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ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मारू महला ३॥
ਨਿਰੰਕਾਰਿ ਆਕਾਰੁ ਉਪਾਇਆ ॥
निरंकार ने समूची सृष्टि को उत्पन्न किया और
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਹੁਕਮਿ ਬਣਾਇਆ ॥
अपने हुक्म से ही उसने माया-मोह को पैदा किया है।
ਆਪੇ ਖੇਲ ਕਰੇ ਸਭਿ ਕਰਤਾ ਸੁਣਿ ਸਾਚਾ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਦਾ ॥੧॥
सृष्टिकर्ता स्वयं ही सारी लीला करता है और उसकी महिमा को सुनकर उस परम-सत्य को मन में बसाया जाता है। १॥
ਮਾਇਆ ਮਾਈ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਪਰਸੂਤਿ ਜਮਾਇਆ ॥
माया रूपी माता को गर्भ धारण करवाकर विधाता ने (तमोगुण, सतोगुण एवं रजोगुण) तीन गुणों वाला जगत् पैदा किया।
ਚਾਰੇ ਬੇਦ ਬ੍ਰਹਮੇ ਨੋ ਫੁਰਮਾਇਆ ॥
उसने ब्रह्मा को चारों वेद-ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद रचने के लिए फरमान किया और
ਵਰ੍ਹੇ ਮਾਹ ਵਾਰ ਥਿਤੀ ਕਰਿ ਇਸੁ ਜਗ ਮਹਿ ਸੋਝੀ ਪਾਇਦਾ ॥੨॥
वर्ष, महीने, वार, तिथि बनाकर जगत् में समय का ज्ञान प्रदान किया॥ २॥
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਕਰਣੀ ਸਾਰ ॥
गुरु की सेवा एवं नाम-स्मरण का श्रेष्ठ कर्म करो और
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਾਖਹੁ ਉਰਿ ਧਾਰ ॥
राम-नाम को अपने हृदय में धारण करो।
ਗੁਰਬਾਣੀ ਵਰਤੀ ਜਗ ਅੰਤਰਿ ਇਸੁ ਬਾਣੀ ਤੇ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਾਇਦਾ ॥੩॥
जगत् में गुरु वाणी पढ़ी, सुनी एवं गाई जा रही है और इस वाणी से ही हरि का नाम प्राप्त होता है।॥ ३॥
ਵੇਦੁ ਪੜੈ ਅਨਦਿਨੁ ਵਾਦ ਸਮਾਲੇ ॥
पण्डित वेद मंत्रों का अध्ययन करता है किन्तु वह प्रतिदिन तर्क वितर्क में लीन रहता है।
ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤੈ ਬਧਾ ਜਮਕਾਲੇ ॥
वह नाम स्मरण नहीं करता, अतः यमकाल ने इसे बाँध लिया है।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਸਦਾ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਦਾ ॥੪॥
वह द्वैतभाव में सदा दुख हासिल करता है और त्रिगुणों के कारण भ्रम में भटकता रहता है॥ ४॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕਸੁ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਏ ॥
गुरुमुख एक ईश्वर में ही लगन लगाता है और
ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਮਨਸਾ ਮਨਹਿ ਸਮਾਏ ॥
उसकी रजो, तमो एवं सतोगुण तीन प्रकार की लालसाएँ मन में ही दूर हो जाती हैं।
ਸਾਚੈ ਸਬਦਿ ਸਦਾ ਹੈ ਮੁਕਤਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਚੁਕਾਇਦਾ ॥੫॥
वह सच्चे शब्द द्वारा सदा ही बन्धनों से मुक्त रहता है और माया-मोह को अपने मन से मिटा देता है। ५॥
ਜੋ ਧੁਰਿ ਰਾਤੇ ਸੇ ਹੁਣਿ ਰਾਤੇ ॥
जो प्रारम्भ से ही ईश्वर में लीन हैं, वे अब भी उसके रंग में लीन हैं।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਹਜੇ ਮਾਤੇ ॥
गुरु की कृपा से वे सहजावस्था में मरते रहते हैं।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਆਪੈ ਆਪੁ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੬॥
जिन्होंने सतिगुरु की सेवा करके प्रभु को पाया है, प्रभु ने स्वयं ही उन्हें मिलाया है॥ ६॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਭਰਮਿ ਨ ਪਾਏ ॥
माया-मोह एवं भ्रम में फँसा मनुष्य परमात्मा को नहीं पा सकता और
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਲਗਾ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ॥
द्वैतभाव में लीन होकर दुख ही प्राप्त करता है।
ਸੂਹਾ ਰੰਗੁ ਦਿਨ ਥੋੜੇ ਹੋਵੈ ਇਸੁ ਜਾਦੇ ਬਿਲਮ ਨ ਲਾਇਦਾ ॥੭॥
लाल रंग (खुशी एवं उल्लास) थोड़े दिन ही रहता है और इसे समाप्त होते विलम्ब नहीं होता॥ ७॥
ਏਹੁ ਮਨੁ ਭੈ ਭਾਇ ਰੰਗਾਏ ॥
जो व्यक्ति मन को प्रभु-भय एवं प्रेम में रंगता है,"
ਇਤੁ ਰੰਗਿ ਸਾਚੇ ਮਾਹਿ ਸਮਾਏ ॥
वह इस रंग द्वारा उस परम-सत्य में ही विलीन हो जाता है।
