Guru Granth Sahib Translation Project

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ਏਕ ਤੁਈ ਏਕ ਤੁਈ ॥੨॥ हे ईश्वर ! एक आपके अतिरिक्त दूसरा कोई भी सदैव स्थिर नहीं है। तीनों कालों में एक आप ही सदैव सत्य है॥ २॥
ਮਃ ੧ ॥ प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १ ॥
ਨ ਦਾਦੇ ਦਿਹੰਦ ਆਦਮੀ ॥ जगत् में न धरती के उपरोक्त आकाश के सप्त लोक स्थिर हैं, जहाँ मनुष्यों के कर्मो का न्याय करने वाले देवते रहते हैं,
ਨ ਸਪਤ ਜੇਰ ਜਿਮੀ ॥ न जमीन के नीचे सात पाताल के लोग स्थिर हैं, जहाँ दैत्य रहते हैं।
ਅਸਤਿ ਏਕ ਦਿਗਰਿ ਕੁਈ ॥ हे प्रभु ! सभी क्षणभंगुर हैं। एक आपके अतिरिक्त दूसरा कोई भी अमर नहीं है।
ਏਕ ਤੁਈ ਏਕ ਤੁਈ ॥੩॥ एक आप ही हो, आदि में भी आप ही हो और अन्त में भी आप ही हो॥ ३॥
ਮਃ ੧ ॥ प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १॥
ਨ ਸੂਰ ਸਸਿ ਮੰਡਲੋ ॥ न सूर्यमण्डल, न चंद्र मण्डल, न ग्रह
 ਨ ਸਪਤ ਦੀਪ ਨਹ ਜਲੋ ॥ न ही सप्त द्वीप, न ही सागर,
ਅੰਨ ਪਉਣ ਥਿਰੁ ਨ ਕੁਈ ॥ न ही अनाज और हवा कुछ भी स्थिर नहीं है।
ਏਕੁ ਤੁਈ ਏਕੁ ਤੁਈ ॥੪॥ हे प्रभु! केवल आप ही हो, तीनों कालों में एक आप ही हो।॥ ४॥
ਮਃ ੧ ॥ प्रथम गुरु द्वारा श्लोक: १ ॥
ਨ ਰਿਜਕੁ ਦਸਤ ਆ ਕਸੇ ॥ जगत् के समस्त जीवों का भरण-पोषण उस प्रभु के अतिरिक्त किसी अन्य के वश में नहीं है।
ਹਮਾ ਰਾ ਏਕੁ ਆਸ ਵਸੇ ॥ हम सबको एक प्रभु की ही आशा है।
ਅਸਤਿ ਏਕੁ ਦਿਗਰ ਕੁਈ ॥ शेष सब क्षणभंगुर है। हे प्रभु ! एक आपके अतिरिक्त अन्य कोई दूसरा सदैव स्थिर नहीं है।
ਏਕ ਤੁਈ ਏਕੁ ਤੁਈ ॥੫॥ तीनों कालों में केवल आप ही हो॥ ५॥
ਮਃ ੧ ॥ प्रथम गुरु द्वारा श्लोकः १॥
ਪਰੰਦਏ ਨ ਗਿਰਾਹ ਜਰ ॥ परिंदो के न अपने घर हैं और न ही उनके पास धन है।
ਦਰਖਤ ਆਬ ਆਸ ਕਰ ॥ वह जीवित रहने के लिए जल एवं वृक्षों पर अपनी आशा रखते हैं।
ਦਿਹੰਦ ਸੁਈ ॥ उन्हें भी आहार देने वाला एक प्रभु ही है।
ਏਕ ਤੁਈ ਏਕ ਤੁਈ ॥੬॥ हे प्रभु! तीनों कालों में आप ही हो। एक आप ही अटल है॥ ६ ॥
ਮਃ ੧ ॥ प्रथम गुरु द्वारा श्लोकः १॥
ਨਾਨਕ ਲਿਲਾਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੋਇ ॥ हे नानक ! इन्सान के माथे पर जो तकदीर के लेख परमात्मा ने लिख दिए हैं,
ਮੇਟਿ ਨ ਸਾਕੈ ਕੋਇ ॥ उन्हें कोई भी मिटा नहीं सकता।
ਕਲਾ ਧਰੈ ਹਿਰੈ ਸੁਈ ॥ हे प्रभु ! एक तू ही जीवों में प्राण-कला को धारण करते हो, तुम ही उसे वापिस निकाल लेते हो।
ਏਕੁ ਤੁਈ ਏਕੁ ਤੁਈ ॥੭॥ हे ठाकुर ! तीनों कालों में आप ही हो। एक आप ही अनश्वर है॥ ७॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी॥
ਸਚਾ ਤੇਰਾ ਹੁਕਮੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਣਿਆ ॥ हे भगवान् ! आपकी आज्ञा सदैव सत्य है और इसे गुरु के अनुयायी ही जान सकते है।
