Guru Granth Sahib Translation Project

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Page 105

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭੁ ਭਗਤੀ ਲਾਵਹੁ ਸਚੁ ਨਾਨਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਏ ਜੀਉ ॥੪॥੨੮॥੩੫॥ हे प्रभु ! कृपा करके मुझे अपनी भक्ति में लगा लो जिससे नानक ! उस प्रभु के सत्य नाम रूपी अमृत का पान करता रहे॥ ४ ॥ २८ ॥ ३५ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਭਏ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਗੋਵਿੰਦ ਗੁਸਾਈ ॥ सृष्टि का स्वामी गोविन्द गुसाई समस्त जीवों पर ऐसे दयालु हो गया है जैसे.
ਮੇਘੁ ਵਰਸੈ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥ बादल समस्त स्थानों पर वर्षा करता है,"
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸਦਾ ਕਿਰਪਾਲਾ ਠਾਢਿ ਪਾਈ ਕਰਤਾਰੇ ਜੀਉ ॥੧॥ सृष्टिकर्ता सदैव ही दीनदयालु एवं कृपालु है और उसने अपने भक्तों के हृदय शीतल कर दिए हैं। १ ॥
ਅਪੁਨੇ ਜੀਅ ਜੰਤ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੇ ॥ प्रभु अपने जीव-जन्तुओं की पालना ऐसे करता है।
ਜਿਉ ਬਾਰਿਕ ਮਾਤਾ ਸੰਮਾਰੇ ॥ जैसे माता अपने शिशु की देखभाल करती है
ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਸੁਆਮੀ ਦੇਤ ਸਗਲ ਆਹਾਰੇ ਜੀਉ ॥੨॥ भगवान् दुःख नाशक एवं सुखों का सागर है। वह समस्त जीवों को खाने के लिए भोजन देता है॥ २॥
ਜਲਿ ਥਲਿ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਮਿਹਰਵਾਨਾ ॥ दयालु परमात्मा जल-थल सर्वत्र व्याप्त है।
ਸਦ ਬਲਿਹਾਰਿ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਨਾ ॥ मनुष्य को सदा ऐसे प्रभु के प्रति समर्पित रहना चाहिए।
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਤਿਸੁ ਸਦਾ ਧਿਆਈ ਜਿ ਖਿਨ ਮਹਿ ਸਗਲ ਉਧਾਰੇ ਜੀਉ ॥੩॥ दिन-रात हमें सदा ही उस भगवान् का ध्यान करना चाहिए क्योंकि केवल वहीं एक क्षण में ही सभी को इस संसार रूपी सागर से पार कर सकते हैं। ॥ ३॥
ਰਾਖਿ ਲੀਏ ਸਗਲੇ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪੇ ॥ भगवान् ने स्वयं ही अपने शरणार्थियों की रक्षा की है
ਉਤਰਿ ਗਏ ਸਭ ਸੋਗ ਸੰਤਾਪੇ ॥ और उनके सभी दुःख एवं संताप दूर हो गए हैं।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਮਨੁ ਤਨੁ ਹਰੀਆਵਲੁ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਰੇ ਜੀਉ ॥੪॥੨੯॥੩੬॥ नाम का ध्यान करने से शरीर और मन आध्यात्मिक रूप से प्रफुल्लित हो जाते हैं। हे भगवान्! कृपया मुझे आशीर्वाद दें ताकि मैं, नानक, आपके नाम का ध्यान करता रहूँ॥ ४॥ २६॥ ३६॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਜਿਥੈ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਪ੍ਰਭ ਪਿਆਰੇ ॥ हे प्रियतम प्रभु ! जिस स्थान पर तेरे नाम का जाप किया जाता है,
ਸੇ ਅਸਥਲ ਸੋਇਨ ਚਉਬਾਰੇ ॥ बंजर भूमि होने पर भी वह स्थान स्वर्ण के चौबारे के तुल्य है।
ਜਿਥੈ ਨਾਮੁ ਨ ਜਪੀਐ ਮੇਰੇ ਗੋਇਦਾ ਸੇਈ ਨਗਰ ਉਜਾੜੀ ਜੀਉ ॥੧॥ हे मेरे गोबिन्द ! जिस स्थान पर तेरे नाम का जाप नहीं किया जाता, वह नगर वीरान भूमि के तुल्य है॥१॥
ਹਰਿ ਰੁਖੀ ਰੋਟੀ ਖਾਇ ਸਮਾਲੇ ॥ जो व्यक्ति रूखी-सूखी रोटी खा कर भी भगवान् का सिमरन करता रहता है,
ਹਰਿ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੇ ॥ भगवान् उस पर भीतर एवं बाहर सर्वत्र कृपा-दृष्टि रखते हैं।
ਖਾਇ ਖਾਇ ਕਰੇ ਬਦਫੈਲੀ ਜਾਣੁ ਵਿਸੂ ਕੀ ਵਾੜੀ ਜੀਉ ॥੨॥ जो व्यक्ति भगवान् के दिए पदार्थ खा-खाकर दुष्कर्म करता रहता है, उसे विष की वाटिका समझो ॥ २ ॥
ਸੰਤਾ ਸੇਤੀ ਰੰਗੁ ਨ ਲਾਏ ॥ जो व्यक्ति संतों से प्रेम नहीं करता
ਸਾਕਤ ਸੰਗਿ ਵਿਕਰਮ ਕਮਾਏ ॥ और अविश्वसनीय निंदकों के साथ मिलकर दुष्कर्म करता है,
ਦੁਲਭ ਦੇਹ ਖੋਈ ਅਗਿਆਨੀ ਜੜ ਅਪੁਣੀ ਆਪਿ ਉਪਾੜੀ ਜੀਉ ॥੩॥ ऐसा ज्ञानहीन व्यक्ति अपने दुर्लभ मानव जन्म को व्यर्थ गंवा रहा है तथा वह अपनी जड़ को स्वयं ही उखाड़ रहा है॥ ३॥
ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਮੇਰੇ ਦੀਨ ਦਇਆਲਾ ॥ ਸੁਖ ਸਾਗਰ ਮੇਰੇ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥ हे दीनदयाल ! मैं तेरी शरण में आया हूँ। हे मेरे गुरु गोपाल ! तू सुखों का सागर है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਰਾਖਹੁ ਸਰਮ ਅਸਾੜੀ ਜੀਉ ॥੪॥੩੦॥੩੭॥ मुझ पर कृपा करो। नानक तेरी ही महिमा गायन करता है। कृपया मेरी लाज-प्रतिष्ठा रखो ॥४॥३०॥३७॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा:५ ॥
ਚਰਣ ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਰਿਦੈ ਸਮਾਣੇ ॥ जब भगवान् के सुन्दर चरण मेरे हृदय में स्थित हो गए तो
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਸਭ ਦੂਰਿ ਪਇਆਣੇ ॥ मेरे सभी दुःख एवं संताप नष्ट हो गए हैं।
ਸਾਂਤਿ ਸੂਖ ਸਹਜ ਧੁਨਿ ਉਪਜੀ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਨਿਵਾਸਾ ਜੀਉ ॥੧॥ संतों की संगति में निवास होने से मेरे अन्तर्मन में अनहद शब्द की मधुर ध्वनि उत्पन्न हो गई और मन में शांति एवं सहज सुख उपलब्ध हो गया है॥ १॥
ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਤੂਟੈ ਮੂਲੇ ॥ भगवान् से एक बार जुड़ा प्रेम का बंधन कभी नहीं टूटता।
ਹਰਿ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰੇ ॥ भगवान् मेरे भीतर एवं बाहर पूर्ण रूप से व्याप्त हैं।
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ਕਾਟੀ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸਾ ਜੀਉ ॥੨॥ प्रेमपूर्ण भक्ति के साथ भगवान् का स्मरण करते हुए, मैं उनकी महिमामय स्तुति गाता हूँ, और मृत्यु का भय दूर हो गया है।॥२॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵਰਖੈ ਅਨਹਦ ਬਾਣੀ ॥ मुझे ऐसा महसूस हो रहा है मानो मेरे मन में अमृत (नाम) की वर्षा हो रही हो और अनहद संगीत की धुन बज रही हो।
ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਸਮਾਣੀ ॥ मेरे मन एवं तन की गहराई में अमन एवं शांति का वास हो गया है ।
ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਇ ਰਹੇ ਜਨ ਤੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰਿ ਕੀਆ ਦਿਲਾਸਾ ਜੀਉ ॥੩॥ हे भगवान्, आपके भक्त जिन्हें सच्चे गुरु द्वारा बुराइयों के विरूद्ध खड़े होने का आशीर्वाद मिला है, वे माया से पूरी तरह मुक्त हैं।॥३॥
ਜਿਸ ਕਾ ਸਾ ਤਿਸ ਤੇ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥ जिस प्रभु का मैं सेवक हूँ, उससे मैंने अपने मन की ईच्छा का फल पाया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਸੰਗਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥ सतगुरु ने कृपा करके मुझे भगवान् से मिला दिया है।
ਆਵਣ ਜਾਣ ਰਹੇ ਵਡਭਾਗੀ ਨਾਨਕ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ਜੀਉ ॥੪॥੩੧॥੩੮॥ हे नानक ! सौभाग्य से मेरा जन्म-मरण का चक्र मिट गया है और भगवान् से मिलन की कामना पूरी हो गई है॥ ४ ॥ ३१ ॥ ३८ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ॥ माझ महला, पांचवें गुरु द्वारा: ५ ॥
ਮੀਹੁ ਪਇਆ ਪਰਮੇਸਰਿ ਪਾਇਆ ॥ परमेश्वर ने अपनी कृपा की वर्षा की है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਸੁਖੀ ਵਸਾਇਆ ॥ इस प्रकार प्रभु ने समस्त जीव-जन्तुओं को आनन्द एवं शांति प्रदान की है।
ਗਇਆ ਕਲੇਸੁ ਭਇਆ ਸੁਖੁ ਸਾਚਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਮਾਲੀ ਜੀਉ ॥੧॥ जैसे ही मैं भगवान् के नाम को अपने हृदय में स्थापित करता हूँ, दुःख दूर हो जाते है और मेरे भीतर शाश्वत आनंद का उत्पन्न होता है। ॥१॥
ਜਿਸ ਕੇ ਸੇ ਤਿਨ ਹੀ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੇ ॥ ये जीव-जन्तु जिस परमात्मा के उत्पन्न किए हुए हैं, उसने ही उनकी रक्षा की है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਰਖਵਾਰੇ ॥ पारब्रह्म-परमेश्वर उनका रक्षक बन गया है।
ਸੁਣੀ ਬੇਨੰਤੀ ਠਾਕੁਰਿ ਮੇਰੈ ਪੂਰਨ ਹੋਈ ਘਾਲੀ ਜੀਉ ॥੨॥ मेरे ठाकुर जी ने मेरी प्रार्थना सुन ली है और मेरी भक्ति सफल हो गई है॥२॥
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