Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 162

Page 162

ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਨਿਹਕੇਵਲ ਨਿਰਬਾਣੀ ॥੪॥੧੩॥੩੩॥ हे नानक ! जो व्यक्ति भगवान के नाम में मग्न रहते हैं, वे वासना-रहित एवं पवित्र हो जाते हैं।॥ ४ ॥ १३ ॥ ३३ ॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी ग्वरायरी, तृतीय गुरु: ३ ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਵਡਭਾਗਿ ਸੰਜੋਗ ॥ सौभाग्य एवं संयोग से मनुष्य सतगुरु को मिलते हैं।
ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਨਿਤ ਹਰਿ ਰਸ ਭੋਗ ॥੧॥ फिर उस मनुष्य के हृदय में नाम का निवास हो जाता है और वह नित्य ही हरि-रस का पान करता रहता है॥ १
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰਾਣੀ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਧਿਆਇ ॥ जो प्राणी गुरु के सान्निध्य में रहकर भगवान् के नाम का ध्यान करता है,
ਜਨਮੁ ਜੀਤਿ ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਪਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह अपनी जीवनबाजी जीत लेता है और उसे नाम धन का लाभ प्राप्त हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਹੈ ਮੀਠਾ ॥ जिसे गुरु का शब्द मधुर-मीठा लगता है, वह ज्ञान एवं ध्यान को पा लेता है।
ਗੁਰ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਕਿਨੈ ਵਿਰਲੈ ਚਖਿ ਡੀਠਾ ॥੨॥ गुरु की कृपा से किसी विरले पुरुष ने ही इसका रस चखकर देखा है॥ २ ॥
ਕਰਮ ਕਾਂਡ ਬਹੁ ਕਰਹਿ ਅਚਾਰ ॥ जो लोग सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान और अच्छे कर्म करते हैं,
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਅਹੰਕਾਰ ॥੩॥ परंतु भगवान् के नाम से वंचित रहते हैं, उनके अंदर अहंकार उत्पन्न होता है तथा उनका जीवन अभिशाप बन जाता है।॥ ३ ॥
ਬੰਧਨਿ ਬਾਧਿਓ ਮਾਇਆ ਫਾਸ ॥ हे दास नानक ! ऐसा व्यक्ति बंधनों में जकड़ा और मोह-माया में फँसा हुआ है,
ਜਨ ਨਾਨਕ ਛੂਟੈ ਗੁਰ ਪਰਗਾਸ ॥੪॥੧੪॥੩੪॥ और वह गुरु के ज्ञान-प्रकाश द्वारा ही बन्धनों से मुक्त होता है॥ ४॥ १४॥ ३४॥
ਮਹਲਾ ੩ ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ॥ राग गौड़ी बैरागन, तीसरे गुरु: ॥
ਜੈਸੀ ਧਰਤੀ ਊਪਰਿਮੇਘੁਲਾ ਬਰਸਤੁ ਹੈ ਕਿਆ ਧਰਤੀ ਮਧੇ ਪਾਣੀ ਨਾਹੀ ॥ जिस तरह मेघ धरती पर जल बरसाते हैं, परन्तु क्या धरती में जल नहीं है? इसी तरह गुरुवाणी नाम के जल की बरसात करती है।
ਜੈਸੇ ਧਰਤੀ ਮਧੇ ਪਾਣੀ ਪਰਗਾਸਿਆ ਬਿਨੁ ਪਗਾ ਵਰਸਤ ਫਿਰਾਹੀ ॥੧॥ जिस तरह धरती में जल व्याप्त है इसी तरह प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में नाम-जल व्याप्त है परन्तु मेघ पैरों के बिना अधिक मात्रा में बरसता रहता है॥ १॥
ਬਾਬਾ ਤੂੰ ਐਸੇ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਹੀ ॥ हे बाबा ! इस तरह तू अपने भ्रम को दूर कर दे।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰਤੁ ਹੈ ਸੋਈ ਕੋਈ ਹੈ ਰੇ ਤੈਸੇ ਜਾਇ ਸਮਾਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जो कुछ भी परमात्मा मनुष्य को बनाता है, वह वही बन जाता है। उस तरह वह जाकर उस में ही मिल जाता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਇਸਤਰੀ ਪੁਰਖ ਹੋਇ ਕੈ ਕਿਆ ਓਇ ਕਰਮ ਕਮਾਹੀ ॥ स्त्री एवं पुरुष होकर आपकी महानता के बिना वह कौन-सा कर्म सम्पूर्ण कर सकते हैं ?
ਨਾਨਾ ਰੂਪ ਸਦਾ ਹਹਿ ਤੇਰੇ ਤੁਝ ਹੀ ਮਾਹਿ ਸਮਾਹੀ ॥੨॥ हे प्रभु ! भिन्न-भिन्न रूप सदैव आपके ही हैं और आप में ही लीन हो जाते हैं।॥ २ ॥
ਇਤਨੇ ਜਨਮ ਭੂਲਿ ਪਰੇ ਸੇ ਜਾ ਪਾਇਆ ਤਾ ਭੂਲੇ ਨਾਹੀ ॥ मैं अनेक जन्मों से भूला हुआ था, अब जब परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, मैं पुन: उसे विस्मृत नहीं करूँगा।
ਜਾ ਕਾ ਕਾਰਜੁ ਸੋਈ ਪਰੁ ਜਾਣੈ ਜੇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਮਾਹੀ ॥੩॥ यदि मनुष्य गुरु के शब्द में लीन रहे तो वह अनुभव करेगा कि यह संसार जिस प्रभु की रचना है, वही इसको भलीभांति जानता है॥ ३॥
ਤੇਰਾ ਸਬਦੁ ਤੂੰਹੈ ਹਹਿ ਆਪੇ ਭਰਮੁ ਕਹਾਹੀ ॥ हे प्रभु ! जो आपका नाम है, वह भी आप स्वयं ही है और आप स्वयं ही सर्वत्र व्याप्त हैं, फिर भ्रम कहाँ है?
