Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 164

Page 164

ਸੰਨਿਆਸੀ ਬਿਭੂਤ ਲਾਇ ਦੇਹ ਸਵਾਰੀ ॥ संन्यासी विभूति लगाकर अपने शरीर का श्रृंगार करता है।
ਪਰ ਤ੍ਰਿਅ ਤਿਆਗੁ ਕਰੀ ਬ੍ਰਹਮਚਾਰੀ ॥ वह पराई नारी को त्याग कर ब्रह्मचारी बनता है।
ਮੈ ਮੂਰਖ ਹਰਿ ਆਸ ਤੁਮਾਰੀ ॥੨॥ हे हरि ! मुझ मूर्ख को आप पर ही भरोसा है॥ २॥
ਖਤ੍ਰੀ ਕਰਮ ਕਰੇ ਸੂਰਤਣੁ ਪਾਵੈ ॥ क्षत्रिय शूरवीरता के कर्म करता है और अपनी बहादुरी के लिए पहचाना जाता है।
ਸੂਦੁ ਵੈਸੁ ਪਰ ਕਿਰਤਿ ਕਮਾਵੈ ॥ शूद्र एवं वैश्य दूसरों की सेवा का कर्म करते हैं।
ਮੈ ਮੂਰਖ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਛਡਾਵੈ ॥੩॥ मैं अज्ञानी हूं, लेकिन मेरा दृढ़ विश्वास है कि मुझ मूर्ख को भगवान् का नाम ही मुक्त करवाएगा।॥ ३॥
ਸਭ ਤੇਰੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਤੂੰ ਆਪਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥ हे प्रभु ! यह सारी सृष्टि तेरी ही रचना है और आप स्वयं ही समस्त जीवों में व्याप्त हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਨਕ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥ हे नानक ! गुरमुख को प्रभु महानता प्रदान करता है।
ਮੈ ਅੰਧੁਲੇ ਹਰਿ ਟੇਕ ਟਿਕਾਈ ॥੪॥੧॥੩੯॥ मुझ ज्ञानहीन ने भगवान् का ही सहारा लिया है। ॥४॥४॥१८॥३८॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ राग गौड़ी ग्वरायरी, चतुर्थ गुरु: ४ ॥
ਨਿਰਗੁਣ ਕਥਾ ਕਥਾ ਹੈ ਹਰਿ ਕੀ ॥ हरि की उत्कृष्ट कथा माया के तीनों गुणों से परे है।
ਭਜੁ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸੰਗਤਿ ਜਨ ਕੀ ॥ संतजनों की संगति में मिलकर प्रेमपूर्वक भगवान का भजन करो और
ਤਰੁ ਭਉਜਲੁ ਅਕਥ ਕਥਾ ਸੁਨਿ ਹਰਿ ਕੀ ॥੧॥ हरि की अकथनीय कथा को सुनकर भवसागर से पार हो जाओ॥ १॥
ਗੋਬਿੰਦ ਸਤਸੰਗਤਿ ਮੇਲਾਇ ॥ हे गोविन्द ! कृपया मुझे संतों की संगति में मिला दो
ਹਰਿ ਰਸੁ ਰਸਨਾ ਰਾਮ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ चूंकि मेरी रसना राम के गुण गा-गाकर हरि-रस का पान करती रहे॥ १॥ रहाउ॥
ਜੋ ਜਨ ਧਿਆਵਹਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ॥ जो हरि-परमेश्वर के नाम का ध्यान करते रहते हैं।
ਤਿਨ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ਕਰਹੁ ਹਮ ਰਾਮਾ ॥ हे मेरे राम ! मुझे उन पुरुषों के दासों का दास बना दो,
ਜਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਊਤਮ ਕਾਮਾ ॥੨॥ आपके भक्तों की सेवा करना परम पुण्य कर्म है।॥ २॥
ਜੋ ਹਰਿ ਕੀ ਹਰਿ ਕਥਾ ਸੁਣਾਵੈ ॥ जो व्यक्ति मुझे हरि की हरि कथा सुनाता है,
ਸੋ ਜਨੁ ਹਮਰੈ ਮਨਿ ਚਿਤਿ ਭਾਵੈ ॥ वह मेरे मन एवं चित्त को बहुत अच्छा लगता है।
ਜਨ ਪਗ ਰੇਣੁ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਵੈ ॥੩॥ केवल वही अत्यंत भाग्यशाली व्यक्ति है जिसे सच्चे भक्त की विनम्र सेवा का सौभाग्य प्राप्त होता है।॥ ३ ॥
ਸੰਤ ਜਨਾ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਨਿ ਆਈ ॥ केवल उनकी ही संतजनों से प्रीति होती है,
ਜਿਨ ਕਉ ਲਿਖਤੁ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਪਾਈ ॥ जिनके मस्तक पर विधाता ने ऐसा भाग्य लिख दिया है।
ਤੇ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਈ ॥੪॥੨॥੪੦॥ हे नानक ! ऐसे व्यक्ति प्रभु के नाम में समा जाते हैं ॥४॥२॥४०॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ राग गौड़ी ग्वरायरी, चतुर्थ गुरु: ४ ॥
ਮਾਤਾ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰੇ ਪੁਤੁ ਖਾਇ ॥ जिस प्रकार माँ को अपने बेटे को स्वादिष्ट भोजन खाते हुए देखना अच्छा लगता है।
ਮੀਨੇ ਪ੍ਰੀਤਿ ਭਈ ਜਲਿ ਨਾਇ ॥ ठीक उसी तरह मछली जल से प्रेम करती है और खुशी महसूस करती है तब वह पानी में स्वतंत्र रूप से तैरती है।
ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੁਰਸਿਖ ਮੁਖਿ ਪਾਇ ॥੧॥ उसी प्रकार सच्चे गुरु की ख़ुशी शिष्य को दिव्य शब्द देने में है।॥ १॥
ਤੇ ਹਰਿ ਜਨ ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਹਮ ਪਿਆਰੇ ॥ हे प्रिय प्रभु ! मुझे ऐसे हरि के भक्तों से मिला दो,
