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ਦਯਿ ਵਿਗੋਏ ਫਿਰਹਿ ਵਿਗੁਤੇ ਫਿਟਾ ਵਤੈ ਗਲਾ ॥
प्रभु से भटककर वह अपमानित हुए फिरते हैं और उनका समूह समुदाय भ्रष्ट हो जाता है।
ਜੀਆ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਲੇ ਸੋਈ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਰਖੈ ॥
वह यह भी नहीं समझते कि केवल वही परमात्मा प्राणियों का पालन एवं संहार करता है। दूसरा कोई भी उनको बचा नहीं सकता।
ਦਾਨਹੁ ਤੈ ਇਸਨਾਨਹੁ ਵੰਜੇ ਭਸੁ ਪਈ ਸਿਰਿ ਖੁਥੈ ॥
वह पुण्य करने एवं स्नान करने से वंचित रह जाते हैं। उनके उखड़े हुए सिरों पर राख पड़ती है।
ਪਾਣੀ ਵਿਚਹੁ ਰਤਨ ਉਪੰਨੇ ਮੇਰੁ ਕੀਆ ਮਾਧਾਣੀ ॥
वह इस बात को भी नहीं समझते कि जब देवताओं एवं दैत्यों ने मिलकर क्षीर सागर का सुमेर पर्वत की मथनी बनाकर मंथन किया था तो जल में से १४ रत्न निकले थे।
ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਦੇਵੀ ਥਾਪੇ ਪੁਰਬੀ ਲਗੈ ਬਾਣੀ ॥
नदियों के तट पर देवताओं ने अठसठ तीर्थ-स्थलों को नियुक्त किया है। जहाँ पर्व त्यौहार मनाए जाते हैं और भजन गाए जाते हैं। अर्थात् वहाँ वाणी द्वारा हरि की कथा होती है।
ਨਾਇ ਨਿਵਾਜਾ ਨਾਤੈ ਪੂਜਾ ਨਾਵਨਿ ਸਦਾ ਸੁਜਾਣੀ ॥
स्नान उपरांत मुसलमान नमाजें पढ़ते हैं और स्नान के पश्चात हिन्दु पूजा-अर्चना करते हैं और सभी बुद्धिमान सदैव शुद्ध स्नान करते हैं।
ਮੁਇਆ ਜੀਵਦਿਆ ਗਤਿ ਹੋਵੈ ਜਾਂ ਸਿਰਿ ਪਾਈਐ ਪਾਣੀ ॥
जन्म से लेकर मृत्यु तक मानव शरीर स्नान द्वारा स्वच्छ रहता है।
ਨਾਨਕ ਸਿਰਖੁਥੇ ਸੈਤਾਨੀ ਏਨਾ ਗਲ ਨ ਭਾਣੀ ॥
हे नानक ! कटे सिर वाले लोग शैतान के समान हैं और स्नान की बात उन्हें अच्छी नहीं लगती।
ਵੁਠੈ ਹੋਇਐ ਹੋਇ ਬਿਲਾਵਲੁ ਜੀਆ ਜੁਗਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥
जब जल बरसता है, हर तरफ प्रसन्नता होती है। प्राणियों के जीवन की युक्ति जल में विद्यमान है।
ਵੁਠੈ ਅੰਨੁ ਕਮਾਦੁ ਕਪਾਹਾ ਸਭਸੈ ਪੜਦਾ ਹੋਵੈ ॥
जब जल बरसता है तो अनाज, गन्ना इत्यादि पर्दाथ उत्पन्न होते हैं(जो भोजन प्रदान करते हैं)। और कपास, जो सभी के लिए वस्त्र प्रदान करता है।
ਵੁਠੈ ਘਾਹੁ ਚਰਹਿ ਨਿਤਿ ਸੁਰਹੀ ਸਾ ਧਨ ਦਹੀ ਵਿਲੋਵੈ ॥
जब मेघ बरसते हैं, गाएँ सदा घास चरती हैं और उनके दूध से बनने वाला दहीं सदा गृहिणियों के पास होता है जिससे मक्खन बनता है।
ਤਿਤੁ ਘਿਇ ਹੋਮ ਜਗ ਸਦ ਪੂਜਾ ਪਇਐ ਕਾਰਜੁ ਸੋਹੈ ॥
तब स्त्रियां मंथन करती हैं। उसमें से जो घी निकलता है, उससे होम, यज्ञ, पवित्र भण्डारे और नित्य पूजा सदा ही सम्पन्न होते हैं और घी से अन्य संस्कार सुशोभित होते हैं।
ਗੁਰੂ ਸਮੁੰਦੁ ਨਦੀ ਸਭਿ ਸਿਖੀ ਨਾਤੈ ਜਿਤੁ ਵਡਿਆਈ ॥
गुरु सागर है, गुरु-वाणी सभी नदियां (उनकी सेविकाएँ) हैं, जिसके भीतर स्नान करने से (गुरु की शिक्षा का पालन करते हुए) महिमा प्राप्त होती है।
