Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 106

ਸਰਬ ਜੀਆ ਕਉ ਦੇਵਣਹਾਰਾ ॥ सरब जीआ कउ देवणहारा ॥ परमेश्वर समस्त प्राणियों को देने वाला है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਰਾ ॥ गुर परसादी नदरि निहारा ॥ गुरु की कृपा से हमें ईश्वर की अनुकंपा प्राप्त हुई है।
ਜਲ ਥਲ ਮਹੀਅਲ ਸਭਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਣੇ ਸਾਧੂ ਚਰਨ ਪਖਾਲੀ ਜੀਉ ॥੩॥ जल थल महीअल सभि त्रिपताणे साधू चरन पखाली जीउ ॥३॥ सागर, धरती एवं गगन में रहने वाले समस्त प्राणी तृप्त हो गए हैं। मैं संत-गुरु के चरण धोता हूँ भाव (विनम्रतापूर्वक गुरु की शिक्षाओं का पालन करें)। ॥३॥
ਮਨ ਕੀ ਇਛ ਪੁਜਾਵਣਹਾਰਾ ॥ मन की इछ पुजावणहारा ॥ परमात्मा मन की समस्त इच्छाओं को पूरा करने वाले हैं।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਾਈ ਬਲਿਹਾਰਾ ॥ सदा सदा जाई बलिहारा ॥ मैं सदैव ही उनके प्रति समर्पित हूँ।
ਨਾਨਕ ਦਾਨੁ ਕੀਆ ਦੁਖ ਭੰਜਨਿ ਰਤੇ ਰੰਗਿ ਰਸਾਲੀ ਜੀਉ ॥੪॥੩੨॥੩੯॥ नानक दानु कीआ दुख भंजनि रते रंगि रसाली जीउ ॥४॥३२॥३९॥ हे नानक ! दु:ख नाशक प्रभु ने जिन लोगों को दुखों नाम का उपहार दिया है, वें उसके प्रेम के स्वाद से भर गए हैं। ॥४॥३२॥३९॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला ५ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥:
ਮਨੁ ਤਨੁ ਤੇਰਾ ਧਨੁ ਭੀ ਤੇਰਾ ॥ मनु तनु तेरा धनु भी तेरा ॥ हे भगवान् ! मेरा तन-मन-धन सर्वस्व आपका है।
ਤੂੰ ਠਾਕੁਰੁ ਸੁਆਮੀ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ॥ तूं ठाकुरु सुआमी प्रभु मेरा ॥ हे ईश्वर ! आप ही मेरे स्वामी एवं रक्षक हो।
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਰਾਸਿ ਤੁਮਾਰੀ ਤੇਰਾ ਜੋਰੁ ਗੋਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੧॥ जीउ पिंडु सभु रासि तुमारी तेरा जोरु गोपाला जीउ ॥१॥ हे प्रभु ! मेरे प्राण एवं तन आपकी ही पूंजी है। हे गोपाल ! मेरी प्रभुता आप से ही है॥१॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੂੰਹੈ ਸੁਖਦਾਈ ॥ सदा सदा तूंहै सुखदाई ॥ हे परमेश्वर ! आप सर्वदा सुख प्रदान करने वाले हो।
ਨਿਵਿ ਨਿਵਿ ਲਾਗਾ ਤੇਰੀ ਪਾਈ ॥ निवि निवि लागा तेरी पाई ॥ मैं सदा विनम्रतापूर्वक आपके प्रति नतमस्तक होता हूँ।
ਕਾਰ ਕਮਾਵਾ ਜੇ ਤੁਧੁ ਭਾਵਾ ਜਾ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਦਇਆਲਾ ਜੀਉ ॥੨॥ ਕਾਰ ਕਮਾਵਾ ਜੇ ਤੁਧੁ ਭਾਵਾ ਜਾ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਦਇਆਲਾ ਜੀਉ ॥੨॥ हे दयालु परमात्मा ! मैं वहीं कार्य कर सकता हूं जो आपको प्रसन्नता प्रदान करता है और मैं मात्र वहीं कार्य करने में सक्षम हूँ जो कार्य आप मुझे समर्पित करते हैं। ॥ २॥
ਪ੍ਰਭ ਤੁਮ ਤੇ ਲਹਣਾ ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਗਹਣਾ ॥ प्रभ तुम ते लहणा तूं मेरा गहणा ॥ हे भगवान् ! मैं आपसे ही सब कुछ चाहता हूँ। आप मेरे आध्यात्मिक जीवन की आराधना का स्रोत हैं।
ਜੋ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਸੋਈ ਸੁਖੁ ਸਹਣਾ ॥ जो तूं देहि सोई सुखु सहणा ॥ हे अकालपुरुष ! जो कुछ आप मुझे देते हो, मैं उसको सुखकर वस्तु समझकर ग्रहण करता हूँ।
