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ਨਾਮ ਸੰਜੋਗੀ ਗੋਇਲਿ ਥਾਟੁ ॥
जो लोग नाम के प्रति समर्पित हैं, वे संसार को एक अस्थायी चरागाह के रूप में देखते हैं।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਫੂਟੈ ਬਿਖੁ ਮਾਟੁ ॥
उनका काम और क्रोध ऐसे दूर हो जाते है, मानो इन विषैले तत्वों का घड़ा टूट गया हो।
ਬਿਨੁ ਵਖਰ ਸੂਨੋ ਘਰੁ ਹਾਟੁ ॥
नाम के सौदे सूत के बिना देहि रूपी घर एवं मन की दुकान शून्य है।
ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਖੋਲੇ ਬਜਰ ਕਪਾਟ ॥੪॥
गुरु के मिलन से उनके भटके हुए मन के भारी द्वार खुल जाते हैं। ॥ ४॥
ਸਾਧੁ ਮਿਲੈ ਪੂਰਬ ਸੰਜੋਗ ॥
किस्मत से ही संत मिलते हैं।
ਸਚਿ ਰਹਸੇ ਪੂਰੇ ਹਰਿ ਲੋਗ ॥
परमात्मा के भक्त हमेशा भगवान् के सत्य नाम में हर्षित होते हैं।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਦੇ ਲੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
हे नानक ! गुरु के प्रति मन एवं तन समर्पित करने से सहज ही अपने प्रभु को पा लेते हैं।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕੈ ਲਾਗਉ ਪਾਇ ॥੫॥੬॥
मैं उनके चरणों पर नतमस्तक हूँ ॥ ५॥ ६॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग गौड़ी, प्रथम गुरु: १ ॥
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਚੀਤੁ ॥
मेरा मन काम, क्रोध एवं माया के मोह में लीन है।
ਝੂਠ ਵਿਕਾਰਿ ਜਾਗੈ ਹਿਤ ਚੀਤੁ ॥
उनके मोह के कारण मेरे मन में झूठ एवं पाप उदय हो गए हैं।
ਪੂੰਜੀ ਪਾਪ ਲੋਭ ਕੀ ਕੀਤੁ ॥
मैंने पाप एवं लोभ की पूंजी संग्रह की हुई है।
ਤਰੁ ਤਾਰੀ ਮਨਿ ਨਾਮੁ ਸੁਚੀਤੁ ॥੧॥
यदि आपका नाम, जो मेरे सभी पापों को नष्ट कर सकता है, मेरे मन में आ जाए, तो यह मेरे लिए संसार-सागर से तैरने के लिए नाव की तरह होगा।॥ १॥
ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਸਾਚੇ ਮੈ ਤੇਰੀ ਟੇਕ ॥
हे मेरे सच्चे प्रभु ! आप धन्य-धन्य है। बुराइयों के विरुद्ध मुझे केवल आपका ही सहारा है।
ਹਉ ਪਾਪੀ ਤੂੰ ਨਿਰਮਲੁ ਏਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हे प्रभु! मैं पापी हूँ, एक आप ही निष्कलंक हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਅਗਨਿ ਪਾਣੀ ਬੋਲੈ ਭੜਵਾਉ ॥
मनुष्य क्रोध की आग और पानी की शांति के प्रभाव में अलग-अलग व्यवहार करता है।
ਜਿਹਵਾ ਇੰਦ੍ਰੀ ਏਕੁ ਸੁਆਉ ॥
जीभ और इन्द्रिय अपनी-अपनी संतुष्टि चाहते हैं।
ਦਿਸਟਿ ਵਿਕਾਰੀ ਨਾਹੀ ਭਉ ਭਾਉ ॥
हमारा संपूर्ण दृष्टिकोण ईश्वर के प्रति प्रेम या भय के बिना बुराई-उन्मुख है।
ਆਪੁ ਮਾਰੇ ਤਾ ਪਾਏ ਨਾਉ ॥੨॥
यदि प्राणी अपना अहंकार नष्ट कर दे तो वह नाम को प्राप्त कर लेता है॥ २॥
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਫਿਰਿ ਮਰਣੁ ਨ ਹੋਇ ॥
जो व्यक्ति शब्द द्वारा अहंकार को समाप्त कर देता है, तो वह आध्यात्मिक मृत्यु नहीं मरता।
ਬਿਨੁ ਮੂਏ ਕਿਉ ਪੂਰਾ ਹੋਇ ॥
अहंकार को समाप्त किए बिना वह पूर्णता कैसे प्राप्त कर सकता है?
