Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 163

Page 163

ਆਪੇ ਹੀ ਪ੍ਰਭੁ ਦੇਹਿ ਮਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥ हे परमेश्वर! जिसे आप स्वयं ही सुमति प्रदान करते हैं वहीं जीव हरि के नाम का ध्यान करता है।
ਵਡਭਾਗੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਾਈਐ ॥ बड़े सौभाग्य से सतगुरु मिलते हैं, जो उसके मुख हरिनाम का अमृत डालते हैं।
ਹਉਮੈ ਦੁਬਿਧਾ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਸਹਜੇ ਸੁਖਿ ਸਮਾਈਐ ॥ उसका अहंकार एवं दुविधा नष्ट हो जाते हैं, वह सहज ही सुख में लीन हो जाता है।
ਸਭੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ਵਰਤਦਾ ਆਪੇ ਨਾਇ ਲਾਈਐ ॥੨॥ प्रभु स्वयं ही सर्वव्यापक हो रहा है और स्वयं ही मनुष्य को अपने नाम-सिमरन में लगाता है॥ २॥
ਮਨਮੁਖਿ ਗਰਬਿ ਨ ਪਾਇਓ ਅਗਿਆਨ ਇਆਣੇ ॥ स्वेच्छाचारी अहंकारवश ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाते, वे मूर्ख एवं ज्ञानहीन हैं।
ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਨਾ ਕਰਹਿ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਪਛੁਤਾਣੇ ॥ वे सतगुरु की शिक्षाओं का पालन नहीं करते हैं और अंत में वह पुनः पुनः पश्चाताप करते हैं।
ਗਰਭ ਜੋਨੀ ਵਾਸੁ ਪਾਇਦੇ ਗਰਭੇ ਗਲਿ ਜਾਣੇ ॥ गर्भयोनि में उनको निवास मिलता है और अंततः वे जन्म और मृत्यु के इन दौरों में आध्यात्मिक रूप से सड़ते रहते हैं।
ਮੇਰੇ ਕਰਤੇ ਏਵੈ ਭਾਵਦਾ ਮਨਮੁਖ ਭਰਮਾਣੇ ॥੩॥ मेरे सृजनहार प्रभु को यहीं भला लगता है कि स्वेच्छाचारी भटकते रहें॥ ३॥
ਮੇਰੈ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਲੇਖੁ ਲਿਖਾਇਆ ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਪੂਰਾ ॥ मेरे हरि-प्रभु ने आदि से ही प्राणी के मस्तक पर उसका भाग्य लिख दिया था।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਭੇਟਿਆ ਗੁਰੁ ਸੂਰਾ ॥ जब मनुष्य शूरवीर गुरु से मिलता है, वह सदा हरि-परमेश्वर के नाम की आराधना करता है।
ਮੇਰਾ ਪਿਤਾ ਮਾਤਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਹਰਿ ਬੰਧਪੁ ਬੀਰਾ ॥ हरि का नाम मेरा पिता एवं मेरी माता है। भगवान ही मेरा संबंधी और भ्राता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇ ਪ੍ਰਭ ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਕੀਰਾ ॥੪॥੩॥੧੭॥੩੭॥ हे प्रभु ! विनम्र सेवक नानक को क्षमादान करके अपने साथ मिला लो ॥४॥३॥१७॥३७॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी बैरागन, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਗਿਆਨੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥ सतगुरु से ज्ञान प्राप्त करके मैंने परम तत्व ईश्वर के मूल का चिन्तन किया है।
ਮਤਿ ਮਲੀਣ ਪਰਗਟੁ ਭਈ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਮੁਰਾਰਾ ॥ मुरारि प्रभु के नाम का जाप करने से मेरी मलिन बुद्धि निर्मल हो गई है।
ਸਿਵਿ ਸਕਤਿ ਮਿਟਾਈਆ ਚੂਕਾ ਅੰਧਿਆਰਾ ॥ ईश्वर ने माया का नाश कर दिया है और मेरा अज्ञानता का अंधकार दूर हो गया है।
ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਜਿਨ ਕਉ ਲਿਖਿਆ ਤਿਨ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ॥੧॥ जिनके मस्तक पर आदि से ही प्रभु सिमरन की भाग्य-रेखाएँ विद्यमान हों, उनको हरि का नाम प्रिय लगता है॥ १ ॥
ਹਰਿ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਪਾਈਐ ਸੰਤ ਜਨਹੁ ਜਿਸੁ ਦੇਖਿ ਹਉ ਜੀਵਾ ॥ हे सन्तजनो ! कृपया मुझे बताएं कि कौन-से साधनों द्वारा परमात्मा को पाया जा सकता है? जिसके दर्शन करके मैं आध्यात्मिक रूप से जीवित रहती हूँ।