ਗੁਰਮਤੀ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ਸਚੁ ਪਛਾਣਿਆ ॥ हे शाश्वत भगवान्, जिस व्यक्ति ने गुरु के उपदेश द्वारा अपने अहंत्व को मिटा दिया है, उसने आपको महसूस किया है।
ਸਚੁ ਤੇਰਾ ਦਰਬਾਰੁ ਸਬਦੁ ਨੀਸਾਣਿਆ ॥ हे प्रभु ! आपका दरबार सत्य है और आपके दरबार में प्रवेश पाने हेतु गुरू शब्द ही पहचान चिह्न है।
ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ਸਚਿ ਸਮਾਣਿਆ ॥ जो व्यक्ति सत्य-नाम का चिंतन करता है, वह सत्य में ही समा जाता है।
ਮਨਮੁਖ ਸਦਾ ਕੂੜਿਆਰ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣਿਆ ॥ मनमुख सदैव झूठे होते हैं और भ्रम में पड़कर भटकते रहते हैं।
ਵਿਸਟਾ ਅੰਦਰਿ ਵਾਸੁ ਸਾਦੁ ਨ ਜਾਣਿਆ ॥ मरणोपरांत उनका निवास विष्टा में ही होता है क्योंकि अपने जीवन में कभी भी नाम के स्वाद को जाना नहीं होता अर्थात् उन्होंने कभी भी नाम-सिमरन नहीं किया होता।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਦੁਖੁ ਪਾਇ ਆਵਣ ਜਾਣਿਆ ॥ नाम के बिना वे बहुत दु:खी होते हैं। वे योनियों के चक्र में फँस कर जन्मते-मरते रहते हैं।
ਨਾਨਕ ਪਾਰਖੁ ਆਪਿ ਜਿਨਿ ਖੋਟਾ ਖਰਾ ਪਛਾਣਿਆ ॥੧੩॥ हे नानक ! ईश्वर स्वयं ही पारखी है, वह पापी एवं धर्मी की पहचान कर लेता है ॥१३ ॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਸੀਹਾ ਬਾਜਾ ਚਰਗਾ ਕੁਹੀਆ ਏਨਾ ਖਵਾਲੇ ਘਾਹ ॥ यदि भगवान् की इच्छा हो तो वह शेरों, बाजों, चीलों तथा कुईयों इत्यादि मांसाहारी पशु-पक्षियों को घास खिला सकता है।
ਘਾਹੁ ਖਾਨਿ ਤਿਨਾ ਮਾਸੁ ਖਵਾਲੇ ਏਹਿ ਚਲਾਏ ਰਾਹ ॥ जो घास खाने वाले पशु हैं, उनको वह माँस खिला सकता है। वह जीवों को ऐसे मार्ग पर चला सकते है।
ਨਦੀਆ ਵਿਚਿ ਟਿਬੇ ਦੇਖਾਲੇ ਥਲੀ ਕਰੇ ਅਸਗਾਹ ॥ वह नदियों में टीले बनाकर दिखा सकता है और रेगिस्तान में गहरा सागर बना सकता है।
ਕੀੜਾ ਥਾਪਿ ਦੇਇ ਪਾਤਿਸਾਹੀ ਲਸਕਰ ਕਰੇ ਸੁਆਹ ॥ वह चाहे तो तुच्छ जीव को भी साम्राज्य सौंप सकता है और राजाओं की सशक्त सेना का वध करके राख बना सकता है।
ਜੇਤੇ ਜੀਅ ਜੀਵਹਿ ਲੈ ਸਾਹਾ ਜੀਵਾਲੇ ਤਾ ਕਿ ਅਸਾਹ ॥ जगत् में जितने भी जीव हैं वे सभी श्वास लेकर जीते हैं अर्थात् श्वासों के बिना जीवित नहीं रह सकते परन्तु यदि परमात्मा की इच्छा हो तो उन्हें श्वासों के बिना भी जीवित रख सकता है।
ਨਾਨਕ ਜਿਉ ਜਿਉ ਸਚੇ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਤਿਉ ਦੇਇ ਗਿਰਾਹ ॥੧॥ हे नानक ! जिस तरह सत्य प्रभु को अच्छा लगता है, वैसे ही वह जीवों को आहार देता है। १॥
ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਇਕਿ ਮਾਸਹਾਰੀ ਇਕਿ ਤ੍ਰਿਣੁ ਖਾਹਿ ॥ कई जीव मांसाहारी हैं, कई जीव घास खाते हैं,"
ਇਕਨਾ ਛਤੀਹ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਪਾਹਿ ॥ कुछ जीव ऐसे भी हैं जो अनेक प्रकार के व्यंजनों का आनन्द लेते हैं,
