Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1348

Page 1348

ਮਨ ਮਹਿ ਕ੍ਰੋਧੁ ਮਹਾ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥ प्रभाती महला ५ ॥ प्रभाती महला ५ ॥
ਪੂਜਾ ਕਰਹਿ ਬਹੁਤੁ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥ पूजा करहि बहुतु बिसथारा ॥ बेशक वह घण्टियाँ बजाकर, फूल भेंट करके अनेक प्रकार से पूजा-अर्चना कर रहा हो।
ਕਰਿ ਇਸਨਾਨੁ ਤਨਿ ਚਕ੍ਰ ਬਣਾਏ ॥ करि इसनानु तनि चक्र बणाए ॥ वह नित्य स्नान करके तिलक लगाता रहे परन्तु
ਅੰਤਰ ਕੀ ਮਲੁ ਕਬ ਹੀ ਨ ਜਾਏ ॥੧॥ अंतर की मलु कब ही न जाए ॥१॥ उसके मन की मैल कभी दूर नहीं होती॥ १॥
ਇਤੁ ਸੰਜਮਿ ਪ੍ਰਭੁ ਕਿਨ ਹੀ ਨ ਪਾਇਆ ॥ इतु संजमि प्रभु किन ही न पाइआ ॥ इन विधियों से कोई भी प्रभु को पा नहीं सकता।
ਭਗਉਤੀ ਮੁਦ੍ਰਾ ਮਨੁ ਮੋਹਿਆ ਮਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ भगउती मुद्रा मनु मोहिआ माइआ ॥१॥ रहाउ ॥ दिखावे के तौर पर भगवती के चिन्ह लगा लिए परन्तु मन माया में लीन रहता है॥ १॥रहाउ॥
ਪਾਪ ਕਰਹਿ ਪੰਚਾਂ ਕੇ ਬਸਿ ਰੇ ॥ पाप करहि पंचां के बसि रे ॥ पहले तो मनुष्य कामादिक पाँच विकारों के वश में अनेक पाप करता है,
ਤੀਰਥਿ ਨਾਇ ਕਹਹਿ ਸਭਿ ਉਤਰੇ ॥ तीरथि नाइ कहहि सभि उतरे ॥ तदन्तर कहता है कि तीर्थ स्नान से सब पाप धुल गए हैं।
ਬਹੁਰਿ ਕਮਾਵਹਿ ਹੋਇ ਨਿਸੰਕ ॥ बहुरि कमावहि होइ निसंक ॥ वह पुनः निडर होकर पाप-कर्म करने लग जाता है,
ਜਮ ਪੁਰਿ ਬਾਂਧਿ ਖਰੇ ਕਾਲੰਕ ॥੨॥ जम पुरि बांधि खरे कालंक ॥२॥ ऐसे व्यक्ति को कलंक लगने के उपरांत यमपुरी धकेल दिया जाता है॥ २॥
ਘੂਘਰ ਬਾਧਿ ਬਜਾਵਹਿ ਤਾਲਾ ॥ घूघर बाधि बजावहि ताला ॥ कुछ लोग पैरों में धुंघरू बांधकर ताल बजाते फिरते हैं,
ਅੰਤਰਿ ਕਪਟੁ ਫਿਰਹਿ ਬੇਤਾਲਾ ॥ अंतरि कपटु फिरहि बेताला ॥ उनके मन में कपट बना रहता है और भटकते फिरते हैं।
ਵਰਮੀ ਮਾਰੀ ਸਾਪੁ ਨ ਮੂਆ ॥ वरमी मारी सापु न मूआ ॥ साँप की बॉबी को तो खत्म कर देते हैं परन्तु इससे साँप नहीं मरता।
ਪ੍ਰਭੁ ਸਭ ਕਿਛੁ ਜਾਨੈ ਜਿਨਿ ਤੂ ਕੀਆ ॥੩॥ प्रभु सभ किछु जानै जिनि तू कीआ ॥३॥ हे मानव ! जिस प्रभु ने तुझे पैदा किया है, वह तेरी सब करतूतें जानता है॥ ३॥
ਪੂੰਅਰ ਤਾਪ ਗੇਰੀ ਕੇ ਬਸਤ੍ਰਾ ॥ पूंअर ताप गेरी के बसत्रा ॥ कोई धूनी तापने लगता है, गेरुए वस्त्र धारण कर लेता है।
ਅਪਦਾ ਕਾ ਮਾਰਿਆ ਗ੍ਰਿਹ ਤੇ ਨਸਤਾ ॥ अपदा का मारिआ ग्रिह ते नसता ॥ मुसीबतों का मारा घर से भाग जाता है।
ਦੇਸੁ ਛੋਡਿ ਪਰਦੇਸਹਿ ਧਾਇਆ ॥ देसु छोडि परदेसहि धाइआ ॥ वह देश छोड़कर परदेस चला जाता है।
ਪੰਚ ਚੰਡਾਲ ਨਾਲੇ ਲੈ ਆਇਆ ॥੪॥ पंच चंडाल नाले लै आइआ ॥४॥ इन सबके बावजूद काम-क्रोध रूपी पाँच चाण्डाल साथ ही ले जाता है॥ ४॥
ਕਾਨ ਫਰਾਇ ਹਿਰਾਏ ਟੂਕਾ ॥ कान फराइ हिराए टूका ॥ कोई जीव कान फड़वाकर सन्यासी बन जाता है और लोगों से रोटी मांगने लगता है।
ਘਰਿ ਘਰਿ ਮਾਂਗੈ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵਨ ਤੇ ਚੂਕਾ ॥ घरि घरि मांगै त्रिपतावन ते चूका ॥ वह घर-घर मांगता फिरता है लेकिन तृप्त नहीं होता।
