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ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਚਾਕਰ ਸੇ ਭਲੇ ॥
हे नानक ! धन्य हैं, जो ईश्वर के सेवक हैं।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਮੁਖ ਊਜਲੇ ॥੪॥੩॥੧੪੧॥
प्रभु के दरबार में वह सम्मानित हो जाते हैं।॥४॥ ३॥ १४१॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਜੀਅਰੇ ਓਲ੍ਹ੍ਹਾ ਨਾਮ ਕਾ ॥
हे मेरे प्राण ! ईश्वर का नाम ही तेरा एकमात्र सहारा है।
ਅਵਰੁ ਜਿ ਕਰਨ ਕਰਾਵਨੋ ਤਿਨ ਮਹਿ ਭਉ ਹੈ ਜਾਮ ਕਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम ध्यान के अतिरिक्त कोई भी कार्य करने से आध्यात्मिक मृत्यु का भय बना रहता है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਅਵਰ ਜਤਨਿ ਨਹੀ ਪਾਈਐ ॥
किसी दूसरे उपाय द्वारा ईश्वर प्राप्त नहीं होते।
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥
भगवान् का ध्यान बड़े भाग्य से ही किया जा सकता है॥ १॥
ਲਾਖ ਹਿਕਮਤੀ ਜਾਨੀਐ ॥
मनुष्य चाहे लाखों चतुराइयां जानता हो।
ਆਗੈ ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਮਾਨੀਐ ॥੨॥
परन्तु तनिकमात्र भी ये (परलोक में) आगे कारगर नहीं होती ॥ २॥
ਅਹੰਬੁਧਿ ਕਰਮ ਕਮਾਵਨੇ ॥
अहंबुद्धि से किए गए धर्म-कर्म भी ऐसे बह जाते हैं
ਗ੍ਰਿਹ ਬਾਲੂ ਨੀਰਿ ਬਹਾਵਨੇ ॥੩॥
जैसे रेत का घर पानी में बह जाता है॥ ३॥
ਪ੍ਰਭੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਕਿਰਪਾ ਕਰੈ ॥
हे नानक ! कृपालु प्रभु जिस जीव पर अपनी कृपा कर देते हैं,
ਨਾਮੁ ਨਾਨਕ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਮਿਲੈ ॥੪॥੪॥੧੪੨॥
उसे संतों की संगति में भगवान् का नाम मिल जाता है॥ ४ ॥ ४ ॥ १४२ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਬਾਰਨੈ ਬਲਿਹਾਰਨੈ ਲਖ ਬਰੀਆ ॥
हे सज्जन ! मैं ईश्वर के नाम पर लाखों बार बलिहारी जाता हूँ।
ਨਾਮੋ ਹੋ ਨਾਮੁ ਸਾਹਿਬ ਕੋ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जगत् के स्वामी-प्रभु का नाम ही जीवों के प्राणों का आधार है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਤੁਹੀ ਏਕ ॥
हे ईश्वर ! एक आप ही जगत् में सब कुछ करते हैं एवं जीवों से करवाते हैं।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਕੀ ਤੁਹੀ ਟੇਕ ॥੧॥
एक आप ही जीव-जन्तुओं का आसरा है॥ १॥
ਰਾਜ ਜੋਬਨ ਪ੍ਰਭ ਤੂੰ ਧਨੀ ॥
हे मेरे प्रभु ! आप किसी व्यक्ति के अधिकार और उसकी युवावस्था के पीछे की शक्ति हैं।
ਤੂੰ ਨਿਰਗੁਨ ਤੂੰ ਸਰਗੁਨੀ ॥੨॥
आप ही निर्गुण और सगुण है॥ २॥
ਈਹਾ ਊਹਾ ਤੁਮ ਰਖੇ ॥
हे ठाकुर ! लोक-परलोक में आप ही मेरे रक्षक हो।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਕੋ ਲਖੇ ॥੩॥
गुरु की कृपा से कोई विरला पुरुष ही आपको समझता है॥ ३॥
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਪ੍ਰਭ ਸੁਜਾਨੁ ॥
हे सर्वज्ञ एवं अन्तर्यामी प्रभु !
