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ਪੰਚ ਸਿੰਘ ਰਾਖੇ ਪ੍ਰਭਿ ਮਾਰਿ ॥
काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार रूपी पाँच शेरों को प्रभु ने मार दिया है,
ਦਸ ਬਿਘਿਆੜੀ ਲਈ ਨਿਵਾਰਿ ॥
दस इन्द्रिय रूपी बघियाड़ों का भी अंत कर दिया है,
ਤੀਨਿ ਆਵਰਤ ਕੀ ਚੂਕੀ ਘੇਰ ॥
माया के रज, तम एवं सत इन तीन गुणों की भूलभुलैया भी खत्म हो गई है और
ਸਾਧਸੰਗਿ ਚੂਕੇ ਭੈ ਫੇਰ ॥੧॥
साधुओं की संगति से जन्म-मरण के चक्र का भय समाप्त हो गया है॥ १॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਜੀਵਾ ਗੋਵਿੰਦ ॥
मैं तो गोविंद का स्मरण करके ही जीवन पा रहा हूँ।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਰਾਖਿਓ ਦਾਸੁ ਅਪਨਾ ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਾਚਾ ਬਖਸਿੰਦ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सच्चा प्रभु सर्वदा क्षमावान् है, उसने कृपा करके अपने दास की रक्षा की है॥ १॥ रहाउ॥
ਦਾਝਿ ਗਏ ਤ੍ਰਿਣ ਪਾਪ ਸੁਮੇਰ ॥
पापों का सुमेर पर्वत घास के तिनकों की तरह जलकर राख हो गया है।
ਜਪਿ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਪੂਜੇ ਪ੍ਰਭ ਪੈਰ ॥
मैं नाम जप-जपकर प्रभु के चरणों की पूजा कर रहा हूँ।
ਅਨਦ ਰੂਪ ਪ੍ਰਗਟਿਓ ਸਭ ਥਾਨਿ ॥
आनंदरूप प्रभु सब स्थानों में प्रगट हो गया है और
ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਜੋਰੀ ਸੁਖ ਮਾਨਿ ॥੨॥
प्रेम-भक्ति में ध्यान लगाने से सुख उपलब्ध हो गया है।२॥
ਸਾਗਰੁ ਤਰਿਓ ਬਾਛਰ ਖੋਜ ॥
मैं संसार-सागर से ऐसे तैर गया हूँ, जैसे सागर पानी से भरे हुए बछड़े के पैर का चिन्ह था।
ਖੇਦੁ ਨ ਪਾਇਓ ਨਹ ਫੁਨਿ ਰੋਜ ॥
अंब मुझे कोई दुख एवं चिंता नहीं है।
ਸਿੰਧੁ ਸਮਾਇਓ ਘਟੁਕੇ ਮਾਹਿ ॥
ईश्वर रूपी समुद्र मेरे हृदय रूपी घड़े में समा गया है।
ਕਰਣਹਾਰ ਕਉ ਕਿਛੁ ਅਚਰਜੁ ਨਾਹਿ ॥੩॥
उस करने वाले परमेश्वर के लिए यह कोई अद्भुत बात नहीं है॥ ३॥
ਜਉ ਛੂਟਉ ਤਉ ਜਾਇ ਪਇਆਲ ॥
यदि मुझसे परमात्मा का आंचल छूटता है तो पाताल में जा गिरता हूँ,"
ਜਉ ਕਾਢਿਓ ਤਉ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲ ॥
परन्तु जब वह मुझे बाहर निकाल लेता है तो उसकी करुणा-दृष्टि से आनंदित हो जाता हूँ।
ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਹਮਰੈ ਵਸਿ ਨਾਹਿ ॥
पाप-पुण्य कर्म हमारे वश में नहीं है।
ਰਸਕਿ ਰਸਕਿ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਹਿ ॥੪॥੪੦॥੫੧॥
हे नानक ! खूब मज़ा ले लेकर ईश्वर के ही गुण गा रहा हूँ॥ ४॥ ४०॥ ५१॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਨਾ ਤਨੁ ਤੇਰਾ ਨਾ ਮਨੁ ਤੋਹਿ ॥
हे प्राणी ! न यह शरीर तेरा है और न ही मन तेरे वश में है।
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਬਿਆਪਿਆ ਧੋਹਿ ॥
तू मोह-माया के कारण धोखे में फँसा हुआ है।
ਕੁਦਮ ਕਰੈ ਗਾਡਰ ਜਿਉ ਛੇਲ ॥
तू भेड़ के मेमने की तरह खेलता कूदता है और
ਅਚਿੰਤੁ ਜਾਲੁ ਕਾਲੁ ਚਕ੍ਰੁ ਪੇਲ ॥੧॥
अचानक ही मृत्यु के जाल में फँस जाता है॥ १॥
ਹਰਿ ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਰਨਾਇ ਮਨਾ ॥
हे मन ! प्रभु चरणों की शरण ग्रहण करो,
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵਹਿ ਸਾਚੁ ਧਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राम नाम का जाप करो जो तेरा साथी एवं सहायक है, गुरुमुख ही नाम रूपी धन प्राप्त करता है॥ १॥ रहाउ॥
ਊਨੇ ਕਾਜ ਨ ਹੋਵਤ ਪੂਰੇ ॥
