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ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੀਐ ਸਚੇ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
गुरु के द्वारा शब्द की संभाल करते हुए ईश्वर का गुणगान करो।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਜਨ ਨਿਰਮਲੇ ਸਹਜੇ ਸਚਿ ਸਮਾਉ ॥੨॥
हे नानक ! वही लोग निर्मल हैं, जो प्रभु-नाम में तल्लीन रहते हैं और वे स्वाभाविक ही सत्य में समाहित हो जाते हैं।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥
पूर्ण गुरु की सेवा से ही पूर्ण परमेश्वर प्राप्त किया जाता है।
ਪੂਰੈ ਕਰਮਿ ਧਿਆਇ ਪੂਰਾ ਸਬਦੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥
पूर्ण कर्म से उसका ध्यान होता है और पूर्ण शब्द से ही मन में बसाया जाता है।
ਪੂਰੈ ਗਿਆਨਿ ਧਿਆਨਿ ਮੈਲੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
पूर्ण ज्ञान ध्यान से ही मन की मैल दूर होती है।
ਹਰਿ ਸਰਿ ਤੀਰਥਿ ਜਾਣਿ ਮਨੂਆ ਨਾਇਆ ॥
हरिनाम रूपी तीर्थ सरोवर को जानकर मन उसमें स्नान करता है।
ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਮਨੁ ਮਾਰਿ ਧੰਨੁ ਜਣੇਦੀ ਮਾਇਆ ॥
जो शब्द-गुरु द्वारा मन को मारता है, उसे जन्म देने वाली माता धन्य है।
ਦਰਿ ਸਚੈ ਸਚਿਆਰੁ ਸਚਾ ਆਇਆ ॥
कोई सत्यशील ही सच्चे प्रभु के द्वार पर आकर सच्चा माना जाता है।
ਪੁਛਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਇ ਜਾਂ ਖਸਮੈ ਭਾਇਆ ॥
जो ईश्वर को स्वीकार होता है, उस पर कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਸਲਾਹਿ ਲਿਖਿਆ ਪਾਇਆ ॥੧੮॥
हे नानक ! सच्चे परमेश्वर का स्तुतिगान करो और फल पा लो॥१८॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक महला १॥
ਕੁਲਹਾਂ ਦੇਂਦੇ ਬਾਵਲੇ ਲੈਂਦੇ ਵਡੇ ਨਿਲਜ ॥
ऐसे दंभी गुरु पीर दरअसल बावले ही हैं, जो अपने चेलों को सेली-टोपी देकर अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करते हैं और इन्हें लेने वाले मुरशिद के चेले भी बड़े बेशर्म हैं।
ਚੂਹਾ ਖਡ ਨ ਮਾਵਈ ਤਿਕਲਿ ਬੰਨ੍ਹ੍ਹੈ ਛਜ ॥
इनकी दशा तो यूं है जैसे चूहा स्वयं तो बिल में घुस नहीं सकता और कमर से छाज बांध लेता है।
ਦੇਨਿੑ ਦੁਆਈ ਸੇ ਮਰਹਿ ਜਿਨ ਕਉ ਦੇਨਿ ਸਿ ਜਾਹਿ ॥
