Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 107

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਕੀਨੀ ਦਇਆ ਗੋਪਾਲ ਗੁਸਾਈ ॥ सृष्टि के पालनहार गोपाल ने जिस जीव पर अपनी कृपा-दृष्टि की है और
ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਵਸੇ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥ गुरु के चरण उस जीव के मन में स्थिर हो गए हैं।
ਅੰਗੀਕਾਰੁ ਕੀਆ ਤਿਨਿ ਕਰਤੈ ਦੁਖ ਕਾ ਡੇਰਾ ਢਾਹਿਆ ਜੀਉ ॥੧॥ उस सृजनहार प्रभु ने उस जीव को अपना सेवक स्वीकार करके उसके सभी कष्टों को नष्ट कर दिया है॥१॥
ਮਨਿ ਤਨਿ ਵਸਿਆ ਸਚਾ ਸੋਈ ॥ जिसके तन एवं मन में सत्यस्वरूप परमेश्वर निवास करता है
ਬਿਖੜਾ ਥਾਨੁ ਨ ਦਿਸੈ ਕੋਈ ॥ उसे जीवन-यात्रा में कोई भी स्थान दुर्लभ नहीं लगता।
ਦੂਤ ਦੁਸਮਣ ਸਭਿ ਸਜਣ ਹੋਏ ਏਕੋ ਸੁਆਮੀ ਆਹਿਆ ਜੀਉ ॥੨॥ जिसे इस संसार के स्वामी प्रिय हैं, उसके काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार रूपी सभी शत्रु मित्र बन जाते हैं भाव उस जीव के सभी अवगुण नष्ट हो जाते हैं।॥२II
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੇ ਸੁ ਆਪੇ ਆਪੈ ॥ भगवान् जो कुछ भी करता है, वह स्वयं ही करता है।
ਬੁਧਿ ਸਿਆਣਪ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਪੈ ॥ उसके कार्यों को कोई भी व्यक्ति अपनी बुद्धि एवं चतुराई से नहीं जान सकता।
ਆਪਣਿਆ ਸੰਤਾ ਨੋ ਆਪਿ ਸਹਾਈ ਪ੍ਰਭਿ ਭਰਮ ਭੁਲਾਵਾ ਲਾਹਿਆ ਜੀਉ ॥੩॥ ईश्वर अपने संतों के स्वयं ही सहायक होते हैं। उन्होंने स्वयं ही उनके सभी भ्रम व संशय दूर कर दिये हैं। ॥३॥
ਚਰਣ ਕਮਲ ਜਨ ਕਾ ਆਧਾਰੋ ॥ प्रभु के चरण कमल उनके भक्तों का सहारा है।
ਆਠ ਪਹਰ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਵਾਪਾਰੋ ॥ वह दिन-रात आठ प्रहर राम नाम का चिंतन करते हैं।
ਸਹਜ ਅਨੰਦ ਗਾਵਹਿ ਗੁਣ ਗੋਵਿੰਦ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਸਰਬ ਸਮਾਹਿਆ ਜੀਉ ॥੪॥੩੬॥੪੩॥ हे नानक ! वह सहज अवस्था में उस आनंदपूर्वक गोविन्द की महिमा गायन करते रहते हैं, जो समस्त जीवों में समाया हुआ है॥ ४ ॥ ३६ ॥ ४३ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा ५ ॥
ਸੋ ਸਚੁ ਮੰਦਰੁ ਜਿਤੁ ਸਚੁ ਧਿਆਈਐ ॥ वहीं काया सत्य रूपी मन्दिर है, जिसके भीतर सत्य प्रभु का सिमरन किया जाता है।
ਸੋ ਰਿਦਾ ਸੁਹੇਲਾ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਈਐ ॥ वही हृदय सुखी है, जिससे भगवान् की महिमा का गायन किया जाता है।
ਸਾ ਧਰਤਿ ਸੁਹਾਵੀ ਜਿਤੁ ਵਸਹਿ ਹਰਿ ਜਨ ਸਚੇ ਨਾਮ ਵਿਟਹੁ ਕੁਰਬਾਣੋ ਜੀਉ ॥੧॥ वह धरती बड़ी सुन्दर है, जहाँ प्रभु के भक्त रहते हैं। वे तेरे सत्य नाम पर कुर्बान जाते हैं।॥१॥ ???????
