Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1347

Page 1347

ਹਉਮੈ ਵਿਚਿ ਜਾਗ੍ਰਣੁ ਨ ਹੋਵਈ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਨ ਪਵਈ ਥਾਇ ॥ हउमै विचि जाग्रणु न होवई हरि भगति न पवई थाइ ॥ अभिमान में लीन होने से जागरण नहीं होता और न ही परमात्मा की भक्ति सफल होती है।
ਮਨਮੁਖ ਦਰਿ ਢੋਈ ਨਾ ਲਹਹਿ ਭਾਇ ਦੂਜੈ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥੪॥ मनमुख दरि ढोई ना लहहि भाइ दूजै करम कमाइ ॥४॥ मन-मर्जी करने वाला द्वैतभाव में कर्म करता रहता है, जिस कारण उसे कहीं भी आसरा नहीं मिलता॥ ४॥
ਧ੍ਰਿਗੁ ਖਾਣਾ ਧ੍ਰਿਗੁ ਪੈਨ੍ਹ੍ਹਣਾ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹਾ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਪਿਆਰੁ ॥ ध्रिगु खाणा ध्रिगु पैन्हणा जिन्हा दूजै भाइ पिआरु ॥ द्वैतभाव से प्रेम करने वाले लोगों का खाना-पहनना सब धिक्कार है।
ਬਿਸਟਾ ਕੇ ਕੀੜੇ ਬਿਸਟਾ ਰਾਤੇ ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਹੋਹਿ ਖੁਆਰੁ ॥੫॥ बिसटा के कीड़े बिसटा राते मरि जमहि होहि खुआरु ॥५॥ ऐसे विष्ठा के कीड़े विष्ठा में ही लीन रहते हैं और जन्म-मरण के चक्र में दुखी होते हैं।॥ ५॥
ਜਿਨ ਕਉ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਤਿਨਾ ਵਿਟਹੁ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥ जिन कउ सतिगुरु भेटिआ तिना विटहु बलि जाउ ॥ जिनको सतगुरु मिल गया है, मैं उन पर कुर्बान जाता हूँ।
ਤਿਨ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਰਹਾਂ ਸਚੇ ਸਚਿ ਸਮਾਉ ॥੬॥ तिन की संगति मिलि रहां सचे सचि समाउ ॥६॥ उनकी संगत में मिलकर रहने से ईश्वर में लीन हुआ जाता है।॥ ६॥
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ਉਪਾਇ ਕਿਤੈ ਨ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥ पूरै भागि गुरु पाईऐ उपाइ कितै न पाइआ जाइ ॥ यदि पूर्ण भाग्य हो तो गुरु प्राप्त होता है और किसी अन्य उपाय द्वारा उसे पाया नहीं जाता।
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਸਹਜੁ ਊਪਜੈ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਇ ॥੭॥ सतिगुर ते सहजु ऊपजै हउमै सबदि जलाइ ॥७॥ सतिगुरु ही मन में सुख-शान्ति उत्पन्न करता है और शब्द द्वारा अभिमान को जला देता है॥ ७॥
ਹਰਿ ਸਰਣਾਈ ਭਜੁ ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਭ ਕਿਛੁ ਕਰਣੈ ਜੋਗੁ ॥ हरि सरणाई भजु मन मेरे सभ किछु करणै जोगु ॥ हे मेरे मन ! परमात्मा की शरण में आओ, उसी का भजन करो, वह सब कुछ करने में समर्थ है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸੁ ਹੋਗੁ ॥੮॥੨॥੭॥੨॥੯॥ नानक नामु न वीसरै जो किछु करै सु होगु ॥८॥२॥७॥२॥९॥ गुरु नानक का फुरमान है कि ईश्वर का नाम भुलाना नहीं चाहिए, जो कुछ वह करता है, वह निश्चय होता है।॥ ८॥ २॥७॥ २॥६॥
