Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 151

Page 151

ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ਚਉਪਦੇ ਦੁਪਦੇ राग गौरी ग्वारेरी, प्रथम गुरु, चौपाद (चार पंक्तियाँ) और द्विपाद (दो पंक्तियाँ)
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ परमात्मा एक है, उसका नाम सत्य है। वह सृष्टि का रचयिता सर्वशक्तिमान है। वह निडर है, उसकी किसी से शत्रुता नहीं, वह कालातीत, अयोनि एवं स्वयंभू है। उसकी लब्धि गुरु-कृपा से होती है।
ਭਉ ਮੁਚੁ ਭਾਰਾ ਵਡਾ ਤੋਲੁ ॥ ईश्वर के प्रति श्रद्धेय भय में सबसे ज्यादा सार और वैधता है।
ਮਨ ਮਤਿ ਹਉਲੀ ਬੋਲੇ ਬੋਲੁ ॥ मन की मति पर चलने वाला मनुष्य तुच्छ मति अनुसार अपने मुँह से घटिया वचन ही बोलता है।
ਸਿਰਿ ਧਰਿ ਚਲੀਐ ਸਹੀਐ ਭਾਰੁ ॥ प्रभु का भय अपने सिर पर धारण करके चलना चाहिए और उसका बोझ सहन करना चाहिए।
ਨਦਰੀ ਕਰਮੀ ਗੁਰ ਬੀਚਾਰੁ ॥੧॥ प्रभु की कृपा-दृष्टि एवं भाग्य से ही मनुष्य को गुरु की शिक्षा मिलती है॥ १ ॥
ਭੈ ਬਿਨੁ ਕੋਇ ਨ ਲੰਘਸਿ ਪਾਰਿ ॥ परमात्मा के भय बिना कोई भी प्राणी संसार रूपी विकारों के सागर से पार नहीं हो सकता।
ਭੈ ਭਉ ਰਾਖਿਆ ਭਾਇ ਸਵਾਰਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रभु के साथ जीव के प्रेम को प्रभु का भय ही संवार कर रखता है॥ १॥ रहाउ॥
ਭੈ ਤਨਿ ਅਗਨਿ ਭਖੈ ਭੈ ਨਾਲਿ ॥ मनुष्य के शरीर की क्रोध रूपी अग्नि ईश्वर के भय से जल जाती है।
ਭੈ ਭਉ ਘੜੀਐ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰਿ ॥ प्रभु के भय से हम गुरु के आध्यात्मिक वचनों से सुशोभित होते हैं।
ਭੈ ਬਿਨੁ ਘਾੜਤ ਕਚੁ ਨਿਕਚ ॥ ईश्वर के श्रद्धेय भय के बिना जो मानवीय चरित्र गढ़ा गया है, वह बिल्कुल झूठा है।
ਅੰਧਾ ਸਚਾ ਅੰਧੀ ਸਟ ॥੨॥ एक बर्तन की तरह, जिसे अज्ञान की मार से अज्ञान के साँचे में ढाला गया है। ॥ २॥
ਬੁਧੀ ਬਾਜੀ ਉਪਜੈ ਚਾਉ ॥ जीवन बाजी खेलने का चाव मनुष्य की बुद्धि द्वारा ही उत्पन्न होता है।
ਸਹਸ ਸਿਆਣਪ ਪਵੈ ਨ ਤਾਉ ॥ हजारों ही चतुर विचारों के बावजूद उन्हें ईश्वर-भय की तपस (आंच) नहीं लगती।
ਨਾਨਕ ਮਨਮੁਖਿ ਬੋਲਣੁ ਵਾਉ ॥ हे नानक ! मनमुख की बातचीत निरर्थक होती है।
ਅੰਧਾ ਅਖਰੁ ਵਾਉ ਦੁਆਉ ॥੩॥੧॥ उस अज्ञानी व्यक्ति का उपदेश हवा की तरह खोखले औरव्यर्थ होता हैं। ३॥ १॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग गौड़ी, प्रथम गुरु: १ ॥
ਡਰਿ ਘਰੁ ਘਰਿ ਡਰੁ ਡਰਿ ਡਰੁ ਜਾਇ ॥ जब प्रभु का भय हृदय-घर में निवास कर जाता है तो मृत्यु का भय भयभीत होकर भाग जाता है।
ਸੋ ਡਰੁ ਕੇਹਾ ਜਿਤੁ ਡਰਿ ਡਰੁ ਪਾਇ ॥ उस तरह के डर से क्या लाभ, जो व्यक्ति को जीवन में अन्य डरों से और भी अधिक डरने पर मजबूर कर दे?
ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਦੂਜੀ ਨਾਹੀ ਜਾਇ ॥ हे भगवान् ! आपके अतिरिक्त दूसरा कोई सुख का स्थान नहीं।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਵਰਤੈ ਸਭ ਤੇਰੀ ਰਜਾਇ ॥੧॥ जो कुछ भी होता है, सब आपकी इच्छानुसार ही होता है॥ १॥