ਜਿਥੈ ਰਖਹਿ ਬੈਕੁੰਠੁ ਤਿਥਾਈ ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਕੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲਾ ਜੀਉ ॥੩॥ जिथै रखहि बैकुंठु तिथाई तूं सभना के प्रतिपाला जीउ ॥३॥ हे भगवान् ! जहाँ कहीं भी आप मुझे रखते हो, वही मेरा स्वर्ग है। आप सबकी रक्षा करने वाले हो ॥३॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਨਾਨਕ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ सिमरि सिमरि नानक सुखु पाइआ ॥ हे नानक ! उस परम पिता परमेश्वर की आराधना करने से मुझे सुख उपलब्ध हो गया है।
ਆਠ ਪਹਰ ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥ आठ पहर तेरे गुण गाइआ ॥ हे प्रभु ! दिन के आठों प्रहर आपकी महिमा गायन करता हूँ।
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨ ਹੋਏ ਕਦੇ ਨ ਹੋਇ ਦੁਖਾਲਾ ਜੀਉ ॥੪॥੩੩॥੪੦॥ सगल मनोरथ पूरन होए कदे न होइ दुखाला जीउ ॥४॥३३॥४०॥ उसके हृदय के समस्त मनोरथ पूर्ण हो गए हैं और अब वह कभी भी संतप्त नहीं होता ॥४॥३३॥४०॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला ५ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮਿ ਪ੍ਰਭਿ ਮੇਘੁ ਪਠਾਇਆ ॥ पारब्रहमि प्रभि मेघु पठाइआ ॥ पारब्रह्म प्रभु ने गुरु के रूप में मेघ को वर्षा करने के लिए भेजा है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਦਹ ਦਿਸਿ ਵਰਸਾਇਆ ॥ जलि थलि महीअलि दह दिसि वरसाइआ ॥ मेघ ने सागर, धरती एवं आकाश दसों दिशाओं में आध्यात्मिक ज्ञान की वर्षा की है।
ਸਾਂਤਿ ਭਈ ਬੁਝੀ ਸਭ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਨਦੁ ਭਇਆ ਸਭ ਠਾਈ ਜੀਉ ॥੧॥ सांति भई बुझी सभ त्रिसना अनदु भइआ सभ ठाई जीउ ॥१॥ वर्षा से जीवों के अंतर्मन में सुख-शांति का अनुभव हुआ है तथा उनकी समस्त तृष्णा मिट गई है एवं सर्वत्र प्रसन्नता का प्रसार हुआ है॥१॥
ਸੁਖਦਾਤਾ ਦੁਖ ਭੰਜਨਹਾਰਾ ॥ सुखदाता दुख भंजनहारा ॥ हे भगवान् ! आप सुख प्रदान करने वाला और दुःख नाश करने वाले हैं।
ਆਪੇ ਬਖਸਿ ਕਰੇ ਜੀਅ ਸਾਰਾ ॥ आपे बखसि करे जीअ सारा ॥ आप स्वयं ही समस्त प्राणियों पर दया करते हैं।
ਅਪਨੇ ਕੀਤੇ ਨੋ ਆਪਿ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੇ ਪਇ ਪੈਰੀ ਤਿਸਹਿ ਮਨਾਈ ਜੀਉ ॥੨॥ अपने कीते नो आपि प्रतिपाले पइ पैरी तिसहि मनाई जीउ ॥२॥ अपनी सृष्टि का वह स्वयं ही पालन पोषण करता है। मैं उस परमेश्वर के चरणों में अत्यंत सम्मानपूर्वक नतमस्तक होकर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयास करता हूँ॥२॥
ਜਾ ਕੀ ਸਰਣਿ ਪਇਆ ਗਤਿ ਪਾਈਐ ॥ जा की सरणि पइआ गति पाईऐ ॥ उन प्रभु की शरण लेने से सर्वोच्च आध्यात्मिक स्तिथि प्राप्त होती है,
ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥ सासि सासि हरि नामु धिआईऐ ॥ श्वास-श्वास से प्रेमपूर्वक उस भगवान् के नाम का ही ध्यान करना चाहिए।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਹੋਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਠਾਕੁਰੁ ਸਭ ਤਿਸੈ ਕੀਆ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥੩॥ तिसु बिनु होरु न दूजा ठाकुरु सभ तिसै कीआ जाई जीउ ॥३॥ उसके अतिरिक्त अन्य कोई दूसरा स्वामी नहीं। समस्त स्थान केवल उसी के हैं॥३॥
ਤੇਰਾ ਮਾਣੁ ਤਾਣੁ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ॥ तेरा माणु ताणु प्रभ तेरा ॥ हे प्रभु ! आप ही मान एवं आप ही मेरा बल है।
