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ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग गौड़ी ग्वरायरी, चतुर्थ गुरु:४ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਸਫਲ ਹੈ ਬਣੀ ॥
उस सतगुरु की सेवा फलदायक होती है।
ਜਿਤੁ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਹਰਿ ਧਣੀ ॥
क्योंकि सतगुरु को मिलकर जगत् के स्वामी परमात्मा के नाम का ध्यान किया जाता है,
ਜਿਨ ਹਰਿ ਜਪਿਆ ਤਿਨ ਪੀਛੈ ਛੂਟੀ ਘਣੀ ॥੧॥
जिन्होंने ईश्वर का नाम-स्मरण किया है, उनका अनुसरण करके बहुत सारे लोग भवसागर से मुक्त हो गए हैं।॥ १॥
ਗੁਰਸਿਖ ਹਰਿ ਬੋਲਹੁ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
हे गुरु के मेरे भाई शिष्यों ! प्रेमपूर्वक भगवान् के नाम पर ध्यान करो।
ਹਰਿ ਬੋਲਤ ਸਭ ਪਾਪ ਲਹਿ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि बोलने से मनुष्य के समस्त पाप दूर हो जाते हैं। १॥ रहाउ॥
ਜਬ ਗੁਰੁ ਮਿਲਿਆ ਤਬ ਮਨੁ ਵਸਿ ਆਇਆ ॥
जब गुरु जी मिलते हैं तो जीव का मन नियन्त्रण में आ जाता है।
ਧਾਵਤ ਪੰਚ ਰਹੇ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ॥
भगवान् का ध्यान करने से पांचों ज्ञानेन्द्रियां (आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा) विकारों की ओर दौड़ने से रुक जाती हैं
ਅਨਦਿਨੁ ਨਗਰੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥੨॥
और रात-दिन मनुष्य अपनी शरीर रूपी नगरी में ईश्वर का यशोगान करता रहता है॥ २॥
ਸਤਿਗੁਰ ਪਗ ਧੂਰਿ ਜਿਨਾ ਮੁਖਿ ਲਾਈ ॥
जो व्यक्ति सतगुरु की चरण-धूलि अपने चेहरे पर लगाते हैं,
ਤਿਨ ਕੂੜ ਤਿਆਗੇ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
वह झूठ को त्याग देते हैं और प्रभु के साथ वृति लगा लेते हैं।
ਤੇ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਮੁਖ ਊਜਲ ਭਾਈ ॥੩॥
हे भाई ! ऐसे जीवों के चेहरे ही प्रभु के दरबार में उज्ज्वल होते हैं।॥ ३॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਆਪਿ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ॥
गुरु की सेवा परमेश्वर को भी स्वयं भली लगती है।
ਕ੍ਰਿਸਨੁ ਬਲਭਦ੍ਰੁ ਗੁਰ ਪਗ ਲਗਿ ਧਿਆਵੈ ॥
यहाँ तक की श्री कृष्ण एवं बलभद्र ने अपने गुरु संदीपन के चरणों में नतमस्तक होकर भगवान् का ही ध्यान किया था।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਆਪਿ ਤਰਾਵੈ ॥੪॥੫॥੪੩॥
हे नानक ! गुरमुखों को परमात्मा भवसागर से स्वयं पार करवाता है॥ ४ ॥ ५ ॥ ४३ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
राग गौड़ी ग्वरायरी, चतुर्थ गुरु:४ ॥
ਹਰਿ ਆਪੇ ਜੋਗੀ ਡੰਡਾਧਾਰੀ ॥
ईश्वर स्वयं ही (हाथों में) डंडा रखने वाला योगी है।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਬਨਵਾਰੀ ॥
जगत् का बनवारी परमेश्वर सर्वव्यापक है।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਤਪੁ ਤਾਪੈ ਲਾਇ ਤਾਰੀ ॥੧॥
ईश्वर स्वयं ही समाधि लगाकर तपस्या करता है॥ १॥
ਐਸਾ ਮੇਰਾ ਰਾਮੁ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥
मेरा राम ऐसा है जो सर्वत्र स्थानों में भरपूर है।
ਨਿਕਟਿ ਵਸੈ ਨਾਹੀ ਹਰਿ ਦੂਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ईश्वर प्राणी के निकट ही रहता है, वह कहीं दूर नहीं है॥ १॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਆਪੇ ਸਬਦੁ ਸੁਰਤਿ ਧੁਨਿ ਆਪੇ ॥
ईश्वर स्वयं ही अनहद शब्द है और स्वयं ही अनहद शब्द की ध्वनि को सुनने वाली सुरति है।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਵੇਖੈ ਵਿਗਸੈ ਆਪੇ ॥
ईश्वर स्वयं ही अपनी सृष्टि को देख-देख कर स्वयं ही प्रसन्न होता है।
ਹਰਿ ਆਪਿ ਜਪਾਇ ਆਪੇ ਹਰਿ ਜਾਪੇ ॥੨॥
