Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 230

Page 230

ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਚਹੁ ਹਉਮੈ ਜਾਇ ॥ गुरमुखि विचहु हउमै जाइ ॥ गुरमुख के मन से अहंकार निकल जाता है ।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ਆਇ ॥ गुरमुखि मैलु न लागै आइ ॥ गुरमुख के मन को विकारों की मैल नहीं लगती।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥੨॥ गुरमुखि नामु वसै मनि आइ ॥२॥ गुरमुख के मन में भगवान् का नाम आकर बस जाता है॥ २॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਰਮ ਧਰਮ ਸਚਿ ਹੋਈ ॥ गुरमुखि करम धरम सचि होई ॥ गुरमुख का प्रत्येक कर्म-धर्म सत्य ही होता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਹੰਕਾਰੁ ਜਲਾਏ ਦੋਈ ॥ गुरमुखि अहंकारु जलाए दोई ॥ गुरमुख अहंकार एवं द्वेष को जला देता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੩॥ गुरमुखि नामि रते सुखु होई ॥३॥ गुरमुख भगवान् के नाम में मग्न रहकर ही सुखी होता है॥ ३॥
ਆਪਣਾ ਮਨੁ ਪਰਬੋਧਹੁ ਬੂਝਹੁ ਸੋਈ ॥ आपणा मनु परबोधहु बूझहु सोई ॥ अपने मन को जागृत कर और परमेश्वर का बोध कर।
ਲੋਕ ਸਮਝਾਵਹੁ ਸੁਣੇ ਨ ਕੋਈ ॥ लोक समझावहु सुणे न कोई ॥ अन्यथा जितना भी चाहे तू लोगों को उपदेश देता रह, कोई भी तेरी बात नहीं सुनेगा।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਮਝਹੁ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੪॥ गुरमुखि समझहु सदा सुखु होई ॥४॥ गुरु के माध्यम से जीवन-मार्ग को समझो जिससे तुझे सदैव सुख प्राप्त होगा ॥ ४॥
ਮਨਮੁਖਿ ਡੰਫੁ ਬਹੁਤੁ ਚਤੁਰਾਈ ॥ मनमुखि ड्मफु बहुतु चतुराई ॥ स्वेच्छाचारी जीव बड़ा पाखंडी और चतुर होता है।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਮਾਵੈ ਸੁ ਥਾਇ ਨ ਪਾਈ ॥ जो किछु कमावै सु थाइ न पाई ॥ स्वेच्छाचारी जीव जो कुछ भी कर्म वह करता है, वह प्रभु के दरबार में स्वीकार नहीं होता।
ਆਵੈ ਜਾਵੈ ਠਉਰ ਨ ਕਾਈ ॥੫॥ आवै जावै ठउर न काई ॥५॥ वह जीवन-मृत्यु के बन्धन में पड़कर संसार में जन्मता-मरता रहता है और उसे सुख का कोई भी स्थान नहीं मिलता ॥ ५॥
ਮਨਮੁਖ ਕਰਮ ਕਰੇ ਬਹੁਤੁ ਅਭਿਮਾਨਾ ॥ मनमुख करम करे बहुतु अभिमाना ॥ स्वेच्छाचारी अपना प्रत्येक कर्म बड़े अहंकार में करता है।
ਬਗ ਜਿਉ ਲਾਇ ਬਹੈ ਨਿਤ ਧਿਆਨਾ ॥ बग जिउ लाइ बहै नित धिआना ॥ बगले की भाँति वह सदैव ही ध्यान लगाकर बैठता है।
ਜਮਿ ਪਕੜਿਆ ਤਬ ਹੀ ਪਛੁਤਾਨਾ ॥੬॥ जमि पकड़िआ तब ही पछुताना ॥६॥ जब यमदूत उसे पकड़ता है तो वह बड़ा पश्चाताप करता है॥ ६॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥ बिनु सतिगुर सेवे मुकति न होई ॥ इसलिए संसार में सतगुरु की सेवा बिना मुक्ति नहीं मिलती।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮਿਲੈ ਹਰਿ ਸੋਈ ॥ गुर परसादी मिलै हरि सोई ॥ गुरु की दया से वह प्रभु को मिल जाता है।
ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਹੋਈ ॥੭॥ गुरु दाता जुग चारे होई ॥७॥ चारों ही युगों (सतयुग, त्रैता, द्वापर, कलियुग) में गुरु नाम देने वाले दाता हैं।॥ ७॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਿ ਪਤਿ ਨਾਮੇ ਵਡਿਆਈ ॥ गुरमुखि जाति पति नामे वडिआई ॥ ईश्वर का नाम गुरमुख की जाति, सम्मान एवं शोभा है।
