Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 212

Page 212

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਜਾ ਕਉ ਬਿਸਰੈ ਰਾਮ ਨਾਮ ਤਾਹੂ ਕਉ ਪੀਰ ॥ जिस व्यक्ति को राम का नाम भूल जाता है, ऐसे व्यक्ति को ही दुःख-क्लेशों से पीड़ित होता है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਰਵਹਿ ਸੇ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो व्यक्ति संतों की संगति में मिलकर प्रभु का चिन्तन करते हैं, वहीं गुणवान एवं उदारचित हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕਉ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਿਦੈ ਬੁਧਿ ॥ गुरु की प्रेरणा से जिसके हृदय में ब्रह्म-ज्ञान विद्यमान है,
ਤਾ ਕੈ ਕਰ ਤਲ ਨਵ ਨਿਧਿ ਸਿਧਿ ॥੧॥ उसके हाथ की हथेली में नवनिधि एवं सभी सिद्धियाँ विद्यमान हैं।॥ १॥
ਜੋ ਜਾਨਹਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਧਨੀ ॥ जो व्यक्ति गुणों के स्वामी हरि-प्रभु को जान लेता है,
ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਤਾ ਕੈ ਕਮੀ ॥੨॥ उसके घर में किसी पदार्थ की कोई कमी नहीं रहती ॥२॥
ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥ जो सृष्टिकर्ता परमेश्वर को पहचान लेता है,
ਸਰਬ ਸੂਖ ਰੰਗ ਮਾਣਿਆ ॥੩॥ वे सर्व सुख एवं आनंद प्राप्त करता है॥ ३॥
ਹਰਿ ਧਨੁ ਜਾ ਕੈ ਗ੍ਰਿਹਿ ਵਸੈ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਸੰਗਿ ਦੁਖੁ ਨਸੈ ॥੪॥੯॥੧੪੭॥ हे नानक ! जिस व्यक्ति के हृदय-घर में हरि नाम रूपी धन बसा रहता है, उसकी संगति में रहने से दुःख नाश हो जाते हैं ॥४॥९॥१४७॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਗਰਬੁ ਬਡੋ ਮੂਲੁ ਇਤਨੋ ॥ हे प्राणी ! तेरा अहंकार तो बहुत बड़ा है किन्तु इसका मूल तुच्छ मात्र ही है।
ਰਹਨੁ ਨਹੀ ਗਹੁ ਕਿਤਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इस दुनिया में तेरा निवास अस्थाई है, जितना चाहे माया के प्रति आकर्षित रह ॥ १॥ रहाउ ॥
ਬੇਬਰਜਤ ਬੇਦ ਸੰਤਨਾ ਉਆਹੂ ਸਿਉ ਰੇ ਹਿਤਨੋ ॥ जिस माया के प्रति वेदों एवं संतों ने तुझे वर्जित किया है, उसी से तेरा आकर्षण अधिक है।
ਹਾਰ ਜੂਆਰ ਜੂਆ ਬਿਧੇ ਇੰਦ੍ਰੀ ਵਸਿ ਲੈ ਜਿਤਨੋ ॥੧॥ इन्द्रियों के वश में होकर तुम जुआरी की तरह जीवन का खेल हार रहे हो।॥ १ ॥
ਹਰਨ ਭਰਨ ਸੰਪੂਰਨਾ ਚਰਨ ਕਮਲ ਰੰਗਿ ਰਿਤਨੋ ॥ हे प्राणी ! तू संहारक तथा पालनहार ईश्वर के सुन्दर चरणों के प्रेम से रिक्त है।
ਨਾਨਕ ਉਧਰੇ ਸਾਧਸੰਗਿ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਮੈ ਦਿਤਨੋ ॥੨॥੧੦॥੧੪੮॥ हे नानक ! कृपा के भण्डार प्रभु ने मुझ नानक को संतों की संगति प्रदान की है, जिससे मैं भवसागर से पार हो गया हूँ ॥२॥१०॥१४८॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਮੋਹਿ ਦਾਸਰੋ ਠਾਕੁਰ ਕੋ ॥ मैं अपने ठाकुर जी का तुच्छ मात्र दास हूँ।
ਧਾਨੁ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਖਾਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ परमात्मा जो कुछ भी मुझे देते हैं, मैं उसी का उपभोग करता हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਐਸੋ ਹੈ ਰੇ ਖਸਮੁ ਹਮਾਰਾ ॥ हे सज्जन ! हमारा मालिक-प्रभु ऐसा है,
ਖਿਨ ਮਹਿ ਸਾਜਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰਾ ॥੧॥ जो क्षण में ही सृष्टि-रचना करके उसे संवार देता है॥ १॥
ਕਾਮੁ ਕਰੀ ਜੇ ਠਾਕੁਰ ਭਾਵਾ ॥ मैं वही कार्य करता हूँ जो मेरे ठाकुर जी को लुभाता है।
ਗੀਤ ਚਰਿਤ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਗੁਨ ਗਾਵਾ ॥੨॥ मैं प्रभु की गुणस्तुति एवं अदभुत चमत्कारों के गीत गायन करता रहता हूँ॥ २ ॥
ਸਰਣਿ ਪਰਿਓ ਠਾਕੁਰ ਵਜੀਰਾ ॥ मैंने ठाकुर जी के मंत्री गुरु जी की शरण ली है।
