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ਆਪੇ ਸਚਾ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਏ ॥
वह स्वयं ही शब्द-गुरु से मिलाता है और
ਸਬਦੇ ਵਿਚਹੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
शब्द-गुरु मन के अहं को मिटा देता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਨਾਮੇ ਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੬॥੮॥੨੨॥
हे नानक ! परमात्मा के नाम से ही बड़ाई मिलती है और नाम से ही सुख हासिल होता है।॥१६॥ ८॥ २२॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मारू महला ३॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਵੇਪਰਵਾਹੇ ॥
मन-वाणी से परे परमपिता परमेश्वर बे-परवाह है,"
ਆਪੇ ਮਿਹਰਵਾਨ ਅਗਮ ਅਥਾਹੇ ॥
वह स्वयं ही मेहरवान, अगम्य एवं अथाह है।
ਅਪੜਿ ਕੋਇ ਨ ਸਕੈ ਤਿਸ ਨੋ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮੇਲਾਇਆ ॥੧॥
उस तक कोई पहुँच नहीं सकता और शब्द-गुरु द्वारा मिला लेता है॥ १॥
ਤੁਧੁਨੋ ਸੇਵਹਿ ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵਹਿ ॥
हे परमेश्वर ! जो तुझे भाते हैं, वही तेरी उपासना करते हैं और
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦੇ ਸਚਿ ਸਮਾਵਹਿ ॥
गुरु के शब्द द्वारा सत्य में विलीन रहते हैं।
ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਣ ਰਵਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਭਾਇਆ ॥੨॥
वे नित्य तेरा गुणगान करते हैं और उनकी जिव्हा को हरि-नाम रस ही भाया है॥ २॥
ਸਬਦਿ ਮਰਹਿ ਸੇ ਮਰਣੁ ਸਵਾਰਹਿ ॥
जो शब्द-गुरु द्वारा अहम् को मार लेते हैं,"
ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਹਿਰਦੈ ਉਰ ਧਾਰਹਿ ॥
वे अपने मरण को सँवार लेते हैं और भगवान के गुणों को हृदय में धारण कर लेते हैं।
ਜਨਮੁ ਸਫਲੁ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਲਾਗੇ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਚੁਕਾਇਆ ॥੩॥
प्रभु -चरणों में लगकर उनका जन्म सफल हो गया है और द्वैतभाव मिट गया है॥ ३॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਮੇਲੇ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ॥
ईश्वर स्वयं ही उन्हें अपने साथ मिला लेता है,"
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦੇ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥
जो व्यक्ति गुरु के शब्द द्वारा अपने अहम् को दूर कर देते हैं,"
ਅਨਦਿਨੁ ਸਦਾ ਹਰਿ ਭਗਤੀ ਰਾਤੇ ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਲਾਹਾ ਪਾਇਆ ॥੪॥
ऐसे व्यक्ति सदा परमात्मा कां भक्ति में लीन रहते हैं और इस जगत् में उन्होंने लाभ प्राप्त किया है॥ ४॥
ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਕਹਾ ਮੈ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥
हे प्रभु ! मैं तेरे गुण वर्णन करना चाहता हूँ लेकिन मुझ से वर्णन नहीं किए जा सकते।
ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥
तेरा कोई अन्त नहीं है, न ही कोई आर पार है और किसी ने भी तेरी सही कीमत नहीं आँकी।
ਆਪੇ ਦਇਆ ਕਰੇ ਸੁਖਦਾਤਾ ਗੁਣ ਮਹਿ ਗੁਣੀ ਸਮਾਇਆ ॥੫॥
जब सुखदाता परमेश्वर स्वयं ही दया करता है तो जीव गुणनिधान के गुणों में लीन हो जाता है ॥५॥
ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਮੋਹੁ ਹੈ ਪਾਸਾਰਾ ॥
इस जगत् में चारों ओर मोह ही फैला हुआ है और
ਮਨਮੁਖੁ ਅਗਿਆਨੀ ਅੰਧੁ ਅੰਧਾਰਾ ॥
अज्ञानी मनमुखी जीव अज्ञानता के अन्धकार में ही भटकता रहता है।
ਧੰਧੈ ਧਾਵਤੁ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੬॥
संसार के धंधों में भागदौड़ करते हुए उसने अपना जन्म व्यर्थ गंवा लिया है और नाम के बिना दुख ही पाया है॥ ६॥
ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਏ ॥
अगर प्रभु-कृपा हो जाए तो वह सतगुरु को पा लेता है और
ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
