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ਕੋਈ ਜਿ ਮੂਰਖੁ ਲੋਭੀਆ ਮੂਲਿ ਨ ਸੁਣੀ ਕਹਿਆ ॥੨॥
कोई जि मूरखु लोभीआ मूलि न सुणी कहिआ ॥२॥
परन्तु मूर्ख एवं लोभी मनुष्य इस कथन को बिल्कुल ही नहीं सुनता ॥ २॥
ਇਕਸੁ ਦੁਹੁ ਚਹੁ ਕਿਆ ਗਣੀ ਸਭ ਇਕਤੁ ਸਾਦਿ ਮੁਠੀ ॥
इकसु दुहु चहु किआ गणी सभ इकतु सादि मुठी ॥
हे भाई ! किसी एक, दो अथवा चार प्राणियों की बात क्या बताऊं ? सारी दुनिया को उतना ही सांसारिक स्वादों ने ठगा हुआ है।
ਇਕੁ ਅਧੁ ਨਾਇ ਰਸੀਅੜਾ ਕਾ ਵਿਰਲੀ ਜਾਇ ਵੁਠੀ ॥੩॥
इकु अधु नाइ रसीअड़ा का विरली जाइ वुठी ॥३॥
कोई विरला व्यक्ति ही प्रभु के नाम का रसिया है और वह हृदय दुर्लभ है जिसमें भगवान् वास करते हैं।॥ ३॥
ਭਗਤ ਸਚੇ ਦਰਿ ਸੋਹਦੇ ਅਨਦ ਕਰਹਿ ਦਿਨ ਰਾਤਿ ॥
भगत सचे दरि सोहदे अनद करहि दिन राति ॥
प्रभु के भक्त सत्य के दरबार में सुन्दर लगते हैं। वे दिन-रात आनन्द प्राप्त करते हैं।
ਰੰਗਿ ਰਤੇ ਪਰਮੇਸਰੈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਬਲਿ ਜਾਤ ॥੪॥੧॥੧੬੯॥
रंगि रते परमेसरै जन नानक तिन बलि जात ॥४॥१॥१६९॥
हे नानक ! जो व्यक्ति परमेश्वर के प्रेम रंग में मग्न रहते हैं, मैं उन पर बलिहारी जाता हूँ॥ ४॥ १॥ १६६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ਮਾਂਝ ॥
गउड़ी महला ५ मांझ ॥
राग गौड़ी माझ, पांचवें गुरु: ॥
ਦੁਖ ਭੰਜਨੁ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਜੀ ਦੁਖ ਭੰਜਨੁ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ॥
दुख भंजनु तेरा नामु जी दुख भंजनु तेरा नामु ॥
हे भगवान ! आपका नाम दुःखों का नाश करने वाला है।
ਆਠ ਪਹਰ ਆਰਾਧੀਐ ਪੂਰਨ ਸਤਿਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आठ पहर आराधीऐ पूरन सतिगुर गिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण सतगुरु का यही ज्ञान है कि आठों प्रहर नाम की आराधना करनी चाहिए जो ईश्वर से मिला सकता है। ॥ १॥ रहाउ॥
ਜਿਤੁ ਘਟਿ ਵਸੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸੋਈ ਸੁਹਾਵਾ ਥਾਉ ॥
जितु घटि वसै पारब्रहमु सोई सुहावा थाउ ॥
जिस के अन्तर्मन में पारब्रह्म निवास करता है, वह सुन्दर स्थान है।
ਜਮ ਕੰਕਰੁ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵਈ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੧॥
जम कंकरु नेड़ि न आवई रसना हरि गुण गाउ ॥१॥
जो व्यक्ति अपनी जिह्वा से प्रभु की गुणस्तुति करता है, यमदूत उसके निकट नहीं आता ॥ १॥
ਸੇਵਾ ਸੁਰਤਿ ਨ ਜਾਣੀਆ ਨਾ ਜਾਪੈ ਆਰਾਧਿ ॥
सेवा सुरति न जाणीआ ना जापै आराधि ॥
मैंने प्रभु की सेवा में सावधान रहने के मूल्य को नहीं समझा और न ही मैंने उसकी आराधना को अनुभव किया है।
ਓਟ ਤੇਰੀ ਜਗਜੀਵਨਾ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ॥੨॥
ओट तेरी जगजीवना मेरे ठाकुर अगम अगाधि ॥२॥
हे जगजीवन ! हे मेरे अगम्य एवं अगाध ठाकुर ! अब आप ही मेरा सहारा है।॥ २॥
