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                    ਖੁੰਢਾ ਅੰਦਰਿ ਰਖਿ ਕੈ ਦੇਨਿ ਸੁ ਮਲ ਸਜਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        फिर इसे कोल्हू के लकड़ी के बेलनों के बीच रखकर किसान इसे कुचलते हैं (जैसे कि वे इसे सज़ा दे रहे हों) और इसका रस निकालते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਸੁ ਕਸੁ ਟਟਰਿ ਪਾਈਐ ਤਪੈ ਤੈ ਵਿਲਲਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        उसका रस खींचकर कड़ाहे में डाला जाता है और गर्म होने पर यह जलता हुआ इस प्रकार चीखता-चिल्लाता है मानो दर्द से चिल्ला रहा हो।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਭੀ ਸੋ ਫੋਗੁ ਸਮਾਲੀਐ ਦਿਚੈ ਅਗਿ ਜਾਲਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        गन्ने की खोई भी जिसका रस निकाल लिया है उसे भी इकठ्ठा करके अग्नि में जला दिया जाता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਮਿਠੈ ਪਤਰੀਐ ਵੇਖਹੁ ਲੋਕਾ ਆਇ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        नानक कहते है कि हे प्राणियों ! आकर देखो, मीठे पत्तों वाले गन्ने को किस तरह का कष्ट सहने पड़ते हैं। इसी तरह, तुम्हें भी बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं। ॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਵੜੀ ॥
                   
                    
                                              
                        पउड़ी॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਕਨਾ ਮਰਣੁ ਨ ਚਿਤਿ ਆਸ ਘਣੇਰਿਆ ॥
                   
                    
                                              
                        कुछ लोगों को मृत्यु स्मरण नहीं, उनके मन में दुनिया के सुख भोगने की अधिक आशा होती है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਰਿ ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਨਿਤ ਕਿਸੈ ਨ ਕੇਰਿਆ ॥
                   
                    
                                              
                        वह हमेशा जन्मते-मरते रहते (दुःख और आराम के चक्र से गुजरते हैं)हैं तथा वह किसी के काम के नहीं हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਪਨੜੈ ਮਨਿ ਚਿਤਿ ਕਹਨਿ ਚੰਗੇਰਿਆ ॥
                   
                    
                                              
                        वह अपने मन ही मन में अपने आपको भला कहते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਜਮਰਾਜੈ ਨਿਤ ਨਿਤ ਮਨਮੁਖ ਹੇਰਿਆ ॥
                   
                    
                                              
                        लेकिन, यमराज हमेशा इन स्वेच्छाचारी लोगों को समाप्त करने के उनका पीछा करता है।  
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਨਮੁਖ ਲੂਣ ਹਾਰਾਮ ਕਿਆ ਨ ਜਾਣਿਆ ॥
                   
                    
                                              
                        मनमुख जीव इतने स्वार्थी होते हैं कि उन्हें अपने ऊपर किए हुए परमेश्वर के उपकार का एहसास नहीं होता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬਧੇ ਕਰਨਿ ਸਲਾਮ ਖਸਮ ਨ ਭਾਣਿਆ ॥
                   
                    
                                              
                        जो दबाव अधीन प्रणाम करते हैं वह प्रभु को अच्छे नहीं लगते।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਚੁ ਮਿਲੈ ਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਾਹਿਬ ਭਾਵਸੀ ॥
                   
                    
                                              
                        केवल उसी व्यक्ति को भगवान् का एहसास होगा, जो प्रेम से उनके नाम का स्मरण करता है, जिससे भगवान् प्रसन्न होते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਰਸਨਿ ਤਖਤਿ ਸਲਾਮੁ ਲਿਖਿਆ ਪਾਵਸੀ ॥੧੧॥
                   
                    
                                              
                        जो भगवान् की पूजा करते हैं ऐसे व्यक्ति को सम्मान मिलता है और उसे अपने पूर्व निर्धारित भाग्य का एहसास होता है।॥११॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਃ ੧ ਸਲੋਕੁ ॥
                   
                    
                                              
                        महला १ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा:॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਛੀ ਤਾਰੂ ਕਿਆ ਕਰੇ ਪੰਖੀ ਕਿਆ ਆਕਾਸੁ ॥
                   
                    
                                              
                        मछली को गहरे जल का क्या लाभ है और पक्षी को खुले आकाश का  क्या लाभ है? उन्हें तो अपने भोजन की ही चिंता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਥਰ ਪਾਲਾ ਕਿਆ ਕਰੇ ਖੁਸਰੇ ਕਿਆ ਘਰ ਵਾਸੁ ॥
                   
                    
                                              
                        पत्थर को कितनी भी ठंड परेशान नहीं करती और नपुसंक के लिए घर में रहना कोई मायने नहीं रखता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕੁਤੇ ਚੰਦਨੁ ਲਾਈਐ ਭੀ ਸੋ ਕੁਤੀ ਧਾਤੁ ॥
                   
