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ਸਸੁਰੈ ਪੇਈਐ ਤਿਸੁ ਕੰਤ ਕੀ ਵਡਾ ਜਿਸੁ ਪਰਵਾਰੁ ॥
लोक-परलोक में जीव-स्त्री केवल पति-प्रभु के सहारे ही जीवित रह सकती है, जिसका परिवार बहुत बड़ा है।
ਊਚਾ ਅਗਮ ਅਗਾਧਿ ਬੋਧ ਕਿਛੁ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥
प्रभु सर्वोच्च एवं अगम्य है। उसका ज्ञान अथाह है और उसके विस्तार का कोई आदि या अन्त नहीं है।
ਸੇਵਾ ਸਾ ਤਿਸੁ ਭਾਵਸੀ ਸੰਤਾ ਕੀ ਹੋਇ ਛਾਰੁ ॥
उसे वही सेवा भली लगती है जो सन्तों की चरण धूलि बनकर की जाती है।
ਦੀਨਾ ਨਾਥ ਦੈਆਲ ਦੇਵ ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਣਹਾਰੁ ॥
वह परमात्मा दीनानाथ एवं दयालु है और पापियों का कल्याण करने वाला है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਰਖਦਾ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾਰੁ ॥
सृष्टि के आदि काल एवं युगों-युगों से ही सृजनहार का सत्य नाम भक्तों की रक्षा करता रहा है।
ਕੀਮਤਿ ਕੋਇ ਨ ਜਾਣਈ ਕੋ ਨਾਹੀ ਤੋਲਣਹਾਰੁ ॥
कोई भी उस परमेश्वर का मूल्य नहीं जानता और ना ही उसकी महानता का अनुमान लगा सकता है।
ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਵਸਿ ਰਹੇ ਨਾਨਕ ਨਹੀ ਸੁਮਾਰੁ ॥
हे नानक ! वह असंख्य गुणों वाला परमेश्वर सभी के तन-मन में निवास कर रहा है।
ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਜਿ ਪ੍ਰਭ ਕੰਉ ਸੇਵਦੇ ਤਿਨ ਕੈ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰ ॥੨॥
मैं सदैव उन पर बलिहारी जाता हूँ जो परमात्मा की दिन-रात सेवा करते हैं।॥ २॥
ਸੰਤ ਅਰਾਧਨਿ ਸਦ ਸਦਾ ਸਭਨਾ ਕਾ ਬਖਸਿੰਦੁ ॥
संतजन सदैव प्रेमपूर्वक उस प्रभु की आराधना करते हैं; जो सब पर कृपा करने वाले हैं।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਜਿਨਿ ਸਾਜਿਆ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦਿਤੀਨੁ ਜਿੰਦੁ ॥
जिसने आत्मा एवं तन की सृजना की है और दया करके प्राण प्रदान किए हैं।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਆਰਾਧੀਐ ਜਪੀਐ ਨਿਰਮਲ ਮੰਤੁ ॥
हे प्राणी ! गुरु के शब्द द्वारा उस प्रभु की आराधना करनी चाहिए और निर्मल मंत्र रूपी नाम को स्मरण करना चाहिए।
ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈਐ ਪਰਮੇਸੁਰੁ ਬੇਅੰਤੁ ॥
