Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1109

Page 1109

ਆਗੈ ਘਾਮ ਪਿਛੈ ਰੁਤਿ ਜਾਡਾ ਦੇਖਿ ਚਲਤ ਮਨੁ ਡੋਲੇ ॥ आगे गर्मी एवं पीछे जाड़े की ऋतु देखकर मन विचलित होता है।
ਦਹ ਦਿਸਿ ਸਾਖ ਹਰੀ ਹਰੀਆਵਲ ਸਹਜਿ ਪਕੈ ਸੋ ਮੀਠਾ ॥ दसों दिशाओं में वनस्पति की हरियाली है और जो सहज पकता है, वही मीठा है।
ਨਾਨਕ ਅਸੁਨਿ ਮਿਲਹੁ ਪਿਆਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਭਏ ਬਸੀਠਾ ॥੧੧॥ गुरु नानक का कथन है कि आश्विन के महीने में हे प्यारे ! तुम आन मिलो; चूंकेि सतगुरु मध्यस्थ बन चुके हैं।॥ ११॥
ਕਤਕਿ ਕਿਰਤੁ ਪਇਆ ਜੋ ਪ੍ਰਭ ਭਾਇਆ ॥ कार्तिक के महीने में जो प्रभु को अच्छा लगता है, वही फल प्राप्त होता है।
ਦੀਪਕੁ ਸਹਜਿ ਬਲੈ ਤਤਿ ਜਲਾਇਆ ॥ वह दीपक सहज में जलता है, जिसे ज्ञान-तत्व से जलाया जाता है।
ਦੀਪਕ ਰਸ ਤੇਲੋ ਧਨ ਪਿਰ ਮੇਲੋ ਧਨ ਓਮਾਹੈ ਸਰਸੀ ॥ ऐसे दीपक में प्रेम का तेल है, जीव-स्त्री पति-प्रभु से मिलकर आनंद एवं सुख की अनुभूति करती है।
ਅਵਗਣ ਮਾਰੀ ਮਰੈ ਨ ਸੀਝੈ ਗੁਣਿ ਮਾਰੀ ਤਾ ਮਰਸੀ ॥ अवगुणों में मरने वाली छुटकारा नहीं पाती, मगर गुणों में लिप्त रहने वाली छूट जाती है।
ਨਾਮੁ ਭਗਤਿ ਦੇ ਨਿਜ ਘਰਿ ਬੈਠੇ ਅਜਹੁ ਤਿਨਾੜੀ ਆਸਾ ॥ प्रभु जिन्हें नाम-भक्ति देता है, वे सच्चे घर में स्थान पाते हैं और उसकी आशा में ही रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਮਿਲਹੁ ਕਪਟ ਦਰ ਖੋਲਹੁ ਏਕ ਘੜੀ ਖਟੁ ਮਾਸਾ ॥੧੨॥ गुरु नानक का कथन है कि हे परमेश्वर ! किवाड़ खोलकर मिल जाओ, अन्यथा तेरे बिना एक घड़ी भी छः मास की मानिंद है॥ १२॥
ਮੰਘਰ ਮਾਹੁ ਭਲਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਅੰਕਿ ਸਮਾਵਏ ॥ मार्गशीष माह (अगहन) का महीना भला है, इसमें ईश्वर के गुण अंतर्मन में बस जाते हैं।
ਗੁਣਵੰਤੀ ਗੁਣ ਰਵੈ ਮੈ ਪਿਰੁ ਨਿਹਚਲੁ ਭਾਵਏ ॥ गुणवान् जीव-स्त्री निश्चल पति-प्रभु के गुण गाती रहती है।
ਨਿਹਚਲੁ ਚਤੁਰੁ ਸੁਜਾਣੁ ਬਿਧਾਤਾ ਚੰਚਲੁ ਜਗਤੁ ਸਬਾਇਆ ॥ विधाता बुद्धिमान, चतुर एवं निश्चल है, समूचा संसार चंचल है।
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਗੁਣ ਅੰਕਿ ਸਮਾਣੇ ਪ੍ਰਭ ਭਾਣੇ ਤਾ ਭਾਇਆ ॥ अगर प्रभु की रज़ा हो तो हृदय में ज्ञान-ध्यान के शुभ गुण बस जाते हैं।