ਸਾਇਰ ਕੀ ਪੁਤ੍ਰੀ ਬਿਦਾਰਿ ਗਵਾਈ ॥ साइर की पुत्री बिदारि गवाई ॥ समुद्र की कन्या माया को उन्होंने पीट-पीट कर मार दिया है।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਝੂਠੀ ਚਤੁਰਾਈ ॥੮॥੨॥ नानक बिनु नावै झूठी चतुराई ॥८॥२॥ हे नानक ! नाम के बिना समस्त चतुराई झूठी है॥ ८ ॥ २॥
ਗਉੜੀ ਮਃ ੩ ॥ गउड़ी मः ३ ॥ राग गौड़ी, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਇਸੁ ਜੁਗ ਕਾ ਧਰਮੁ ਪੜਹੁ ਤੁਮ ਭਾਈ ॥ इसु जुग का धरमु पड़हु तुम भाई ॥ हे भाई ! आप लोग इस युग के धर्म (परमेश्वर नाम) का चिन्तन करो।
ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਸਭ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥ पूरै गुरि सभ सोझी पाई ॥ क्योंकि पूर्ण गुरु ने मुझे सारी सूझ बता दी है।
ਐਥੈ ਅਗੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ॥੧॥ ऐथै अगै हरि नामु सखाई ॥१॥ इस लोक एवं परलोक में ईश्वर का नाम ही प्राणी का सहारा है॥ १॥
ਰਾਮ ਪੜਹੁ ਮਨਿ ਕਰਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥ राम पड़हु मनि करहु बीचारु ॥ हे भाई ! राम के नाम का भजन करो और अपने हृदय में उसके गुणों का विचार करो।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਮੈਲੁ ਉਤਾਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुर परसादी मैलु उतारु ॥१॥ रहाउ ॥ गुरु की कृपा से अपनी विकारों की मैल को साफ कर लो ॥१॥ रहाउ॥
ਵਾਦਿ ਵਿਰੋਧਿ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥ वादि विरोधि न पाइआ जाइ ॥ वाद-विवाद एवं विरोध से प्रभु प्राप्त नहीं होता।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਫੀਕਾ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥ मनु तनु फीका दूजै भाइ ॥ मोह-माया की लगन से मन-तन फीके हो जाते हैं।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਚਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੨॥ गुर कै सबदि सचि लिव लाइ ॥२॥ इसलिए गुरु के शब्द द्वारा सत्य परमेश्वर में वृत्ति लगा ॥ २॥
ਹਉਮੈ ਮੈਲਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰਾ ॥ हउमै मैला इहु संसारा ॥ अहंकार के कारण सारा जगत् मैला हो गया है।
ਨਿਤ ਤੀਰਥਿ ਨਾਵੈ ਨ ਜਾਇ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥ नित तीरथि नावै न जाइ अहंकारा ॥ प्रतिदिन तीर्थों का स्नान करने से अहंकार दूर नहीं होता।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਜਮੁ ਕਰੇ ਖੁਆਰਾ ॥੩॥ बिनु गुर भेटे जमु करे खुआरा ॥३॥ गुरु के मिलन बिना काल (मृत्यु) मनुष्य को बड़ा तंग करता है॥ ३॥
ਸੋ ਜਨੁ ਸਾਚਾ ਜਿ ਹਉਮੈ ਮਾਰੈ ॥ सो जनु साचा जि हउमै मारै ॥ वही मनुष्य सत्यवादी है जो अपने अहंकार को मिटा देता है
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪੰਚ ਸੰਘਾਰੈ ॥ गुर कै सबदि पंच संघारै ॥ और गुरु के शब्द द्वारा पाँच विकारों का संहार कर देता है।
ਆਪਿ ਤਰੈ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਤਾਰੈ ॥੪॥ आपि तरै सगले कुल तारै ॥४॥ ऐसा मनुष्य स्वयं भी बच जाता है और अपने समूचे वंश का भी उद्धार कर लेता है॥ ४॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਨਟਿ ਬਾਜੀ ਪਾਈ ॥ माइआ मोहि नटि बाजी पाई ॥ प्रभु ने बाजीगर की भाँति माया से भावनात्मक मोह खेल रचा है।
