Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 228

Page 228

ਪ੍ਰਭ ਪਾਏ ਹਮ ਅਵਰੁ ਨ ਭਾਰਿਆ ॥੭॥ एक ईश्वर को मैंने पा लिया है और अब मैं किसी दूसरे को नहीं ढूंढता॥ ७॥
ਸਾਚ ਮਹਲਿ ਗੁਰਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਇਆ ॥ गुरु जी ने मुझे अदृश्य प्रभु के सत्य मन्दिर में दर्शन करवा दिए हैं।
ਨਿਹਚਲ ਮਹਲੁ ਨਹੀ ਛਾਇਆ ਮਾਇਆ ॥ प्रभु का यह मन्दिर अटल है। यह मोहिनी का प्रतिबिम्ब नहीं।
ਸਾਚਿ ਸੰਤੋਖੇ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੮॥ सच्चाई द्वारा संतोष आ जाता है और दुविधा दूर हो जाती है॥ ८ ॥
ਜਿਨ ਕੈ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸਚੁ ਸੋਈ ॥ जिसके हृदय में सत्यस्वरूप परमात्मा निवास करता है,
ਤਿਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਈ ॥ उनकी संगति में प्राणी धर्मात्मा बन जाता है।
ਨਾਨਕ ਸਾਚਿ ਨਾਮਿ ਮਲੁ ਖੋਈ ॥੯॥੧੫॥ हे नानक ! सत्य नाम (विकारों की) मलिनता स्वच्छ कर देता है॥ ९॥ १५ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ गउड़ी महला १ ॥
ਰਾਮਿ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਰਾਪੈ ਜਾ ਕਾ ॥ जिस व्यक्ति का हृदय राम के नाम में मग्न रहता है,
ਉਪਜੰਪਿ ਦਰਸਨੁ ਕੀਜੈ ਤਾ ਕਾ ॥੧॥ उसके दर्शन प्रात:काल उठते ही करने चाहिए॥ १॥
ਰਾਮ ਨ ਜਪਹੁ ਅਭਾਗੁ ਤੁਮਾਰਾ ॥ हे भाई ! यदि तुम राम का भजन-सिमरन नहीं करते तो यह तुम्हारा दुर्भाग्य है।
ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਰਾਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ युग-युगों से हमारा प्रभु राम हमें नियामतें देता आ रहा है॥ १॥ रहाउ॥
ਗੁਰਮਤਿ ਰਾਮੁ ਜਪੈ ਜਨੁ ਪੂਰਾ ॥ जो व्यक्ति गुरु की मति द्वारा राम का नाम जपता रहता है, वही व्यक्ति पूर्ण बन जाता है।
ਤਿਤੁ ਘਟ ਅਨਹਤ ਬਾਜੇ ਤੂਰਾ ॥੨॥ ऐसे पूर्ण व्यक्ति के हृदय में अनहद मधुर बाजे बजते रहते हैं।॥ २॥
ਜੋ ਜਨ ਰਾਮ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਪਿਆਰਿ ॥ जो व्यक्ति राम एवं राम की भक्ति से प्रेम करते हैं,
ਸੇ ਪ੍ਰਭਿ ਰਾਖੇ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥੩॥ उनको ईश्वर कृपा करके भवसागर से बचा लेता है॥ ३॥
ਜਿਨ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੋਈ ॥ जिन लोगों के हृदय में हरि-परमेश्वर वास करता है,
ਤਿਨ ਕਾ ਦਰਸੁ ਪਰਸਿ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੪॥ उनके दर्शन करने से आत्मिक सुख प्राप्त होता है॥ ४॥
ਸਰਬ ਜੀਆ ਮਹਿ ਏਕੋ ਰਵੈ ॥ समस्त जीवों के अन्तर में एक ईश्वर मौजूद है।
ਮਨਮੁਖਿ ਅਹੰਕਾਰੀ ਫਿਰਿ ਜੂਨੀ ਭਵੈ ॥੫॥ अहंकारी पुरुष अंततः योनियों में भटकता रहता है॥ ५॥
ਸੋ ਬੂਝੈ ਜੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਏ ॥ जिसे सतिगुरु मिल जाता है, उसे ज्ञान हो जाता है।
ਹਉਮੈ ਮਾਰੇ ਗੁਰ ਸਬਦੇ ਪਾਏ ॥੬॥ ऐसा प्राणी अपना अहंत्व निवृत्त करके गुरु के शब्द में लीन होकर ईश्वर को प्राप्त कर लेता है॥ ६॥
ਅਰਧ ਉਰਧ ਕੀ ਸੰਧਿ ਕਿਉ ਜਾਨੈ ॥ आत्मा के परमात्मा से मिलन बारे इन्सान किस तरह जान सकता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੰਧਿ ਮਿਲੈ ਮਨੁ ਮਾਨੈ ॥੭॥ गुरु की संगति एवं मन के संतोष द्वारा जीवात्मा प्रभु के मिलन में मिल जाता है॥ ७॥
ਹਮ ਪਾਪੀ ਨਿਰਗੁਣ ਕਉ ਗੁਣੁ ਕਰੀਐ ॥ हे प्रभु! हम जीव गुणविहीन एवं पापी हैं, और हमें कृपा करके गुणवान बना दो।
ਪ੍ਰਭ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ਨਾਨਕ ਜਨ ਤਰੀਐ ॥੮॥੧੬॥ हे नानक ! जब प्रभु दया के घर में आ जाता है तो जीव भवसागर से पार हो जाता है।॥८॥१६॥
