Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 1341

Page 1341

ਗੁਰ ਸਬਦੇ ਕੀਨਾ ਰਿਦੈ ਨਿਵਾਸੁ ॥੩॥ साच सबद सिउ लागी प्रीति ॥ हरिनाम का जाप करने से ज्ञान का प्रकाश हुआ है और
ਗੁਰ ਸਮਰਥ ਸਦਾ ਦਇਆਲ ॥ हरि प्रभु अपुना आइआ चीति ॥२॥ हरिनाम का जाप करने से ज्ञान का प्रकाश हुआ है और
ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪਿ ਨਾਨਕ ਭਏ ਨਿਹਾਲ ॥੪॥੧੧॥ नामु जपत होआ परगासु ॥ हरिनाम का जाप करने से ज्ञान का प्रकाश हुआ है और
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ प्रभाती महला ५ ॥ प्रभाती महला ५ ॥
ਗੁਰੁ ਗੁਰੁ ਕਰਤ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥ गुरु गुरु करत सदा सुखु पाइआ ॥ गुरु-गुरु' जपने से सदैव सुख प्राप्त हो गया है।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਭਏ ਕਿਰਪਾਲਾ ਅਪਣਾ ਨਾਮੁ ਆਪਿ ਜਪਾਇਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ दीन दइआल भए किरपाला अपणा नामु आपि जपाइआ ॥१॥ रहाउ ॥ दीनदयालु ने कृपा करके स्वयं ही मुझ से अपने नाम का जाप करवाया है॥ १॥रहाउ॥
ਸੰਤਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਭਇਆ ਪ੍ਰਗਾਸ ॥ संतसंगति मिलि भइआ प्रगास ॥ संतों की संगत में मिलने से ज्ञान का आलोक हो गया है और
ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਤ ਪੂਰਨ ਭਈ ਆਸ ॥੧॥ हरि हरि जपत पूरन भई आस ॥१॥ परमात्मा का जाप करने से हमारी हर आशा पूर्ण हो गई है॥ १॥
ਸਰਬ ਕਲਿਆਣ ਸੂਖ ਮਨਿ ਵੂਠੇ ॥ सरब कलिआण सूख मनि वूठे ॥ सर्व-कल्याण एवं सुख उपलब्ध हुआ है और मन आनंदित हो गया है।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ਗੁਰ ਨਾਨਕ ਤੂਠੇ ॥੨॥੧੨॥ हरि गुण गाए गुर नानक तूठे ॥२॥१२॥ हे नानक ! गुरु की प्रसन्नता से परमात्मा का गुणगान किया है॥ २॥१२॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ਬਿਭਾਸ प्रभाती महला ५ घरु २ बिभास प्रभाती महला ५ घरु २ बिभास
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ਠਾਉ ॥ ਨਾਹੀ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥ अवरु न दूजा ठाउ ॥ अन्य कोई ठौर-ठिकाना,परमात्मा के नाम बिना नहीं है ।
ਸਰਬ ਸਿਧਿ ਕਲਿਆਨ ॥ਪੂਰਨ ਹੋਹਿ ਸਗਲ ਕਾਮ ॥੧॥ नाही बिनु हरि नाउ ॥ इसी से सर्व सिद्धियाँ एवं कल्याण प्राप्त होता है औरसब कार्य पूरे होते हैं।॥ १॥
ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ਜਪੀਐ ਨੀਤ ॥ सरब सिधि कलिआन ॥ नित्य परमात्मा का नाम जपना चाहिए,
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਅਹੰਕਾਰੁ ਬਿਨਸੈ ਲਗੈ ਏਕੈ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पूरन होहि सगल काम ॥१॥ इससे काम-क्रोध एवं अहंकार नाश हो जाता है और केवल प्रभु से प्रीति लगी रहती है॥ १॥रहाउ॥
ਨਾਮਿ ਲਾਗੈ ਦੂਖੁ ਭਾਗੈ ਸਰਨਿ ਪਾਲਨ ਜੋਗੁ ॥ हरि को नामु जपीऐ नीत ॥ परमात्मा के नाम में लीन होने से सब दुख भाग जाते हैं और वही शरण देने एवं पालन करने में समर्थ है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੈ ਜਮੁ ਨ ਤੇਟੈ ਜਿਸੁ ਧੁਰਿ ਹੋਵੈ ਸੰਜੋਗੁ ॥੨॥ काम क्रोध अहंकारु बिनसै लगै एकै प्रीति ॥१॥ रहाउ ॥ जिस व्यक्ति का उत्तम भाग्य होता है, उसका सतगुरु से साक्षात्कार हो जाता है और यमराज उसे तंग नहीं करता॥ २॥
ਰੈਨਿ ਦਿਨਸੁ ਧਿਆਇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਤਜਹੁ ਮਨ ਕੇ ਭਰਮ ॥ नामि लागै दूखु भागै सरनि पालन जोगु ॥ मन के भ्रम छोड़कर दिन-रात परमात्मा का भजन करो।