ਤੂੰ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਗੁਣੀ ਗਹੇਰਾ ॥ तूं सचा साहिबु गुणी गहेरा ॥ तू ही मेरा सच्चा स्वामी एवं गुणों का सागर है।
ਨਾਨਕੁ ਦਾਸੁ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਆਠ ਪਹਰ ਤੁਧੁ ਧਿਆਈ ਜੀਉ ॥੪॥੩੪॥੪੧॥ नानकु दासु कहै बेनंती आठ पहर तुधु धिआई जीउ ॥४॥३४॥४१॥ दास नानक एक प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! दिन के आठों प्रहर मैं तेरा ही ध्यान करता रहूँ॥४॥३४॥ ४१॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला ५ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਸਭੇ ਸੁਖ ਭਏ ਪ੍ਰਭ ਤੁਠੇ ॥ सभे सुख भए प्रभ तुठे ॥ जिस जीव पर प्रभु की कृपा हो जाती है, उसे समस्त सुख प्राप्त हो जाते हैं।
ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੇ ਚਰਣ ਮਨਿ ਵੁਠੇ ॥ गुर पूरे के चरण मनि वुठे ॥ फिर पूर्ण गुरु के चरण मन में निवास कर लेते हैं।
ਸਹਜ ਸਮਾਧਿ ਲਗੀ ਲਿਵ ਅੰਤਰਿ ਸੋ ਰਸੁ ਸੋਈ ਜਾਣੈ ਜੀਉ ॥੧॥ सहज समाधि लगी लिव अंतरि सो रसु सोई जाणै जीउ ॥१॥ और हृदय में प्रभु के प्रति सहज चिंतन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है एवं इस मधुर आनंद को केवल वही व्यक्ति जानता है जिसने इसका अनुभव किया है।॥१ ॥
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਸਾਹਿਬੁ ਮੇਰਾ ॥ अगम अगोचरु साहिबु मेरा ॥ मेरा परमेश्वर अगम्य एवं अगोचर है ।
ਘਟ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਵਰਤੈ ਨੇਰਾ ॥ घट घट अंतरि वरतै नेरा ॥ वह इतना निकट है कि प्रत्येक हृदय में उपस्थित है।
ਸਦਾ ਅਲਿਪਤੁ ਜੀਆ ਕਾ ਦਾਤਾ ਕੋ ਵਿਰਲਾ ਆਪੁ ਪਛਾਣੈ ਜੀਉ ॥੨॥ सदा अलिपतु जीआ का दाता को विरला आपु पछाणै जीउ ॥२॥ वह सदैव निर्लेप है और जीवों का दाता है। कोई विरला पुरुष ही अपने स्वरूप को समझता है॥२॥
ਪ੍ਰਭ ਮਿਲਣੈ ਕੀ ਏਹ ਨੀਸਾਣੀ ॥ प्रभ मिलणै की एह नीसाणी ॥ प्रभु के मिलन का यही लक्षण है कि
ਮਨਿ ਇਕੋ ਸਚਾ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੀ ॥ मनि इको सचा हुकमु पछाणी ॥ मनुष्य अपने मन में उस सत्यस्वरूप परमात्मा की आज्ञा को ही स्वीकार करता है ।
ਸਹਜਿ ਸੰਤੋਖਿ ਸਦਾ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੇ ਅਨਦੁ ਖਸਮ ਕੈ ਭਾਣੈ ਜੀਉ ॥੩॥ सहजि संतोखि सदा त्रिपतासे अनदु खसम कै भाणै जीउ ॥३॥ प्रभु की इच्छा अनुसार चलने वाले मनुष्य को सदैव सुख, संतोष, तृप्ति एवं हर्ष प्राप्त होता है ॥३॥
ਹਥੀ ਦਿਤੀ ਪ੍ਰਭਿ ਦੇਵਣਹਾਰੈ ॥ हथी दिती प्रभि देवणहारै ॥ उस दाता परमेश्वर ने मुझे स्वयं शान्ति एवं संतुष्टि प्रदान की है और
ਜਨਮ ਮਰਣ ਰੋਗ ਸਭਿ ਨਿਵਾਰੇ ॥ जनम मरण रोग सभि निवारे ॥ प्रभु ने जीवन-मृत्यु के सभी कष्ट दूर कर दिए हैं।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਕੀਏ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੇ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨਿ ਰੰਗ ਮਾਣੇ ਜੀਉ ॥੪॥੩੫॥੪੨॥ नानक दास कीए प्रभि अपुने हरि कीरतनि रंग माणे जीउ ॥४॥३५॥४२॥ हे नानक ! जिनको परमात्मा ने अपना सेवक बना लिया है, वह प्रभु का यशोगान करने का आनंद प्राप्त करते हैं॥ ४ ॥ ३५ ॥ ४२ ॥


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