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ਹਰਿ ਚੇਤਹਿ ਤਿਨ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥
मैं उन पर कुर्बान जाता हूँ, जो परमात्मा को याद करते हैं।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਤਿਨ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਉ ॥
शब्द-गुरु द्वारा ही उनका मिलन हुआ है।
ਤਿਨ ਕੀ ਧੂਰਿ ਲਾਈ ਮੁਖਿ ਮਸਤਕਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਬਹਿ ਗੁਣ ਗਾਇਦਾ ॥੨॥
मैंने उनकी चरण-धूलि अपने मुख एवं माथे लगा ली है और सत्संगति में बैठकर भगवान के गुण गाता रहता हूँ॥ २॥
ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਜੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵਾ ॥
मैं भगवान के गुण तभी गाता हूँ, यदि मेरे प्रभु को मंजूर है।
ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਵਾ ॥
अन्तर्मन में हरि का नाम बस गया है और शब्द से जीवन सुन्दर बन गया है।
ਗੁਰਬਾਣੀ ਚਹੁ ਕੁੰਡੀ ਸੁਣੀਐ ਸਾਚੈ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਦਾ ॥੩॥
चारों दिशाओं में गुरु वाणी की कीर्ति सुनी जा रही है और सत्य-नाम में ही समा रहा हूँ॥ ३॥
ਸੋ ਜਨੁ ਸਾਚਾ ਜਿ ਅੰਤਰੁ ਭਾਲੇ ॥
वही मनुष्य सच्चा है, जो अन्तर्मन में सत्य की खोज करता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਹਰਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੇ ॥
गुरु के शब्द को पढ़ने, सुनने, गाने वाले को परमात्मा अपनी कृपा-दृष्टि से आनंदित कर देता है।
ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਪਾਏ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਨਦਰੀ ਨਦਰਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੪॥
जो शब्द-गुरु द्वारा ज्ञान का सुरमा नेत्रों में डालता है, कृपानिधान कृपा कर संग मिला लेता है॥ ४॥
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਇਹੁ ਸਰੀਰੁ ਪਾਇਆ ॥
अहोभाग्य से यह मानव-शरीर प्राप्त हुआ है और
ਮਾਣਸ ਜਨਮਿ ਸਬਦਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇਆ ॥
इस मानव-जन्म में शब्द से ही चित्त लगाया है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਸਭੁ ਅੰਧ ਅੰਧੇਰਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਿਸਹਿ ਬੁਝਾਇਦਾ ॥੫॥
शब्द के बिना सब ओर अंधेरा ही अंधेरा है और किसी गुरुमुख को ही प्रभु यह रहस्य बताता है॥ ५॥
ਇਕਿ ਕਿਤੁ ਆਏ ਜਨਮੁ ਗਵਾਏ ॥
कुछ जीवों ने अपना जन्म व्यर्थ गँवा लिया है, जगत् में किस कार्य आए हैं।
ਮਨਮੁਖ ਲਾਗੇ ਦੂਜੈ ਭਾਏ ॥
मनमुखी द्वैतभाव में ही तल्लीन हैं।
ਏਹ ਵੇਲਾ ਫਿਰਿ ਹਾਥਿ ਨ ਆਵੈ ਪਗਿ ਖਿਸਿਐ ਪਛੁਤਾਇਦਾ ॥੬॥
तदन्तर यह सुनहरी अवसर पुनः हाथ में नहीं आने वाला, पैर फिसलने पर गिर कर मनुष्य पछताता ही है॥ ६॥
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਵਿਤ੍ਰੁ ਸਰੀਰਾ ॥
गुरु के शब्द द्वारा जिसका शरीर पवित्र हो जाता है,"
ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਵਸੈ ਸਚੁ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰਾ ॥
उस में ही गुणों का गहरा सागर परमेश्वर आ बसता है।
ਸਚੋ ਸਚੁ ਵੇਖੈ ਸਭ ਥਾਈ ਸਚੁ ਸੁਣਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਦਾ ॥੭॥
फिर वह सर्वत्र परम-सत्य को ही देखता है और सत्य की महिमा को सुनकर उसे अपने मन में बसाता है॥ ७॥
ਹਉਮੈ ਗਣਤ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਨਿਵਾਰੇ ॥
वह गुरु के शब्द द्वारा अहम् एवं कर्मों की गणना को निवृत्त कर देता है।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਹਿਰਦੈ ਰਖਹੁ ਉਰ ਧਾਰੇ ॥
परमात्मा को अपने हृदय में बसाकर रखो,"
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਦਾ ਸਾਲਾਹੇ ਮਿਲਿ ਸਾਚੇ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੮॥
जो गुरु के शब्द द्वारा सदा स्तुतिगान करता है, वह प्रभु को मिलकर सुख पाता है॥ ८॥