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੁਸਾਈਆ ਨਠੇ ਸੋਗ ਸੰਤਾਪ ॥
भए क्रिपाल गुसाईआ नठे सोग संताप ॥
जिस व्यक्ति पर प्रभु कृपा करते हैं, उसके शोक एवं संताप दूर हो जाते हैं।
ਤਤੀ ਵਾਉ ਨ ਲਗਈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਰਖੇ ਆਪਿ ॥੩॥
तती वाउ न लगई सतिगुरि रखे आपि ॥३॥
जिसकी सतगुरु स्वयं रक्षा करते हैं, उसे किसी प्रकार का दुःख स्पर्श नहीं करता।॥ ३॥
ਗੁਰੁ ਨਾਰਾਇਣੁ ਦਯੁ ਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਸਚਾ ਸਿਰਜਣਹਾਰੁ ॥
गुरु नाराइणु दयु गुरु गुरु सचा सिरजणहारु ॥
गुरु ही नारायण हैं, गुरु ही दया का घर ईश्वर एवं गुरु ही सत्यस्वरूप करतार हैं।
ਗੁਰਿ ਤੁਠੈ ਸਭ ਕਿਛੁ ਪਾਇਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰ ॥੪॥੨॥੧੭੦॥
गुरि तुठै सभ किछु पाइआ जन नानक सद बलिहार ॥४॥२॥१७०॥
जब गुरु प्रसन्न हो जाते हैं तो सब कुछ मिल जाता है। हे नानक ! मैं गुरु पर हमेशा ही तन-मन से न्यौछावर हूँ ॥ ४॥ २॥ १७०॥
ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी माझ महला ५ ॥
राग गौड़ी माझ, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮਾ ॥ ਜਪਿ ਪੂਰਨ ਹੋਏ ਕਾਮਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि राम राम राम रामा ॥जपि पूरन होए कामा ॥१॥ रहाउ ॥
हे जिज्ञासु ! हरि-राम-राम-राम का,निरंतर जाप करने से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਮ ਗੋਬਿੰਦ ਜਪੇਦਿਆ ਹੋਆ ਮੁਖੁ ਪਵਿਤ੍ਰੁ ॥
राम गोबिंद जपेदिआ होआ मुखु पवित्रु ॥
राम गोविन्द का जाप करने से मुख पवित्र हो जाता है।
ਹਰਿ ਜਸੁ ਸੁਣੀਐ ਜਿਸ ਤੇ ਸੋਈ ਭਾਈ ਮਿਤ੍ਰੁ ॥੧॥
हरि जसु सुणीऐ जिस ते सोई भाई मित्रु ॥१॥
जो व्यक्ति मुझे भगवान् का यश सुनाता है, वही मेरा मित्र एवं भाई है॥ १॥
ਸਭਿ ਪਦਾਰਥ ਸਭਿ ਫਲਾ ਸਰਬ ਗੁਣਾ ਜਿਸੁ ਮਾਹਿ ॥
सभि पदारथ सभि फला सरब गुणा जिसु माहि ॥
जिस गोबिन्द के वश में समस्त पदार्थ, समस्त फल एवं सर्वगुण हैं
ਕਿਉ ਗੋਬਿੰਦੁ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਦੁਖ ਜਾਹਿ ॥੨॥
किउ गोबिंदु मनहु विसारीऐ जिसु सिमरत दुख जाहि ॥२॥
हम अपने मन में से गोविन्द को क्यों विस्मृत करें, जिसका सिमरन करने से सभी दुःख निवृत्त हो जाते हैं ।॥ २॥
ਜਿਸੁ ਲੜਿ ਲਗਿਐ ਜੀਵੀਐ ਭਵਜਲੁ ਪਈਐ ਪਾਰਿ ॥
जिसु लड़ि लगिऐ जीवीऐ भवजलु पईऐ पारि ॥
हे जिज्ञासु ! उस भगवान का ही सिमरन करना चाहिए, जिसके दामन के साथ जुड़ने से मनुष्य को जीवन मिलता है और जीव भवसागर से पार हो जाता है।
ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਉਧਾਰੁ ਹੋਇ ਮੁਖ ਊਜਲ ਦਰਬਾਰਿ ॥੩॥
मिलि साधू संगि उधारु होइ मुख ऊजल दरबारि ॥३॥
संतों की संगति में रहने से प्राणी का उद्धार हो जाता है और प्रभु के दरबार में उसका मुख उज्ज्वल हो जाता है॥ ३॥
ਜੀਵਨ ਰੂਪ ਗੋਪਾਲ ਜਸੁ ਸੰਤ ਜਨਾ ਕੀ ਰਾਸਿ ॥
जीवन रूप गोपाल जसु संत जना की रासि ॥
सृष्टि के पालनहार गोपाल का यश जीवन का सारांश एवं संतजनों की पूंजी है।
