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ਪਰਬਤੁ ਸੁਇਨਾ ਰੁਪਾ ਹੋਵੈ ਹੀਰੇ ਲਾਲ ਜੜਾਉ ॥
चाहे हीरे एवं जवाहरों से जड़ित सोने एवं चांदी का पर्वत भी मुझे मिल जाए,
ਭੀ ਤੂੰਹੈ ਸਾਲਾਹਣਾ ਆਖਣ ਲਹੈ ਨ ਚਾਉ ॥੧॥
मैं फिर भी आपका ही यशोगान करूँगा और आपकी महिमा करने का मेरा मनोभाव कभी खत्म नहीं होगा ॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १॥
ਭਾਰ ਅਠਾਰਹ ਮੇਵਾ ਹੋਵੈ ਗਰੁੜਾ ਹੋਇ ਸੁਆਉ ॥
हे प्रभु ! यदि मेरे लिए अठारह भार वाली सारी वनस्पति मेवा बन जाए, जिसका स्वाद गुड़ जैसा मीठा हो,
ਚੰਦੁ ਸੂਰਜੁ ਦੁਇ ਫਿਰਦੇ ਰਖੀਅਹਿ ਨਿਹਚਲੁ ਹੋਵੈ ਥਾਉ ॥
यदि मेरा निवास स्थान अटल हो जाए, जिसके आस-पास सूर्य एवं चंद्रमा दोनों ही घूमते रहें,
ਭੀ ਤੂੰਹੈ ਸਾਲਾਹਣਾ ਆਖਣ ਲਹੈ ਨ ਚਾਉ ॥੨॥
फिर भी मैं आपका ही यश करूँगा और आपका यश करने का मेरा चाव हृदय से नहीं हटेगा ॥ २ ॥
ਮਃ ੧ ॥
प्रथम गुरु द्वारा श्लोक १॥
ਜੇ ਦੇਹੈ ਦੁਖੁ ਲਾਈਐ ਪਾਪ ਗਰਹ ਦੁਇ ਰਾਹੁ ॥
हे भगवान् ! यदि मेरा शरीर को अशुभ ग्रहों के प्रभाव से कष्ट हो।
ਰਤੁ ਪੀਣੇ ਰਾਜੇ ਸਿਰੈ ਉਪਰਿ ਰਖੀਅਹਿ ਏਵੈ ਜਾਪੈ ਭਾਉ ॥
यदि रक्तपिपासु राजा मेरे सिर पर शासन करते हों मुझे फिर भी मैं आपका प्रेम अनुभव करूँ।
ਭੀ ਤੂੰਹੈ ਸਾਲਾਹਣਾ ਆਖਣ ਲਹੈ ਨ ਚਾਉ ॥੩॥
हे ईश्वर ! फिर भी मैं आपकी ही सराहना करूँगा और आपकी स्तुति करने की मेरी चाहत समाप्त नहीं होगी॥ ३॥
ਮਃ ੧ ॥
प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १॥
ਅਗੀ ਪਾਲਾ ਕਪੜੁ ਹੋਵੈ ਖਾਣਾ ਹੋਵੈ ਵਾਉ ॥
चाहे मेरे लिए अग्नि एवं शीत मेरा परिधान हो, हवा मेरा भोजन हो
ਸੁਰਗੈ ਦੀਆ ਮੋਹਣੀਆ ਇਸਤਰੀਆ ਹੋਵਨਿ ਨਾਨਕ ਸਭੋ ਜਾਉ ॥
और यदि स्वर्ग की मोहिनी अप्सराएँ मेरी पत्नियाँ होती तो तब भी मैं अपने आप से कहता कि हे नानक ! यह सब पदार्थ क्षणभंगुर हैं।
ਭੀ ਤੂਹੈ ਸਾਲਾਹਣਾ ਆਖਣ ਲਹੈ ਨ ਚਾਉ ॥੪॥
हे प्रभु ! तो भी मैं आपकी ही महिमा गायन करूँगा। आपकी महिमा करने की तीव्र लालसा कम नहीं होगी। ॥ ४ ॥
ਪਵੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਬਦਫੈਲੀ ਗੈਬਾਨਾ ਖਸਮੁ ਨ ਜਾਣਈ ॥
जो व्यक्ति गुप्त रूप से बुरे कर्म करता है, उसे यह एहसास नहीं होता कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है।
ਸੋ ਕਹੀਐ ਦੇਵਾਨਾ ਆਪੁ ਨ ਪਛਾਣਈ ॥
जो अपने स्वरूप को नहीं समझता उसे पागल कहा जाता है।
ਕਲਹਿ ਬੁਰੀ ਸੰਸਾਰਿ ਵਾਦੇ ਖਪੀਐ ॥
इस संसार में कलह हानिकारक है, क्योंकि वाद-विवाद में मनुष्य व्यर्थ ही पीड़ित हो जाता है।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਵੇਕਾਰਿ ਭਰਮੇ ਪਚੀਐ ॥