ਗੀਤ ਨਾਦ ਕਵਿਤ ਕਵੇ ਸੁਣਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਦੁਖੁ ਭਾਗੈ ॥ कवियों से प्रभु-नाम के गीत, नाद व कवित सुनकर दुःख निवृत्त हो जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਾ ਧਨ ਨਾਹ ਪਿਆਰੀ ਅਭ ਭਗਤੀ ਪਿਰ ਆਗੈ ॥੧੩॥ गुरु नानक का कथन है कि वही जीव रूपी नारी पति-प्रभु को प्यारी लगती है जो दिल से भक्ति करती है और सेवा में सदा तत्पर रहती है। १३॥
ਪੋਖਿ ਤੁਖਾਰੁ ਪੜੈ ਵਣੁ ਤ੍ਰਿਣੁ ਰਸੁ ਸੋਖੈ ॥ पौष के महीने में इतना पाला पड़ता है किं वन-तृण वनस्पति सब सूख जाते हैं।
ਆਵਤ ਕੀ ਨਾਹੀ ਮਨਿ ਤਨਿ ਵਸਹਿ ਮੁਖੇ ॥ हे ईश्वर ! मन, तन, मुख में तू ही बसा हुआ है, हमारे पास क्यों नहीं आता।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਜਗਜੀਵਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਰੰਗੁ ਮਾਣੀ ॥ मन-तन हर जगह ईश्वर ही व्याप्त है और शब्द-गुरु से ही आनंद प्राप्त होता है।
ਅੰਡਜ ਜੇਰਜ ਸੇਤਜ ਉਤਭੁਜ ਘਟਿ ਘਟਿ ਜੋਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥ अण्डज, जेरज, स्वेदज, उदभिज्ज, संसार के कण-कण में प्रभु-ज्योति ही समा रही है।
ਦਰਸਨੁ ਦੇਹੁ ਦਇਆਪਤਿ ਦਾਤੇ ਗਤਿ ਪਾਵਉ ਮਤਿ ਦੇਹੋ ॥ हे दयालु दाता ! दर्शन दो, सद्बुद्धि प्रदान करो, ताकि गति प्राप्त हो जाए।
ਨਾਨਕ ਰੰਗਿ ਰਵੈ ਰਸਿ ਰਸੀਆ ਹਰਿ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਨੇਹੋ ॥੧੪॥ गुरु नानक का कथन है कि जिसका प्रभु से प्रेम बन जाता है, वह सब रस आनंद पाता है॥ १४॥
ਮਾਘਿ ਪੁਨੀਤ ਭਈ ਤੀਰਥੁ ਅੰਤਰਿ ਜਾਨਿਆ ॥ अंतर्मन में ज्ञान का तीर्थ स्नान माना तो माघ का महीना जीव के लिए पावन बन गया।
ਸਾਜਨ ਸਹਜਿ ਮਿਲੇ ਗੁਣ ਗਹਿ ਅੰਕਿ ਸਮਾਨਿਆ ॥ मन प्रभु के स्तुतिगान में लीन हुआ तो वह सज्जन सहज स्वाभाविक मिल गया।
ਪ੍ਰੀਤਮ ਗੁਣ ਅੰਕੇ ਸੁਣਿ ਪ੍ਰਭ ਬੰਕੇ ਤੁਧੁ ਭਾਵਾ ਸਰਿ ਨਾਵਾ ॥ प्रियतम के गुण धारण करके उसे भली लगूंगी। हे प्रभु ! तुझे स्वीकार हो तो मन रूपी सरोवर में स्नान करूँ।
ਗੰਗ ਜਮੁਨ ਤਹ ਬੇਣੀ ਸੰਗਮ ਸਾਤ ਸਮੁੰਦ ਸਮਾਵਾ ॥ इसी से गंगा, यमुना त्रिवेणी संगम तथा सात समुद्र की पवित्रता मुझे प्राप्त होगी।
ਪੁੰਨ ਦਾਨ ਪੂਜਾ ਪਰਮੇਸੁਰ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਏਕੋ ਜਾਤਾ ॥ दान-पुण्य एवं पूजा-अर्चना युग-युगांतर एक परमेश्वर का ही अस्तित्व माना है।