ਨਾਨਕ ਜੇ ਸਿਰਖੁਥੇ ਨਾਵਨਿ ਨਾਹੀ ਤਾ ਸਤ ਚਟੇ ਸਿਰਿ ਛਾਈ ॥੧॥
हे नानक ! यदि सिर मुंडाने वाले मुनि स्नान नहीं करते(गुरु की शिक्षा का पालन नहीं करते) हैं तो उनके सिर पर सौ अंजुलि भस्म ही पड़ती है॥ १॥
ਮਃ ੨ ॥
दूसरे गुरु द्वारा श्लोक: २॥
ਅਗੀ ਪਾਲਾ ਕਿ ਕਰੇ ਸੂਰਜ ਕੇਹੀ ਰਾਤਿ ॥
चूँकि आग को भगवान् ने गर्मी का गुण दिया है), किसी भी मात्रा में ठंड आग को कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकती। उसी प्रकार रात्रि भी सूर्य के प्रकाश को नहीं मिटा सकती।
ਚੰਦ ਅਨੇਰਾ ਕਿ ਕਰੇ ਪਉਣ ਪਾਣੀ ਕਿਆ ਜਾਤਿ ॥
अंधेरा चाँद का कुछ नही बिगाड़ सकता। कोई भी सामाजिक स्थिति (ऊँची या नीची) जल या वायु को प्रदूषित नहीं कर सकती।
ਧਰਤੀ ਚੀਜੀ ਕਿ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਵਿਚਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਹੋਇ ॥
कोई भी वस्तु पृथ्वी को प्रभावित नहीं कर सकती जिसके भीतर सब वस्तुएँ उत्पन्न होती हैं।
ਨਾਨਕ ਤਾ ਪਤਿ ਜਾਣੀਐ ਜਾ ਪਤਿ ਰਖੈ ਸੋਇ ॥੨॥
हे नानक ! प्राणी केवल तभी प्रतिष्ठित समझा जाता है, जब प्रभु उसका मान-सम्मान बरकरार रखे ॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਤੁਧੁ ਸਚੇ ਸੁਬਹਾਨੁ ਸਦਾ ਕਲਾਣਿਆ ॥
हे मेरे आश्चर्यजनक परमेश्वर ! मैं सदैव आपकी महिमा-स्तुति करता हूँ।
ਤੂੰ ਸਚਾ ਦੀਬਾਣੁ ਹੋਰਿ ਆਵਣ ਜਾਣਿਆ ॥
आप ही शाश्वत शासक हैं; अन्य सभी जीव आवागमन के अधीन हैं।
ਸਚੁ ਜਿ ਮੰਗਹਿ ਦਾਨੁ ਸਿ ਤੁਧੈ ਜੇਹਿਆ ॥
हे प्रभु! जो आपसे सत्यनाम का दान माँग लेता है, वह आपका नाम जप-जप कर आप जैसा ही बन जाता है।
ਸਚੁ ਤੇਰਾ ਫੁਰਮਾਨੁ ਸਬਦੇ ਸੋਹਿਆ ॥
गुरु के वचन के माध्यम से, आपकी शाश्वत आज्ञा उन्हें सुखद लगती है।
ਮੰਨਿਐ ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਤੁਧੈ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥
हे प्रभु !आपकी आज्ञा का पालन करने से ही मनुष्य को दिव्य ज्ञान एवं श्रेष्ठ बुद्धि प्राप्त होती है।
ਕਰਮਿ ਪਵੈ ਨੀਸਾਨੁ ਨ ਚਲੈ ਚਲਾਇਆ ॥
आपकी कृपा से उनका भाग्य सुन्दर हो जाता है, जो मिटता नहीं है।
ਤੂੰ ਸਚਾ ਦਾਤਾਰੁ ਨਿਤ ਦੇਵਹਿ ਚੜਹਿ ਸਵਾਇਆ ॥
हे प्रभु ! आप ही सच्चा दाता हैं और सदैव ही जीवों को देते रहते हो। आपके भण्डार कभी भी समाप्त नहीं होते अपितु बढ़ते जाते हैं।
ਨਾਨਕੁ ਮੰਗੈ ਦਾਨੁ ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਇਆ ॥੨੬॥
हे प्रभु ! नानक आपसे वहीं दान माँगता है, जो आपको अच्छा लगता है॥ २६॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੨ ॥
श्लोक, दूसरे गुरु द्वारा: २॥
ਦੀਖਿਆ ਆਖਿ ਬੁਝਾਇਆ ਸਿਫਤੀ ਸਚਿ ਸਮੇਉ ॥