हरिनाम का ध्यान किए बिना प्राणी व्यर्थ के भ्रम-विकारों नष्ट हो जाता है।
ਰਾਹ ਦੋਵੈ ਇਕੁ ਜਾਣੈ ਸੋਈ ਸਿਝਸੀ ॥
मनुष्य के जीवन में दो ही रास्ते होते हैं, सत्य का मार्ग या असत्य का मार्ग। जो सत्य का मार्ग चुनता है, वह सफल होता है।
ਕੁਫਰ ਗੋਅ ਕੁਫਰਾਣੈ ਪਇਆ ਦਝਸੀ ॥
झूठ बोलने वाला नरक में पड़कर जलकर राख हो जाता है।
ਸਭ ਦੁਨੀਆ ਸੁਬਹਾਨੁ ਸਚਿ ਸਮਾਈਐ ॥
यदि मनुष्य सत्य में लीन रहता है तो उसके लिए सारी दुनिया ही सुन्दर है।
ਸਿਝੈ ਦਰਿ ਦੀਵਾਨਿ ਆਪੁ ਗਵਾਈਐ ॥੯॥
वह अपना अहंकार मिटाकर प्रभु के दरबार में मान-प्रतिष्ठा प्राप्त करने में सफल हो जाता है।
ਮਃ ੧ ਸਲੋਕੁ ॥
प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: ॥
ਸੋ ਜੀਵਿਆ ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸੋਇ ॥
जिसके मन में भगवान् का निवास है, उस व्यक्ति को ही जीवित समझो।
ਨਾਨਕ ਅਵਰੁ ਨ ਜੀਵੈ ਕੋਇ ॥
हे नानक ! भगवान के नाम बिना जीव को जीवित नहीं कहा जा सकता,
ਜੇ ਜੀਵੈ ਪਤਿ ਲਥੀ ਜਾਇ ॥
यदि कोई जीव प्रभु के नाम के बिना जीवित है तो वह जगत् में से अपनी मान-प्रतिष्ठा गंवा कर चला जाता है।
ਸਭੁ ਹਰਾਮੁ ਜੇਤਾ ਕਿਛੁ ਖਾਇ ॥
प्रभु के नाम के बिना जीव जो कुछ भी खाता है, वह सब अशुद्ध बन जाता है।
ਰਾਜਿ ਰੰਗੁ ਮਾਲਿ ਰੰਗੁ ॥
किसी व्यक्ति का शासन से प्रेम है और किसी का धन-दौलत से प्रेम है।
ਰੰਗਿ ਰਤਾ ਨਚੈ ਨੰਗੁ ॥
ऐसा व्यक्ति मिथ्या माया के मोह में मग्न हुआ निर्लज्ज होकर नृत्य करता है।
ਨਾਨਕ ਠਗਿਆ ਮੁਠਾ ਜਾਇ ॥
हे नानक ! वह ठगा और लुटपुट जाता है।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਪਤਿ ਗਇਆ ਗਵਾਇ ॥੧॥
ईश्वर नाम के बिना वह अपनी प्रतिष्ठा गंवा कर चला जाता है॥ १॥
ਮਃ ੧ ॥
प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १
ਕਿਆ ਖਾਧੈ ਕਿਆ ਪੈਧੈ ਹੋਇ ॥
हे जीव ! स्वादिष्ट भोजन खाने एवं सुन्दर वस्त्र पहनने का क्या अभिप्राय है,"
ਜਾ ਮਨਿ ਨਾਹੀ ਸਚਾ ਸੋਇ ॥
यदि तेरे मन में उस भगवान् का निवास ही नहीं?
ਕਿਆ ਮੇਵਾ ਕਿਆ ਘਿਉ ਗੁੜੁ ਮਿਠਾ ਕਿਆ ਮੈਦਾ ਕਿਆ ਮਾਸੁ ॥
मेवा, धी, मीठा गुड़, मैदा एवं माँस खाने का क्या अभिप्राय है?"
ਕਿਆ ਕਪੜੁ ਕਿਆ ਸੇਜ ਸੁਖਾਲੀ ਕੀਜਹਿ ਭੋਗ ਬਿਲਾਸ ॥
सुन्दर वस्त्र पहनने, सुखदायक शय्या पर विश्राम करने और भोग-विलास का आनंद प्राप्त करने का क्या अभिप्राय है?"
ਕਿਆ ਲਸਕਰ ਕਿਆ ਨੇਬ ਖਵਾਸੀ ਆਵੈ ਮਹਲੀ ਵਾਸੁ ॥
सेना, द्वारपाल, कर्मचारी रखने एवं महलों में निवास करने का क्या अभिप्राय है ?"
