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ਮਨ ਮਹਿ ਕ੍ਰੋਧੁ ਮਹਾ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
ਪੂਜਾ ਕਰਹਿ ਬਹੁਤੁ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥
बेशक वह घण्टियाँ बजाकर, फूल भेंट करके अनेक प्रकार से पूजा-अर्चना कर रहा हो।
ਕਰਿ ਇਸਨਾਨੁ ਤਨਿ ਚਕ੍ਰ ਬਣਾਏ ॥
वह नित्य स्नान करके तिलक लगाता रहे परन्तु
ਅੰਤਰ ਕੀ ਮਲੁ ਕਬ ਹੀ ਨ ਜਾਏ ॥੧॥
उसके मन की मैल कभी दूर नहीं होती॥ १॥
ਇਤੁ ਸੰਜਮਿ ਪ੍ਰਭੁ ਕਿਨ ਹੀ ਨ ਪਾਇਆ ॥
इन विधियों से कोई भी प्रभु को पा नहीं सकता।
ਭਗਉਤੀ ਮੁਦ੍ਰਾ ਮਨੁ ਮੋਹਿਆ ਮਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दिखावे के तौर पर भगवती के चिन्ह लगा लिए परन्तु मन माया में लीन रहता है॥ १॥रहाउ॥
ਪਾਪ ਕਰਹਿ ਪੰਚਾਂ ਕੇ ਬਸਿ ਰੇ ॥
पहले तो मनुष्य कामादिक पाँच विकारों के वश में अनेक पाप करता है,
ਤੀਰਥਿ ਨਾਇ ਕਹਹਿ ਸਭਿ ਉਤਰੇ ॥
तदन्तर कहता है कि तीर्थ स्नान से सब पाप धुल गए हैं।
ਬਹੁਰਿ ਕਮਾਵਹਿ ਹੋਇ ਨਿਸੰਕ ॥
वह पुनः निडर होकर पाप-कर्म करने लग जाता है,
ਜਮ ਪੁਰਿ ਬਾਂਧਿ ਖਰੇ ਕਾਲੰਕ ॥੨॥
ऐसे व्यक्ति को कलंक लगने के उपरांत यमपुरी धकेल दिया जाता है॥ २॥
ਘੂਘਰ ਬਾਧਿ ਬਜਾਵਹਿ ਤਾਲਾ ॥
कुछ लोग पैरों में धुंघरू बांधकर ताल बजाते फिरते हैं,
ਅੰਤਰਿ ਕਪਟੁ ਫਿਰਹਿ ਬੇਤਾਲਾ ॥
उनके मन में कपट बना रहता है और भटकते फिरते हैं।
ਵਰਮੀ ਮਾਰੀ ਸਾਪੁ ਨ ਮੂਆ ॥
साँप की बॉबी को तो खत्म कर देते हैं परन्तु इससे साँप नहीं मरता।
ਪ੍ਰਭੁ ਸਭ ਕਿਛੁ ਜਾਨੈ ਜਿਨਿ ਤੂ ਕੀਆ ॥੩॥
हे मानव ! जिस प्रभु ने तुझे पैदा किया है, वह तेरी सब करतूतें जानता है॥ ३॥
ਪੂੰਅਰ ਤਾਪ ਗੇਰੀ ਕੇ ਬਸਤ੍ਰਾ ॥
कोई धूनी तापने लगता है, गेरुए वस्त्र धारण कर लेता है।
ਅਪਦਾ ਕਾ ਮਾਰਿਆ ਗ੍ਰਿਹ ਤੇ ਨਸਤਾ ॥
मुसीबतों का मारा घर से भाग जाता है।
ਦੇਸੁ ਛੋਡਿ ਪਰਦੇਸਹਿ ਧਾਇਆ ॥
वह देश छोड़कर परदेस चला जाता है।
ਪੰਚ ਚੰਡਾਲ ਨਾਲੇ ਲੈ ਆਇਆ ॥੪॥
इन सबके बावजूद काम-क्रोध रूपी पाँच चाण्डाल साथ ही ले जाता है॥ ४॥
ਕਾਨ ਫਰਾਇ ਹਿਰਾਏ ਟੂਕਾ ॥
कोई जीव कान फड़वाकर सन्यासी बन जाता है और लोगों से रोटी मांगने लगता है।
ਘਰਿ ਘਰਿ ਮਾਂਗੈ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵਨ ਤੇ ਚੂਕਾ ॥
वह घर-घर मांगता फिरता है लेकिन तृप्त नहीं होता।
ਬਨਿਤਾ ਛੋਡਿ ਬਦ ਨਦਰਿ ਪਰ ਨਾਰੀ ॥
वह अपनी पत्नी को छोड़कर पराई नारी पर बुरी नजर डालता है।
ਵੇਸਿ ਨ ਪਾਈਐ ਮਹਾ ਦੁਖਿਆਰੀ ॥੫॥
ऐसा सन्यासी बनकर भी भगवान नहीं मिलता, अपितु वह महादुखी होता है।॥ ५॥
ਬੋਲੈ ਨਾਹੀ ਹੋਇ ਬੈਠਾ ਮੋਨੀ ॥
कोई मौनी बनकर बैठ जाता है और किसी से नहीं बोलता।
ਅੰਤਰਿ ਕਲਪ ਭਵਾਈਐ ਜੋਨੀ ॥
परन्तु मन में वासनाओं के कारण योनियों में भटकता रहता है।
ਅੰਨ ਤੇ ਰਹਤਾ ਦੁਖੁ ਦੇਹੀ ਸਹਤਾ ॥
कोई भोजन को छोड़कर शरीर को दुख पहुँचाता है।
ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਵਿਆਪਿਆ ਮਮਤਾ ॥੬॥
माया-ममत्व में लीन रहकर वह मालिक के हुक्म को नहीं समझता॥ ६॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈ ਪਰਮ ਗਤੇ ॥
सतगुरु के बिना किसी ने परमगति प्राप्त नहीं की,
ਪੂਛਹੁ ਸਗਲ ਬੇਦ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤੇ ॥
इस बारे में तो वेद एवं स्मृतियाँ भी हामी भरते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਕਰਮ ਕਰੈ ਅਜਾਈ ॥
मन-मर्जी करने वाला बेकार कर्म ही करता है,
ਜਿਉ ਬਾਲੂ ਘਰ ਠਉਰ ਨ ਠਾਈ ॥੭॥