ਸੋਲਹ ਅਸਟਪਦੀਆ ਗੁਆਰੇਰੀ ਗਉੜੀ ਕੀਆ ॥ सोलह असटपदीआ गुआरेरी गउड़ी कीआ ॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੧ गउड़ी बैरागणि महला १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜਿਉ ਗਾਈ ਕਉ ਗੋਇਲੀ ਰਾਖਹਿ ਕਰਿ ਸਾਰਾ ॥ जैसे एक ग्वाला अपनी गायों की देखभाल करता है,
ਅਹਿਨਿਸਿ ਪਾਲਹਿ ਰਾਖਿ ਲੇਹਿ ਆਤਮ ਸੁਖੁ ਧਾਰਾ ॥੧॥ वैसे ही प्रभु प्राणियों का दिन-रात पोषण एवं रक्षा करता है और उनके हृदय में आत्मिक सुख स्थापित करता है॥ १॥
ਇਤ ਉਤ ਰਾਖਹੁ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥ हे दीन दयालु ईश्वर ! इहलोक एवं परलोक में मेरी रक्षा कीजिए।
ਤਉ ਸਰਣਾਗਤਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे प्रभु! मैं तेरी शरण में आया हूँ। इसलिए मुझ पर कृपा-दृष्टि कीजिए॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਦੇਖਉ ਤਹ ਰਵਿ ਰਹੇ ਰਖੁ ਰਾਖਨਹਾਰਾ ॥ हे रक्षक प्रभु! जहाँ कहीं भी मैं देखता हूँ, वहाँ तुम सर्वव्यापक हो। मेरी रक्षा कीजिए।
ਤੂੰ ਦਾਤਾ ਭੁਗਤਾ ਤੂੰਹੈ ਤੂੰ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰਾ ॥੨॥ हे ईश्वर ! तू देन देने वाला दाता है, तू ही भोगने वाला है और तू ही मेरे प्राणों का आधार है॥ २॥
ਕਿਰਤੁ ਪਇਆ ਅਧ ਊਰਧੀ ਬਿਨੁ ਗਿਆਨ ਬੀਚਾਰਾ ॥ ज्ञान को सोचने विचारने के बिना प्राणी अपने कर्मों अनुसार नीचे गिरता अथवा उच्च हो जाता है।
ਬਿਨੁ ਉਪਮਾ ਜਗਦੀਸ ਕੀ ਬਿਨਸੈ ਨ ਅੰਧਿਆਰਾ ॥੩॥ सृष्टि के स्वामी जगदीश की उपमा के बिना (मोह-माया का) अंधकार दूर नहीं होता ॥ ३॥
ਜਗੁ ਬਿਨਸਤ ਹਮ ਦੇਖਿਆ ਲੋਭੇ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥ लालच एवं अभिमान में फँसकर मैंने जगत् का विनाश होते देखा है।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਸਚੁ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਾ ॥੪॥ गुरु की सेवा द्वारा परमेश्वर एवं मोक्ष का सच्चा द्वार प्राप्त होता है। ४॥
ਨਿਜ ਘਰਿ ਮਹਲੁ ਅਪਾਰ ਕੋ ਅਪਰੰਪਰੁ ਸੋਈ ॥ अनन्त परमेश्वर का आत्मस्वरूप प्राणी के अपने हृदय गृह में विद्यमान है और वह परमेश्वर अपरम्पार है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਥਿਰੁ ਕੋ ਨਹੀ ਬੂਝੈ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੫॥ प्रभु नाम के बिना कुछ भी स्थिर नहीं। ईश्वर के बोध द्वारा आत्मिक सुख प्राप्त होता है।॥ ५॥
ਕਿਆ ਲੈ ਆਇਆ ਲੇ ਜਾਇ ਕਿਆ ਫਾਸਹਿ ਜਮ ਜਾਲਾ ॥ हे भाई ! इस जगत् में तुम क्या लेकर आए थे और जब तुझे मृत्यु का फँदा लगा तो क्या लेकर जाओगे ?
ਡੋਲੁ ਬਧਾ ਕਸਿ ਜੇਵਰੀ ਆਕਾਸਿ ਪਤਾਲਾ ॥੬॥ रस्सी के साथ बंधे हुए कुएँ के डोल की भाँति कभी तुम आकाश में होते हो और कभी पाताल में होते हो।॥ ६॥
ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਸਹਜੇ ਪਤਿ ਪਾਈਐ ॥ यदि गुरु के उपदेश से प्राणी प्रभु नाम को विस्मृत न करे तो वह सहज ही शोभा पा लेता है।
ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਮਿਲਿ ਆਪੁ ਗਵਾਈਐ ॥੭॥ मनुष्य के अन्तर्मन में ही प्रभु नाम का खजाना है, परन्तु यह (खजाना) अपने अहंकार को दूर करने से ही मिलता है॥ ७॥
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣੀ ਗੁਣ ਅੰਕਿ ਸਮਾਵੈ ॥ यदि ईश्वर अपनी कृपा-दृष्टि करे तो प्राणी गुणवान बनकर परमात्मा की गोद में जाकर लीन होता है।
ਨਾਨਕ ਮੇਲੁ ਨ ਚੂਕਈ ਲਾਹਾ ਸਚੁ ਪਾਵੈ ॥੮॥੧॥੧੭॥ हे नानक ! यह मिलन टूटता नहीं और सच्चा लाभ प्राप्त कर लेता है॥ ८॥ १॥ १७॥


© 2017 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top