोल की भाँति कभी तुम आकाश में होते हो और कभी पाताल में होते हो।॥ ६॥
ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਸਹਜੇ ਪਤਿ ਪਾਈਐ ॥
गुरमति नामु न वीसरै सहजे पति पाईऐ ॥
यदि गुरु के उपदेश से प्राणी प्रभु नाम को विस्मृत न करे तो वह सहज ही शोभा पा लेता है।
ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਮਿਲਿ ਆਪੁ ਗਵਾਈਐ ॥੭॥
अंतरि सबदु निधानु है मिलि आपु गवाईऐ ॥७॥
मनुष्य के अन्तर्मन में ही प्रभु नाम का खजाना है, परन्तु यह (खजाना) अपने अहंकार को दूर करने से ही मिलता है॥ ७॥
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣੀ ਗੁਣ ਅੰਕਿ ਸਮਾਵੈ ॥
नदरि करे प्रभु आपणी गुण अंकि समावै ॥
यदि ईश्वर अपनी कृपा-दृष्टि करे तो प्राणी गुणवान बनकर परमात्मा की गोद में जाकर लीन होता है।
ਨਾਨਕ ਮੇਲੁ ਨ ਚੂਕਈ ਲਾਹਾ ਸਚੁ ਪਾਵੈ ॥੮॥੧॥੧੭॥
नानक मेलु न चूकई लाहा सचु पावै ॥८॥१॥१७॥
हे नानक ! यह मिलन कभी खंडित नहीं होता है और इस प्रकार व्यक्ति शाश्वत ईश्वर का ध्यान करके नाम का लाभ कमाता है। ॥ ८॥ १॥ १७॥