Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1425

Page 1425

ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੫ सलोक महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ वह परब्रह्म केवल एक (ऑकार-स्वरूप) है, सतगुरु की कृपा से प्राप्ति होती है।
ਰਤੇ ਸੇਈ ਜਿ ਮੁਖੁ ਨ ਮੋੜੰਨਿੑ ਜਿਨੑੀ ਸਿਞਾਤਾ ਸਾਈ ॥ जिन लोगों ने मालिक को पहचान लिया है, वे उसकी भक्ति में ही लीन रहते हैं और कभी मुँह नहीं मोड़ते।
ਝੜਿ ਝੜਿ ਪਵਦੇ ਕਚੇ ਬਿਰਹੀ ਜਿਨੑਾ ਕਾਰਿ ਨ ਆਈ ॥੧॥ जिनको प्रेम-भक्ति का कार्य नहीं आता, वे कच्चे प्रेमी टूट जाते हैं।॥१॥
ਧਣੀ ਵਿਹੂਣਾ ਪਾਟ ਪਟੰਬਰ ਭਾਹੀ ਸੇਤੀ ਜਾਲੇ ॥ प्रभु के बिना सुन्दर वस्त्र भी अग्नि में जला देने वाले हैं।
ਧੂੜੀ ਵਿਚਿ ਲੁਡੰਦੜੀ ਸੋਹਾਂ ਨਾਨਕ ਤੈ ਸਹ ਨਾਲੇ ॥੨॥ गुरु नानक का कथन है कि हे प्रभु ! अगर तू मेरे साथ है तो मुझे धूल-मिट्टी में लोटना भी सुन्दर है॥२॥
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਅਰਾਧੀਐ ਨਾਮਿ ਰੰਗਿ ਬੈਰਾਗੁ ॥ गुरु के उपदेश से आराधना करो, प्रभु नाम के रंग में वैराग्य प्राप्त होता है।
ਜੀਤੇ ਪੰਚ ਬੈਰਾਈਆ ਨਾਨਕ ਸਫਲ ਮਾਰੂ ਇਹੁ ਰਾਗੁ ॥੩॥ हे नानक ! जो पाँच विकारों पर जीत पाते हैं, उनके लिए यह मारू राग सफल है॥३ ॥
ਜਾਂ ਮੂੰ ਇਕੁ ਤ ਲਖ ਤਉ ਜਿਤੀ ਪਿਨਣੇ ਦਰਿ ਕਿਤੜੇ ॥ हे ब्राह्मण ! मेरे लिए तो एक परम परमेश्वर ही लाखों-करोड़ों समान है, जिसके द्वार पर कितने ही मांगने वाले हैं।
ਬਾਮਣੁ ਬਿਰਥਾ ਗਇਓ ਜਨੰਮੁ ਜਿਨਿ ਕੀਤੋ ਸੋ ਵਿਸਰੇ ॥੪॥ हे ब्राह्मण ! तेरा जन्म व्यर्थ ही बीत गया है, जिस ईश्वर ने तुझे बनाया, तुमने उसे ही भुला दिया॥४॥
ਸੋਰਠਿ ਸੋ ਰਸੁ ਪੀਜੀਐ ਕਬਹੂ ਨ ਫੀਕਾ ਹੋਇ ॥ सोरठ राग द्वारा नाम रस पान करना चाहिए, जो कभी फीका नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਨ ਗਾਈਅਹਿ ਦਰਗਹ ਨਿਰਮਲ ਸੋਇ ॥੫॥ गुरु नानक फुरमाते हैं- जो ईश्वर का गुण-गान करता है, उसी की प्रभु-दरबार में प्रतिष्ठा होती है॥५॥
ਜੋ ਪ੍ਰਭਿ ਰਖੇ ਆਪਿ ਤਿਨ ਕੋਇ ਨ ਮਾਰਈ ॥ जिसे प्रभु बचाने वाला है, उसे कोई मार नहीं सकता।
ਅੰਦਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਸਦਾ ਗੁਣ ਸਾਰਈ ॥ जिसके दिल में सुखनिधि प्रभु-नाम है, वह सदैव निरंकार का गुणानुवाद करता है।
ਏਕਾ ਟੇਕ ਅਗੰਮ ਮਨਿ ਤਨਿ ਪ੍ਰਭੁ ਧਾਰਈ ॥ वह एक प्रभु का आसरा लेता है और मन तन में उसे धारण करता है।
ਲਗਾ ਰੰਗੁ ਅਪਾਰੁ ਕੋ ਨ ਉਤਾਰਈ ॥ उसे प्रभु का रंग लगा होता है, जिसे कोई उतार नहीं पाता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਸਹਜਿ ਸੁਖੁ ਸਾਰਈ ॥ गुरुमुख ईश्वर का यशोगान करता है और स्वाभाविक सुख पाता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਰਿਦੈ ਉਰਿ ਹਾਰਈ ॥੬॥ हे नानक ! वह अपने हृदय में सुखनिधि हरिनाम की माला धारण करता है।॥ ६॥
ਕਰੇ ਸੁ ਚੰਗਾ ਮਾਨਿ ਦੁਯੀ ਗਣਤ ਲਾਹਿ ॥ परमात्मा जो भी करता है, उसे खुशी-खुशी अच्छा मानो, द्विधाभाव को छोड़ दो।
ਅਪਣੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ਆਪੇ ਲੈਹੁ ਲਾਇ ॥ वह अपनी कृपा-दृष्टि करके आप ही मिला लेता है।