ਤਿਨਾ ਦੇਖਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਧੀਰਾ ॥੩॥ उनको देखकर मेरा हृदय धैर्यवान हो गया है॥ ३॥
ਏਕ ਟੇਕ ਏਕੋ ਆਧਾਰਾ ॥ हे नानक ! प्रभु के मंत्री का आश्रय लेकर, मैंने एक ईश्वर को ही आधार एवं सहारा बनाया है
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੀ ਲਾਗਾ ਕਾਰਾ ॥੪॥੧੧॥੧੪੯॥ और ईश्वर की सेवा गुणस्तुति में लगा हुआा हूँ॥ ४ ॥ ११ ॥ १४९॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਹੈ ਕੋਈ ਐਸਾ ਹਉਮੈ ਤੋਰੈ ॥ हे सज्जन ! क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो अपने अहंत्व को चकनाचूर कर दे और
ਇਸੁ ਮੀਠੀ ਤੇ ਇਹੁ ਮਨੁ ਹੋਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ इस मीठी माया से अपने मन को वर्जित कर ले॥ १॥ रहाउ॥
ਅਗਿਆਨੀ ਮਾਨੁਖੁ ਭਇਆ ਜੋ ਨਾਹੀ ਸੋ ਲੋਰੈ ॥ जो आध्यात्मिक रूप से अज्ञानी है वह उस वस्तु की खोज करता है जो अंत में साथ नहीं देती।
ਰੈਣਿ ਅੰਧਾਰੀ ਕਾਰੀਆ ਕਵਨ ਜੁਗਤਿ ਜਿਤੁ ਭੋਰੈ ॥੧॥ मनुष्य के हृदय में मोह-माया की काली अन्धेरी रात्रि है। वह कौन-सी विधि हो सकती है, जिस द्वारा इस मन को आध्यात्मिक रूप से प्रबुद्ध किया जा सके?
ਭ੍ਰਮਤੋ ਭ੍ਰਮਤੋ ਹਾਰਿਆ ਅਨਿਕ ਬਿਧੀ ਕਰਿ ਟੋਰੈ ॥ मैं अनेक विधियों से खोज करता-करता और घूमता एवं भटकता हुआ थक गया हूँ।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਨਿਧਿ ਮੋਰੈ ॥੨॥੧੨॥੧੫੦॥ हे नानक ! ईश्वर ने मुझ पर कृपा की है और मुझे संतों की संगति का भण्डार मिल गया है॥ २॥ १२॥ १५०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਚਿੰਤਾਮਣਿ ਕਰੁਣਾ ਮਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे करुणामय परमेश्वर ! आप ही वह चिंतामणि है जो समस्त प्राणियों की मनोकामना पूर्ण करती है॥ १॥
ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ॥ हे पारब्रह्म ! आप ही वह दीनदयाल है,
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਣਿ ਸੁਖ ਭਏ ॥੧॥ जिसका सिमरन करने से सुख प्राप्त होता है॥ १॥
ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਅਗਾਧਿ ਬੋਧ ॥ हे अकालपुरुष !आपके स्वरूप का बोध अगाध है।
ਸੁਨਤ ਜਸੋ ਕੋਟਿ ਅਘ ਖਏ ॥੨॥ आपकी महिमा सुनने से करोड़ों ही पाप मिट जाते हैं।॥ २॥
ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਪ੍ਰਭ ਮਇਆ ਧਾਰਿ ॥ नानक का कथन है कि हे कृपानिधि प्रभु ! मुझ पर ऐसी कृपा करो कि
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮ ਲਏ ॥੩॥੧੩॥੧੫੧॥ मैं हरि-परमेश्वर नाम का सिमरन करता रहूं॥ ३॥ १३॥ १५१॥
ਗਉੜੀ ਪੂਰਬੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭੂ ਸੁਖ ਪਾਏ ॥ हे मेरे मन ! जो व्यक्ति ईश्वर की शरण में आता है, उसे ही सुख उपलब्ध होता है।
ਜਾ ਦਿਨਿ ਬਿਸਰੈ ਪ੍ਰਾਨ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸੋ ਦਿਨੁ ਜਾਤ ਅਜਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह दिन व्यर्थ बीत जाता है, जब प्राणपति, सुखों के दाता प्रभु भुला दिए जाते हैं ॥ १॥ रहाउ॥
ਏਕ ਰੈਣ ਕੇ ਪਾਹੁਨ ਤੁਮ ਆਏ ਬਹੁ ਜੁਗ ਆਸ ਬਧਾਏ ॥ हे जीव ! तुम एक रात्रिकाल के अतिथि के तौर पर दुनिया में आए हो परन्तु तुमने अनेक युग रहने की आशा बढ़ा ली है।
ਗ੍ਰਿਹ ਮੰਦਰ ਸੰਪੈ ਜੋ ਦੀਸੈ ਜਿਉ ਤਰਵਰ ਕੀ ਛਾਏ ॥੧॥ घर, मन्दिर एवं धन-दौलत जो कुछ भी दृष्टिमान होता है, वह तो एक पेड़ की छाया की भाँति है॥ १॥
ਤਨੁ ਮੇਰਾ ਸੰਪੈ ਸਭ ਮੇਰੀ ਬਾਗ ਮਿਲਖ ਸਭ ਜਾਏ ॥ मनुष्य कहता है कि यह तन मेरा है, यह धन-दौलत, बाग एवं संपत्ति सब कुछ मेरा है लेकिन अंततः सब कुछ समाप्त हो जाएँगे।
ਦੇਵਨਹਾਰਾ ਬਿਸਰਿਓ ਠਾਕੁਰੁ ਖਿਨ ਮਹਿ ਹੋਤ ਪਰਾਏ ॥੨॥ हे मानव ! तू देने वाले दाता जगत् के ठाकुर प्रभु को भूल गया है। एक क्षण में सब कुछ पराया हो जाता है॥ २॥


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