Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1287

Page 1287

ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਰਾਤੀ ਕਾਲੁ ਘਟੈ ਦਿਨਿ ਕਾਲੁ ॥ रात और दिन में समय गुजर जाता है और
ਛਿਜੈ ਕਾਇਆ ਹੋਇ ਪਰਾਲੁ ॥ शरीर खत्म हो जाता है।
ਵਰਤਣਿ ਵਰਤਿਆ ਸਰਬ ਜੰਜਾਲੁ ॥ व्यक्ति का जीवन संसार के घंधों में लीन रहता है और
ਭੁਲਿਆ ਚੁਕਿ ਗਇਆ ਤਪ ਤਾਲੁ ॥ वह परमात्मा की भक्ति एवं स्मरण को भुलाकर चूक जाता है।
ਅੰਧਾ ਝਖਿ ਝਖਿ ਪਇਆ ਝੇਰਿ ॥ अज्ञानांध व्यक्ति व्यर्थ के कार्यों में धक्के खाता है।
ਪਿਛੈ ਰੋਵਹਿ ਲਿਆਵਹਿ ਫੇਰਿ ॥ मौत के बाद परिजन रोते हैं, उसकी जिंदगी के लिए परमात्मा से अनुरोध करते हैं।
ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਕਿਛੁ ਸੂਝੈ ਨਾਹੀ ॥ परन्तु सत्य को समझे बिना कोई सूझ नहीं होती।
ਮੋਇਆ ਰੋਂਹਿ ਰੋਂਦੇ ਮਰਿ ਜਾਂਹੀ ॥ मरने वाले पर रोते-रोते वे स्वयं ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਖਸਮੈ ਏਵੈ ਭਾਵੈ ॥ हे नानक ! दरअसल मालिक को यही मंजूर है और
ਸੇਈ ਮੁਏ ਜਿਨ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵੈ ॥੧॥ असल में मरते वे हैं, जिनको परमात्मा याद नहीं आता॥१॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਮੁਆ ਪਿਆਰੁ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮੁਈ ਮੁਆ ਵੈਰੁ ਵਾਦੀ ॥ मृत्यु के साथ ही मनुष्य का प्रेम-प्यार सब खत्म हो जाता है, मौत की आगोश में जाते ही सब वैर एवं झगड़े भी नष्ट हो जाते हैं।
ਵੰਨੁ ਗਇਆ ਰੂਪੁ ਵਿਣਸਿਆ ਦੁਖੀ ਦੇਹ ਰੁਲੀ ॥ सुन्दर रूप-रंग भी नाश हो जाता है और दुखी शरीर मिट्टी में मिल जाता है।
ਕਿਥਹੁ ਆਇਆ ਕਹ ਗਇਆ ਕਿਹੁ ਨ ਸੀਓ ਕਿਹੁ ਸੀ ॥ मृत्यु के उपरांत लोग बातें करते हैं (जीव) कहाँ से आया था और कहाँ चला गया है, क्या था और क्या हो गया।
ਮਨਿ ਮੁਖਿ ਗਲਾ ਗੋਈਆ ਕੀਤਾ ਚਾਉ ਰਲੀ ॥ मन तथा मुँह से बातें चलती हैं और जिंदगी के मौज मेले में मस्त रहता है।
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਸਿਰ ਖੁਰ ਪਤਿ ਪਾਟੀ ॥੨॥ हे नानक ! सच्चे नाम बिना सिर से पैरों तक सब प्रतिष्ठा खत्म हो जाती है॥२॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਅੰਤੇ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥ परमात्मा का नाम अमृत समान है, सदा सुख देने वाला है और अन्त में यही सहायता करता है।
ਬਾਝੁ ਗੁਰੂ ਜਗਤੁ ਬਉਰਾਨਾ ਨਾਵੈ ਸਾਰ ਨ ਪਾਈ ॥ गुरु के बिना जगत बावला बना रहता है और हरिनाम को महत्व नहीं देता।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਹਿ ਸੇ ਪਰਵਾਣੁ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਈ ॥ जो अपनी आत्मा को परमेश्वर से मिला देता है, सतगुरु की सेवा में तल्लीन रहने वाला वही भक्त स्वीकार होता है।
ਸੋ ਸਾਹਿਬੁ ਸੋ ਸੇਵਕੁ ਤੇਹਾ ਜਿਸੁ ਭਾਣਾ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈ ॥ जो परमात्मा की रज़ा को मन में बसा लेता है, ऐसा सेवक अपने मालिक-प्रभु का रूप हो जाता है।
ਆਪਣੈ ਭਾਣੈ ਕਹੁ ਕਿਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਅੰਧਾ ਅੰਧੁ ਕਮਾਈ ॥ जरा बताओ, अपनी मर्जी करने वाले किस व्यक्ति ने सुख पाया है, अज्ञानांध व्यक्ति कुटिल कर्म ही करता है।
ਬਿਖਿਆ ਕਦੇ ਹੀ ਰਜੈ ਨਾਹੀ ਮੂਰਖ ਭੁਖ ਨ ਜਾਈ ॥ भौतिक पदार्थों से कभी तृप्ति नहीं होती और मूर्ख की भूख कदाचित दूर नहीं होती।