जिस प्रकार रेत का घर नहीं टिकता॥ ७॥
ਜਿਸ ਨੋ ਭਏ ਗੋੁਬਿੰਦ ਦਇਆਲਾ ॥
जिस पर ईश्वर दयालु हो जाता है,
ਗੁਰ ਕਾ ਬਚਨੁ ਤਿਨਿ ਬਾਧਿਓ ਪਾਲਾ ॥
वह गुरु के वचन को धारण कर लेता है।
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕੋਈ ਸੰਤੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
करोड़ों में से कोई विरला ही संत दिखाई देता है,
ਨਾਨਕੁ ਤਿਨ ਕੈ ਸੰਗਿ ਤਰਾਇਆ ॥੮॥
नानक फुरमान करते हैं- जिसकी संगत में मुक्ति हो जाती है।॥ ८॥
ਜੇ ਹੋਵੈ ਭਾਗੁ ਤਾ ਦਰਸਨੁ ਪਾਈਐ ॥
यदि उत्तम भाग्य हो तो ही इनका दर्शन प्राप्त होता है,
ਆਪਿ ਤਰੈ ਸਭੁ ਕੁਟੰਬੁ ਤਰਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੨॥
वह स्वयं तो पार उतरता ही है, अपने पूरे परिवार को भी संसार-सागर से पार उतार लेता है॥ १॥रहाउ दूसरा॥ २॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
प्रभाती महला ५ ॥
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਕਿਲਬਿਖ ਸਭਿ ਕਾਟੇ ॥
परमात्मा का सिमरन करने से सब पाप-जुर्म कट जाते हैं और
ਧਰਮ ਰਾਇ ਕੇ ਕਾਗਰ ਫਾਟੇ ॥
धर्मराज द्वारा बनाया गया शुभाशुभ कर्मो का हिसाब फाड़ दिया जाता है।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥
जब साधु-महात्मा पुरुषों की संगत में मिलकर हरिनाम रस प्राप्त होता है तो
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਰਿਦ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇਆ ॥੧॥
हृदय में परब्रह्म समा जाता है॥ १॥
ਰਾਮ ਰਮਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਚਰਨ ਸਰਨਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ईश्वर का भजन करने से सच्चा सुख प्राप्त हुआ है,हे हरि ! तेरे भक्त तेरी चरण शरण में आए हैं।॥ १॥रहाउ॥
ਚੂਕਾ ਗਉਣੁ ਮਿਟਿਆ ਅੰਧਿਆਰੁ ॥
मेरा आवागमन दूर हो गया है और अज्ञान का अन्धेरा मिट गया है।
ਗੁਰਿ ਦਿਖਲਾਇਆ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰੁ ॥
गुरु ने मुझे मुक्ति का द्वार दिखला दिया है।
ਹਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਮਨੁ ਤਨੁ ਸਦ ਰਾਤਾ ॥
यह मन तन सदैव परमात्मा की प्रेम-भक्ति में लीन रहता है।
ਪ੍ਰਭੂ ਜਨਾਇਆ ਤਬ ਹੀ ਜਾਤਾ ॥੨॥
जब प्रभु ने ज्ञान प्रदान किया तो ही मुझे समझ आई॥ २॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਅੰਤਰਿ ਰਵਿਆ ਸੋਇ ॥
सृष्टि के कण-कण में परमेश्वर ही व्याप्त है,
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਬੀਜੋ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
उसके सिवा दूसरा कोई बड़ा नहीं।
ਬੈਰ ਬਿਰੋਧ ਛੇਦੇ ਭੈ ਭਰਮਾਂ ॥
हमारे भय-भ्रम, वैर-विरोध सब नष्ट हो गए हैं,
ਪ੍ਰਭਿ ਪੁੰਨਿ ਆਤਮੈ ਕੀਨੇ ਧਰਮਾ ॥੩॥
पुण्यात्मा प्रभु ने अपने धर्म का पालन किया है॥ ३॥
ਮਹਾ ਤਰੰਗ ਤੇ ਕਾਂਢੈ ਲਾਗਾ ॥
प्रभु ने संसार-सागर की महा लहरों से निकाल कर हमें पार लगा दिया है और
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕਾ ਟੂਟਾ ਗਾਂਢਾ ॥
जन्म-जन्म का टूटा हुआ रिश्ता जुड़ गया है।
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿਆ ॥ ਅਪੁਨੈ ਠਾਕੁਰਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ॥੪॥
ईश्वर का सिमरन ही जप-तप एवं संयम बन गया है,अपने मालिक की हम पर कृपा-दृष्टि हुई है॥ ४॥
ਮੰਗਲ ਸੂਖ ਕਲਿਆਣ ਤਿਥਾਈਂ ॥
वहाँ सुख, कल्याण एवं खुशी का माहौल बना रहता है