उस अनन्त परमेश्वर का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਨਰਾਇਣੋ ਸੋ ਕਹੀਐ ਭਗਵੰਤੁ ॥
उस व्यक्ति को ही भाग्यवान कहा जाता है, जिसके हृदय में नारायण निवास करता है।
ਜੀਅ ਕੀ ਲੋਚਾ ਪੂਰੀਐ ਮਿਲੈ ਸੁਆਮੀ ਕੰਤੁ ॥
प्रभु-पति को मिलने से हृदय की समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण हो जाती हैं।
ਨਾਨਕੁ ਜੀਵੈ ਜਪਿ ਹਰੀ ਦੋਖ ਸਭੇ ਹੀ ਹੰਤੁ ॥
नानक ईश्वर की स्तुति करने से जीता है और उसके समस्त पाप नष्ट हो गए हैं।
ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਜਿਸੁ ਨ ਵਿਸਰੈ ਸੋ ਹਰਿਆ ਹੋਵੈ ਜੰਤੁ ॥੩॥
दिन-रात जो ईश्वर को विस्मृत नहीं करता वह प्राणी कृतार्थ हो जाता है॥ ३॥
ਸਰਬ ਕਲਾ ਪ੍ਰਭ ਪੂਰਣੋ ਮੰਞੁ ਨਿਮਾਣੀ ਥਾਉ ॥
सर्वकला सम्पूर्ण परमेश्वर परिपूर्ण है। मुझ निराश्रित का तू ही आश्रय है।
ਹਰਿ ਓਟ ਗਹੀ ਮਨ ਅੰਦਰੇ ਜਪਿ ਜਪਿ ਜੀਵਾਂ ਨਾਉ ॥
अपने हृदय में मैंने प्रभु का आश्रय लिया हुआ है और मैं नाम स्मरण एवं चिन्तन करने से जीता हूँ।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਆਪਣੀ ਜਨ ਧੂੜੀ ਸੰਗਿ ਸਮਾਉ ॥
हे ईश्वर ! अपनी ऐसी कृपा कीजिए जो मैं आपके दासों की चरणधूलि के साथ मैं मिल जाऊँ।
ਜਿਉ ਤੂੰ ਰਾਖਹਿ ਤਿਉ ਰਹਾ ਤੇਰਾ ਦਿਤਾ ਪੈਨਾ ਖਾਉ ॥
हे नाथ ! जिस तरह आप मुझे रखते हो, वैसे ही मैं रहता हूँ। जो तुम मुझे देते हो, मैं वही पहनता और खाता हूँ।
ਉਦਮੁ ਸੋਈ ਕਰਾਇ ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
हे प्रभु ! मुझे वह उपाय प्रदान करो जिससे मैं संतों से मिलकर तेरा यशोगान करूँ।
ਦੂਜੀ ਜਾਇ ਨ ਸੁਝਈ ਕਿਥੈ ਕੂਕਣ ਜਾਉ ॥
आपके अतिरिक्त में किसी अन्य स्थान की कल्पना नहीं कर सकता। फिर मैं विनती करने के लिए कहाँ जाऊँ ?
ਅਗਿਆਨ ਬਿਨਾਸਨ ਤਮ ਹਰਣ ਊਚੇ ਅਗਮ ਅਮਾਉ ॥
हे प्रभु ! तुम अज्ञान का नाश करने वाले हो, तमोगुण के भी विनाशक, सर्वोच्च, अगम्य एवं माप से रहित हो।
ਮਨੁ ਵਿਛੁੜਿਆ ਹਰਿ ਮੇਲੀਐ ਨਾਨਕ ਏਹੁ ਸੁਆਉ ॥
हे प्रभु ! नानक का एक यही स्वार्थ है कि मेरे विरक्त मन को अपने साथ मिला लो।
ਸਰਬ ਕਲਿਆਣਾ ਤਿਤੁ ਦਿਨਿ ਹਰਿ ਪਰਸੀ ਗੁਰ ਕੇ ਪਾਉ ॥੪॥੧॥
हे प्रभु ! जिस दिन मैं नम्रतापूर्वक गुरु की शरण में आ जाऊँगा, उस दिन मुझे सभी प्रकार के सुख प्राप्त होंगे (वह मेरे पूर्ण उद्धार का दिन होगा)। ॥ ४॥ १॥
ਵਾਰ ਮਾਝ ਕੀ ਤਥਾ ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੧ ਮਲਕ ਮੁਰੀਦ ਤਥਾ ਚੰਦ੍ਰਹੜਾ ਸੋਹੀਆ ਕੀ ਧੁਨੀ ਗਾਵਣੀ ॥
