Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 217

Page 217

ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਕਾਟਿ ਕੀਏ ਨਿਰਵੈਰੇ ਜੀਉ ॥ गुरु ने मेरी दुविधा एवं भय निवृत्त करके मुझे निर्वैर कर दिया है।
ਗੁਰ ਮਨ ਕੀ ਆਸ ਪੂਰਾਈ ਜੀਉ ॥੪॥ गुरु ने मेरे मन की आशा पूर्ण कर दी है॥ ४॥
ਜਿਨਿ ਨਾਉ ਪਾਇਆ ਸੋ ਧਨਵੰਤਾ ਜੀਉ ॥ जिन्होंने नाम-धन प्राप्त किया है, वह धनवान बन गया है।
ਜਿਨਿ ਪ੍ਰਭੁ ਧਿਆਇਆ ਸੁ ਸੋਭਾਵੰਤਾ ਜੀਉ ॥ जिन्होंने अपने प्रभु का ध्यान किया है, वह शोभायमान बन गया है।
ਜਿਸੁ ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਤਿਸੁ ਸਭ ਸੁਕਰਣੀ ਜੀਉ ॥ हे नानक ! जो व्यक्ति संतों की संगति में रहता है, उसके तमाम कर्म श्रेष्ठ हैं
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਹਜਿ ਸਮਾਈ ਜੀਉ ॥੫॥੧॥੧੬੬॥ और ऐसा व्यक्ति सहज ही सत्य में समा गया है ॥५॥१॥१६६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ਮਾਝ ॥ गउड़ी महला ५ माझ ॥
ਆਉ ਹਮਾਰੈ ਰਾਮ ਪਿਆਰੇ ਜੀਉ ॥ हे मेरे प्रिय राम जी ! आओ, हमारे हृदय में आकर निवास कर लो ।
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਚਿਤਾਰੇ ਜੀਉ ॥ रात-दिन श्वास-श्वास से तेरा ही चिंतन करती रहती हूँ।
ਸੰਤ ਦੇਉ ਸੰਦੇਸਾ ਪੈ ਚਰਣਾਰੇ ਜੀਉ ॥ हे संतजनो ! मैं आपके चरण स्पर्श करती हूँ। मेरा यह सन्देश प्रभु को पहुँचा देना,
ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਤਰੀਐ ਜੀਉ ॥੧॥ तेरे अलावा मेरा किस तरह भवसागर से कल्याण हो सकता है॥ १॥
ਸੰਗਿ ਤੁਮਾਰੈ ਮੈ ਕਰੇ ਅਨੰਦਾ ਜੀਉ ॥ मैं तेरी संगति में आनन्द प्राप्त करती हूँ।
ਵਣਿ ਤਿਣਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਸੁਖ ਪਰਮਾਨੰਦਾ ਜੀਉ ॥ हे प्रभु ! तुम वन, वनस्पति एवं तीनों लोकों में विद्यमान हो। तुम सुख एवं परम आनन्द प्रदान करते हो।
ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਇਹੁ ਮਨੁ ਬਿਗਸੰਦਾ ਜੀਉ ॥ तेरे साथ मुझे यह सेज सुन्दर लगती है एवं मेरा यह मन कृतार्थ हो जाता है।
ਪੇਖਿ ਦਰਸਨੁ ਇਹੁ ਸੁਖੁ ਲਹੀਐ ਜੀਉ ॥੨॥ हे स्वामी ! तेरे दर्शन करने से मुझे यह सुख प्राप्त होता है।॥ २॥
ਚਰਣ ਪਖਾਰਿ ਕਰੀ ਨਿਤ ਸੇਵਾ ਜੀਉ ॥ हे नाथ ! मैं तेरे सुन्दर चरण धोती और प्रतिदिन तेरी श्रद्धापूर्वक सेवा करती हूँ।
ਪੂਜਾ ਅਰਚਾ ਬੰਦਨ ਦੇਵਾ ਜੀਉ ॥ हे देव ! मैं तेरी पूजा-अर्चना एवं वन्दना करती हूँ।
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸੁ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਲੇਵਾ ਜੀਉ ॥ हे स्वामी ! मैं तेरे दासों की दास हूँ और तेरे नाम का भजन करती हूँ।
ਬਿਨਉ ਠਾਕੁਰ ਪਹਿ ਕਹੀਐ ਜੀਉ ॥੩॥ हे संतजनों ! मेरी यह प्रार्थना मेरे ठाकुर जी के पास वर्णन कर देना॥ ३॥
ਇਛ ਪੁੰਨੀ ਮੇਰੀ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰਿਆ ਜੀਉ ॥ मेरी मनोकामना पूर्ण हो गई है और मेरा मन एवं तन प्रफुल्लित हो गए हैं।
ਦਰਸਨ ਪੇਖਤ ਸਭ ਦੁਖ ਪਰਹਰਿਆ ਜੀਉ ॥ प्रभु के दर्शन करने से मेरे तमाम दुःख दूर हो गए हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੇ ਜਪਿ ਤਰਿਆ ਜੀਉ ॥ हरि-परमेश्वर के नाम का जाप जपने से मैं भवसागर से पार हो गई हूँ।
ਇਹੁ ਅਜਰੁ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਸਹੀਐ ਜੀਉ ॥੪॥੨॥੧੬੭॥ हे नानक ! उसने प्रभु दर्शनों के इस अक्षुण्ण सुख को सहन कर लिया है॥ ४॥ २॥ १६७॥
ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ गउड़ी महला ५ माझ ॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਸਾਜਨ ਮਨ ਮਿਤ ਪਿਆਰੇ ਜੀਉ ॥ हे मेरे प्रिय साजन ! हे मेरे मन के मीत ! मेरी विनती ध्यानपूर्वक सुनो।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਤੇਰਾ ਇਹੁ ਜੀਉ ਭਿ ਵਾਰੇ ਜੀਉ ॥ हे प्रभु ! मेरा मन एवं तन सब कुछ तेरा है और यह प्राण भी तुझ पर न्योछावर हैं।
ਵਿਸਰੁ ਨਾਹੀ ਪ੍ਰਭ ਪ੍ਰਾਣ ਅਧਾਰੇ ਜੀਉ ॥ हे स्वामी ! मैं तुझे कभी भी विस्मृत न करूँ, तुम मेरे प्राणों का आधार हो।
ਸਦਾ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ਜੀਉ ॥੧॥ हे ठाकुर ! मैं हमेशा ही तेरी शरण में रहती हूँ॥ १॥
ਜਿਸੁ ਮਿਲਿਐ ਮਨੁ ਜੀਵੈ ਭਾਈ ਜੀਉ ॥ हे भाई ! जिसको मिलने से मेरा मन जीवित हो जाता है,
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪਾਈ ਜੀਉ ॥ गुरु की कृपा से मैंने उस हरि-परमेश्वर को प्राप्त कर लिया है।
ਸਭ ਕਿਛੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਪ੍ਰਭ ਕੀਆ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥ समस्त पदार्थ परमेश्वर के हैं और परमेश्वर के ही सर्वत्र स्थान हैं।
ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਦ ਬਲਿ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥੨॥ मैं अपने प्रभु पर सदैव ही कुर्बान जाती हूँ॥ २॥
ਏਹੁ ਨਿਧਾਨੁ ਜਪੈ ਵਡਭਾਗੀ ਜੀਉ ॥ कोई भाग्यशाली ही इस नाम के भण्डार का भजन करता है।
ਨਾਮ ਨਿਰੰਜਨ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਜੀਉ ॥ वह एक पवित्र प्रभु के नाम से वृति लगाता है।
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਮਿਟਾਇਆ ਜੀਉ ॥ जिसे पूर्ण गुरु मिल जाता है, उसके तमाम दुःख मिट जाते हैं।
ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ਜੀਉ ॥੩॥ मैं आठ पहर अपने प्रभु का यश गायन करता रहता हूँ॥ ३॥
ਰਤਨ ਪਦਾਰਥ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਤੁਮਾਰਾ ਜੀਉ ॥ हे प्रभु ! तेरा नाम रत्नों का खजाना है
ਤੂੰ ਸਚਾ ਸਾਹੁ ਭਗਤੁ ਵਣਜਾਰਾ ਜੀਉ ॥ तू सच्चा साहूकार है और तेरा भक्त तेरे नाम का व्यापारी है।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ਸਚੁ ਵਾਪਾਰਾ ਜੀਉ ॥ जिस व्यक्ति के पास हरि नाम रूपी धन है उसका व्यापार ही सच्चा है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰਾ ਜੀਉ ॥੪॥੩॥੧੬੮॥ जन नानक सदैव ही प्रभु पर बलिहारी जाता है ॥४॥३॥१६८॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ रागु गउड़ी माझ महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਬਹੁ ਮਾਣੁ ਕਰਤੇ ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਬਹੁ ਮਾਣੁ ॥ हे सृष्टिकर्ता ! मैं तुझ पर बड़ा गर्व करता हूँ, क्योंकि तू ही मेरा स्वाभिमान है।
ਜੋਰਿ ਤੁਮਾਰੈ ਸੁਖਿ ਵਸਾ ਸਚੁ ਸਬਦੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तेरी समर्था द्वारा मैं सुखपूर्वक निवास करता हूँ। तेरा सत्य नाम ही मेरा पथ प्रदर्शक है॥ १॥ रहाउ॥
ਸਭੇ ਗਲਾ ਜਾਤੀਆ ਸੁਣਿ ਕੈ ਚੁਪ ਕੀਆ ॥ मनुष्य सबकुछ जानता है परन्तु सुनकर वह चुप ही रहता है।
ਕਦ ਹੀ ਸੁਰਤਿ ਨ ਲਧੀਆ ਮਾਇਆ ਮੋਹੜਿਆ ॥੧॥ माया में मोहित हुआ वह कदापि ध्यान नहीं देता ॥ १॥
ਦੇਇ ਬੁਝਾਰਤ ਸਾਰਤਾ ਸੇ ਅਖੀ ਡਿਠੜਿਆ ॥ पहेलियां एवं संकेत दिए गए हैं। उनको प्राणी अपने नयनों से देखता है।


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