ਜਨ ਦੇਹੁ ਮਤੀ ਉਪਦੇਸੁ ਵਿਚਹੁ ਭਰਮੁ ਜਾਇ ॥ हे परमपिता ! अपने भक्तों को उपदेश प्रदान करो, ताकि मन में से भ्रम दूर हो जाए।
ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਲੇਖੁ ਸੋਈ ਸਭ ਕਮਾਇ ॥ विधाता ने जो तकदीर में लिख दिया है, वही सब करना पड़ता है।
ਸਭੁ ਕਛੁ ਤਿਸ ਦੈ ਵਸਿ ਦੂਜੀ ਨਾਹਿ ਜਾਇ ॥ सबकुछ परमेश्वर के वश में है, दूसरा कोई नहीं।
ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਅਨਦ ਭਏ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਮੰਨਿ ਰਜਾਇ ॥੭॥ गुरु नानक फुरमान करते हैं- प्रभु की रज़ा को मानने से ही सुख एवं आनंद प्राप्त होता है।॥ ७॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਜਿਨ ਸਿਮਰਿਆ ਸੇਈ ਭਏ ਨਿਹਾਲ ॥ जिन जिज्ञासुओं ने पूर्णगुरु का स्मरण किया है, वे निहाल हो गए हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਣਾ ਕਾਰਜੁ ਆਵੈ ਰਾਸਿ ॥੮॥ नानक का कथन है कि ईश्वर की आराधना करने से सब काम पूरे हो जाते हैं।॥ ८ ॥
ਪਾਪੀ ਕਰਮ ਕਮਾਵਦੇ ਕਰਦੇ ਹਾਏ ਹਾਇ ॥ पाप कर्म करने वाले अंतत: हाय-हाय करते हैं।
ਨਾਨਕ ਜਿਉ ਮਥਨਿ ਮਾਧਾਣੀਆ ਤਿਉ ਮਥੇ ਧ੍ਰਮ ਰਾਇ ॥੯॥ नानक कथन करते हैं कि ज्यों मथनी से मंथन किया जाता है, वैसे ही यमराज उनका मंथन करता है॥ ६ ॥
ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਨਿ ਸਾਜਨਾ ਜਨਮ ਪਦਾਰਥੁ ਜੀਤਿ ॥ धर्मात्मा पुरुष ईश्वर का ध्यान करते हुए अपना जन्म जीत लेते हैं।
ਨਾਨਕ ਧਰਮ ਐਸੇ ਚਵਹਿ ਕੀਤੋ ਭਵਨੁ ਪੁਨੀਤ ॥੧੦॥ नानक का मत है कि वे धर्म का प्रचार करते हुए संसार को भी पवित्र कर देते हैं।॥१०॥
ਖੁਭੜੀ ਕੁਥਾਇ ਮਿਠੀ ਗਲਣਿ ਕੁਮੰਤ੍ਰੀਆ ॥ मैं तो गलत सलाहकारों की बातों को मीठा मानकर बुरे में फँस गई हूँ।
ਨਾਨਕ ਸੇਈ ਉਬਰੇ ਜਿਨਾ ਭਾਗੁ ਮਥਾਹਿ ॥੧੧॥ हे नानक ! जिनके ललाट पर उत्तम भाग्य है, वे बच गए हैं।॥११॥
ਸੁਤੜੇ ਸੁਖੀ ਸਵੰਨਿੑ ਜੋ ਰਤੇ ਸਹ ਆਪਣੈ ॥ जो अपने मालिक की याद में लीन रहते हैं, यही सुखपूर्वक सोते हैं।
ਪ੍ਰੇਮ ਵਿਛੋਹਾ ਧਣੀ ਸਉ ਅਠੇ ਪਹਰ ਲਵੰਨਿੑ ॥੧੨॥ मालिक के प्रेम से जुदा होने वाले आठों प्रहर तंग होते हैं।॥१२॥
ਸੁਤੜੇ ਅਸੰਖ ਮਾਇਆ ਝੂਠੀ ਕਾਰਣੇ ॥ झूठी माया के कारण अनगिनत लोग अज्ञान में सोए हुए हैं।
ਨਾਨਕ ਸੇ ਜਾਗੰਨਿੑ ਜਿ ਰਸਨਾ ਨਾਮੁ ਉਚਾਰਣੇ ॥੧੩॥ हे नानक ! जो रसना से ईश्वर के नाम का उच्चारण करते हैं, दरअसल वही जाग्रत माने जाते हैं॥ १३ ॥
ਮ੍ਰਿਗ ਤਿਸਨਾ ਪੇਖਿ ਭੁਲਣੇ ਵੁਠੇ ਨਗਰ ਗੰਧ੍ਰਬ ॥ मृगतृष्णा एवं गंधर्व नगरी को देखकर लोग भटके हुए हैं।
ਜਿਨੀ ਸਚੁ ਅਰਾਧਿਆ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਤਨਿ ਫਬ ॥੧੪॥ गुरु नानक फुरमान करते हैं कि जो व्यक्ति ईश्वर की आराधना करते हैं, वही मन तन से सुन्दर लगते हैं।॥ १४ ॥
ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਣ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਸੰਮ੍ਰਥ ਪੁਰਖੁ ਅਪਾਰੁ ॥ परब्रह्म पतित जीवों का उद्धार करने वाला है, वह सर्वकला समर्थ एवं बे-अन्त है।


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