Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1110

Page 1110

ਨਾਨਕ ਅਹਿਨਿਸਿ ਰਾਵੈ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਹਰਿ ਵਰੁ ਥਿਰੁ ਸੋਹਾਗੋ ॥੧੭॥੧॥ गुरु नानक का कथन है कि वह दिन-रात प्रियतम-प्रभु के संग रमण करती है और उसका प्रभु रूपी सुहाग अटल है॥ १७॥ १॥
ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ तुखारी महला १॥
ਪਹਿਲੈ ਪਹਰੈ ਨੈਣ ਸਲੋਨੜੀਏ ਰੈਣਿ ਅੰਧਿਆਰੀ ਰਾਮ ॥ हे सुन्दर नयनों वाली जीव स्त्री ! जीवन रूपी पहले प्रहर में अज्ञान रूपी रात्रि का अंधेरा बना रहता है।
ਵਖਰੁ ਰਾਖੁ ਮੁਈਏ ਆਵੈ ਵਾਰੀ ਰਾਮ ॥ जन्म मिला है तो बारी आने पर आखिर मृत्यु को प्राप्त होना है, अतः नाम रूपी सौदा संभाल लो (अर्थात् हरिनाम जप लो)।
ਵਾਰੀ ਆਵੈ ਕਵਣੁ ਜਗਾਵੈ ਸੂਤੀ ਜਮ ਰਸੁ ਚੂਸਏ ॥ मृत्यु की बारी आने पर कौन जगाता है, सोए हुए मनुष्य का यम सब खत्म कर देता है।
ਰੈਣਿ ਅੰਧੇਰੀ ਕਿਆ ਪਤਿ ਤੇਰੀ ਚੋਰੁ ਪੜੈ ਘਰੁ ਮੂਸਏ ॥ अज्ञान रूपी रात अंधेरी है, तेरी कोई प्रतिष्ठा नहीं, पाँच विकार लूटते रहते हैं।
ਰਾਖਣਹਾਰਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ਸੁਣਿ ਬੇਨੰਤੀ ਮੇਰੀਆ ॥ मेरी विनती सुनो; अगम्य-अपार परमेश्वर ही रक्षा करने वाला है।
ਨਾਨਕ ਮੂਰਖੁ ਕਬਹਿ ਨ ਚੇਤੈ ਕਿਆ ਸੂਝੈ ਰੈਣਿ ਅੰਧੇਰੀਆ ॥੧॥ गुरु नानक का कथन है कि मूर्ख जीव कभी जाग्रत नहीं होता और उसे अज्ञान रूपी अंधेरे का ज्ञान नहीं होता॥ १॥
ਦੂਜਾ ਪਹਰੁ ਭਇਆ ਜਾਗੁ ਅਚੇਤੀ ਰਾਮ ॥ हे नादान ! जाग ले, जीवन का दूसरा प्रहर आ गया है।
ਵਖਰੁ ਰਾਖੁ ਮੁਈਏ ਖਾਜੈ ਖੇਤੀ ਰਾਮ ॥ नाम रूपी सौदे को बचाकर रख ले, क्योंकि गुणों की खेती तो कामादिक खाते जा रहे हैं।
ਰਾਖਹੁ ਖੇਤੀ ਹਰਿ ਗੁਰ ਹੇਤੀ ਜਾਗਤ ਚੋਰੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥ प्रभु से प्रेम लगाकर इस खेती को बचा लो, जाग्रत रहने से कामादिक पशु रूपी चोर नुक्सान नहीं पहुँचा सकते।
ਜਮ ਮਗਿ ਨ ਜਾਵਹੁ ਨਾ ਦੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ਜਮ ਕਾ ਡਰੁ ਭਉ ਭਾਗੈ ॥ मृत्यु के मार्ग पर मत जाओ, न ही दुख प्राप्त करो; इस प्रकार यम का भय निवृत्त हो जाएगा।
ਰਵਿ ਸਸਿ ਦੀਪਕ ਗੁਰਮਤਿ ਦੁਆਰੈ ਮਨਿ ਸਾਚਾ ਮੁਖਿ ਧਿਆਵਏ ॥ गुरु-उपदेश द्वारा सूर्य-चांद रूपी ज्ञान के दीपक जग जाएँगे, अतः मन एवं मुख से सच्चे प्रभु का भजन करो।
ਨਾਨਕ ਮੂਰਖੁ ਅਜਹੁ ਨ ਚੇਤੈ ਕਿਵ ਦੂਜੈ ਸੁਖੁ ਪਾਵਏ ॥੨॥ गुरु नानक का कथन है कि हे मूर्ख ! अब तक तो तू सावधान नहीं हुआ, फिर जीवन के अगले हिस्से में कैसे सुख उपलब्ध होगा॥ २॥