ਪਰਪੰਚਿ ਵਿਆਪਿ ਰਹਿਆ ਮਨੁ ਦੋਇ ॥
मन दुनिया के प्रपंचों एवं द्वैतभाव में लीन रहता है।
ਥਿਰੁ ਨਾਰਾਇਣੁ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੩॥
एक नारायण ही स्थिर है और दुनिया में वही होता है जो वह करता है॥३ ॥
ਬੋਹਿਥਿ ਚੜਉ ਜਾ ਆਵੈ ਵਾਰੁ ॥
जब मेरी बारी आएगी तो मैं भवसागर से पार होने के लिए नाम रूपी जहाज पर सवार हो जाऊँगा।
ਠਾਕੇ ਬੋਹਿਥ ਦਰਗਹ ਮਾਰ ॥
जो लोग नाम के जहाज पर चढ़ने में सक्षम नहीं हैं, वे भगवान् के दरबार में कष्ट उठाते हैं।
ਸਚੁ ਸਾਲਾਹੀ ਧੰਨੁ ਗੁਰਦੁਆਰੁ ॥
गुरु का दरबार धन्य है, जहाँ सत्यस्वरूप परमात्मा का यशोगान किया जाता है।
ਨਾਨਕ ਦਰਿ ਘਰਿ ਏਕੰਕਾਰੁ ॥੪॥੭॥
हे नानक ! अद्वितीय एक ईश्वर प्रत्येक हृदय-घर में व्यापक हो रहा है॥ ४॥ ७ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग गौड़ी, प्रथम गुरु: १ ॥
ਉਲਟਿਓ ਕਮਲੁ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥
ब्रह्म का चिंतन करने से मेरा मोह-माया में विमुख हो गया है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰ ਗਗਨਿ ਦਸ ਦੁਆਰਿ ॥
मुझे दिव्य आनंद की ऐसी अनोखी और निरंतर अनुभूति हो रही है, मानो मेरे गुप्त मन में आकाश से अमृत की धारा झर रही हो।
ਤ੍ਰਿਭਵਣੁ ਬੇਧਿਆ ਆਪਿ ਮੁਰਾਰਿ ॥੧॥
मुरारि-प्रभु तीनों लोकों में स्वयं ही व्यापक हो रहा है॥ १॥
ਰੇ ਮਨ ਮੇਰੇ ਭਰਮੁ ਨ ਕੀਜੈ ॥
हे मेरे मन ! किसी दुविधा में मत पड़।
ਮਨਿ ਮਾਨਿਐ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
यदि मन विश्वस्त हो जाए तो वह नाम रूपी अमृत रस का पान करने लगता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਨਮੁ ਜੀਤਿ ਮਰਣਿ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥
हे नश्वर, जीवन का खेल जीतो और मृत्यु के सत्य को अपने मन में स्वीकार करो।
ਆਪਿ ਮੂਆ ਮਨੁ ਮਨ ਤੇ ਜਾਨਿਆ ॥
जब मन का अहंत्च नाश हो जाता है तो उसे हृदय में ही परमात्मा बारे ज्ञान हो जाता है।
ਨਜਰਿ ਭਈ ਘਰੁ ਘਰ ਤੇ ਜਾਨਿਆ ॥੨॥
जब परमात्मा की कृपा होती है तो हृदय-घर में उसे आत्म-स्वरूप की पहचान हो जाती है॥ २ ॥
ਜਤੁ ਸਤੁ ਤੀਰਥੁ ਮਜਨੁ ਨਾਮਿ ॥
ईश्वर का नाम ही सच्या ब्रह्मचार्य, सत्य तीर्थ एवं स्नान है।
ਅਧਿਕ ਬਿਥਾਰੁ ਕਰਉ ਕਿਸੁ ਕਾਮਿ ॥
यदि मैं नाम को छोड़ कर अन्य अधिकतर आडम्बर करूँ तो वह सब व्यर्थ हैं।
ਨਰ ਨਾਰਾਇਣ ਅੰਤਰਜਾਮਿ ॥੩॥
चूंकि नारायण बड़ा अन्तर्यामी है॥३॥
ਆਨ ਮਨਉ ਤਉ ਪਰ ਘਰ ਜਾਉ ॥
यदि भगवान् के अतिरिक्त मैं किसी दूसरे पर श्रद्धा धारण कैसे करूँ, मेरे लिए कोई दूसरी जगह नहीं है।
ਕਿਸੁ ਜਾਚਉ ਨਾਹੀ ਕੋ ਥਾਉ ॥
मैं नाम की देन किससे मांगू? भगवान् के अतिरिक्त मेरे लिए कोई स्थान नहीं है।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮਤਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਉ ॥੪॥੮॥
