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ਭਰਮ ਮੋਹ ਕਛੁ ਸੂਝਸਿ ਨਾਹੀ ਇਹ ਪੈਖਰ ਪਏ ਪੈਰਾ ॥੨॥
भरम मोह कछु सूझसि नाही इह पैखर पए पैरा ॥२॥
भ्रम एवं मोहवश उसको कुछ भी समझ नहीं आता। मोह-माया की जंजीर ने उसके पैरों को जकड़ उसकी आध्यात्मिक गति को अवरुद्ध कर रखा है॥ २॥
ਤਬ ਇਹੁ ਕਹਾ ਕਮਾਵਨ ਪਰਿਆ ਜਬ ਇਹੁ ਕਛੂ ਨ ਹੋਤਾ ॥
तब इहु कहा कमावन परिआ जब इहु कछू न होता ॥
सृष्टि की रचना से पूर्व अस्तित्वहीन मनुष्य आध्यात्मिक रूप से क्या कर्म कर सकता था ?
ਜਬ ਏਕ ਨਿਰੰਜਨ ਨਿਰੰਕਾਰ ਪ੍ਰਭ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਆਪਹਿ ਕਰਤਾ ॥੩॥
जब एक निरंजन निरंकार प्रभ सभु किछु आपहि करता ॥३॥
जब निरंजन एवं निरंकार प्रभु स्वयं प्रबल हुआ, तब उसने सब कुछ स्वयं ही किया। ॥ ३॥
ਅਪਨੇ ਕਰਤਬ ਆਪੇ ਜਾਨੈ ਜਿਨਿ ਇਹੁ ਰਚਨੁ ਰਚਾਇਆ ॥
अपने करतब आपे जानै जिनि इहु रचनु रचाइआ ॥
जिस परमात्मा ने इस सृष्टि की रचना की है केवल वहीं अपनी लीलाओं को जानता है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਰਣਹਾਰੁ ਹੈ ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੪॥੫॥੧੬੩॥
कहु नानक करणहारु है आपे सतिगुरि भरमु चुकाइआ ॥४॥५॥१६३॥
हे नानक ! ईश्वर स्वयं ही सब कुछ करने वाला है। सतगुरु ने मेरा भ्रम दूर कर दिया है। ४॥ ५॥ १६३॥
ਗਉੜੀ ਮਾਲਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी माला महला ५ ॥
राग गौड़ी माला, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਅਵਰ ਕ੍ਰਿਆ ਬਿਰਥੇ ॥
हरि बिनु अवर क्रिआ बिरथे ॥
भगवान् के सिमरन के अतिरिक्त अन्य सभी कार्य व्यर्थ हैं।
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਕਰਮ ਕਮਾਣੇ ਇਹਿ ਓਰੈ ਮੂਸੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जप तप संजम करम कमाणे इहि ओरै मूसे ॥१॥ रहाउ ॥
आडम्बरपूर्ण जाप, तपस्या, संयम एवं दूसरे संस्कार यह सब ईश्वर के दरबार में मान्य नहीं होते हैं । १॥ रहाउ ॥
ਬਰਤ ਨੇਮ ਸੰਜਮ ਮਹਿ ਰਹਤਾ ਤਿਨ ਕਾ ਆਢੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥
बरत नेम संजम महि रहता तिन का आढु न पाइआ ॥
प्राणी व्रतों एवं संयमों के नियम में क्रियाशील रहता है परन्तु उन प्रयासों का फल उसे एक कौड़ी भी नहीं मिलता।
ਆਗੈ ਚਲਣੁ ਅਉਰੁ ਹੈ ਭਾਈ ਊਂਹਾ ਕਾਮਿ ਨ ਆਇਆ ॥੧॥
आगै चलणु अउरु है भाई ऊंहा कामि न आइआ ॥१॥
हे सज्जन ! परलोक में केवल नाम का ध्यान ही प्राणी के काम आता है। व्रत, नियम एवं संयम इत्यादि परलोक में काम नहीं आते। ॥ १॥