ਡਰੀਐ ਜੇ ਡਰੁ ਹੋਵੈ ਹੋਰੁ ॥ हे प्रभु ! हम भयभीत तब हों, जब वास्तव में ईश्वर के भय के अतिरिक्त कोई अन्य भय हो।
ਡਰਿ ਡਰਿ ਡਰਣਾ ਮਨ ਕਾ ਸੋਰੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ईश्वर-भय बिना दूसरे के भय में रहना मन की अपनी ही उथल-पुथल के अतिरिक्त कुछ नहीं है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਨਾ ਜੀਉ ਮਰੈ ਨ ਡੂਬੈ ਤਰੈ ॥ आत्मा न ही मरती है, न ही जल में डूबती है और न ही जल में तैरती है।
ਜਿਨਿ ਕਿਛੁ ਕੀਆ ਸੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ॥ जिस परमात्मा ने सृष्टिरचना की है, वहीं सब कुछ करता है।
ਹੁਕਮੇ ਆਵੈ ਹੁਕਮੇ ਜਾਇ ॥ मनुष्य ईश्वर की आज्ञा से संसार में आता है और उसकेआज्ञानुसार संसार से चला जाता है।
ਆਗੈ ਪਾਛੈ ਹੁਕਮਿ ਸਮਾਇ ॥੨॥ वर्तमान काल एवं भविष्य काल में भी प्राणी उसकी आज्ञा में लीन रहता है॥ २॥
ਹੰਸੁ ਹੇਤੁ ਆਸਾ ਅਸਮਾਨੁ ॥ जिस व्यक्ति के हृदय में हिंसा, मोह, आशा एवं अहंकार होता है
ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਭੂਖ ਬਹੁਤੁ ਨੈ ਸਾਨੁ ॥ साथ ही उसके मन में जंगली जलधारा की प्रचंड धार की तरह माया की अत्यधिक भूख होती है।
ਭਉ ਖਾਣਾ ਪੀਣਾ ਆਧਾਰੁ ॥ ऐसे व्यक्ति को इनसे मुक्ति पाने के लिए प्रभु के भय को अपना भोजन-पानी एवं जीवन का आधार बनाना चाहिए।
ਵਿਣੁ ਖਾਧੇ ਮਰਿ ਹੋਹਿ ਗਵਾਰ ॥੩॥ इस आध्यात्मिक भोजन का सेवन किए बिना (भगवान के श्रद्धेय भय में रहते हुए), ये मूर्ख नष्ट हो जाते हैं।॥३॥
ਜਿਸ ਕਾ ਕੋਇ ਕੋਈ ਕੋਇ ਕੋਇ ॥ यदि प्राणी का कोई अपना है तो वह कोई बहुत ही विरला है।
ਸਭੁ ਕੋ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਕਾ ਸੋਇ ॥ हे परमेश्वर ! सभी जीव आपके हैं और आप सबके हो।
ਜਾ ਕੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਧਨੁ ਮਾਲੁ ॥ हे नानक ! जिस भगवान् के ये जीव-जन्तु एवं धनमाल निर्मित किए हैं,
ਨਾਨਕ ਆਖਣੁ ਬਿਖਮੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥੪॥੨॥ उस बारे कहना एवं विचार करना बड़ा कठिन है ॥ ४ ॥ २ ॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ राग गौरी, प्रथम गुरु:१ ॥
ਮਾਤਾ ਮਤਿ ਪਿਤਾ ਸੰਤੋਖੁ ॥ मैंने बुद्धि को अपनी माता, संतोष को अपना पिता
ਸਤੁ ਭਾਈ ਕਰਿ ਏਹੁ ਵਿਸੇਖੁ ॥੧॥ और सत्य को अपना भाई बना लिया है। बुद्धि, संतोष एवं सत्य मेरे अच्छे संबंधी हैं।॥ १॥
ਕਹਣਾ ਹੈ ਕਿਛੁ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥ भगवान् के विषय में कुछ कहना चाहता हूँ परन्तु मुझसे कुछ कहा नहीं जा सकता।
ਤਉ ਕੁਦਰਤਿ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे भगवान् ! क्योंकि आपकी रचना का मूल्यांकन नहीं पाया जा सकता। ॥ १॥ रहाउ॥


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