हे नानक ! गुरु के उपदेश से मैं सहज ही सत्य में समा जाऊँगा॥ ४॥८॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
राग गौड़ी, प्रथम गुरु: १ ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਸੁ ਮਰਣੁ ਦਿਖਾਏ ॥
जब कोई व्यक्ति गुरु से मिलता है, तो गुरु उस व्यक्ति को दिखाते हैं कि स्वयं या अहंकार की मृत्यु वास्तव में क्या है।
ਮਰਣ ਰਹਣ ਰਸੁ ਅੰਤਰਿ ਭਾਏ ॥
तब मृत (सांसारिक कामनाओं से विरक्त) रहने का रहस्य मन को भाने लगता है।
ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰਿ ਗਗਨ ਪੁਰੁ ਪਾਏ ॥੧॥
अहंकार को मिटाकर ही दसम द्वार पाया जाता है॥ १॥
ਮਰਣੁ ਲਿਖਾਇ ਆਏ ਨਹੀ ਰਹਣਾ ॥
मानव जीव अपनी मृत्यु का समय लिखवा कर ही दुनिया में आते हैं और वे दुनिया में अधिक समय निवास नहीं कर सकते।
ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਾਪਿ ਰਹਣੁ ਹਰਿ ਸਰਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इसलिए मनुष्य को दुनिया में आकर हरि का जाप करते रहना और हरि की शरणागत वास करना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਦੁਬਿਧਾ ਭਾਗੈ ॥
यदि सतगुरु मिल जाए तो समस्त दुविधा भाग जाती है।
ਕਮਲੁ ਬਿਗਾਸਿ ਮਨੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਲਾਗੈ ॥
हृदय कमल प्रफुल्लित हो जाता है और मन हरि-प्रभु के साथ जुड़ जाता है।
ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ਮਹਾ ਰਸੁ ਆਗੈ ॥੨॥
जो व्यक्ति अहंकार का नाश करके जीता है, वह परलोक में नाम रूपी महारस का पान करता है॥ २॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਸਚ ਸੰਜਮਿ ਸੂਚਾ ॥
सतगुरु के मिलन से मनुष्य सत्यवादी, त्यागी एवं पावन हो जाता है।
ਗੁਰ ਕੀ ਪਉੜੀ ਊਚੋ ਊਚਾ ॥
गुरु का मार्ग धर्म की सीढ़ी है और उस सीढ़ी द्वारा मनुष्य सर्वोच्च आत्मिक अवस्था वाला हो जाता है।
ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਜਮ ਕਾ ਭਉ ਮੂਚਾ ॥੩॥
सतगुरु भगवान् की कृपा से ही मिलते हैं और मृत्यु का भय नाश हो जाता है॥ ३॥
ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਮਿਲਿ ਅੰਕਿ ਸਮਾਇਆ ॥
गुरु से मिलने और उनकी शिक्षाओं का पालन करने पर, नाम का ध्यान करने से व्यक्ति ईश्वर के प्रेम में डूबा रहता है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਘਰੁ ਮਹਲੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
अपनी कृपा-दृष्टि करके सतगुरु प्राणी के हृदय-घर में प्रभु के आत्म-स्वरूप के दर्शन करवा देते हैं।
ਨਾਨਕ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੪॥੯॥
हे नानक ! गुरु प्राणी के अहंकार को नाश करके परमेश्वर के साथ मिला देते हैं॥ ४ ॥ ९॥