ਤੀਰਥਿ ਨਾਇ ਅਰੁ ਧਰਨੀ ਭ੍ਰਮਤਾ ਆਗੈ ਠਉਰ ਨ ਪਾਵੈ ॥
तीरथि नाइ अरु धरनी भ्रमता आगै ठउर न पावै ॥
जो व्यक्ति तीर्थों पर स्नान करता है और धरती पर भ्रमण करता रहता है, उसको भी परलोक में कोई सुख का निवास नहीं मिलता।
ਊਹਾ ਕਾਮਿ ਨ ਆਵੈ ਇਹ ਬਿਧਿ ਓਹੁ ਲੋਗਨ ਹੀ ਪਤੀਆਵੈ ॥੨॥
ऊहा कामि न आवै इह बिधि ओहु लोगन ही पतीआवै ॥२॥
वहाँ यह विधि काम नहीं आती। इससे वह केवल लोगों को ही धार्मिक होने की भ्रान्ति ही कराता है॥ २ ॥
ਚਤੁਰ ਬੇਦ ਮੁਖ ਬਚਨੀ ਉਚਰੈ ਆਗੈ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਈਐ ॥
चतुर बेद मुख बचनी उचरै आगै महलु न पाईऐ ॥
चारों ही वेदों का मौखिक पाठ करने से मनुष्य प्रभु के दरबार को प्राप्त नहीं करता।
ਬੂਝੈ ਨਾਹੀ ਏਕੁ ਸੁਧਾਖਰੁ ਓਹੁ ਸਗਲੀ ਝਾਖ ਝਖਾਈਐ ॥੩॥
बूझै नाही एकु सुधाखरु ओहु सगली झाख झखाईऐ ॥३॥
जो मनुष्य प्रभु के पवित्र नाम का बोध नहीं करता, वह सब व्यर्थ की बकवास करता है॥ ३॥
ਨਾਨਕੁ ਕਹਤੋ ਇਹੁ ਬੀਚਾਰਾ ਜਿ ਕਮਾਵੈ ਸੁ ਪਾਰ ਗਰਾਮੀ ॥
नानकु कहतो इहु बीचारा जि कमावै सु पार गरामी ॥
नानक यह एक विचार की बात व्यक्त करते हैं कि जो इस बात पर अनुसरण करते है, वह भवसागर से पार हो जाते हैं।
ਗੁਰੁ ਸੇਵਹੁ ਅਰੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਹੁ ਤਿਆਗਹੁ ਮਨਹੁ ਗੁਮਾਨੀ ॥੪॥੬॥੧੬੪॥
गुरु सेवहु अरु नामु धिआवहु तिआगहु मनहु गुमानी ॥४॥६॥१६४॥
वह बात यह है कि गुरु की सेवा करो और प्रभु के नाम का ध्यान करो तथा अपने मन का अहंत्व त्याग दो॥ ४॥ ६॥ १६४॥
ਗਉੜੀ ਮਾਲਾ ੫ ॥
गउड़ी माला ५ ॥
राग गौड़ी माला, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮਾਧਉ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮੁਖਿ ਕਹੀਐ ॥
माधउ हरि हरि हरि मुखि कहीऐ ॥
हे माधो ! हे हरि-परमेश्वर ! ऐसी कृपा करो कि हम अपने मुख से आपका हरिनाम ही उच्चरित करते रहें।
ਹਮ ਤੇ ਕਛੂ ਨ ਹੋਵੈ ਸੁਆਮੀ ਜਿਉ ਰਾਖਹੁ ਤਿਉ ਰਹੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हम ते कछू न होवै सुआमी जिउ राखहु तिउ रहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
हे जगत् के स्वामी ! हम से कुछ भी नहीं हो सकता। जैसे आप हम जीवों को रखते हैं, वैसे ही हम रहते हैं। १॥ रहाउ ॥
ਕਿਆ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਕਿ ਕਰਣੈਹਾਰਾ ਕਿਆ ਇਸੁ ਹਾਥਿ ਬਿਚਾਰੇ ॥
किआ किछु करै कि करणैहारा किआ इसु हाथि बिचारे ॥
असहाय प्राणी क्या कर सकता है, वह क्या करने योग्य है और इस विनीत प्राणी के वश में क्या है?