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਚਸਾ ਨ ਜੀਵਤੀ ਗੁਰ ਮੇਲਿਹੁ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ परमात्मा के बिना मैं निमिष मात्र भी जीवित नहीं रह सकती। मुझे गुरु के साथ मिला दीजिए चूंकि जो मैं हरि-रस का पान करूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਹਉ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਨਿਤ ਹਰਿ ਸੁਣੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗਤਿ ਕੀਨੀ ॥ मैं नित्य ईश्वर की गुणस्तुति करती हूँ और प्रतिदिन परमेश्वर की महिमा ही सुनती हूँ। मुझे हरि-प्रभु ने संसार से मुक्त कर दिया है।
ਹਰਿ ਰਸੁ ਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤਨੁ ਲੀਨੀ ॥ हरि-रस मैंने गुरु से प्राप्त किया है। मेरा मन एवं तन उसमें लीन हो गए हैं।
ਧਨੁ ਧਨੁ ਗੁਰੁ ਸਤ ਪੁਰਖੁ ਹੈ ਜਿਨਿ ਭਗਤਿ ਹਰਿ ਦੀਨੀ ॥ वह सत्यपुरुष गुरु धन्य-धन्य है, जिन्होंने मुझे भगवान् की भक्ति प्रदान की है।
ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਤੇ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਸੋ ਗੁਰੁ ਹਮ ਕੀਨੀ ॥੨॥ मैंने उसे ही अपना गुरु धारण किया है, जिस गुरु के द्वारा मैंने परमात्मा को पाया है॥ २॥
ਗੁਣਦਾਤਾ ਹਰਿ ਰਾਇ ਹੈ ਹਮ ਅਵਗਣਿਆਰੇ ॥ सर्वशक्तिमान ईश्वर गुणों का दाता है परन्तु हम जीवों में अनेक अवगुण विद्यमान हैं।
ਪਾਪੀ ਪਾਥਰ ਡੂਬਦੇ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਤਾਰੇ ॥ हम पापी लोग इस संसार रूपी विकार सागर में पत्थरों की तरह डूबते हैं; जिन्हें भगवान् ने गुरु की मति देकर पार कर दिया है।
ਤੂੰ ਗੁਣਦਾਤਾ ਨਿਰਮਲਾ ਹਮ ਅਵਗਣਿਆਰੇ ॥ हे गुणों के दाता ! तू बड़ा निर्मल है लेकिन हम जीवों में अनेक अवगुण भरे हुए हैं।
ਹਰਿ ਸਰਣਾਗਤਿ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਮੂੜ ਮੁਗਧ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥੩॥ हे भगवान् ! मैं आपकी शरण में आया हूँ और कृपया जिस तरह आपने मूर्ख जीवों को भी मुक्ति प्रदान की है, उसी तरह कृपया हमें विकारों से बचाएं।॥ ३॥
ਸਹਜੁ ਅਨੰਦੁ ਸਦਾ ਗੁਰਮਤੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਧਿਆਇਆ ॥ जो व्यक्ति गुरु की मति द्वारा अपने मन में हरि-परमेश्वर का ध्यान करते हैं, उन्हें हमेशा ही सहज सुख एवं आनंद प्राप्त होता है।
ਸਜਣੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਘਰਿ ਸੋਹਿਲਾ ਗਾਇਆ ॥ वे अपने सज्जन प्रभु को पाकर अपने हृदय-घर में उसकी महिमा-स्तुति के गीत गाते रहते हैं।
ਹਰਿ ਦਇਆ ਧਾਰਿ ਪ੍ਰਭ ਬੇਨਤੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਚੇਤਾਇਆ ॥ हे हरि ! यह मेरी आपसे प्रार्थना है; मुझ पर दया करो कि मैं सर्वदा ही प्रेमपूर्वक हरि-परमेश्वर का नाम याद करता रहूँ।
ਜਨ ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਧੂੜਿ ਤਿਨ ਜਿਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥੪॥੧੮॥੩੮॥ जन नानक उन महापुरुषों की चरण-धूलि की ही कामना करता है, जिन्होंने सतगुरु को पाया है ॥४॥४॥१८॥३८॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ਚਉਥਾ ਚਉਪਦੇ राग गौड़ी ग्वरायरी, चतुर्थ गुरुल, चौ-पद:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਪੰਡਿਤੁ ਸਾਸਤ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਪੜਿਆ ॥ पण्डित शास्त्रों एवं स्मृतियों का अध्ययन करता है।
ਜੋਗੀ ਗੋਰਖੁ ਗੋਰਖੁ ਕਰਿਆ ॥ योगी जीव अपने गुरु का नाम 'गोरख गोरख' पुकारता है।
ਮੈ ਮੂਰਖ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਪੜਿਆ ॥੧॥ लेकिन मैं मूर्ख हरि-परमेश्वर के नाम का ही जाप करता हूँ॥ १॥
ਨਾ ਜਾਨਾ ਕਿਆ ਗਤਿ ਰਾਮ ਹਮਾਰੀ ॥ हे मेरे राम ! मैं नहीं जानता कि मेरी दशा क्या होगी।
ਹਰਿ ਭਜੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤਰੁ ਭਉਜਲੁ ਤੂ ਤਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे मेरे मन ! तू भगवान् का भजन करके भवसागर से पार हो जा॥ १ ॥ रहाउ ॥


© 2017 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top