ਜਿਨ ਮਿਲਿਆ ਦੁਖ ਜਾਹਿ ਹਮਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जिनको मिलने से मेरे दुःख दूर हो जाएँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਿਉ ਮਿਲਿ ਬਛਰੇ ਗਊ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਵੈ ॥ जिस तरह अपने बछड़े से मिलकर गाय प्रेम प्रकट करती है,
ਕਾਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਜਾ ਪਿਰੁ ਘਰਿ ਆਵੈ ॥ जैसे जब पति घर लौट कर आता है तो पत्नी उससे मिलकर प्रेम प्रकट करती है,
ਹਰਿ ਜਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਜਾ ਹਰਿ ਜਸੁ ਗਾਵੈ ॥੨॥ वैसे ही जब प्रभु का भक्त प्रभु का यशोगान करता है तो उसका मन प्रभु के प्रेम में लीन हो जाता है॥ २॥
ਸਾਰਿੰਗ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਸੈ ਜਲ ਧਾਰਾ ॥ पपीहे के लिए सबसे सुखद बात तब होती है जब मूसलाधार वर्षा स्वर्ग से एक धारा की तरह गिरती है।
ਨਰਪਤਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਾਇਆ ਦੇਖਿ ਪਸਾਰਾ ॥ सम्राट को धन-दौलत का आडम्बर (विस्तार) देखने का चाव है।
ਹਰਿ ਜਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਜਪੈ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥੩॥ हरि का सेवक निरंकार की आराधना करने से प्रेम करता है॥ ३॥
ਨਰ ਪ੍ਰਾਣੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਾਇਆ ਧਨੁ ਖਾਟੇ ॥ प्रत्येक मनुष्य को धन-दौलत एवं सम्पत्ति कमाने से अति प्रेम है।
ਗੁਰਸਿਖ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਗਲਾਟੇ ॥ गुरु के सिक्ख को गुरु से प्रेम होता है, जब गुरु उसे गले लगकर मिलता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਾਧ ਪਗ ਚਾਟੇ ॥੪॥੩॥੪੧॥ नानक तो संतों के चरण चूमने से ही प्रेम करता है ॥४॥३॥४१॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥ राग गौड़ी ग्वरायरी, चतुर्थ गुरु: ४ ॥
ਭੀਖਕ ਪ੍ਰੀਤਿ ਭੀਖ ਪ੍ਰਭ ਪਾਇ ॥ भिखारी को भिक्षा से प्रेम है, जो वह किसी दानी से प्राप्त करता है।
ਭੂਖੇ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹੋਵੈ ਅੰਨੁ ਖਾਇ ॥ भूखे का प्रेम भोजन खाने से है।
ਗੁਰਸਿਖ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਆਘਾਇ ॥੧॥ गुरु के सिक्ख की प्रीति गुरु से भेंट करके तृप्त होने से है॥ १॥
ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਦੇਹੁ ਹਰਿ ਆਸ ਤੁਮਾਰੀ ॥ हे प्रभु ! मुझे अपने हरि दर्शन दीजिए। मुझे एक आपकी ही आशा है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੋਚ ਪੂਰਿ ਹਮਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे प्रभु ! मुझ पर कृपा करके मेरी कामना पूरी करो ॥ १॥ रहाउ॥
ਚਕਵੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸੂਰਜੁ ਮੁਖਿ ਲਾਗੈ ॥ चकवी को प्रसन्नता तब होती है, जब उसे सूर्य के दर्शन होते हैं।
ਮਿਲੈ ਪਿਆਰੇ ਸਭ ਦੁਖ ਤਿਆਗੈ ॥ अपने प्रियतम से मिलकर उसके सारे दुःख दूर हो जाते हैं।
ਗੁਰਸਿਖ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੁਰੂ ਮੁਖਿ ਲਾਗੈ ॥੨॥ गुरु का सिक्ख तब प्रसन्न होता है जब उसे गुरु के दर्शन होते हैं।॥ २॥
ਬਛਰੇ ਪ੍ਰੀਤਿ ਖੀਰੁ ਮੁਖਿ ਖਾਇ ॥ बछड़ा (अपनी माता का) अपने मुख से दूध चूषन करके प्रसन्न होता है।
ਹਿਰਦੈ ਬਿਗਸੈ ਦੇਖੈ ਮਾਇ ॥ अपनी माता को देखकर उसका हृदय प्रफुल्लित हो जाता है।
ਗੁਰਸਿਖ ਪ੍ਰੀਤਿ ਗੁਰੂ ਮੁਖਿ ਲਾਇ ॥੩॥ (इसी तरह) गुरु का सिक्ख गुरु के दर्शन करके बड़ा हर्षित होता है॥ ३॥
ਹੋਰੁ ਸਭ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਕਾਚਾ ॥ "गुरु-परमात्मा के अतिरिक्त दूसरा मोह झूठा है, चूंकि माया की प्रीति क्षणभंगुर है।
ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਕੂਰਾ ਕਚੁ ਪਾਚਾ ॥ यह झूठी प्रीति कांच की तरह टूट कर नाश हो जाती है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰੀਤਿ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਗੁਰੁ ਸਾਚਾ ॥੪॥੪॥੪੨॥ हे नानक, जो सच्चे गुरु से मिलता है वह गुरु से मिलने की संतुष्टि के कारण वास्तव में खुश होता है।॥ ४॥ ४॥ ४२ ॥


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