ਇਕਿ ਮਿਟੀਆ ਮਹਿ ਮਿਟੀਆ ਖਾਹਿ ॥ कुछ जीव मिट्टी में ही रहते हैं और मिट्टी ही खाते हैं।
ਇਕਿ ਪਉਣ ਸੁਮਾਰੀ ਪਉਣ ਸੁਮਾਰਿ ॥ कुछ जीव पवन आहारी गिने जाते हैं भाव कुछ लोग जो सांस पर नियंत्रण का अभ्यास करते हैं, वें सांस लेने के व्यायाम में व्यस्त रहते हैं।
ਇਕਿ ਨਿਰੰਕਾਰੀ ਨਾਮ ਆਧਾਰਿ ॥ कुछ जीव निरंकार के पुजारी हैं और उन्हें नाम का ही आधार है।
ਜੀਵੈ ਦਾਤਾ ਮਰੈ ਨ ਕੋਇ ॥ जीवनदाता प्रभु सदैव जीवित है। कोई भी जीवभूखा नहीं मरता क्योंकि प्रभु सबको आहार देता है।
ਨਾਨਕ ਮੁਠੇ ਜਾਹਿ ਨਾਹੀ ਮਨਿ ਸੋਇ ॥੨॥ हे नानक ! जो उस परमेश्वर को अपने हृदय में नहीं बसाते, वे मोह-माया के हाथों ठगे जाते हैं॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥ पउड़ी ॥
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਕੀ ਕਾਰ ਕਰਮਿ ਕਮਾਈਐ ॥ भाग्य से ही पूर्ण गुरु की सेवा की जाती है।
ਗੁਰਮਤੀ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥ गुरु की मति द्वारा हमें अपने अहंत्व को मिटाकर भगवान् के नाम का ध्यान करते रहना चाहिए।
ਦੂਜੀ ਕਾਰੈ ਲਗਿ ਜਨਮੁ ਗਵਾਈਐ ॥ धन-दौलत कमाने के कार्य में लगकर हम अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ ही गंवा देते हैं।
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਸਭ ਵਿਸੁ ਪੈਝੈ ਖਾਈਐ ॥ नाम के अतिरिक्त हमारा वस्त्र पहनना एवं भोजन ग्रहण करना सब कुछ ही विष खाने के समान है।
ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਸਾਲਾਹਿ ਸਚਿ ਸਮਾਈਐ ॥ अतः सत्यनाम की महिमा- स्तुति करने से ही सत्य में समाया जा सकता है।
ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਨਾਹੀ ਸੁਖਿ ਨਿਵਾਸੁ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਆਈਐ ॥ सतगुरु की सेवा किए बिना मनुष्य का सुख में निवास नहीं होता और वह बार-बार जन्म लेता एवं मरता है।
ਦੁਨੀਆ ਖੋਟੀ ਰਾਸਿ ਕੂੜੁ ਕਮਾਈਐ ॥ संसार का प्रेम झूठी पूंजी है; इस नकली पूंजी को निवेश करके हम संसार में केवल झूठ ही कमाते हैं।
ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਖਰਾ ਸਾਲਾਹਿ ਪਤਿ ਸਿਉ ਜਾਈਐ ॥੧੪॥ हे नानक ! निर्मल सत्य नाम का यशोगान करने से मनुष्य सत्य के दरबार में सम्मानपूर्वक संसार से जाता है॥ १४॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥ श्लोक, प्रथम गुरु द्वारा: १॥
ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਵਾਵਹਿ ਗਾਵਹਿ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਜਲਿ ਨਾਵਹਿ ॥ हे भगवान् ! जब आपको अच्छा लगता है तो मनुष्य संगीतमय बाजे बजाता और गाता है। जब तेरी इच्छा होती है तो वह जल में स्नान करता है।


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