                    
                                              
                        यदि कुत्ते को चंदन लगा दिया जाए तो फिर भी उसका कुत्ते वाला स्वभाव ही रहेगा और कुतिया की ओर ही दौड़ेगा।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬੋਲਾ ਜੇ ਸਮਝਾਈਐ ਪੜੀਅਹਿ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਪਾਠ ॥
                   
                    
                                              
                        यदि बहरे मनुष्य को स्मृतियों का पाठ पढ़कर सुनाए तो भी वह सुनकर समझता नहीं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅੰਧਾ ਚਾਨਣਿ ਰਖੀਐ ਦੀਵੇ ਬਲਹਿ ਪਚਾਸ ॥
                   
                    
                                              
                        यदि अंधे मनुष्य के समक्ष पचास दीपकों का प्रकाश भी कर दिया जाए तो भी उसे कुछ भी दिखाई नहीं देगा।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਚਉਣੇ ਸੁਇਨਾ ਪਾਈਐ ਚੁਣਿ ਚੁਣਿ ਖਾਵੈ ਘਾਸੁ ॥
                   
                    
                                              
                        मनुष्य चाहे गाय एवं भैसों के समूह के पास सोना रख दे तो भी वह घास को ही चुन-चुनकर खाएँगे।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਲੋਹਾ ਮਾਰਣਿ ਪਾਈਐ ਢਹੈ ਨ ਹੋਇ ਕਪਾਸ ॥
                   
                    
                                              
                        लोहे को कपास के समान लकड़ी के साथ झाड़ें तो भी वह नरम नहीं होता।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕ ਮੂਰਖ ਏਹਿ ਗੁਣ ਬੋਲੇ ਸਦਾ ਵਿਣਾਸੁ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        हे नानक ! मूर्ख मनुष्य में यही गुण होते हैं कि वह जो कुछ भी बोलता है, उससे उसका अपना ही विनाश होता है॥ १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਃ ੧ ॥
                   
                    
                                              
                        श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕੈਹਾ ਕੰਚਨੁ ਤੁਟੈ ਸਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        जब कांस्य, सोना एवं लोहा टूट जाए
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅਗਨੀ ਗੰਢੁ ਪਾਏ ਲੋਹਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        तो सुनार अग्नि से गांठ लगा देता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੋਰੀ ਸੇਤੀ ਤੁਟੈ ਭਤਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        यदि पत्नी के साथ पति नाराज़ हो जाए तो
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪੁਤੀ ਗੰਢੁ ਪਵੈ ਸੰਸਾਰਿ ॥
                   
                    
                                              
                        वे अपने बच्चों के कारण दुनिया की नज़रों में एक-साथ रहते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਰਾਜਾ ਮੰਗੈ ਦਿਤੈ ਗੰਢੁ ਪਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        राजा अपनी प्रजा से कर माँगता है और उसे कर देने से प्रजा का राजा से संबंध बना रहता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਭੁਖਿਆ ਗੰਢੁ ਪਵੈ ਜਾ ਖਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        भूखे व्यक्तियों के साथ रिश्ता तब विकसित होता है जब कोई उन्हें कुछ खाने को देता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਕਾਲਾ ਗੰਢੁ ਨਦੀਆ ਮੀਹ ਝੋਲ ॥
                   
                    
                                              
                        अकाल तब ख़त्म होता है, जब बारिश से नदियाँ उफान पर आ जाती हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗੰਢੁ ਪਰੀਤੀ ਮਿਠੇ ਬੋਲ ॥
                   
                    
                                              
                        प्रेम व मधुर वचनों का मेलजोल है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਬੇਦਾ ਗੰਢੁ ਬੋਲੇ ਸਚੁ ਕੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        पवित्र शास्त्रों के साथ एक बंधन तभी स्थापित होता है जब कोई सत्य बोलता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮੁਇਆ ਗੰਢੁ ਨੇਕੀ ਸਤੁ ਹੋਇ ॥
                   
                    
                                              
                        जो व्यक्ति अपने जीवन में भलाई करते हैं और दान देते हैं, मरणोपरांत उनका संबंध दुनिया से बना रहता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਏਤੁ ਗੰਢਿ ਵਰਤੈ ਸੰਸਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        इस तरह का मेल-मिलाप इस संसार में प्रचलित है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮੂਰਖ ਗੰਢੁ ਪਵੈ ਮੁਹਿ ਮਾਰ ॥
                   
                    
                                              
                        मूर्ख के सुधार का हल केवल यही है कि वह मुँह की मार खाए।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨਾਨਕੁ ਆਖੈ ਏਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        नानक एक ज्ञान की बात कहता है कि
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਿਫਤੀ ਗੰਢੁ ਪਵੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥੨॥
                   