ਸਚੁ ਵਡਾਈ ਕੀਮ ਨ ਪਾਈ ॥ सत्य-स्वरूप परमात्मा की महिमा का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ਕੁਦਰਤਿ ਕਰਮੁ ਨ ਕਹਣਾ ਜਾਈ ॥ परमेश्वर की रचनात्मक शक्ति एवं कर्मों का वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਧਿਆਇ ਧਿਆਇ ਜੀਵਹਿ ਜਨ ਤੇਰੇ ਸਚੁ ਸਬਦੁ ਮਨਿ ਮਾਣੋ ਜੀਉ ॥੨॥ हे प्रभु ! आपके भक्त सदैव आपका स्मरण करके आध्यात्मिक रूप से जीवित रहते हैं। आपकी सत्य रूपी वाणी ही उनके मन का आश्रय है।॥२॥
ਸਚੁ ਸਾਲਾਹਣੁ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਈਐ ॥ हे प्रभु! बड़े सौभाग्य से ही किसी जीव को आपकी स्तुति गाने का अवसर मिलता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਈਐ ॥ हे प्रभु! मात्र गुरु की दया से ही हम आपका गुणगान कर पाते हैं।
ਰੰਗਿ ਰਤੇ ਤੇਰੈ ਤੁਧੁ ਭਾਵਹਿ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਨੀਸਾਣੋ ਜੀਉ ॥੩॥ हे प्रभु ! जो आपकी प्रीति में मग्न रहते हैं, वें आपको प्रसन्न करते हैं। अपनी जीवन यात्रा में आपका सत्यनाम ही उनका परिचय चिन्ह है। ॥३॥
ਸਚੇ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਣੈ ਕੋਈ ॥ सत्यस्वरूप परमात्मा का अंत कोई नहीं जानता।
ਥਾਨਿ ਥਨੰਤਰਿ ਸਚਾ ਸੋਈ ॥ सत्य प्रभु सर्वव्यापक है।
ਨਾਨਕ ਸਚੁ ਧਿਆਈਐ ਸਦ ਹੀ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜਾਣੋ ਜੀਉ ॥੪॥੩੭॥੪੪॥ हे नानक ! उस सत्य प्रभु का सदैव ही सिमरन करना चाहिए, वह अन्तर्यामी समस्त जीवों की भावना को जानता है॥ ४ ॥ ३७ ॥ ४४ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा ५ ॥
ਰੈਣਿ ਸੁਹਾਵੜੀ ਦਿਨਸੁ ਸੁਹੇਲਾ ॥ वह रात्रि सुन्दर है और वह दिन भी बड़ा सुखदायक है,"
ਜਪਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸੰਤਸੰਗਿ ਮੇਲਾ ॥ जब संतों की सभा में मिलकर अमृत नाम का जाप किया जाता है।
ਘੜੀ ਮੂਰਤ ਸਿਮਰਤ ਪਲ ਵੰਞਹਿ ਜੀਵਣੁ ਸਫਲੁ ਤਿਥਾਈ ਜੀਉ ॥੧॥ जहाँ जीवन-समय की घड़ियों, मुहूर्त एवं पल सभी नाम-सिमरन में व्यतीत होते हैं, वहाँ जीवन सफल हो जाता है॥१॥ ????