ਸੋ ਚੇਤੇ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਚੇਤਾਏ ॥
परमात्मा को वही याद करता है, जिसे वह स्वयं याद करवाता है और
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਏ ॥
गुरु के शब्द द्वारा वह मन में आकर बस जाता है।
ਆਪੇ ਵੇਖੈ ਆਪੇ ਬੂਝੈ ਆਪੈ ਆਪੁ ਸਮਾਇਦਾ ॥੯॥
वह स्वयं ही सब देखता है, स्वयं ही बूझता है और अपने आप में ही समाया रहता है॥ ९॥
ਜਿਨਿ ਮਨ ਵਿਚਿ ਵਥੁ ਪਾਈ ਸੋਈ ਜਾਣੈ ॥
जिसने मन में नाम-रूपी वस्तु डाली है, वही इसके भेद को जानता है।
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦੇ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ॥
गुरु के शब्द द्वारा मनुष्य अपने आप को पहचान लेता है।
ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਸੋਈ ਜਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਬਾਣੀ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਇਦਾ ॥੧੦॥
जो अपने आप को पहचानता है, वही व्यक्ति निर्मल है और अन्यों को गुरु की वाणी एवं शब्द ही सुनाता है॥ १०॥
ਏਹ ਕਾਇਆ ਪਵਿਤੁ ਹੈ ਸਰੀਰੁ ॥
यह शरीर तो ही पवित्र है,
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਚੇਤੈ ਗੁਣੀ ਗਹੀਰੁ ॥
यदि शब्द-गुरु द्वारा गुणों के गहन सागर परमात्मा का स्मरण करता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਗੁਣ ਕਹਿ ਗੁਣੀ ਸਮਾਇਦਾ ॥੧੧॥
वह प्रतिदिन प्रभु के गुणगान में ही लीन रहता है और गुणों का कथन करके गुणीनिधान में ही समा जाता है॥ ११॥
ਏਹੁ ਸਰੀਰੁ ਸਭ ਮੂਲੁ ਹੈ ਮਾਇਆ ॥
यह समूचा शरीर मूल माया-रजोगुण, तमोगुण एवं सतोगुण से बना हुआ है और
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਆ ॥
द्वैतभाव के कारण भ्रम में भटका हुआ है।
ਹਰਿ ਨ ਚੇਤੈ ਸਦਾ ਦੁਖੁ ਪਾਏ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਚੇਤੇ ਦੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੨॥
यह परमात्मा को याद नहीं करता, अतः सदा दुख पाता है। वास्तव में परमात्मा का स्मरण किए बिना दुःख ही नसीब होता है॥ १२॥
ਜਿ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਸੋ ਪਰਵਾਣੁ ॥
जो व्यक्ति सतगुरु की सेवा करता है, वही परवान होता है।
ਕਾਇਆ ਹੰਸੁ ਨਿਰਮਲੁ ਦਰਿ ਸਚੈ ਜਾਣੁ ॥
उसका शरीर एवं आत्मा निर्मल होकर सच्चे प्रभु के द्वार से परिचित हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਸੇਵੇ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ਸੋਹੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਦਾ ॥੧੩॥
वह परमात्मा की उपासना करता है, परमात्मा को मन में बसता है और उसका गुणगान करता हुआ सुन्दर लगता है॥ १३॥
ਬਿਨੁ ਭਾਗਾ ਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਨ ਜਾਇ ॥
भाग्य के बिना गुरु की सेवा नहीं की जा सकती और
ਮਨਮੁਖ ਭੂਲੇ ਮੁਏ ਬਿਲਲਾਇ ॥
भूले हुए मनमुखी जीव रोते हुए ही दम तोड़ देते हैं।
ਜਿਨ ਕਉ ਨਦਰਿ ਹੋਵੈ ਗੁਰ ਕੇਰੀ ਹਰਿ ਜੀਉ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੧੪॥
जिन पर गुरु की कृपा-दृष्टि हो जाती है, उन्हें प्रभु स्वयं ही मिला लेता है॥ १४॥
ਕਾਇਆ ਕੋਟੁ ਪਕੇ ਹਟਨਾਲੇ ॥
यह मानव-शरीर एक किला है, जिसमें पक्के बाज़ार बने हुए हैं,"
ਗੁਰਮੁਖਿ ਲੇਵੈ ਵਸਤੁ ਸਮਾਲੇ ॥
जहाँ से गुरुमुख नाम रूपी वस्तु खरीद लेता है और नाम-स्मरण करता है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਊਤਮ ਪਦਵੀ ਪਾਇਦਾ ॥੧੫॥
वह दिन-रात हरि-नाम का भजन करके उत्तम पदवी (तुरीयावस्था) पा लेता है॥ १५॥
ਆਪੇ ਸਚਾ ਹੈ ਸੁਖਦਾਤਾ ॥
सच्चा परमेश्वर ही सुख प्रदाता है और
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ॥
इसकी पहचान पूर्ण गुरु के शब्द द्वारा ही होती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹੇ ਸਾਚਾ ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਕੋ ਪਾਇਦਾ ॥੧੬॥੭॥੨੧॥
हे नानक ! परमात्मा के नाम का स्तुतिगान कर पूर्ण खुशनसीब ही उसे पाता है ॥१६॥७॥२१॥