लोगों को दुआएँ देने वाले ऐसे ढोंगी आप तो मरते ही हैं और इनसे दुआएँ पाने वाले भी मर जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਹੁਕਮੁ ਨ ਜਾਪਈ ਕਿਥੈ ਜਾਇ ਸਮਾਹਿ ॥
हे नानक ! इनको ईश्वर का हुक्म मालूम नहीं होता, आखिरकार किधर जा समाते हैं।
ਫਸਲਿ ਅਹਾੜੀ ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਸਾਵਣੀ ਸਚੁ ਨਾਉ ॥
केवल परमात्मा का नाम ही आषाढ़ की फसल है और सच्चा नाम ही सावन की फसल है।
ਮੈ ਮਹਦੂਦੁ ਲਿਖਾਇਆ ਖਸਮੈ ਕੈ ਦਰਿ ਜਾਇ ॥
नाम ही मेरी जीवन राशि है, यह मैंने एक ऐसा पट्टा लिखवाया है, जो मालिक के द्वार पर जाता है।
ਦੁਨੀਆ ਕੇ ਦਰ ਕੇਤੜੇ ਕੇਤੇ ਆਵਹਿ ਜਾਂਹਿ ॥
दुनिया के (पीरों-मुरशिदों के) कितने ही द्वार हैं, कितने ही वहां आते जाते हैं,
ਕੇਤੇ ਮੰਗਹਿ ਮੰਗਤੇ ਕੇਤੇ ਮੰਗਿ ਮੰਗਿ ਜਾਹਿ ॥੧॥
कितने ही भिखारी इन से मांगते हैं और मांग-मांग कर चले जाते हैं।॥१॥
ਮਃ ੧ ॥
महला १॥
ਸਉ ਮਣੁ ਹਸਤੀ ਘਿਉ ਗੁੜੁ ਖਾਵੈ ਪੰਜਿ ਸੈ ਦਾਣਾ ਖਾਇ ॥
हाथी सवा मन घी गुड़ और सवा पाँच मन दाना खाता है।
ਡਕੈ ਫੂਕੈ ਖੇਹ ਉਡਾਵੈ ਸਾਹਿ ਗਇਐ ਪਛੁਤਾਇ ॥
वह खा पीकर डकारता फेंकता और धूल उड़ाता है, जब साँसे निकल जाती हैं तो पछताता है।
ਅੰਧੀ ਫੂਕਿ ਮੁਈ ਦੇਵਾਨੀ ॥
अहंकार में अंधी एवं बावली हुई दुनिया हाथी की मानिंद फुकारती है।
ਖਸਮਿ ਮਿਟੀ ਫਿਰਿ ਭਾਨੀ ॥
जब अहंकार को निकाल देती है तो ही प्रभु को अच्छी लगती है।
ਅਧੁ ਗੁਲ੍ਹਾ ਚਿੜੀ ਕਾ ਚੁਗਣੁ ਗੈਣਿ ਚੜੀ ਬਿਲਲਾਇ ॥
चिड़िया का चोगा आधा दाना है, दाना चुगकर नभ में उड़ती हुई चहकती है।
ਖਸਮੈ ਭਾਵੈ ਓਹਾ ਚੰਗੀ ਜਿ ਕਰੇ ਖੁਦਾਇ ਖੁਦਾਇ ॥
दरअसल वही मालिक को अच्छी लगती है, जो खुदा-खुदा रटती है।
ਸਕਤਾ ਸੀਹੁ ਮਾਰੇ ਸੈ ਮਿਰਿਆ ਸਭ ਪਿਛੈ ਪੈ ਖਾਇ ॥
ताकतवर शेर सैकड़ों पशुओं को मार देता है और तत्पश्चात् कितने ही जीव खाते हैं।
ਹੋਇ ਸਤਾਣਾ ਘੁਰੈ ਨ ਮਾਵੈ ਸਾਹਿ ਗਇਐ ਪਛੁਤਾਇ ॥
ताकतवर शेर अपनी माँद में नहीं समाता और जब श्वास निकलते हैं तो पछताता है।
ਅੰਧਾ ਕਿਸ ਨੋ ਬੁਕਿ ਸੁਣਾਵੈ ॥
अंधा किसको चिल्ला-चिल्ला कर सुनाता है,
ਖਸਮੈ ਮੂਲਿ ਨ ਭਾਵੈ ॥
मालिक को ऐसा कदापि अच्छा नहीं लगता।
ਅਕ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਕਰੇ ਅਕ ਤਿਡਾ ਅਕ ਡਾਲੀ ਬਹਿ ਖਾਇ ॥
आक का टिड्डा आक से ही प्रीति करता है और आक की डाली पर बैठकर खाता है।