ਸਿਮਰਤ ਨਾਮੁ ਦੋਖ ਸਭਿ ਲਾਥੇ ॥ नाम की स्तुति करने से मेरे समस्त दोष मिट गए हैं और
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਥੇ ॥ अन्दर-बाहर हरि-प्रभु मेरे साथ रहता है।
ਭੈ ਭਉ ਭਰਮੁ ਖੋਇਆ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਦੇਖਾ ਸਭਨੀ ਜਾਈ ਜੀਉ ॥੨॥ पूर्ण गुरु ने मेरे भीतर से भय, संदेह व भ्रम निवृत्त कर दिए हैं और अब मैं परमेश्वर को सर्वत्र देखता हूँ॥२ ॥
ਪ੍ਰਭੁ ਸਮਰਥੁ ਵਡ ਊਚ ਅਪਾਰਾ ॥ परमात्मा सर्वशक्तिमान, महान, सर्वश्रेष्ठ एवं अनन्त है।
ਨਉ ਨਿਧਿ ਨਾਮੁ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥ नवनिधियाँ प्रदान करने वाले अनमोल नाम से उसके भण्डार भरे हुए हैं।
ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਮਧਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ਦੂਜਾ ਲਵੈ ਨ ਲਾਈ ਜੀਉ ॥੩॥ परमात्मा जगत् के आदि, अन्त एवं मध्य तक विद्यमान है। मैं किसी अन्य को उस प्रभु के समकक्ष नहीं समझता। ॥३॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਮੇਰੇ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥ हे विनम्र लोगों का पालन-पोषण करने वाले दीनदयाल, मुझ पर दया कीजिए।
ਜਾਚਿਕੁ ਜਾਚੈ ਸਾਧ ਰਵਾਲਾ ॥ मैं भिखारी आपके संतों की चरण-धूलि भाव सेवा ही माँगता हूँ।
ਦੇਹਿ ਦਾਨੁ ਨਾਨਕੁ ਜਨੁ ਮਾਗੈ ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਧਿਆਈ ਜੀਉ ॥੪॥੩੮॥੪੫॥ हे प्रभु ! दास नानक आपसे यहीं माँगता है कि मुझे यह दान दीजिए कि मैं सदा ही आपका सिमरन करता रहूँ॥ ४ ॥ ३८ ॥ ४५ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा ५ ॥
ਐਥੈ ਤੂੰਹੈ ਆਗੈ ਆਪੇ ॥ हे प्रभु ! इस मृत्यु लोक मे आप ही (मेरा आधार) है और आगे परलोक में भी आप ही (मेरा आधार) है।
ਜੀਅ ਜੰਤ੍ਰ ਸਭਿ ਤੇਰੇ ਥਾਪੇ ॥ समस्त जीव-जंतु आपकी ही रचना है।
ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ਕਰਤੇ ਮੈ ਧਰ ਓਟ ਤੁਮਾਰੀ ਜੀਉ ॥੧॥ हे सृजनहार प्रभु ! आपके अतिरिक्त मेरा अन्य कोई नहीं। आप ही मेरा सहारा और आधार हो॥१॥
ਰਸਨਾ ਜਪਿ ਜਪਿ ਜੀਵੈ ਸੁਆਮੀ ॥ हे जगत् के स्वामी ! भक्ति और प्रेम से अपनी रसना द्वारा आपके नाम का चिंतन करते हुए मुझे आध्यात्मिक जीवन प्राप्त हुआ।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥ पारब्रह्म प्रभु बड़ा अन्तर्यामी है।
ਜਿਨਿ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨ ਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸੋ ਜਨਮੁ ਨ ਜੂਐ ਹਾਰੀ ਜੀਉ ॥੨॥ जो प्राणी प्रभु की भक्ति करता है, वह सुख प्राप्त करता है। वह अपना मनुष्य जीवन जुए के खेल में नहीं हारता॥२॥
ਨਾਮੁ ਅਵਖਧੁ ਜਿਨਿ ਜਨ ਤੇਰੈ ਪਾਇਆ ॥ हे प्रभु ! तेरे जिन भक्तों ने नाम रूपी औषधि को पा लिया है,
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