ਦੂਜੈ ਸਭੁ ਕੋ ਲਗਿ ਵਿਗੁਤਾ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਬੂਝ ਨ ਪਾਈ ॥ द्वैतभाव में लीन रहने वाले सब लोग तंग होते हैं और सतगुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਸੋ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਜਿਸ ਨੋ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਰਜਾਈ ॥੨੦॥ लेकिन जिस पर परमात्मा अपनी इच्छा से कृपा करता है, सतगुरु की सेवा करके वही सुख पाता है॥२०॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक महला १॥
ਸਰਮੁ ਧਰਮੁ ਦੁਇ ਨਾਨਕਾ ਜੇ ਧਨੁ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥ गुरु नानक का कथन है कि जिनके पास हरिनाम रूपी धन होता है, उनके पास शालीनता एवं धर्म दोनों ही होते हैं।
ਸੋ ਧਨੁ ਮਿਤ੍ਰੁ ਨ ਕਾਂਢੀਐ ਜਿਤੁ ਸਿਰਿ ਚੋਟਾਂ ਖਾਇ ॥ उस धन-दौलत को साथी नहीं मानना चाहिए, जिसकी वजह से मुसीबतें एवं दण्ड भोगना पड़े।
ਜਿਨ ਕੈ ਪਲੈ ਧਨੁ ਵਸੈ ਤਿਨ ਕਾ ਨਾਉ ਫਕੀਰ ॥ जिनके पास अत्याधिक घन-दौलत होता है, उनका नाम भिखारी होना चाहिए, क्योंकि धन होने के बावजूद भी वे धन ही मांगते रहते हैं।
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਕੈ ਹਿਰਦੈ ਤੂ ਵਸਹਿ ਤੇ ਨਰ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰ ॥੧॥ हे ईश्वर ! जिनके हृदय में तू बसता है, ऐसे व्यक्ति ही गुणवान हैं।॥१॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਦੁਖੀ ਦੁਨੀ ਸਹੇੜੀਐ ਜਾਇ ਤ ਲਗਹਿ ਦੁਖ ॥ दुनिया दुख-तकलीफें झेल कर दौलत इकट्टी करती है, जब दौलत चली जाती है तो और भी दुखी होती है।
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਿਸੈ ਨ ਲਥੀ ਭੁਖ ॥ हे नानक ! परमात्मा की भक्ति के बिना किसी की भूख दूर नहीं होती।
ਰੂਪੀ ਭੁਖ ਨ ਉਤਰੈ ਜਾਂ ਦੇਖਾਂ ਤਾਂ ਭੁਖ ॥ बेशक कितना ही सुन्दर रूप देखा जाए, लालसा दूर नहीं होती, जिधर भी देखा जाए, रूप-सौन्दर्य एवं धन की लालसा लगी हुई है।
ਜੇਤੇ ਰਸ ਸਰੀਰ ਕੇ ਤੇਤੇ ਲਗਹਿ ਦੁਖ ॥੨॥ शरीर के जितने भी रस हैं, उतने ही दुख नसीब होते हैं।॥२॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਅੰਧੀ ਕੰਮੀ ਅੰਧੁ ਮਨੁ ਮਨਿ ਅੰਧੈ ਤਨੁ ਅੰਧੁ ॥ बुरे काम करने से मन भी बुरा हो जाता है, जब मन अज्ञानांध बुरा हो जाता है तो शरीर भी बुरा हो जाता है।
ਚਿਕੜਿ ਲਾਇਐ ਕਿਆ ਥੀਐ ਜਾਂ ਤੁਟੈ ਪਥਰ ਬੰਧੁ ॥ जहां पत्थर का बांध भी टूट जाता है, वहां पर चूना-गारा लगाने का कोई फायदा नहीं।
ਬੰਧੁ ਤੁਟਾ ਬੇੜੀ ਨਹੀ ਨਾ ਤੁਲਹਾ ਨਾ ਹਾਥ ॥ जब बांध टूट जाता है तो बेड़ी भी नहीं, तुलहा नहीं तो पार होना भी नसीब नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਵਿਣੁ ਕੇਤੇ ਡੁਬੇ ਸਾਥ ॥੩॥ हे नानक ! परमात्मा के स्मरण से विहीन मनुष्य कितने ही साथियों को साथ लेकर डूब जाता है॥३॥
ਮਃ ੧ ॥ महला १॥
ਲਖ ਮਣ ਸੁਇਨਾ ਲਖ ਮਣ ਰੁਪਾ ਲਖ ਸਾਹਾ ਸਿਰਿ ਸਾਹ ॥ यदि लाखों मन सोना एवं लाखों मन चांदी हो, लाखों बादशाहों का भी बड़ा बादशाह हो।
ਲਖ ਲਸਕਰ ਲਖ ਵਾਜੇ ਨੇਜੇ ਲਖੀ ਘੋੜੀ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥ लाखों की तादाद में सेना, हथियार, घोड़े इत्यादि का मालिक हो।
ਜਿਥੈ ਸਾਇਰੁ ਲੰਘਣਾ ਅਗਨਿ ਪਾਣੀ ਅਸਗਾਹ ॥ मगर जहां संसार-समुद्र को पार करना है, वहाँ अथाह अग्नि एवं पानी मौजूद है।
ਕੰਧੀ ਦਿਸਿ ਨ ਆਵਈ ਧਾਹੀ ਪਵੈ ਕਹਾਹ ॥ किनारा नजर नहीं आता और चीख-चिल्लाहट ही सुनाई देती है।
ਨਾਨਕ ਓਥੈ ਜਾਣੀਅਹਿ ਸਾਹ ਕੇਈ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥੪॥ हे नानक ! कौन बादशाह है, कौन शाह है, वहाँ पर ही माना जाता है।॥४॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी॥
ਇਕਨ੍ਹ੍ਹਾ ਗਲੀਂ ਜੰਜੀਰ ਬੰਦਿ ਰਬਾਣੀਐ ॥ किसी के गले में बंदगी की जंजीर पड़ जाती है,
ਬਧੇ ਛੁਟਹਿ ਸਚਿ ਸਚੁ ਪਛਾਣੀਐ ॥ वह परम सत्य को मानकर संसार के बन्धनों से मुक्त हो जाता है।


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top