ਨਾਨਕ ਸਚੇ ਨਾਮ ਵਿਣੁ ਸਭੇ ਟੋਲ ਵਿਣਾਸੁ ॥੨॥
हे नानक ! सत्य-परमेश्वर के नाम के सिवाय सभी पदार्थ क्षणभंगुर हैं।॥२॥
ਪਵੜੀ ॥
पउड़ी॥
ਜਾਤੀ ਦੈ ਕਿਆ ਹਥਿ ਸਚੁ ਪਰਖੀਐ ॥
भगवान् के दरबार में किसी की जाति या सामाजिक स्थिति पर विचार नहीं किया जाता। क्यूँकि वहां जीव का मूल्यांकन परमात्मा उसके शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार करता है।
ਮਹੁਰਾ ਹੋਵੈ ਹਥਿ ਮਰੀਐ ਚਖੀਐ ॥
यदि कोई व्यक्ति सामाजिक प्रतिष्ठा का विष पी लेता है, तो निश्चित रूप से उसे आध्यात्मिक मृत्यु का सामना करना पड़ेगा। भाव विषय-विकारों में फँसकर जीव की आध्यात्मिक मृत्यु निश्चित है।
ਸਚੇ ਕੀ ਸਿਰਕਾਰ ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਜਾਣੀਐ ॥
सत्य परमेश्वर का यह सर्वोच्च नियम युग-युग में जाना जाता है।
ਹੁਕਮੁ ਮੰਨੇ ਸਿਰਦਾਰੁ ਦਰਿ ਦੀਬਾਣੀਐ ॥
जो उसकी आज्ञा का पालन करता है, वह उसके दरबार में प्रतिष्ठित हो जाता है।
ਫੁਰਮਾਨੀ ਹੈ ਕਾਰ ਖਸਮਿ ਪਠਾਇਆ ॥
सत्य प्रभु का यही आज्ञा है कि नाम-सिमरन का कर्म करो। इसलिए प्रभु ने मनुष्य को संसार में भेजा है।
ਤਬਲਬਾਜ ਬੀਚਾਰ ਸਬਦਿ ਸੁਣਾਇਆ ॥
गुरु ने वाणी द्वारा परमेश्वर का आदेश लोगों को सुनाया है।
ਇਕਿ ਹੋਏ ਅਸਵਾਰ ਇਕਨਾ ਸਾਖਤੀ ॥
इसको श्रवण करके गुरमुख अपने आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ गए हैं और कुछ उस मार्ग पर जाने के लिए तैयार हो रहे हैं।
ਇਕਨੀ ਬਧੇ ਭਾਰ ਇਕਨਾ ਤਾਖਤੀ ॥੧੦॥
कईओं ने अपना सामान बांध लिया है और कई तो सवार होकर चले भी गए हैं॥ १० ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा १ ॥
ਜਾ ਪਕਾ ਤਾ ਕਟਿਆ ਰਹੀ ਸੁ ਪਲਰਿ ਵਾੜਿ ॥
जब फसल पक जाती है तो किसान उसे काट लेता है। केवल घास-फूस और बाड़ रह जाती है।
ਸਣੁ ਕੀਸਾਰਾ ਚਿਥਿਆ ਕਣੁ ਲਇਆ ਤਨੁ ਝਾੜਿ ॥
फसल को पीसकर अनाज के दाने अलग कर लिए जाते हैं।
ਦੁਇ ਪੁੜ ਚਕੀ ਜੋੜਿ ਕੈ ਪੀਸਣ ਆਇ ਬਹਿਠੁ ॥
दो चक्कियों को एक साथ जोड़कर एक व्यक्ति अनाज पीसने के लिए बैठ जाता है।
ਜੋ ਦਰਿ ਰਹੇ ਸੁ ਉਬਰੇ ਨਾਨਕ ਅਜਬੁ ਡਿਠੁ ॥੧॥
हे नानक! मैंने यह अद्भुत लीला देखी है कि जिस प्रकार केन्द्रिय धुरी से चिपके हुए दाने पिसने से बच जाते हैं, उसी प्रकार जो लोग ईश्वर में लीन रहते हैं, वे सांसारिक दोषों से बच जाते हैं।१॥
ਮਃ ੧ ॥
प्रथम गुरु द्वारा श्लोक:१॥
ਵੇਖੁ ਜਿ ਮਿਠਾ ਕਟਿਆ ਕਟਿ ਕੁਟਿ ਬਧਾ ਪਾਇ ॥
अरे भाई, देखो तो, गन्ना कैसे काटा गया है, पत्ते कैसे काटे गए हैं, और उसे कैसे गट्ठरों में बाँधा गया है।