ਨਾਨਕ ਤਤੁ ਤਤ ਸਿਉ ਮਿਲਿਆ ਪੁਨਰਪਿ ਜਨਮਿ ਨ ਆਹੀ ॥੪॥੧॥੧੫॥੩੫॥ हे नानक ! जब आत्म-तत्व अर्थात् जीवात्मा परम तत्व प्रभु में मिल जाती है तो फिर उसका पुनः पुनः जन्म नही होता॥ ४॥ १॥ १५॥ ३५॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी बैरागन, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਸਭੁ ਜਗੁ ਕਾਲੈ ਵਸਿ ਹੈ ਬਾਧਾ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ॥ यह सारा जगत् मृत्यु के अधीन है और मोह-माया के बंधन में फंसा हुआ है।
ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਮਾਵਦੇ ਮਨਮੁਖਿ ਮਿਲੈ ਸਜਾਇ ॥੧॥ द्वंद्व से प्रभावित, स्वेच्छाचारी अपना कर्म अहंकारवश करते हैं और परिणामस्वरूप उनको सत्य के दरबार में दण्ड मिलता है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਗੁਰ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥ हे मेरे मन ! अपना चित्त गुरु के चरणों में लगा।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਲੈ ਦਰਗਹ ਲਏ ਛਡਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु के सान्निध्य में नाम-निधि को प्राप्त कर। प्रभु के दरबार में यह तेरी मुक्ति करवा देगी और बड़ी शोभा मिलेगी॥ १॥ रहाउ॥
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਭਰਮਦੇ ਮਨਹਠਿ ਆਵੈ ਜਾਇ ॥ मन के हठ कारण मनुष्य चौरासी लाख योनियों में भटकते हैं और संसार में जन्मते-मरते रहते हैं l
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਨ ਚੀਨਿਓ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੋਨੀ ਪਾਇ ॥੨॥ वह गुरु के शब्द को अनुभव नहीं करते और पुनःपुनः गर्भ योनियों में डाले जाते हैं।॥ २॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੁ ਪਛਾਣਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਆਇ ॥ जब मनुष्य गुरु के माध्यम से अपने आत्मिक जीवन को समझ लेता हैं तो हरि का नाम उसके मन में निवास कर जाता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤੀ ਰਤਿਆ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਸੁਖਿ ਸਮਾਇ ॥੩॥ वह रात-दिन भगवान् की भक्ति में मग्न रहता है और भगवान् के नाम द्वारा सुख में समा जाता है॥३॥
ਮਨੁ ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਪਰਤੀਤਿ ਹੋਇ ਹਉਮੈ ਤਜੇ ਵਿਕਾਰ ॥ जब मनुष्य का मन गुरु के शब्द द्वारा अहंत्व से रहित हो जाता है तो उस मनुष्य की श्रद्धा बन जाती है और वह अपना अहंकार एवं विकारों को त्याग देता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਰਮੀ ਪਾਈਅਨਿ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ॥੪॥੨॥੧੬॥੩੬॥ हे नानक ! केवल ईश्वर की कृपा से ही मनुष्य उसके नाम एवं भक्ति के भण्डार को प्राप्त करता है ॥४॥२॥१६॥३६॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੩ ॥ राग गौड़ी बैरागन, तीसरे गुरु: ३ ॥
ਪੇਈਅੜੈ ਦਿਨ ਚਾਰਿ ਹੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਿਖਿ ਪਾਇਆ ॥ हरि-प्रभु ने प्रत्येक जीव के मस्तक पर यही भाग्य लिखकर रख दिया है कि जीव-स्त्री ने अपने मायके (मृत्युलोक) चार दिनों (कुछ दिन) के लिए रहना है।
ਸੋਭਾਵੰਤੀ ਨਾਰਿ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥ वही जीव-स्त्री शोभावान है जो गुरु के माध्यम से ईश्वर की महिमा गायन करती है।
ਪੇਵਕੜੈ ਗੁਣ ਸੰਮਲੈ ਸਾਹੁਰੈ ਵਾਸੁ ਪਾਇਆ ॥ जो अपने मायके (इहलोक) में सदाचार को सँभालती है, वह अपने ससुराल (परलोक) में बसेरा पा लेती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਣੀਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥੧॥ गुरमुख के हृदय को हरि-प्रभु ही अच्छी लगती है, और वह सहज ही उसमें लीन हो जाता है॥ १॥
ਸਸੁਰੈ ਪੇਈਐ ਪਿਰੁ ਵਸੈ ਕਹੁ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਪਾਈਐ ॥ प्रियतम (प्रभु) इस लोक एवं परलोक में निवास करता है। बताइए, उसको किस विधि से प्राप्त किया जा सकता है ?
ਆਪਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਅਲਖੁ ਹੈ ਆਪੇ ਮੇਲਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ निष्कलंक प्रभु स्वयं ही अलक्ष्य है और वह जीव को स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है॥ १॥ रहाउ॥


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