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਮਿਲੈ ਜਿਸਹਿ ਪੂਰਨ ਕਰਮ ॥੩॥ सतिगुरु भेटै जमु न तेटै जिसु धुरि होवै संजोगु ॥२॥ जिस पर पूर्ण कृपा होती है, उसे साधुसंगत में परमात्मा मिल जाता है॥ ३॥
ਜਨਮ ਜਨਮ ਬਿਖਾਦ ਬਿਨਸੇ ਰਾਖਿ ਲੀਨੇ ਆਪਿ ॥ रैनि दिनसु धिआइ हरि हरि तजहु मन के भरम ॥ हमारे जन्म-जन्मांतर के दुख-गम नष्ट हो गए हैं, प्रभु ने स्वयं ही बचा लिया है,
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਮੀਤ ਭਾਈ ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਾਪਿ ॥੪॥੧॥੧੩॥ साधसंगति हरि मिलै जिसहि पूरन करम ॥३॥ नानक कथन करते हैं कि परमात्मा ही हमारा माता-पिता, मित्र एवं भाई है, अतः उसी का जाप करो॥ ४॥ १॥१३॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ਬਿਭਾਸ ਪੜਤਾਲ जनम जनम बिखाद बिनसे राखि लीने आपि ॥ प्रभाती महला ५ बिभास पड़ताल
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ मात पिता मीत भाई जन नानक हरि हरि जापि ॥४॥१॥१३॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਰਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਜਾਪ ॥ प्रभाती महला ५ बिभास पड़ताल राम-राम जपते रहो;
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਲੋਭ ਮੋਹ ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਅਹੰ ਤਾਪ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ इससे कलह-क्लेश, लोभ, मोह, अहम् एवं ताप सब नाश हो जाते हैं।॥ १IIरहाउ ॥
ਆਪੁ ਤਿਆਗਿ ਸੰਤ ਚਰਨ ਲਾਗਿ ਮਨੁ ਪਵਿਤੁ ਜਾਹਿ ਪਾਪ ॥੧॥ रम राम राम राम जाप ॥ अभिमान को त्यागकर संतों के चरणों में लगो, इससे मन पवित्र हो जाता है और पाप नष्ट हो जाते हैं।॥ १॥
ਨਾਨਕੁ ਬਾਰਿਕੁ ਕਛੂ ਨ ਜਾਨੈ ਰਾਖਨ ਕਉ ਪ੍ਰਭੁ ਮਾਈ ਬਾਪ ॥੨॥੧॥੧੪॥ कलि कलेस लोभ मोह बिनसि जाइ अहं ताप ॥१॥ रहाउ ॥ नानक कथन करते हैं कि नादान बालक कुछ भी नहीं जानता, केवल प्रभु ही माता-पिता की तरह उसकी संभाल करता है॥ २ ॥ १ ॥ १४ ॥
ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥ आपु तिआगि संत चरन लागि मनु पवितु जाहि पाप ॥१॥ प्रभाती महला ५ ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਰਨਿ ਟੇਕ ॥ नानकु बारिकु कछू न जानै राखन कउ प्रभु माई बाप ॥२॥१॥१४॥ हमें तो ईश्वर के चरण-कमल का ही आसरा है।
ਊਚ ਮੂਚ ਬੇਅੰਤੁ ਠਾਕੁਰੁ ਸਰਬ ਊਪਰਿ ਤੁਹੀ ਏਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्रभाती महला ५ ॥ हे मालिक ! तू महान् है, बेअन्त है, केवल तू ही सबसे बड़ा है॥ १॥रहाउ॥
ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ਦੁਖ ਬਿਦਾਰ ਦੈਨਹਾਰ ਬੁਧਿ ਬਿਬੇਕ ॥੧॥ चरन कमल सरनि टेक ॥ एकमात्र वही प्राणों का आसरा है, सब दुखों का निवारण करने वाला और विवेक बुद्धि देने वाला है॥ १॥
ਨਮਸਕਾਰ ਰਖਨਹਾਰ ਮਨਿ ਅਰਾਧਿ ਪ੍ਰਭੂ ਮੇਕ ॥ ऊच मूच बेअंतु ठाकुरु सरब ऊपरि तुही एक ॥१॥ रहाउ ॥ हे सर्व रक्षक ! हमारा तुझे नमस्कार है। हम तो मन में केवल प्रभु की आराधना करते रहते हैं।
ਸੰਤ ਰੇਨੁ ਕਰਉ ਮਜਨੁ ਨਾਨਕ ਪਾਵੈ ਸੁਖ ਅਨੇਕ ॥੨॥੨॥੧੫॥ प्रान अधार दुख बिदार दैनहार बुधि बिबेक ॥१॥ नानक का फुरमान है कि संतों की चरण-धूलि में स्नान करने से अनेकों ही सुख प्राप्त होते हैं।॥ २॥२॥१५॥


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