ਬਨਿਤਾ ਛੋਡਿ ਬਦ ਨਦਰਿ ਪਰ ਨਾਰੀ ॥ बनिता छोडि बद नदरि पर नारी ॥ वह अपनी पत्नी को छोड़कर पराई नारी पर बुरी नजर डालता है।
ਵੇਸਿ ਨ ਪਾਈਐ ਮਹਾ ਦੁਖਿਆਰੀ ॥੫॥ वेसि न पाईऐ महा दुखिआरी ॥५॥ ऐसा सन्यासी बनकर भी भगवान नहीं मिलता, अपितु वह महादुखी होता है।॥ ५॥
ਬੋਲੈ ਨਾਹੀ ਹੋਇ ਬੈਠਾ ਮੋਨੀ ॥ बोलै नाही होइ बैठा मोनी ॥ कोई मौनी बनकर बैठ जाता है और किसी से नहीं बोलता।
ਅੰਤਰਿ ਕਲਪ ਭਵਾਈਐ ਜੋਨੀ ॥ अंतरि कलप भवाईऐ जोनी ॥ परन्तु मन में वासनाओं के कारण योनियों में भटकता रहता है।
ਅੰਨ ਤੇ ਰਹਤਾ ਦੁਖੁ ਦੇਹੀ ਸਹਤਾ ॥ अंन ते रहता दुखु देही सहता ॥ कोई भोजन को छोड़कर शरीर को दुख पहुँचाता है।
ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਵਿਆਪਿਆ ਮਮਤਾ ॥੬॥ हुकमु न बूझै विआपिआ ममता ॥६॥ माया-ममत्व में लीन रहकर वह मालिक के हुक्म को नहीं समझता॥ ६॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈ ਪਰਮ ਗਤੇ ॥ बिनु सतिगुर किनै न पाई परम गते ॥ सतगुरु के बिना किसी ने परमगति प्राप्त नहीं की,
ਪੂਛਹੁ ਸਗਲ ਬੇਦ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤੇ ॥ पूछहु सगल बेद सिम्रिते ॥ इस बारे में तो वेद एवं स्मृतियाँ भी हामी भरते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਕਰਮ ਕਰੈ ਅਜਾਈ ॥ मनमुख करम करै अजाई ॥ मन-मर्जी करने वाला बेकार कर्म ही करता है,
ਜਿਉ ਬਾਲੂ ਘਰ ਠਉਰ ਨ ਠਾਈ ॥੭॥ जिउ बालू घर ठउर न ठाई ॥७॥ जिस प्रकार रेत का घर नहीं टिकता॥ ७॥
ਜਿਸ ਨੋ ਭਏ ਗੋੁਬਿੰਦ ਦਇਆਲਾ ॥ जिस नो भए गोबिंद दइआला ॥ जिस पर ईश्वर दयालु हो जाता है,
ਗੁਰ ਕਾ ਬਚਨੁ ਤਿਨਿ ਬਾਧਿਓ ਪਾਲਾ ॥ गुर का बचनु तिनि बाधिओ पाला ॥ वह गुरु के वचन को धारण कर लेता है।
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕੋਈ ਸੰਤੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥ कोटि मधे कोई संतु दिखाइआ ॥ करोड़ों में से कोई विरला ही संत दिखाई देता है,
ਨਾਨਕੁ ਤਿਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਰਾਇਆ ॥੮॥ नानकु तिन कै संगि तराइआ ॥८॥ नानक फुरमान करते हैं- जिसकी संगत में मुक्ति हो जाती है।॥ ८॥
ਜੇ ਹੋਵੈ ਭਾਗੁ ਤਾ ਦਰਸਨੁ ਪਾਈਐ ॥ जे होवै भागु ता दरसनु पाईऐ ॥ यदि उत्तम भाग्य हो तो ही इनका दर्शन प्राप्त होता है,
ਆਪਿ ਤਰੈ ਸਭੁ ਕੁਟੰਬੁ ਤਰਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੨॥ आपि तरै सभु कुट्मबु तराईऐ ॥१॥ रहाउ दूजा ॥२॥ वह स्वयं तो पार उतरता ही है, अपने पूरे परिवार को भी संसार-सागर से पार उतार लेता है॥ १॥रहाउ दूसरा॥ २॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ प्रभाती महला ५ ॥ प्रभाती महला ५ ॥
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਕਿਲਬਿਖ ਸਭਿ ਕਾਟੇ ॥ सिमरत नामु किलबिख सभि काटे ॥ परमात्मा का सिमरन करने से सब पाप-जुर्म कट जाते हैं और