ਮਨਮੁਖ ਅੰਧ ਰਹੇ ਲਪਟਾਈ ॥ मनमुख अंध रहे लपटाई ॥ ज्ञानहीन स्वेच्छाचारी जीव मोह-माया से लिपटे रहते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਲਿਪਤ ਰਹੇ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੫॥ गुरमुखि अलिपत रहे लिव लाई ॥५॥ लेकिन गुरमुख इससे निर्लिप्त रहकर ईश्वर से वृति लगाते हैं॥ ५॥
ਬਹੁਤੇ ਭੇਖ ਕਰੈ ਭੇਖਧਾਰੀ ॥ बहुते भेख करै भेखधारी ॥ कपटी इन्सान अनेकों वेष धारण करता है।
ਅੰਤਰਿ ਤਿਸਨਾ ਫਿਰੈ ਅਹੰਕਾਰੀ ॥ अंतरि तिसना फिरै अहंकारी ॥ उसके भीतर तृष्णा विद्यमान है और वह अभिमानी होकर विचरता है।
ਆਪੁ ਨ ਚੀਨੈ ਬਾਜੀ ਹਾਰੀ ॥੬॥ आपु न चीनै बाजी हारी ॥६॥ कपटी जीव अपने आपको समझता नहीं और जीवन की बाजी हार जाता है॥ ६॥
ਕਾਪੜ ਪਹਿਰਿ ਕਰੇ ਚਤੁਰਾਈ ॥ कापड़ पहिरि करे चतुराई ॥ धार्मिक वेष धारण करके कई लोग चतुरता करते हैं।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਅਤਿ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਈ ॥ माइआ मोहि अति भरमि भुलाई ॥ माया के मोह एवं दुविधा ने उनको बहुत भ्रमित किया हुआ है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸੇਵੇ ਬਹੁਤੁ ਦੁਖੁ ਪਾਈ ॥੭॥ बिनु गुर सेवे बहुतु दुखु पाई ॥७॥ गुरु की सेवा-भक्ति के बिना वह बहुत कष्ट सहन करते हैं।॥ ७ ॥
ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਬੈਰਾਗੀ ॥ नामि रते सदा बैरागी ॥ जो व्यक्ति ईश्वर के नाम में मग्न रहते हैं, वे सदैव ही मोह माया से निर्लिप्त रहते हैं।
ਗ੍ਰਿਹੀ ਅੰਤਰਿ ਸਾਚਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥ नामि रते सदा बैरागी ॥ अपने परिवार की देखभाल करते हुए भी, वे ईश्वर के प्रति समर्पित रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ॥੮॥੩॥ नानक सतिगुरु सेवहि से वडभागी ॥८॥३॥ हे नानक ! वे व्यक्ति बड़े भाग्यशाली हैं, जो सतगुरु की सेवा करते हैं। ॥८॥ ३॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ गउड़ी महला ३ ॥ राग गौड़ी, तीसरे गुरु द्वारा: ३ ॥
ਬ੍ਰਹਮਾ ਮੂਲੁ ਵੇਦ ਅਭਿਆਸਾ ॥ ब्रहमा मूलु वेद अभिआसा ॥ ब्रह्मा वेदों के अध्ययन का रचयिता है।
ਤਿਸ ਤੇ ਉਪਜੇ ਦੇਵ ਮੋਹ ਪਿਆਸਾ ॥ तिस ते उपजे देव मोह पिआसा ॥ सांसारिक मोह एवं तृष्णा में फँसे हुए देवते उसी से उत्पन्न हुए है।
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਭਰਮੇ ਨਾਹੀ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ॥੧॥ त्रै गुण भरमे नाही निज घरि वासा ॥१॥ वे तीन गुणों (पाप, गुण और शक्ति) में भटकते रहे और उन्हें ईश्वर के चरणों में स्थान न मिला ॥ १॥
ਹਮ ਹਰਿ ਰਾਖੇ ਸਤਿਗੁਰੂ ਮਿਲਾਇਆ ॥ हम हरि राखे सतिगुरू मिलाइआ ॥ हमें ईश्वर ने (मोह-माया से) बचा लिया है और सतगुरु जी से मिला दिया है।
ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अनदिनु भगति हरि नामु द्रिड़ाइआ ॥१॥ रहाउ ॥ रात-दिन भगवान् की भक्ति एवं ईश्वर का नाम गुरु जी ने सुदृढ़ कर दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਬਾਣੀ ਬ੍ਰਹਮ ਜੰਜਾਲਾ ॥ त्रै गुण बाणी ब्रहम जंजाला ॥ ब्रह्मा की रचित वाणी लोगों को (माया के) तीन गुणों के जंजाल में फँसा देती है।
ਪੜਿ ਵਾਦੁ ਵਖਾਣਹਿ ਸਿਰਿ ਮਾਰੇ ਜਮਕਾਲਾ ॥ पड़ि वादु वखाणहि सिरि मारे जमकाला ॥ उसका अध्ययन करके पण्डित वाद-विवाद करते हैं और मृत्यु के भय से सताये जाते हैं।


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