ਬਿਭਾਸ ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀਆ बिभास प्रभाती महला ५ असटपदीआ बिभास प्रभाती महला ५ असटपदीआ
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਭਾਈ ਸੁਤੁ ਬਨਿਤਾ ॥ मात पिता भाई सुतु बनिता ॥ माता-पिता, भाई, पुत्र एवं पत्नी इत्यादि परिजन मिलकर
ਚੂਗਹਿ ਚੋਗ ਅਨੰਦ ਸਿਉ ਜੁਗਤਾ ॥ चूगहि चोग अनंद सिउ जुगता ॥ आनंदपूर्वक जीवन के सुख भोगते रहते हैं।
ਉਰਝਿ ਪਰਿਓ ਮਨ ਮੀਠ ਮੋੁਹਾਰਾ ॥ उरझि परिओ मन मीठ मोहारा ॥ मन मीठे मोह में फँसा हुआ है,
ਗੁਨ ਗਾਹਕ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰਾ ॥੧॥ गुन गाहक मेरे प्रान अधारा ॥१॥ लेकिन गुणों का ग्राहक निरंकार ही मेरे प्राणों का आसरा है॥ १॥
ਏਕੁ ਹਮਾਰਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥ एकु हमारा अंतरजामी ॥ केवल ईश्वर ही हमारे दिल की भावना को जानता है, एकमात्र उसी का मुझे आसरा है,"
ਧਰ ਏਕਾ ਮੈ ਟਿਕ ਏਕਸੁ ਕੀ ਸਿਰਿ ਸਾਹਾ ਵਡ ਪੁਰਖੁ ਸੁਆਮੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ धर एका मै टिक एकसु की सिरि साहा वड पुरखु सुआमी ॥१॥ रहाउ ॥ वह बादशाहों का भी बादशाह है, महान् है॥ १॥रहाउ॥
ਛਲ ਨਾਗਨਿ ਸਿਉ ਮੇਰੀ ਟੂਟਨਿ ਹੋਈ ॥ छल नागनि सिउ मेरी टूटनि होई ॥ धोखा देने वाली माया रूपी नागिन से मेरा नाता टूट गया है,
ਗੁਰਿ ਕਹਿਆ ਇਹ ਝੂਠੀ ਧੋਹੀ ॥ गुरि कहिआ इह झूठी धोही ॥ दरअसल गुरु ने मुझे बताया है कि यह झूठी एवं धोखेबाज है।
ਮੁਖਿ ਮੀਠੀ ਖਾਈ ਕਉਰਾਇ ॥ मुखि मीठी खाई कउराइ ॥ मुँह से तो यह मीठी लगती है, परन्तु खाने से कड़वी हो जाती है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਰਹਿਆ ਅਘਾਇ ॥੨॥ अम्रित नामि मनु रहिआ अघाइ ॥२॥ मन को केवल हरिनाम अमृत से पूर्ण तृप्ति होती है॥ २॥
ਲੋਭ ਮੋਹ ਸਿਉ ਗਈ ਵਿਖੋਟਿ ॥ लोभ मोह सिउ गई विखोटि ॥ लोभ, मोह से तो यह नुक्सान पहुँचाने वाली है,
ਗੁਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲਿ ਮੋਹਿ ਕੀਨੀ ਛੋਟਿ ॥ गुरि क्रिपालि मोहि कीनी छोटि ॥ पर गुरु ने कृपालु होकर मुझे इससे छुड़वा लिया है।
ਇਹ ਠਗਵਾਰੀ ਬਹੁਤੁ ਘਰ ਗਾਲੇ ॥ इह ठगवारी बहुतु घर गाले ॥ इस ठगिनी ने बहुत सारे घरों को तबाह कर दिया है,
ਹਮ ਗੁਰਿ ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਕਿਰਪਾਲੇ ॥੩॥ हम गुरि राखि लीए किरपाले ॥३॥ मगर गुरु ने कृपा करके मुझे इससे बचा लिया है॥ ३॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਸਿਉ ਠਾਟੁ ਨ ਬਨਿਆ ॥ काम क्रोध सिउ ठाटु न बनिआ ॥ गुरु का उपदेश मैंने कानों से सुना है,
ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੁ ਮੋਹਿ ਕਾਨੀ ਸੁਨਿਆ ॥ गुर उपदेसु मोहि कानी सुनिआ ॥ जिस कारण काम-क्रोध से कोई संबंध नहीं बन पाया।