प्रभु स्वयं ही अपने नाम का जाप करता है और जीवों से भी अपने ही नाम का जाप करवाता है। २॥
ਹਰਿ ਆਪੇ ਸਾਰਿੰਗ ਅੰਮ੍ਰਿਤਧਾਰਾ ॥
ईश्वर स्वयं ही पपीहा है और स्वयं ही नाम-अमृत की धारा है।
ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਆਪਿ ਪੀਆਵਣਹਾਰਾ ॥
ईश्वर स्वयं ही जीवों को नाम-अमृत पिलाने वाला है।
ਹਰਿ ਆਪਿ ਕਰੇ ਆਪੇ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥੩॥
ईश्वर स्वयं ही जीवों को उत्पन्न करता है और स्वयं ही जीवों को भवसागर से पार करवाता है॥ ३ ॥
ਹਰਿ ਆਪੇ ਬੇੜੀ ਤੁਲਹਾ ਤਾਰਾ ॥
परमात्मा स्वयं ही नाव, तुला और नावक है।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਗੁਰਮਤੀ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥
गुरु के उपदेश से ईश्वर स्ययं ही प्राणियों का उद्धार करता है।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਨਾਨਕ ਪਾਵੈ ਪਾਰਾ ॥੪॥੬॥੪੪॥
हे नानक ! ईश्वर स्वयं ही प्राणियो को संसार-सागर से पार करवाता है॥ ४॥ ६॥ ४४॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी बैरागणि महला ४ ॥
ਸਾਹੁ ਹਮਾਰਾ ਤੂੰ ਧਣੀ ਜੈਸੀ ਤੂੰ ਰਾਸਿ ਦੇਹਿ ਤੈਸੀ ਹਮ ਲੇਹਿ ॥
हे ईश्वर ! तू ही मेरा शाह एवं मालिक हैं। जैसी पूँजी तुम मुझे देते हो, वैसी ही पूंजी मैं लेता हूँ।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਣੰਜਹ ਰੰਗ ਸਿਉ ਜੇ ਆਪਿ ਦਇਆਲੁ ਹੋਇ ਦੇਹਿ ॥੧॥
यदि तुम दयालु होकर स्वयं मुझे हरि-नाम दो तो ही मैं हरि-नाम का व्यापार करूँ॥ १॥
ਹਮ ਵਣਜਾਰੇ ਰਾਮ ਕੇ ॥
हे भाई ! मैं तो राम का व्यापारी हूँ
ਹਰਿ ਵਣਜੁ ਕਰਾਵੈ ਦੇ ਰਾਸਿ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
और भगवान अपनी पूंजी देकर मुझसे अपने नाम का व्यापार करवाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਧਨੁ ਖਟਿਆ ਹਰਿ ਸਚੇ ਸਾਹ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥
मैंने हरि-भक्ति के नाम रूपी धन का लाभ कमाया है और सच्चे साहूकार परमेश्वर के हृदय को पसंद आ गया हूँ।
ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਵਖਰੁ ਲਦਿਆ ਜਮੁ ਜਾਗਾਤੀ ਨੇੜਿ ਨ ਆਇਆ ॥੨॥
मैंने हरि का नाम जपकर हरि-नाम रूपी सौदा सत्य के दरबार में ले जाने के लिए लाद लिया है और कर लेने वाला यमदूत मेरे निकट नहीं आता॥ २ ॥
ਹੋਰੁ ਵਣਜੁ ਕਰਹਿ ਵਾਪਾਰੀਏ ਅਨੰਤ ਤਰੰਗੀ ਦੁਖੁ ਮਾਇਆ ॥
जो व्यापारी नाम के सिवाय अन्य पदार्थों का व्यापार करते हैं, वह अनंत तरंगों वाली माया के मोह में फँसकर बड़ा दुखी होते हैं।
ਓਇ ਜੇਹੈ ਵਣਜਿ ਹਰਿ ਲਾਇਆ ਫਲੁ ਤੇਹਾ ਤਿਨ ਪਾਇਆ ॥੩॥
जिस तरह का व्यापार ईश्वर ने उनके लिए लगाया है, वैसा ही फल वे प्राप्त करते हैं। ३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਵਣਜੁ ਸੋ ਜਨੁ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਹੋਇ ਪ੍ਰਭੁ ਦੇਈ ॥
भगवान के नाम का व्यापार वहीं व्यक्ति करते हैं, जिन्हें प्रभु कृपालु होकर नाम का व्यापार करने के लिए देता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਸਾਹੁ ਹਰਿ ਸੇਵਿਆ ਫਿਰਿ ਲੇਖਾ ਮੂਲਿ ਨ ਲੇਈ ॥੪॥੧॥੭॥੪੫॥
हे नानक ! जो व्यक्ति साहूकार भगवान की सेवा करता है, भगवान फिर उससे बिल्कुल ही कर्मों का लेखा नहीं माँगता ॥४॥१॥७॥४५॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी बैरागणि महला ४ ॥
ਜਿਉ ਜਨਨੀ ਗਰਭੁ ਪਾਲਤੀ ਸੁਤ ਕੀ ਕਰਿ ਆਸਾ ॥
जैसे कोई माता यह आशा रखकर गर्भ में पड़े शिशु की नौ माह रक्षा करती है कि उसे पुत्र पैदा होगा
ਵਡਾ ਹੋਇ ਧਨੁ ਖਾਟਿ ਦੇਇ ਕਰਿ ਭੋਗ ਬਿਲਾਸਾ ॥
और वह बड़ा होकर धन कमा कर सुख एवं आनंद हेतु उसे देगा,"
ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਹਰਿ ਰਾਖਦਾ ਦੇ ਆਪਿ ਹਥਾਸਾ ॥੧॥
वैसे ही भगवान अपने भक्तों से प्रेम करता है, और उन्हें अपनी सहायता का हाथ देता है॥ १॥