Page 213
ਪਹਿਰੈ ਬਾਗਾ ਕਰਿ ਇਸਨਾਨਾ ਚੋਆ ਚੰਦਨ ਲਾਏ ॥
हे मानव ! तुम नहा धोकर सफेद वस्त्र पहनते हो और अपने आपको चन्दन के इत्र से सुगंधित करते हो।
ਨਿਰਭਉ ਨਿਰੰਕਾਰ ਨਹੀ ਚੀਨਿਆ ਜਿਉ ਹਸਤੀ ਨਾਵਾਏ ॥੩॥
तुम निर्भय, निरंकार ईश्वर का चिन्तन नहीं करते, तेरा स्नान हाथी के नहाने जैसा है॥ ३॥
ਜਉ ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਤ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲੈ ਸਭਿ ਸੁਖ ਹਰਿ ਕੇ ਨਾਏ ॥
जब ईश्वर कृपा करते हैं तो वह सतगुरु से मिला देते हैं। संसार के सभी सुख ईश्वर के नाम में निवास करते हैं।
ਮੁਕਤੁ ਭਇਆ ਬੰਧਨ ਗੁਰਿ ਖੋਲੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥੪॥੧੪॥੧੫੨॥
हे नानक ! गुरु ऐसे जीव के बन्धन खोलकर भवसागर से मुक्त करवा देते हैं और अब वह भगवान का ही गुणानुवाद करता रहता है ॥४॥१४॥१५२॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी पूरबी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਸਦ ਕਰੀਐ ॥
हे मेरे मन ! हमेशा ही गुरु को याद करते रहना चाहिए।
ਰਤਨ ਜਨਮੁ ਸਫਲੁ ਗੁਰਿ ਕੀਆ ਦਰਸਨ ਕਉ ਬਲਿਹਰੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिस गुरु ने अमूल्य मानव-जन्म को सफल कर दिया है, उस गुरु के दर्शनों पर तन-मन से बलिहारी जाना चाहिए ॥१॥ रहाउ॥
ਜੇਤੇ ਸਾਸ ਗ੍ਰਾਸ ਮਨੁ ਲੇਤਾ ਤੇਤੇ ਹੀ ਗੁਨ ਗਾਈਐ ॥
हे मेरे मन ! मनुष्य को हर सांस में उसका गुणगान करना चाहिए।
ਜਉ ਹੋਇ ਦੈਆਲੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਪੁਨਾ ਤਾ ਇਹ ਮਤਿ ਬੁਧਿ ਪਾਈਐ ॥੧॥
जब सतगुरु दयालु हो जाते हैं, तो ही यह बुद्धि एवं सुमति प्राप्त होती है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਨਾਮਿ ਲਏ ਜਮ ਬੰਧ ਤੇ ਛੂਟਹਿ ਸਰਬ ਸੁਖਾ ਸੁਖ ਪਾਈਐ ॥
हे मेरे मन ! यदि तू ईश्वर का नाम-सिमरन करने से आत्मिक सुख उपलब्ध हो जाता और मृत्यु का भय दूर हो जाता है।
ਸੇਵਿ ਸੁਆਮੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਮਨ ਬੰਛਤ ਫਲ ਆਈਐ ॥੨॥
जगत् के स्वामी प्रभु के नाम की देन देने वाले सतगुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं।॥ २॥
ਨਾਮੁ ਇਸਟੁ ਮੀਤ ਸੁਤ ਕਰਤਾ ਮਨ ਸੰਗਿ ਤੁਹਾਰੈ ਚਾਲੈ ॥
हे मेरे मन ! परमात्मा का नाम ही तेरा वास्तविक प्रिय मित्र एवं पुत्र है और यही तेरे साथ परलोक में जाएगा।
ਕਰਿ ਸੇਵਾ ਸਤਿਗੁਰ ਅਪੁਨੇ ਕੀ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਈਐ ਪਾਲੈ ॥੩॥
अपने सतगुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा कर, गुरु के द्वारा भगवान का नाम मिल जाता है॥ ३॥
ਗੁਰਿ ਕਿਰਪਾਲਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਧਾਰੀ ਬਿਨਸੇ ਸਰਬ ਅੰਦੇਸਾ ॥
जब कृपालु गुरु, प्रभु ने मुझ पर कृपा की तो मेरे समस्त दुःख मिट गए।
ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਿ ਮਿਟਿਓ ਸਗਲ ਕਲੇਸਾ ॥੪॥੧੫॥੧੫੩॥
हे नानक ! ईश्वर की महिमा करने से उसने सुख प्राप्त किया है और उसके सभी क्लेश मिट गए हैं।॥४॥१५॥१५३॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬਿਰਲੇ ਹੀ ਕੀ ਬੁਝੀ ਹੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुनिया में किसी विरले पुरुष की ही तृष्णा निवृत्त हुई है॥ १॥ रहाउ ॥
ਕੋਟਿ ਜੋਰੇ ਲਾਖ ਕ੍ਰੋਰੇ ਮਨੁ ਨ ਹੋਰੇ ॥
जीवन में मनुष्य करोड़ों कमाता है और लाखों-करोड़ों रुपए संग्रह करता है परन्तु फिर भी अपने मन पर अंकुश नहीं लगाता।