ਨਾਨਕ ਉਬਰੇ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸਾਬਾਸਿ ॥੪॥੩॥੧੭੧॥
नानक उबरे नामु जपि दरि सचै साबासि ॥४॥३॥१७१॥
हे नानक ! प्रभु के नाम का भजन करने से संतों का उद्धार हो जाता है और सत्य के दरबार में उनकी बड़ी शोभा मिलती है ॥ ४॥ ३॥१७१॥
ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी माझ महला ५ ॥
राग गौड़ी माझ, पांचवें गुरु: ५ ॥
ਮੀਠੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ਜਿੰਦੂ ਤੂੰ ਮੀਠੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
मीठे हरि गुण गाउ जिंदू तूं मीठे हरि गुण गाउ ॥
हे मेरे प्राण ! तू भगवान के मीठे गुण गाता जा, उसका ही गुणानुवाद कर।
ਸਚੇ ਸੇਤੀ ਰਤਿਆ ਮਿਲਿਆ ਨਿਥਾਵੇ ਥਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सचे सेती रतिआ मिलिआ निथावे थाउ ॥१॥ रहाउ ॥
सत्यस्वरूप ईश्वर के साथ मग्न रहने से निराश्रय को भी आश्रय प्राप्त हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਹੋਰਿ ਸਾਦ ਸਭਿ ਫਿਕਿਆ ਤਨੁ ਮਨੁ ਫਿਕਾ ਹੋਇ ॥
होरि साद सभि फिकिआ तनु मनु फिका होइ ॥
दूसरे सभी स्वाद फीके हैं और उन से तन-मन फीके हो जाते हैं।
ਵਿਣੁ ਪਰਮੇਸਰ ਜੋ ਕਰੇ ਫਿਟੁ ਸੁ ਜੀਵਣੁ ਸੋਇ ॥੧॥
विणु परमेसर जो करे फिटु सु जीवणु सोइ ॥१॥
परमेश्वर का नाम स्मरण छोड़ कर मनुष्य जो कुछ भी करता है, उसका जीवन धिक्कार योग्य है॥ १॥
ਅੰਚਲੁ ਗਹਿ ਕੈ ਸਾਧ ਕਾ ਤਰਣਾ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ॥
अंचलु गहि कै साध का तरणा इहु संसारु ॥
हे मेरे प्राण ! संतों का दामन पकड़ने से इस भवसागर से पार हुआ जा सकता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਆਰਾਧੀਐ ਉਧਰੈ ਸਭ ਪਰਵਾਰੁ ॥੨॥
पारब्रहमु आराधीऐ उधरै सभ परवारु ॥२॥
हमें परब्रह्म की आराधना करनी चाहिए, क्योंकि आराधना करने वाले का समूचा परिवार भी भवसागर से पार हो जाता है॥ २॥
ਸਾਜਨੁ ਬੰਧੁ ਸੁਮਿਤ੍ਰੁ ਸੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹਿਰਦੈ ਦੇਇ ॥
साजनु बंधु सुमित्रु सो हरि नामु हिरदै देइ ॥
वही मेरा साजन, बन्धु एवं प्रिय मित्र है, जो प्रभु के नाम को मेरे हृदय में स्थापित करता है।
ਅਉਗਣ ਸਭਿ ਮਿਟਾਇ ਕੈ ਪਰਉਪਕਾਰੁ ਕਰੇਇ ॥੩॥
अउगण सभि मिटाइ कै परउपकारु करेइ ॥३॥
वह मेरे सभी अवगुणों को मिटा देता है और मुझ पर बड़ा परोपकार करता है॥ ३ ॥
ਮਾਲੁ ਖਜਾਨਾ ਥੇਹੁ ਘਰੁ ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਣ ਨਿਧਾਨ ॥
मालु खजाना थेहु घरु हरि के चरण निधान ॥
ईश्वर के चरण ही (तमाम पदार्थों के) भण्डार हैं, वही धन, भण्डार एवं प्राणी के लिए वास्तविक निवास है।
ਨਾਨਕੁ ਜਾਚਕੁ ਦਰਿ ਤੇਰੈ ਪ੍ਰਭ ਤੁਧਨੋ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ॥੪॥੪॥੧੭੨॥
नानकु जाचकु दरि तेरै प्रभ तुधनो मंगै दानु ॥४॥४॥१७२॥
हे प्रभु ! याचक नानक आपके द्वार पर खड़ा है और आपका नाम ही अपने दान स्वरूप माँगता है॥ ४॥ ४॥ १७२॥