ਜਹ ਦੇਖਉ ਤਹ ਮਹਾ ਚੰਡਾਲ ॥ जह देखउ तह महा चंडाल ॥ जिधर भी दृष्टि जाती है, उधर ये महाचाण्डाल (काम, क्रोध) नजर आ रहा है।
ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਅਪੁਨੈ ਗੁਰਿ ਗੋਪਾਲ ॥੪॥ राखि लीए अपुनै गुरि गोपाल ॥४॥ लेकिन गुरु परमेश्वर ने मुझे इनसे बचा लिया है॥ ४॥
ਦਸ ਨਾਰੀ ਮੈ ਕਰੀ ਦੁਹਾਗਨਿ ॥ दस नारी मै करी दुहागनि ॥ मैंने दस इन्द्रियों को छोड़कर दुहागिन बना दिया है,
ਗੁਰਿ ਕਹਿਆ ਏਹ ਰਸਹਿ ਬਿਖਾਗਨਿ ॥ गुरि कहिआ एह रसहि बिखागनि ॥ क्योंकि गुरु ने मुझे बतलाया कि इनका रस विषय-विकारों की अग्नि है।
ਇਨ ਸਨਬੰਧੀ ਰਸਾਤਲਿ ਜਾਇ ॥ इन सनबंधी रसातलि जाइ ॥ इनके साथ रिश्ता बनाकर रखने से रसातल में जाना पड़ता है।
ਹਮ ਗੁਰਿ ਰਾਖੇ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥੫॥ हम गुरि राखे हरि लिव लाइ ॥५॥ ईश्वर में ध्यान लगाने से गुरु ने मुझे बचा लिया है॥ ५॥
ਅਹੰਮੇਵ ਸਿਉ ਮਸਲਤਿ ਛੋਡੀ ॥ अहमेव सिउ मसलति छोडी ॥ अभिमान से हमने बातचीत छोड़ दी है,
ਗੁਰਿ ਕਹਿਆ ਇਹੁ ਮੂਰਖੁ ਹੋਡੀ ॥ गुरि कहिआ इहु मूरखु होडी ॥ क्योंकि गुरु ने मुझे निर्देश दिया कि यह बड़ा मूर्ख एवं जिद्दी है।
ਇਹੁ ਨੀਘਰੁ ਘਰੁ ਕਹੀ ਨ ਪਾਏ ॥ इहु नीघरु घरु कही न पाए ॥ घर से निकाले हुए बेघर अभिमान को कहीं घर नहीं मिलता।
ਹਮ ਗੁਰਿ ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥੬॥ हम गुरि राखि लीए लिव लाए ॥६॥ भगवान में ध्यान लगाने के कारण गुरु ने हमारी रक्षा की है॥ ६॥
ਇਨ ਲੋਗਨ ਸਿਉ ਹਮ ਭਏ ਬੈਰਾਈ ॥ इन लोगन सिउ हम भए बैराई ॥ "(लोभ, मोह, काम, इन्द्रियों) इन लोगों के लिए हम पराए बन गए हैं,
ਏਕ ਗ੍ਰਿਹ ਮਹਿ ਦੁਇ ਨ ਖਟਾਂਈ ॥ एक ग्रिह महि दुइ न खटांई ॥ क्योंकि एक घर में दो नहीं रह सकते।
ਆਏ ਪ੍ਰਭ ਪਹਿ ਅੰਚਰਿ ਲਾਗਿ ॥ आए प्रभ पहि अंचरि लागि ॥ हम प्रभु की शरण में आ गए हैं,
ਕਰਹੁ ਤਪਾਵਸੁ ਪ੍ਰਭ ਸਰਬਾਗਿ ॥੭॥ करहु तपावसु प्रभ सरबागि ॥७॥ हे प्रभु ! अब तुम ही हमारा इन्साफ करो॥ ७॥
ਪ੍ਰਭ ਹਸਿ ਬੋਲੇ ਕੀਏ ਨਿਆਂਏਂ ॥ प्रभ हसि बोले कीए निआंएं ॥ प्रभु ने मुस्कुराते हुए कहा कि हमने इन्साफ कर दिया है,
ਸਗਲ ਦੂਤ ਮੇਰੀ ਸੇਵਾ ਲਾਏ ॥ सगल दूत मेरी सेवा लाए ॥ (इन्साफ यह किया है कि) कामादिक सभी शत्रु मेरी सेवा में लगा दिए हैं।
ਤੂੰ ਠਾਕੁਰੁ ਇਹੁ ਗ੍ਰਿਹੁ ਸਭੁ ਤੇਰਾ ॥ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਕੀਆ ਨਿਬੇਰਾ ॥੮॥੧॥ तूं ठाकुरु इहु ग्रिहु सभु तेरा ॥ नानक कथन करते हैं कि गुरु ने फैसला कर दिया है कि
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ कहु नानक गुरि कीआ निबेरा ॥८॥१॥ यह घर तेरा है, अब तू इसका मालिक है॥ ८॥ १॥


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