ਜਿਤੁ ਤੁਮ ਲਾਵਹੁ ਤਿਤ ਹੀ ਲਾਗਾ ਪੂਰਨ ਖਸਮ ਹਮਾਰੇ ॥੧॥
जितु तुम लावहु तित ही लागा पूरन खसम हमारे ॥१॥
हे हमारे सर्वव्यापक मालिक ! प्राणी उसी ओर लगा रहता है, जिस तरफ आप उसे लगा देते हैं। ॥ १॥
ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਸਰਬ ਕੇ ਦਾਤੇ ਏਕ ਰੂਪ ਲਿਵ ਲਾਵਹੁ ॥
करहु क्रिपा सरब के दाते एक रूप लिव लावहु ॥
हे समस्त जीवों के दाता! मुझ पर कृपा करो और केवल अपने स्वरूप के साथ ही मेरी वृति लगाओ।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਹਰਿ ਪਹਿ ਅਪੁਨਾ ਨਾਮੁ ਜਪਾਵਹੁ ॥੨॥੭॥੧੬੫॥
नानक की बेनंती हरि पहि अपुना नामु जपावहु ॥२॥७॥१६५॥
मुझ नानक की भगवान् के समक्ष यही विनती है कि हे प्रभु! मुझसे अपने नाम का जाप करवाओ ॥ २ ॥ ७ ॥ १६५ ॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫
रागु गउड़ी माझ महला ५
राग गौड़ी माझ महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਦਮੋਦਰ ਰਾਇਆ ਜੀਉ ॥
दीन दइआल दमोदर राइआ जीउ ॥
हे दीनदयाल ! हे पूज्य दमोदर !
ਕੋਟਿ ਜਨਾ ਕਰਿ ਸੇਵ ਲਗਾਇਆ ਜੀਉ ॥
कोटि जना करि सेव लगाइआ जीउ ॥
आपने करोड़ों ही लोगों को अपनी सेवा-भक्ति में लगाया हुआ है।
ਭਗਤ ਵਛਲੁ ਤੇਰਾ ਬਿਰਦੁ ਰਖਾਇਆ ਜੀਉ ॥
भगत वछलु तेरा बिरदु रखाइआ जीउ ॥
यह आपकी परंपरा है कि आप अपने भक्तों से प्रेम करते हैं।
ਪੂਰਨ ਸਭਨੀ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥੧॥
पूरन सभनी जाई जीउ ॥१॥
हे प्रभु ! आप सर्वव्यापक है॥ १॥
ਕਿਉ ਪੇਖਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਕਵਣ ਸੁਕਰਣੀ ਜੀਉ ॥
किउ पेखा प्रीतमु कवण सुकरणी जीउ ॥
वह कौन-सा शुभ कर्म है? जिससे मैं अपने प्रियतम को देख सकूँ ?
ਸੰਤਾ ਦਾਸੀ ਸੇਵਾ ਚਰਣੀ ਜੀਉ ॥
संता दासी सेवा चरणी जीउ ॥
मैं गुरु की विनम्र दासी बन उनकी शिक्षाओं का पूरी ईमानदारी से पालन करने की इच्छा रखती हूं।
ਇਹੁ ਜੀਉ ਵਤਾਈ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥
इहु जीउ वताई बलि बलि जाई जीउ ॥
मैं अपनी यह आत्मा उन पर न्योछावर करती हूँ और तन-मन से उन पर बलिहारी जाती हूँ।
ਤਿਸੁ ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗਉ ਪਾਈ ਜੀਉ ॥੨॥
तिसु निवि निवि लागउ पाई जीउ ॥२॥
मैं झुक-झुक कर उनके चरण स्पर्श करती हूँ॥ २॥
ਪੋਥੀ ਪੰਡਿਤ ਬੇਦ ਖੋਜੰਤਾ ਜੀਉ ॥
पोथी पंडित बेद खोजंता जीउ ॥
पण्डित ग्रंथों एवं वेदों का अध्ययन करता है।
ਹੋਇ ਬੈਰਾਗੀ ਤੀਰਥਿ ਨਾਵੰਤਾ ਜੀਉ ॥
होइ बैरागी तीरथि नावंता जीउ ॥
कोई व्यक्ति त्यागी होकर तीर्थ-स्थान पर स्नान करता है।
ਗੀਤ ਨਾਦ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਵੰਤਾ ਜੀਉ ॥
गीत नाद कीरतनु गावंता जीउ ॥
कोई गीत एवं मधुर भजन का गायन करता है।
ਹਰਿ ਨਿਰਭਉ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ਜੀਉ ॥੩॥
हरि निरभउ नामु धिआई जीउ ॥३॥
किन्तु मैं निर्भय हरि के नाम का ही ध्यान करती हूँ॥ ३॥
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰੇ ਜੀਉ ॥
भए क्रिपाल सुआमी मेरे जीउ ॥
मेरे प्रभु मुझ पर दयालु हो गए हैं।
ਪਤਿਤ ਪਵਿਤ ਲਗਿ ਗੁਰ ਕੇ ਪੈਰੇ ਜੀਉ ॥
पतित पवित लगि गुर के पैरे जीउ ॥
गुरु जी के चरण स्पर्श करके मैं पतित से पवित्र हो गई हूँ।