ਨਾਨਕ ਮਾਘਿ ਮਹਾ ਰਸੁ ਹਰਿ ਜਪਿ ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਨਾਤਾ ॥੧੫॥ गुरु नानक का कथन है कि माघ के महीने प्रभु का जाप महा आनंददायक है, यही अड़सठ तीर्थ में स्नान समान है॥१५॥
ਫਲਗੁਨਿ ਮਨਿ ਰਹਸੀ ਪ੍ਰੇਮੁ ਸੁਭਾਇਆ ॥ फाल्गुन के महीने में प्रभु से प्रेम लगा, तो मन आनंदित हो गया।
ਅਨਦਿਨੁ ਰਹਸੁ ਭਇਆ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ॥ अहम् भाव को छोड़ने से नित्य खुशियाँ मिल रही हैं।
ਮਨ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਆ ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਇਆ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਘਰਿ ਆਓ ॥ जब प्रभु की रज़ा हुई तो मन में से मोह मिट गया, वह कृपा करके हृदय घर में आ गया।
ਬਹੁਤੇ ਵੇਸ ਕਰੀ ਪਿਰ ਬਾਝਹੁ ਮਹਲੀ ਲਹਾ ਨ ਥਾਓ ॥ प्रभु के बिना अनेक श्रृंगार किए, परन्तु उसके चरणों में स्थान नहीं मिल सका।
ਹਾਰ ਡੋਰ ਰਸ ਪਾਟ ਪਟੰਬਰ ਪਿਰਿ ਲੋੜੀ ਸੀਗਾਰੀ ॥ जब प्रभु की इच्छा हुई तो हार, डोर, रस, पाट-पटंबर सब श्रृंगार हो गए।
ਨਾਨਕ ਮੇਲਿ ਲਈ ਗੁਰਿ ਅਪਣੈ ਘਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਨਾਰੀ ॥੧੬॥ गुरु नानक का कथन है कि गुरु से मिलाप हुआ तो पति-प्रभु को हृदय में पा लिया॥१६॥
ਬੇ ਦਸ ਮਾਹ ਰੁਤੀ ਥਿਤੀ ਵਾਰ ਭਲੇ ॥ बारह महीने, ऋतुएँ, तिथि एवं वार भले हैं।
ਘੜੀ ਮੂਰਤ ਪਲ ਸਾਚੇ ਆਏ ਸਹਜਿ ਮਿਲੇ ॥ घड़ी, मुहूर्त, पल भी प्रशंसनीय है और सच्चा प्रभु सहज-स्वभाव ही मिल जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਮਿਲੇ ਪਿਆਰੇ ਕਾਰਜ ਸਾਰੇ ਕਰਤਾ ਸਭ ਬਿਧਿ ਜਾਣੈ ॥ प्यारे प्रभु को मिलकर सभी कार्य संवर जाते हैं और कर्ता-प्रभु सब विधियाँ जानता है।
ਜਿਨਿ ਸੀਗਾਰੀ ਤਿਸਹਿ ਪਿਆਰੀ ਮੇਲੁ ਭਇਆ ਰੰਗੁ ਮਾਣੈ ॥ जिसे प्रभु शुभ गुणों से श्रृंगार देता है वही प्यारी है और प्रभु मिलन में आनंद प्राप्त करती है।
ਘਰਿ ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਜਾ ਪਿਰਿ ਰਾਵੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗੋ ॥ यदि प्रभु रमण करे तो हृदय-घर रूपी सेज सुन्दर हो जाती है, जिस गुरुमुख के मस्तक पर उत्तम भाग्य होता है।


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