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਕੋ ਇਹੁ ਰੰਗੁ ਪਾਏ ਗੁਰਮਤੀ ਰੰਗੁ ਚੜਾਇਦਾ ॥੮॥
कोई पूर्ण भाग्यशाली ही यह रंग प्राप्त करता है और गुरु मत द्वारा ही प्रेम रंग चढ़ाता है॥ ८॥
ਮਨਮੁਖੁ ਬਹੁਤੁ ਕਰੇ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
स्वेच्छाचारी जीव बहुत अभिमान करता है,"
ਦਰਗਹ ਕਬ ਹੀ ਨ ਪਾਵੈ ਮਾਨੁ ॥
मगर प्रभु दरबार में वह कभी सम्मान प्राप्त नहीं करता।
ਦੂਜੈ ਲਾਗੇ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਦੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੯॥
द्वैतभाव में लीन होकर उसने अपना जन्म व्यर्थ गवां दिया है और तथ्य को बूझे बिना वह दुख ही पाता है॥ ९॥
ਮੇਰੈ ਪ੍ਰਭਿ ਅੰਦਰਿ ਆਪੁ ਲੁਕਾਇਆ ॥
मेरे प्रभु ने अपने आपको हृदय में छिपा कर रखा हुआ है और
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਮਿਲੈ ਮਿਲਾਇਆ ॥
गुरु की कृपा से वह जीव को मिला है।
ਸਚਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਚਾ ਵਾਪਾਰਾ ਨਾਮੁ ਅਮੋਲਕੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੦॥
प्रभु सत्यस्वरूप है, उसका नाम-व्यापार भी सत्य है और जीव इस व्यापार द्वारा अमूल्य नाम पाता है॥ १०॥
ਇਸੁ ਕਾਇਆ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈ ॥
इस मानव-शरीर की सही कीमत कोई भी नहीं पा सकता
ਮੇਰੈ ਠਾਕੁਰਿ ਇਹ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥
मेरे ठाकुर जी ने यह लीला बनाई है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੁ ਕਾਇਆ ਸੋਧੈ ਆਪਹਿ ਆਪੁ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੧੧॥
जो गुरुमुख होता है, वह शरीर को विकारों से शुद्ध कर लेता है और इस प्रकार ईश्वर स्वयं ही उसे मिला लेता है॥ ११॥
ਕਾਇਆ ਵਿਚਿ ਤੋਟਾ ਕਾਇਆ ਵਿਚਿ ਲਾਹਾ ॥
मानव-शरीर में ही हानि और लाभ है,"
ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੋਜੇ ਵੇਪਰਵਾਹਾ ॥
गुरुमुख हृदय में बेपरवाह परमात्मा की खोज करता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਣਜਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਸਹਜੇ ਸਹਜਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੧੨॥
गुरुमुख सत्य का व्यापार करके सदा सुख प्राप्त करता है और सहजावस्था में ही प्रभु में लीन हो जाता है॥ १२॥
ਸਚਾ ਮਹਲੁ ਸਚੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
ईश्वर का निवास स्थान एवं भण्डार दोनों ही सच्चे हैं और
ਆਪੇ ਦੇਵੈ ਦੇਵਣਹਾਰਾ ॥
वह दातार स्वयं ही जीवों को देता रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਲਾਹੇ ਸੁਖਦਾਤੇ ਮਨਿ ਮੇਲੇ ਕੀਮਤਿ ਪਾਇਦਾ ॥੧੩॥
गुरुमुख सुख देने वाले ईश्वर का स्तुतिगान करता है और मन को उससे मिलाकर सही कीमत आँक लेता है॥ १३॥
ਕਾਇਆ ਵਿਚਿ ਵਸਤੁ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥
नाम रूपी वस्तु मानव-शरीर में ही मौजूद है किन्तु मानव इसका महत्व नहीं जान पाया।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪੇ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ॥
ईश्वर स्वयं ही गुरुमुख को बड़ाई प्रदान करता है।
ਜਿਸ ਦਾ ਹਟੁ ਸੋਈ ਵਥੁ ਜਾਣੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਦੇਇ ਨ ਪਛੋਤਾਇਦਾ ॥੧੪॥
इस नाम-वस्तु को वही जानता है, जिसकी यह दुकान है और जिस गुरुमुख को वह देता है, वह पछताता नहीं॥ १४॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਸਭ ਮਹਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥
ईश्वर सब में समा रहा है और
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਾਇਆ ਜਾਈ ॥
उसे गुरु की कृपा से ही पाया जाता है।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ਆਪੇ ਸਬਦੇ ਸਹਜਿ ਸਮਾਇਦਾ ॥੧੫॥
वह स्वयं ही गुरु से मिलाकर अपने साथ मिला लेता है और जीव शब्द द्वारा सहजावरथा में लीन हो जाता है।॥१५॥