                    
                                              
                        भगवान् की महिमा-स्तुति करने से मनुष्य का उसके दरबार से संबंध कायम हो जाता है॥ २॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਪਉੜੀ ॥
                   
                    
                                              
                        पउड़ी॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਆਪੇ ਕੁਦਰਤਿ ਸਾਜਿ ਕੈ ਆਪੇ ਕਰੇ ਬੀਚਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        परमेश्वर स्वयं ही सृष्टि की रचना करके स्वयं ही विचार करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਇਕਿ ਖੋਟੇ ਇਕਿ ਖਰੇ ਆਪੇ ਪਰਖਣਹਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        कई जीव दुष्ट हैं और कई जीव धर्मात्मा हैं। इन दुष्ट एवं धर्मी जीवों की जाँच भगवान स्वयं ही करता है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਖਰੇ ਖਜਾਨੈ ਪਾਈਅਹਿ ਖੋਟੇ ਸਟੀਅਹਿ ਬਾਹਰ ਵਾਰਿ ॥
                   
                    
                                              
                        जैसे खजानची शुद्ध सिक्कों को खजाने में डाल देता है और खोटे सिक्कों को खजाने से बाहर फेंक देता है,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਖੋਟੇ ਸਚੀ ਦਰਗਹ ਸੁਟੀਅਹਿ ਕਿਸੁ ਆਗੈ ਕਰਹਿ ਪੁਕਾਰ ॥
                   
                    
                                              
                        वैसे ही पापियों को प्रभु के दरबार में से बाहर फेंक दिया जाता है। वे पापी जीव किसके समक्ष विनती कर सकते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਤਿਗੁਰ ਪਿਛੈ ਭਜਿ ਪਵਹਿ ਏਹਾ ਕਰਣੀ ਸਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        उनके लिए श्रेष्ठ यही है कि वह दौड़कर सतगुरु की शरण में आ जाएँ।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਤਿਗੁਰੁ ਖੋਟਿਅਹੁ ਖਰੇ ਕਰੇ ਸਬਦਿ ਸਵਾਰਣਹਾਰੁ ॥
                   
                    
                                              
                        सतगुरु पापियों को पवित्र बना देता है। वह पापी मनुष्य को प्रभु के नाम से सुशोभित करने वाला है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਚੀ ਦਰਗਹ ਮੰਨੀਅਨਿ ਗੁਰ ਕੈ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਆਰਿ ॥
                   
                    
                                              
                        गुरु के साथ प्रेम एवं स्नेह करने से प्राणी सत्य दरबार में प्रशंसा के पात्र हो जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਗਣਤ ਤਿਨਾ ਦੀ ਕੋ ਕਿਆ ਕਰੇ ਜੋ ਆਪਿ ਬਖਸੇ ਕਰਤਾਰਿ ॥੧੨॥
                   
                    
                                              
                        जिन्हें सृष्टिकर्ता परमेश्वर ने स्वयं क्षमा कर दिया है, उनके कर्मों का मूल्यांकन कोई नहीं कर सकता है ॥१२॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
                   
                    
                                              
                        श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १ ॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਹਮ ਜੇਰ ਜਿਮੀ ਦੁਨੀਆ ਪੀਰਾ ਮਸਾਇਕਾ ਰਾਇਆ ॥
                   
                    
                                              
                        पीर, शेख एवं राजा इत्यादि सभी दुनिया के लोग जमीन में दफन कर दिए जाते हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮੇ ਰਵਦਿ ਬਾਦਿਸਾਹਾ ਅਫਜੂ ਖੁਦਾਇ ॥
                   
                    
                                              
                        बादशाह भी अंत में दुनिया से चले जाते हैं। केवल एक परमेश्वर ही सदैव विद्यमान है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਏਕ ਤੂਹੀ ਏਕ ਤੁਹੀ ॥੧॥
                   
                    
                                              
                        हे प्रभु ! एक आप ही हैं और आप ही इस दुनिया में हमेशा रहने वाला है।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਮਃ ੧ ॥
                   
                    
                                              
                        श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨ ਦੇਵ ਦਾਨਵਾ ਨਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        धरती पर सदैव रहने वाले न देवता हैं, न दैत्य हैं, न ही मनुष्य हैं,
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਨ ਸਿਧ ਸਾਧਿਕਾ ਧਰਾ ॥
                   
                    
                                              
                        न ही सिद्ध एवं साधक हैं।
                                            
                    
                    
                
                                   
                    ਅਸਤਿ ਏਕ ਦਿਗਰਿ ਕੁਈ ॥
                   
                    
                                              
                        हे भगवान्! यह सभी क्षणभंगुर हैं। आपके अतिरिक्त और कौन यहाँ शाश्वत है ?
                                            
                    
                    
                
                    
             
				