ਪਰੈ ਪਰੈ ਹੀ ਕਉ ਲੁਝੀ ਹੇ ॥੧॥
वह अधिकाधिक धन-दौलत जमा करने के लिए तृष्णाग्नि में जलता रहता है॥ १॥
ਸੁੰਦਰ ਨਾਰੀ ਅਨਿਕ ਪਰਕਾਰੀ ਪਰ ਗ੍ਰਿਹ ਬਿਕਾਰੀ ॥
वह अपनी सुन्दर नारी के साथ बहुत प्रेम करता है लेकिन फिर भी पराई नारी के साथ व्यभिचार करता है।
ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਨਹੀ ਸੁਝੀ ਹੇ ॥੨॥
वह बुरे-भले की पहचान ही नहीं करता ॥ २॥
ਅਨਿਕ ਬੰਧਨ ਮਾਇਆ ਭਰਮਤੁ ਭਰਮਾਇਆ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਨਹੀ ਗਾਇਆ ॥
ऐसा व्यक्ति मोह-माया के बन्धनों में फंसकर भटकता ही रहता है और गुणों के भण्डार परमेश्वर की महिमा-स्तुति नहीं करता। (क्योंकि)
ਮਨ ਬਿਖੈ ਹੀ ਮਹਿ ਲੁਝੀ ਹੇ ॥੩॥
उसका मन नीच कर्मों में लीन रहता है॥ ३॥
ਜਾ ਕਉ ਰੇ ਕਿਰਪਾ ਕਰੈ ਜੀਵਤ ਸੋਈ ਮਰੈ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਾਇਆ ਤਰੈ ॥
जिस व्यक्ति पर परमात्मा दया धारण करता है, वह सांसारिक कर्म करता हुआ भी माया के मोह से दूर रहता है। वह सत्संग में रहकर माया के सागर से पार हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਸੋ ਜਨੁ ਦਰਿ ਹਰਿ ਸਿਝੀ ਹੇ ॥੪॥੧॥੧੫੪॥
हे नानक ऐसा व्यक्ति परमात्मा के दरबार में सफल हो जाता है॥ ४॥ १॥ १५४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਸਭਹੂ ਕੋ ਰਸੁ ਹਰਿ ਹੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ईश्वर का नाम ही समस्त जीवों का रस है॥ १ ॥ रहाउ॥
ਕਾਹੂ ਜੋਗ ਕਾਹੂ ਭੋਗ ਕਾਹੂ ਗਿਆਨ ਕਾਹੂ ਧਿਆਨ ॥
हे सज्जन ! ईश्वर नाम से विहीन होकर किसी व्यक्ति को योग विद्या, किसी को सांसारिक पदार्थ भोगने का उत्साह है। किसी व्यक्ति को ज्ञान एवं किसी को ध्यान की लालसा है।
ਕਾਹੂ ਹੋ ਡੰਡ ਧਰਿ ਹੋ ॥੧॥
किसी व्यक्ति को डंडा धारी साधु होना पसंद है॥ १ ॥
ਕਾਹੂ ਜਾਪ ਕਾਹੂ ਤਾਪ ਕਾਹੂ ਪੂਜਾ ਹੋਮ ਨੇਮ ॥
किसी को जाप, किसी को तपस्या अच्छी लगती है। किसी व्यक्ति को पूजा-उपासना एवं किसी को हवन, धार्मिक संस्कार प्यारे लगते हैं।
ਕਾਹੂ ਹੋ ਗਉਨੁ ਕਰਿ ਹੋ ॥੨॥
किसी व्यक्ति को महात्मा-संत बनकर धरती पर भ्रमण वाला जीवन लुभाता है॥ २॥
ਕਾਹੂ ਤੀਰ ਕਾਹੂ ਨੀਰ ਕਾਹੂ ਬੇਦ ਬੀਚਾਰ ॥
किसी व्यक्ति को नदी के तट से प्रेम है। किसी को जल से एवं किसी को वेदों का अध्ययन प्रिय है।
ਨਾਨਕਾ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਿਅ ਹੋ ॥੩॥੨॥੧੫੫॥
परन्तु नानक को प्रभु-भक्ति ही प्रिय है॥ ३॥ २॥ १५५॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗੁਨ ਕੀਰਤਿ ਨਿਧਿ ਮੋਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे ईश्वर ! तेरी महिमा की कीर्ति करना ही मेरी निधि है ॥ १॥ रहाउ ॥
ਤੂੰਹੀ ਰਸ ਤੂੰਹੀ ਜਸ ਤੂੰਹੀ ਰੂਪ ਤੂਹੀ ਰੰਗ ॥
हे प्रभु ! आप ही मेरा रस है, आप ही मेरा यश है, आप ही मेरी सौन्दर्य एवं आप ही मेरा रंग है।
ਆਸ ਓਟ ਪ੍ਰਭ ਤੋਰੀ ॥੧॥
हे ईश्वर ! आप ही मेरी आशा एवं शरण है॥ १॥
ਤੂਹੀ ਮਾਨ ਤੂੰਹੀ ਧਾਨ ਤੂਹੀ ਪਤਿ ਤੂਹੀ ਪ੍ਰਾਨ ॥
हे प्रभु ! आप ही मेरा मान है, आप ही मेरा धन है।आप ही मेरी प्रतिष्ठा है और आप ही मेरे प्राण है।
ਗੁਰਿ ਤੂਟੀ ਲੈ ਜੋਰੀ ॥੨॥
हे ठाकुर ! मेरी टूटी हुई वृति को आपके साथ गुरु जी ने मुझे मिला दिया है, जिससे मैं अलग हो गया था ॥ २॥
ਤੂਹੀ ਗ੍ਰਿਹਿ ਤੂਹੀ ਬਨਿ ਤੂਹੀ ਗਾਉ ਤੂਹੀ ਸੁਨਿ ॥
हे ईश्वर ! आप ही मेरे हृदय गृह में उपस्थित है। आप ही वन में है, आप ही गाँव में एवं आप ही विरह स्थल में है।