ਤੀਜਾ ਪਹਰੁ ਭਇਆ ਨੀਦ ਵਿਆਪੀ ਰਾਮ ॥ जीवन के तीसरे प्रहर में मोह की नींद बनी रहती है।
ਮਾਇਆ ਸੁਤ ਦਾਰਾ ਦੂਖਿ ਸੰਤਾਪੀ ਰਾਮ ॥ पुत्र-पत्नी के द्वारा माया दुख-संताप प्रदान करती है।
ਮਾਇਆ ਸੁਤ ਦਾਰਾ ਜਗਤ ਪਿਆਰਾ ਚੋਗ ਚੁਗੈ ਨਿਤ ਫਾਸੈ ॥ पुत्र-पत्नी, सांसारिक प्रेम में जीव चोगा चुगता है और नित्य माया-जाल में फँसता है।
ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ਗੁਰਮਤਿ ਕਾਲੁ ਨ ਗ੍ਰਾਸੈ ॥ यदि हरिनाम का भजन किया जाए तो सुख प्राप्त हो सकता है, गुरु-उपदेशानुसार जीवन बिताने वाले को काल अपना ग्रास नहीं बनाता।
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣੁ ਕਾਲੁ ਨਹੀ ਛੋਡੈ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਸੰਤਾਪੀ ॥ हरिनाम बिना जीव दुख-तकलीफ भोगता है, काल उसे छोड़ता नहीं और वह जन्म-मरण में पड़ा रहता है।
ਨਾਨਕ ਤੀਜੈ ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਲੋਕਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਵਿਆਪੀ ॥੩॥ गुरु नानक का कथन है कि जीवन के तीसरे प्रहर में लोग त्रिगुणात्मक माया के मोह में व्याप्त रहते हैं।॥ ३॥
ਚਉਥਾ ਪਹਰੁ ਭਇਆ ਦਉਤੁ ਬਿਹਾਗੈ ਰਾਮ ॥ जीवन के चौथे प्रहर में सूर्योदय हो गया अर्थात् बुढ़ापा आ गया, जीवन-अवधि समाप्त हो गई।
ਤਿਨ ਘਰੁ ਰਾਖਿਅੜਾ ਜੋੁ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੈ ਰਾਮ ॥ जो दिन-रात सावधान रहा, उसने अपने घर को बचा लिया।
ਗੁਰ ਪੂਛਿ ਜਾਗੇ ਨਾਮਿ ਲਾਗੇ ਤਿਨਾ ਰੈਣਿ ਸੁਹੇਲੀਆ ॥ जो गुरु की सलाहानुसार सावधान होकर हरिनाम का भजन करता है, उसकी जीवन रूपी रात्रि सुखमय हो जाती है।
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਕਮਾਵਹਿ ਜਨਮਿ ਨ ਆਵਹਿ ਤਿਨਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਬੇਲੀਆ ॥ वह शब्द-गुरु के अनुसार आचरण करता है, जीवन-मृत्यु के बन्धन से छूट जाता है और प्रभु ही उसका सच्चा साथी बनता है।
ਕਰ ਕੰਪਿ ਚਰਣ ਸਰੀਰੁ ਕੰਪੈ ਨੈਣ ਅੰਧੁਲੇ ਤਨੁ ਭਸਮ ਸੇ ॥ अन्यथा इस उम्र में हाथ-पैर थर-थर कांपते हैं, शरीर एवं पैर भी कांपने लग जाते हैं, ऑखों की रोशनी कम हो जाती है और अंततः शरीर भस्म हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਦੁਖੀਆ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਹਰਿ ਕੇ ਮਨਿ ਵਸੇ ॥੪॥ गुरु नानक का कथन है कि मन में हरिनाम बसाए बिना चारों युग केवल दुख ही मिलता है॥ ४॥