वह शब्द गुरु द्वारा अपने अहम् की मैल को साफ कर लेता है।
ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਗਿਆਨੁ ਰਤਨੁ ਚਾਨਣੁ ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰੁ ਗਵਾਇਆ ॥੭॥
उसका मन निर्मल हो जाता है, जिसमें ज्ञान-रत्न का आलोक हो जाता है और अज्ञानता का अंधेरा मिट जाता है॥ ७॥
ਤੇਰੇ ਨਾਮ ਅਨੇਕ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥
तेरे नाम अनेक हैं और किसी ने भी उनकी सही कीमत नहीं आँकी।
ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਵਸਾਈ ॥
तेरे सत्य-नाम को अपने हृदय में बसा लिया है।
ਕੀਮਤਿ ਕਉਣੁ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ਤੂ ਆਪੇ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਆ ॥੮॥
हे प्रभु ! तेरी सही कीमत कौन कर सकता है, तू स्वयं ही परमानंद में समाया हुआ है।॥ ८॥
ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਕੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥
तेरा अमूल्य नाम अगम्य-अपार है और
ਨਾ ਕੋ ਹੋਆ ਤੋਲਣਹਾਰਾ ॥
इसे तोलने वाला कोई नहीं हुआ है।
ਆਪੇ ਤੋਲੇ ਤੋਲਿ ਤੋਲਾਏ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਮੇਲਿ ਤੋਲਾਇਆ ॥੯॥
तू खुद ही इसे तोलता है और जीवों से तौल कर तुलवाता है, तूने शब्द-गुरु से मिलाकर उनसे नाम को तुलवाया है॥ ९॥
ਸੇਵਕ ਸੇਵਹਿ ਕਰਹਿ ਅਰਦਾਸਿ ॥
सेवक तेरी सेवा-भक्ति में रत होकर तुझसे ही प्रार्थना करते हैं और
ਤੂ ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਬਹਾਲਹਿ ਪਾਸਿ ॥
तू उन्हें मिलाकर अपने पास बिठाता है।
ਸਭਨਾ ਜੀਆ ਕਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਪੂਰੈ ਕਰਮਿ ਧਿਆਇਆ ॥੧੦॥
सब जीवों को सुख देने वाला दाता केवल तू ही है और किसी विरले ने पूर्ण भाग्य से ही तेरा ध्यान किया है॥ १०॥
ਜਤੁ ਸਤੁ ਸੰਜਮੁ ਜਿ ਸਚੁ ਕਮਾਵੈ ॥
यदि कोई सत्य का आचरण अपनाता है तो उसे तपश्चर्या, सदाचार एवं संयम इत्यादि शुभ कर्मों का फल मिल जाता है।
ਇਹੁ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਜਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥
यदि कोई परमात्मा के गुण गाता है तो उसका मन निर्मल हो जाता है और
ਇਸੁ ਬਿਖੁ ਮਹਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਵੈ ਹਰਿ ਜੀਉ ਮੇਰੇ ਭਾਇਆ ॥੧੧॥
माया रूपी विष में विचरन करते हुए ही उसे नामामृत प्राप्त हो जाता है, मेरे परमेश्वर को यही भाया है॥ ११॥
ਜਿਸ ਨੋ ਬੁਝਾਏ ਸੋਈ ਬੂਝੈ ॥
जिसे वह ज्ञान देता है, वही बूझता है।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਅੰਦਰੁ ਸੂਝੈ ॥
वह परमात्मा के गुण गाता है, जिससे उसके मन में ज्ञान हो जाता है।
ਹਉਮੈ ਮੇਰਾ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ਸਹਜੇ ਹੀ ਸਚੁ ਪਾਇਆ ॥੧੨॥
उसने अहम् एवं ममता को रोक कर सहज ही सत्य को पा लिया है॥ १२॥
ਬਿਨੁ ਕਰਮਾ ਹੋਰ ਫਿਰੈ ਘਨੇਰੀ ॥
कितने ही बदकिस्मत लोग भटकते रहते है,
ਮਰਿ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਚੁਕੈ ਨ ਫੇਰੀ ॥
वे बार बार जन्मते मरते रहते है किन्तु उनका आवागमन ख़त्म नहीं होता।
ਬਿਖੁ ਕਾ ਰਾਤਾ ਬਿਖੁ ਕਮਾਵੈ ਸੁਖੁ ਨ ਕਬਹੂ ਪਾਇਆ ॥੧੩॥
विषय-विकारों में लीन रहने वाला जीव विकारों का ही आचरण करता है और उसने जीवन में कभी सुख प्राप्त नहीं किया॥ १३॥
ਬਹੁਤੇ ਭੇਖ ਕਰੇ ਭੇਖਧਾਰੀ ॥
वेष धारण करने वाला बहुरूपिया अनेक वेष बनाता रहता है लेकिन
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਹਉਮੈ ਕਿਨੈ ਨ ਮਾਰੀ ॥
शब्द-गुरु के बिना किसी का भी अहम् नहीं मिटा।
ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ਤਾ ਮੁਕਤਿ ਪਾਏ ਸਚੈ ਨਾਇ ਸਮਾਇਆ ॥੧੪॥
यदि वह जीवित ही पापों की तरफ से मर जाए तो मुक्ति पा लेता है और सत्य-नाम में विलीन हो जाता है॥ १४॥
ਅਗਿਆਨੁ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਇਸੁ ਤਨਹਿ ਜਲਾਏ ॥
अज्ञान एवं तृष्णाग्नि इस तन को जलाते रहते हैं,"