वे, जिन्हें गुरु ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से सत्य का बोध कराया है और उनकी स्तुति गाकर उन्हें भगवान के नाम से जोड़ा है,
ਤਿਨ ਕਉ ਕਿਆ ਉਪਦੇਸੀਐ ਜਿਨ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕ ਦੇਉ ॥੧॥
जिनके गुरु स्वयं गुरु नानक हों, उन्हें इससे बढ़कर और क्या शिक्षा दी जा सकती है?॥ १ ॥
ਮਃ ੧ ॥
श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਸੋਈ ਬੂਝੈ ॥
भगवान् की स्तुति का मार्ग केवल वही जानता है, जिस पर भगवान् स्वयं को प्रकट करते हैं।
ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਸੁਝਾਏ ਤਿਸੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸੂਝੈ ॥
जिसे ईश्वर स्वयं ज्ञान प्रदान करता है, वह सर्वज्ञ जान लेता है।
ਕਹਿ ਕਹਿ ਕਥਨਾ ਮਾਇਆ ਲੂਝੈ ॥
जो व्यक्ति दिव्य ज्ञान के बिना केवल बातें करता है, वह माया के झंझटों में फंसा रहता है।
ਹੁਕਮੀ ਸਗਲ ਕਰੇ ਆਕਾਰ ॥
ईश्वर सभी प्राणियों की अपनी इच्छानुसार रचन करता है।
ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਸਰਬ ਵੀਚਾਰ ॥
वह स्वयं ही सबके विचारों को समझता है।
ਅਖਰ ਨਾਨਕ ਅਖਿਓ ਆਪਿ ॥
हे नानक ! मैंने जो भी शब्द कहा है, वह स्वयं भगवान् ने कहा है।
ਲਹੈ ਭਰਾਤਿ ਹੋਵੈ ਜਿਸੁ ਦਾਤਿ ॥੨॥
जिसको यह देन मिल जाती है, उसका अज्ञानता का अँधेरा दूर हो जाता है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पौड़ी ॥
ਹਉ ਢਾਢੀ ਵੇਕਾਰੁ ਕਾਰੈ ਲਾਇਆ ॥
मुझ बेकार कलाकार को प्रभु ने अपनी भक्ति कार्य में लगा लिया है।
ਰਾਤਿ ਦਿਹੈ ਕੈ ਵਾਰ ਧੁਰਹੁ ਫੁਰਮਾਇਆ ॥
यह ईश्वरीय आदेश था कि चाहे दिन हो या रात, मुझे बाहर जाना चाहिए और उसका यशोगान करना चाहिए।
ਢਾਢੀ ਸਚੈ ਮਹਲਿ ਖਸਮਿ ਬੁਲਾਇਆ ॥
(जब मैंने ऐसा किया)स्वामी ने मुझ कलाकार को अपने सत्य दरबार में निमंत्रण दिया।
ਸਚੀ ਸਿਫਤਿ ਸਾਲਾਹ ਕਪੜਾ ਪਾਇਆ ॥
परमात्मा ने अपनी सच्ची महिमा-स्तुति की पोशाक मुझे पहना दी है।
ਸਚਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਭੋਜਨੁ ਆਇਆ ॥
तब से सत्यनाम मेरा अमृत स्वरूप आहार बन गया है।
ਗੁਰਮਤੀ ਖਾਧਾ ਰਜਿ ਤਿਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
जो गुरु के उपदेश से इस आहार को पेट भर कर सेवन करते हैं, वे सदा सुख पाते हैं।
ਢਾਢੀ ਕਰੇ ਪਸਾਉ ਸਬਦੁ ਵਜਾਇਆ ॥
गुरु-वाणी गायन करने से मैं चारण परमेश्वर की महानता का प्रसार करता आनंद (उनसे एक धन्य उपहार के रूप में प्राप्त) ले रहा हूँ।
ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਸਾਲਾਹਿ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥੨੭॥ ਸੁਧੁ
हे नानक ! सत्यनाम की स्तुति करके मैंने परमात्मा को प्राप्त कर लिया है॥ २७॥सुधु