ਨਾਨਕ ਤਕੀਆ ਤੁਹੀ ਤਾਣੁ ॥੪॥੫॥੧੪੩॥
आप ही नानक का सहारा एवं शक्ति है॥ ४ ॥ ५ ॥ १४३ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਆਰਾਧੀਐ ॥
हमेशा ही हरि-परमेश्वर की आराधना करनी चाहिए।
ਸੰਤਸੰਗਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਭਰਮੁ ਮੋਹੁ ਭਉ ਸਾਧੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संतों की सभा में ही हरि मन में आकर निवास करता है, जिससे भ्रम, मोह एवं भय दूर हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਬੇਦ ਪੁਰਾਣ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਭਨੇ ॥
वेद, पुराण एवं स्मृतियाँ पुकारते हैं कि
ਸਭ ਊਚ ਬਿਰਾਜਿਤ ਜਨ ਸੁਨੇ ॥੧॥
प्रभु के सेवक सर्वोच्च आध्यात्मिक स्थिति में निवास करते हैं।॥१॥
ਸਗਲ ਅਸਥਾਨ ਭੈ ਭੀਤ ਚੀਨ ॥
दूसरे सभी स्थान भयभीत देखे जाते हैं।
ਰਾਮ ਸੇਵਕ ਭੈ ਰਹਤ ਕੀਨ ॥੨॥
लेकिन राम के भक्त भय रहित हैं॥ २॥
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਜੋਨਿ ਫਿਰਹਿ ॥
प्राणी चौरासी लाख योनियों में भटकते फिरते हैं
ਗੋਬਿੰਦ ਲੋਕ ਨਹੀ ਜਨਮਿ ਮਰਹਿ ॥੩॥
लेकिन गोविन्द के भक्त आवागमन (जीवन-मृत्यु के चक्र) से मुक्त रहते हैं।
ਬਲ ਬੁਧਿ ਸਿਆਨਪ ਹਉਮੈ ਰਹੀ ॥
बल, बुद्धि, चतुरता एवं अहंकार दूर हो गए हैं
ਹਰਿ ਸਾਧ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਗਹੀ ॥੪॥੬॥੧੪੪॥
जब नानक ने हरि के संतों की शरण ली है ।॥४॥६॥१४४॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਮਨ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਨ ਗਾਈਐ ॥
हे मेरे मन ! राम के नाम का गुणगान करते रहो।
ਨੀਤ ਨੀਤ ਹਰਿ ਸੇਵੀਐ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सदैव ही प्रभु की सेवा करो एवं अपने श्वास-श्वास से प्रभु का ध्यान करते रहो॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਤਸੰਗਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ॥
संतों की संगति द्वारा ही ईश्वर मन में निवास करता है
ਦੁਖੁ ਦਰਦੁ ਅਨੇਰਾ ਭ੍ਰਮੁ ਨਸੈ ॥੧॥
और दुःख-दर्द, अज्ञानता का अंधेरा एवं दुविधा दौड़ जाते हैं।॥ १॥
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਜਾਪੀਐ ॥
संतों की कृपा से जो पुरुष प्रभु का जाप करते रहते हैं,
ਸੋ ਜਨੁ ਦੂਖਿ ਨ ਵਿਆਪੀਐ ॥੨॥
ऐसे व्यक्ति कभी दुःखी नहीं होते॥ २॥
ਜਾ ਕਉ ਗੁਰੁ ਹਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦੇ ॥
जिस व्यक्ति को गुरु हरि-नाम रूपी मंत्र देते हैं,
ਸੋ ਉਬਰਿਆ ਮਾਇਆ ਅਗਨਿ ਤੇ ॥੩॥
ऐसा व्यक्ति माया की अग्नि से बच जाता है॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਮਇਆ ਕਰਿ ॥
हे ईश्वर ! मुझ नानक पर कृपा करो कि
ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਤਨਿ ਵਾਸੈ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ॥੪॥੭॥੧੪੫॥
मेरे मन एवं तन में भगवान् के नाम का निवास हो जाए॥ ४॥ ७॥ १४५॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
राग गौड़ी, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਰਸਨਾ ਜਪੀਐ ਏਕੁ ਨਾਮ ॥
अपनी रसना से एक परमेश्वर के नाम का ही जाप करना चाहिए।
ਈਹਾ ਸੁਖੁ ਆਨੰਦੁ ਘਨਾ ਆਗੈ ਜੀਅ ਕੈ ਸੰਗਿ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
परमेश्वर का नाम जपने से इहलोक में बड़ा सुख एवं आनंद उपलब्ध होता है और आगे परलोक में भी यह आत्मा के काम आता है और साथ रहता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਕਟੀਐ ਤੇਰਾ ਅਹੰ ਰੋਗੁ ॥
हे जीव ! (परमात्मा का नाम जपने से) तेरा अहंकार का रोग निवृत हो जाएगा।
ਤੂੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕਰਿ ਰਾਜ ਜੋਗੁ ॥੧॥
गुरु की कृपा से तू सांसारिक एवं आत्मिक शासन करेगा ॥ १॥
ਹਰਿ ਰਸੁ ਜਿਨਿ ਜਨਿ ਚਾਖਿਆ ॥
जिस व्यक्ति ने भी हरि-रस का स्वाद चखा है,"
ਤਾ ਕੀ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਲਾਥੀਆ ॥੨॥
उसकी तृष्णा मिट गई है॥ २॥
ਹਰਿ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ਨਿਧਿ ਪਾਇਆ ॥
जिसने सुख के भण्डार परमात्मा को पा लिया है,"
ਸੋ ਬਹੁਰਿ ਨ ਕਤ ਹੀ ਧਾਇਆ ॥੩॥
वह दोबारा अन्य कहीं नहीं जाता॥ ३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਾ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਆ ॥
हे नानक ! जिस व्यक्ति को गुरु ने हरि-परमेश्वर का नाम दिया है,"
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕਾ ਭਉ ਗਇਆ ॥੪॥੮॥੧੪੬॥
उसका भय दूर हो गया है ॥४॥८॥१४६॥