ਧਰਮ ਰਾਇ ਕੇ ਕਾਗਰ ਫਾਟੇ ॥ धरम राइ के कागर फाटे ॥ धर्मराज द्वारा बनाया गया शुभाशुभ कर्मो का हिसाब फाड़ दिया जाता है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥ साधसंगति मिलि हरि रसु पाइआ ॥ जब साधु-महात्मा पुरुषों की संगत में मिलकर हरिनाम रस प्राप्त होता है तो
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਰਿਦ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧॥ पारब्रहमु रिद माहि समाइआ ॥१॥ हृदय में परब्रह्म समा जाता है॥ १॥
ਰਾਮ ਰਮਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਚਰਨ ਸਰਨਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ राम रमत हरि हरि सुखु पाइआ ॥ ईश्वर का भजन करने से सच्चा सुख प्राप्त हुआ है,हे हरि ! तेरे भक्त तेरी चरण शरण में आए हैं।॥ १॥रहाउ॥
ਚੂਕਾ ਗਉਣੁ ਮਿਟਿਆ ਅੰਧਿਆਰੁ ॥ तेरे दास चरन सरनाइआ ॥१॥ रहाउ ॥ मेरा आवागमन दूर हो गया है और अज्ञान का अन्धेरा मिट गया है।
ਗੁਰਿ ਦਿਖਲਾਇਆ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰੁ ॥ चूका गउणु मिटिआ अंधिआरु ॥ गुरु ने मुझे मुक्ति का द्वार दिखला दिया है।
ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸਦ ਰਾਤਾ ॥ गुरि दिखलाइआ मुकति दुआरु ॥ यह मन तन सदैव परमात्मा की प्रेम-भक्ति में लीन रहता है।
ਪ੍ਰਭੂ ਜਨਾਇਆ ਤਬ ਹੀ ਜਾਤਾ ॥੨॥ हरि प्रेम भगति मनु तनु सद राता ॥ जब प्रभु ने ज्ञान प्रदान किया तो ही मुझे समझ आई॥ २॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਅੰਤਰਿ ਰਵਿਆ ਸੋਇ ॥ प्रभू जनाइआ तब ही जाता ॥२॥ सृष्टि के कण-कण में परमेश्वर ही व्याप्त है,
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਬੀਜੋ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥ घटि घटि अंतरि रविआ सोइ ॥ उसके सिवा दूसरा कोई बड़ा नहीं।
ਬੈਰ ਬਿਰੋਧ ਛੇਦੇ ਭੈ ਭਰਮਾਂ ॥ तिसु बिनु बीजो नाही कोइ ॥ हमारे भय-भ्रम, वैर-विरोध सब नष्ट हो गए हैं,
ਪ੍ਰਭਿ ਪੁੰਨਿ ਆਤਮੈ ਕੀਨੇ ਧਰਮਾ ॥੩॥ बैर बिरोध छेदे भै भरमां ॥ पुण्यात्मा प्रभु ने अपने धर्म का पालन किया है॥ ३॥
ਮਹਾ ਤਰੰਗ ਤੇ ਕਾਂਢੈ ਲਾਗਾ ॥ प्रभि पुंनि आतमै कीने धरमा ॥३॥ प्रभु ने संसार-सागर की महा लहरों से निकाल कर हमें पार लगा दिया है और
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਟੂਟਾ ਗਾਂਢਾ ॥ महा तरंग ते कांढै लागा ॥ जन्म-जन्म का टूटा हुआ रिश्ता जुड़ गया है।
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿਆ ॥ ਅਪੁਨੈ ਠਾਕੁਰਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ॥੪॥ जनम जनम का टूटा गांढा ॥ ईश्वर का सिमरन ही जप-तप एवं संयम बन गया है,अपने मालिक की हम पर कृपा-दृष्टि हुई है॥ ४॥
ਮੰਗਲ ਸੂਖ ਕਲਿਆਣ ਤਿਥਾਈਂ ॥ जपु तपु संजमु नामु सम्हालिआ ॥ वहाँ सुख, कल्याण एवं खुशी का माहौल बना रहता है


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