इन्सान के अधूरे कार्य पूरे नहीं होते,
ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਮਦਿ ਸਦ ਹੀ ਝੂਰੇ ॥
वह काम, क्रोध के नशे में सदैव परेशान होता है।
ਕਰੈ ਬਿਕਾਰ ਜੀਅਰੇ ਕੈ ਤਾਈ ॥
तू अपने मन के लिए अनेक पाप करता रहता है,"
ਗਾਫਲ ਸੰਗਿ ਨ ਤਸੂਆ ਜਾਈ ॥੨॥
परन्तु, हे गाफिल ! तेरे साथ कुछ भी नहीं जाने वाला।॥२॥
ਧਰਤ ਧੋਹ ਅਨਿਕ ਛਲ ਜਾਨੈ ॥
तू लोगों के साथ बड़ा छल-कपट एवं अनेक प्रकार के धोखे करता है।
ਕਉਡੀ ਕਉਡੀ ਕਉ ਖਾਕੁ ਸਿਰਿ ਛਾਨੈ ॥
कौड़ी-कौड़ी के लिए तू अपने सिर पर बदनामी की खाक डलवाता रहता है।
ਜਿਨਿ ਦੀਆ ਤਿਸੈ ਨ ਚੇਤੈ ਮੂਲਿ ॥
जिस परमेश्वर ने अमूल्य जीवन दिया है, उसे तू बिल्कुल याद नहीं करता।
ਮਿਥਿਆ ਲੋਭੁ ਨ ਉਤਰੈ ਸੂਲੁ ॥੩॥
झूठे लोभ के कारण तेरी पीड़ा दूर नहीं होती॥ ३॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਜਬ ਭਏ ਦਇਆਲ ॥
जब परब्रह्म दयालु हो जाता है तो
ਇਹੁ ਮਨੁ ਹੋਆ ਸਾਧ ਰਵਾਲ ॥
यह मन साधुओं की चरण-धूलि बन जाता है।
ਹਸਤ ਕਮਲ ਲੜਿ ਲੀਨੋ ਲਾਇ ॥
हे नानक ! ईश्वर जब सुन्दर हाथों से अपने संग मिला लेता है
ਨਾਨਕ ਸਾਚੈ ਸਾਚਿ ਸਮਾਇ ॥੪॥੪੧॥੫੨॥
तो जीव परम सत्य में ही विलीन हो जाता है॥ ४॥ ४१ ॥ ५२ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਕੀ ਸਰਣਾਇ ॥
जो भी राम की शरण में आया है,
ਨਿਰਭਉ ਭਏ ਗੋਬਿੰਦ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ਸਾਧਸੰਗਿ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
वह उसका गुणगान करके निर्भय हो गया है, साधुओं की संगति करने से हर प्रकार के दुख दूर हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾ ਕੈ ਰਾਮੁ ਬਸੈ ਮਨ ਮਾਹੀ ॥
जिसके मन में राम स्थित हो जाता है,
ਸੋ ਜਨੁ ਦੁਤਰੁ ਪੇਖਤ ਨਾਹੀ ॥
उसे मुश्किल से तैरने वाला संसार-सागर दिखाई नहीं देता।
ਸਗਲੇ ਕਾਜ ਸਵਾਰੇ ਅਪਨੇ ॥
उसके सभी कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं,"
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਰਸਨ ਨਿਤ ਜਪਨੇ ॥੧॥
जो अपनी जिहा से नित्य हरि-नाम का जाप करता है ।१॥
ਜਿਸ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਹਾਥੁ ਗੁਰੁ ਧਰੈ ॥
जिसके मस्तक पर गुरु अपना (आशीर्वाद का) हाथ रख देता है,
ਸੋ ਦਾਸੁ ਅਦੇਸਾ ਕਾਹੇ ਕਰੈ ॥
उस दास को किसी बात की चिंता नहीं रहती।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਕੀ ਚੂਕੀ ਕਾਣਿ ॥
उसकी जन्म-मरण की चिंता समाप्त हो जाती है और
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਊਪਰਿ ਕੁਰਬਾਣ ॥੨॥
वह पूर्ण गुरु पर कुर्बान जाता है।२॥
ਗੁਰੁ ਪਰਮੇਸਰੁ ਭੇਟਿ ਨਿਹਾਲ ॥
गुरु-परमेश्वर से मिलकर मन निहाल हो जाता है।
ਸੋ ਦਰਸਨੁ ਪਾਏ ਜਿਸੁ ਹੋਇ ਦਇਆਲੁ ॥
उसके दर्शन वही प्राप्त करता है, जिस पर वह दयालु होता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਜਿਸੁ ਕਿਰਪਾ ਕਰੈ ॥
परब्रह्म जिस पर अपनी कृपा करता है,
ਸਾਧਸੰਗਿ ਸੋ ਭਵਜਲੁ ਤਰੈ ॥੩॥
वह साधुओं की संगति करके भवसागर से तैर जाता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵਹੁ ਸਾਧ ਪਿਆਰੇ ॥
प्यारे साधुजनों नामामृतक पान करो
ਮੁਖ ਊਜਲ ਸਾਚੈ ਦਰਬਾਰੇ ॥
सत्य के दरबार में मुख उज्जवल हो जाएगा।
ਅਨਦ ਕਰਹੁ ਤਜਿ ਸਗਲ ਬਿਕਾਰ ॥
सब विषय-विकारों को त्यागकर आनंद करो।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਜਪਿ ਉਤਰਹੁ ਪਾਰਿ ॥੪॥੪੨॥੫੩॥
हे नानक ! भगवान का नाम-जपकर संसार-सागर से पार हो जाओ ॥ ४॥ ४२॥ ५३॥