माझ की वार, और प्रथम गुरु के श्लोक: "मलिक मुरीद और चंद्रहारा सोहे-आ" की धुन पर गाया जाने वाला।
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
गुरु की कृपा से प्राप्त सृष्टिकर्ता, सर्वव्यापी एक शाश्वत ईश्वर ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १॥
ਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਗੁਰੁ ਹਿਵੈ ਘਰੁ ਗੁਰੁ ਦੀਪਕੁ ਤਿਹ ਲੋਇ ॥
गुरु नाम देने वाले है और गुरु ही हिम अर्थात् शांति का स्त्रोत है। गुरु ही तीनों लोकों में ज्ञान का प्रकाश करने वाला दीपक है।
ਅਮਰ ਪਦਾਰਥੁ ਨਾਨਕਾ ਮਨਿ ਮਾਨਿਐ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੧॥
हे नानक ! नाम रूपी पदार्थ की अनंत सम्पत्ति गुरु से प्राप्त होती है। जब मनुष्य का मन गुरु की शरण लेने हेतु विश्वस्त हो जाता हैं, तो उसे सभी सुख मिलते हैं। ॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १॥
ਪਹਿਲੈ ਪਿਆਰਿ ਲਗਾ ਥਣ ਦੁਧਿ ॥
अपने जीवन की प्रथम अवरथा बचपन में प्राणी माता के दुग्ध से प्रेम पाता है।
ਦੂਜੈ ਮਾਇ ਬਾਪ ਕੀ ਸੁਧਿ ॥
द्वितीय अवस्था में उसको अपने माता-पिता का ज्ञान होता है।
ਤੀਜੈ ਭਯਾ ਭਾਭੀ ਬੇਬ ॥
तृतीय अवस्था में वह अपने भाई, भाभी एवं अपनी बहन को पहचानता है।
ਚਉਥੈ ਪਿਆਰਿ ਉਪੰਨੀ ਖੇਡ ॥
चौथी अवस्था में उसमें खेलने की रुचि उत्पन्न हो जाती है।
ਪੰਜਵੈ ਖਾਣ ਪੀਅਣ ਕੀ ਧਾਤੁ ॥
पंचम अवस्था में वह खाने-पीने की ओर दौड़ता है।
ਛਿਵੈ ਕਾਮੁ ਨ ਪੁਛੈ ਜਾਤਿ ॥
छठी अवस्था में उसके भीतर कामवासना उत्पन्न होती है और वह कामवासना से अंधा हुआ जाति-कुजाति भी नहीं देखता।
ਸਤਵੈ ਸੰਜਿ ਕੀਆ ਘਰ ਵਾਸੁ ॥
सप्तम अवस्था में वह धन-दौलत एकत्रित करता है और अपने घर में निवास करता है।
ਅਠਵੈ ਕ੍ਰੋਧੁ ਹੋਆ ਤਨ ਨਾਸੁ ॥
आठवीं अवस्था में उसका तन क्रोध की अग्नि में जलकर नष्ट हो जाता है।
ਨਾਵੈ ਧਉਲੇ ਉਭੇ ਸਾਹ ॥
नौवीं अवस्था में उसके बाल-सफेद हो जाते हैं, और उसका सांस लेना कठिन हो जाता है।
ਦਸਵੈ ਦਧਾ ਹੋਆ ਸੁਆਹ ॥
दसवीं अवस्था में उसका शरीर चिता की राख में जल कर भस्म हो जाता है,
ਗਏ ਸਿਗੀਤ ਪੁਕਾਰੀ ਧਾਹ ॥
उसके संगी साथी चिता तक उसके साथ जाते हैं और अश्रु बहाते हैं।
ਉਡਿਆ ਹੰਸੁ ਦਸਾਏ ਰਾਹ ॥
आत्मा(हंस) अज्ञात पथ पर उड़ जाती है।