ਖਸਮੈ ਭਾਵੈ ਓਹੋ ਚੰਗਾ ਜਿ ਕਰੇ ਖੁਦਾਇ ਖੁਦਾਇ ॥
मालिक को वही अच्छा लगता है, जो खुदा का नाम जपता है।
ਨਾਨਕ ਦੁਨੀਆ ਚਾਰਿ ਦਿਹਾੜੇ ਸੁਖਿ ਕੀਤੈ ਦੁਖੁ ਹੋਈ ॥
हे नानक ! यह दुनिया चार दिनों का मेला है, सुख-सुविधाओं के उपरांत दुख ही नसीब होता है।
ਗਲਾ ਵਾਲੇ ਹੈਨਿ ਘਣੇਰੇ ਛਡਿ ਨ ਸਕੈ ਕੋਈ ॥
बातें बनाने वाले तो बहुत सारे व्यक्ति हैं, पर कोई भी धन-दौलत एवं सुखों को नहीं छोड़ता।
ਮਖੀ ਮਿਠੈ ਮਰਣਾ ॥
मक्खियां मीठे पर ही मरती हैं।
ਜਿਨ ਤੂ ਰਖਹਿ ਤਿਨ ਨੇੜਿ ਨ ਆਵੈ ਤਿਨ ਭਉ ਸਾਗਰੁ ਤਰਣਾ ॥੨॥
हे परमेश्वर ! जिनकी तू रक्षा करता है, उनके निकट मोह-माया भी नहीं आती और वे संसार-सागर से पार हो जाते हैं।॥२॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਤੂ ਧਣੀ ਸਚਾ ਅਲਖ ਅਪਾਰੁ ॥
हे सृष्टिकर्ता ! तू ही मालिक है, अपहुँच, मन-वाणी से परे, शाश्वत-स्वरूप एवं अदृष्ट है।
ਤੂ ਦਾਤਾ ਸਭਿ ਮੰਗਤੇ ਇਕੋ ਦੇਵਣਹਾਰੁ ॥
तू ही दाता है, सब लोग मांगने वाले हैं, एकमात्र तू ही दुनिया को देने वाला है।
ਜਿਨੀ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰਮਤੀ ਵੀਚਾਰੁ ॥
गुरु के मतानुसार चिंतन किया है कि जिसने भी तेरी पूजा-अर्चना की, उसने ही सुख प्राप्त किया है।
ਇਕਨਾ ਨੋ ਤੁਧੁ ਏਵੈ ਭਾਵਦਾ ਮਾਇਆ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ॥
यह तेरी ही रज़ा है कि कुछ लोगों का धन-दौलत से प्रेम बना रहे।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਲਾਹੀਐ ਅੰਤਰਿ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਆਰੁ ॥
मन में प्रेम बसाकर गुरु के उपदेश से ईश्वर की स्तुति करो।
ਵਿਣੁ ਪ੍ਰੀਤੀ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਵਈ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਨ ਲਗੈ ਪਿਆਰੁ ॥
प्रेम के बिना भक्ति नहीं होती और सच्चे गुरु के बिना प्रेम नहीं लगता।
ਤੂ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭਿ ਤੁਧੁ ਸੇਵਦੇ ਇਕ ਢਾਢੀ ਕਰੇ ਪੁਕਾਰ ॥
एक गवैया यही पुकार कर रहा है कि हे प्रभु ! तू महान् है, सब लोग तेरी ही आराधना करते हैं।
ਦੇਹਿ ਦਾਨੁ ਸੰਤੋਖੀਆ ਸਚਾ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਆਧਾਰੁ ॥੧੯॥
हमें तो यही संतोषपूर्वक दान देना कि तेरे सच्चे नाम का आसरा बना रहे॥१६॥