ਖੂਲੀ ਗੰਠਿ ਉਠੋ ਲਿਖਿਆ ਆਇਆ ਰਾਮ ॥ इस प्रकार मृत्यु का बुलावा आ गया, कर्मों का हिसाब-किताब हुआ।
ਰਸ ਕਸ ਸੁਖ ਠਾਕੇ ਬੰਧਿ ਚਲਾਇਆ ਰਾਮ ॥ स्वाद एवं सुखों की समाप्ति हुई और मृत्यु ने बांधकर साथ ले लिया।
ਬੰਧਿ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਪ੍ਰਭ ਭਾਇਆ ਨਾ ਦੀਸੈ ਨਾ ਸੁਣੀਐ ॥ जब प्रभु को स्वीकार होता है तो जीव बंधकर चल देता है, यह हुक्म सुनाई एवं दिखाई नहीं देता।
ਆਪਣ ਵਾਰੀ ਸਭਸੈ ਆਵੈ ਪਕੀ ਖੇਤੀ ਲੁਣੀਐ ॥ हर जीव अपनी बारी आने पर आ जाते हैं और अपने शुभाशुभ कर्मों का फल भोगते हैं।
ਘੜੀ ਚਸੇ ਕਾ ਲੇਖਾ ਲੀਜੈ ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਸਹੁ ਜੀਆ ॥ फिर घड़ी-पल का कर्मों का हिसाब लिया जाता है और सब जीवों को बुरा-भला सहन करना पड़ता है।
ਨਾਨਕ ਸੁਰਿ ਨਰ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਏ ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕਾਰਣੁ ਕੀਆ ॥੫॥੨॥ गुरु नानक का कथन है कि शब्द द्वारा ईश्वर ने स्वयं ही संत-व्यक्तियों को अपने संग विलीन किया है और प्रभु ने स्वयं ही कारण बनाया है॥ ५॥२॥
ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥ तुखारी महला १॥
ਤਾਰਾ ਚੜਿਆ ਲੰਮਾ ਕਿਉ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ਰਾਮ ॥ जिस पर परमेश्वर की कृपा-दृष्टि हो जाती है, उसके जीवन रूपी अंधेरे में ज्ञान का लम्बा तारा चढ़ा रहता है।
ਸੇਵਕ ਪੂਰ ਕਰੰਮਾ ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਬਦਿ ਦਿਖਾਲਿਆ ਰਾਮ ॥ पूर्ण भाग्यशाली सेवक को सतगुरु ने शब्द द्वारा ज्ञान का तारा दिखा दिया है।
ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਦਿਖਾਲਿਆ ਸਚੁ ਸਮਾਲਿਆ ਅਹਿਨਿਸਿ ਦੇਖਿ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥ शब्द-गुरु ने ज्ञान का तारा दिखाया तो सत्य को स्मरण कर दिन-रात उसने उसका ही मनन किया।
ਧਾਵਤ ਪੰਚ ਰਹੇ ਘਰੁ ਜਾਣਿਆ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਬਿਖੁ ਮਾਰਿਆ ॥ उसके हृदय-घर में से पाँच विकारों का छुटकारा हो गया और काम-क्रोध रूपी विष का अंत हो गया।
ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਭਈ ਗੁਰ ਸਾਖੀ ਚੀਨੇ ਰਾਮ ਕਰੰਮਾ ॥ गुरु की शिक्षा से अन्तर्मन में सत्य की ज्योति प्रज्वलित हो गई और उसने प्रभु की लीला को पहचान लिया।


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