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ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਈੰਧਨ ਤੇ ਬੈਸੰਤਰੁ ਭਾਗੈ ॥
परमेश्वर की लीला इतनी विचित्र है कि यदि उसकी मर्जी हो तो अग्नि भी लकड़ी को जलाना छोड़ देती है।
ਮਾਟੀ ਕਉ ਜਲੁ ਦਹ ਦਿਸ ਤਿਆਗੈ ॥
जल मिट्टी को स्वयं में घोल लेता है, पर जल मिट्टी को घोलने की जगह दसों दिशाओं से त्याग देता है अर्थात् पृथ्वी समुद्र में बसती है किन्तु समुद्र इसे स्वयं में डुबोता नहीं।
ਊਪਰਿ ਚਰਨ ਤਲੈ ਆਕਾਸੁ ॥
माता के गर्भ में बालक के पैर ऊपर होते हैं और सिर नीचे होता है।
ਘਟ ਮਹਿ ਸਿੰਧੁ ਕੀਓ ਪਰਗਾਸੁ ॥੧॥
घट में प्रकाश रूपी सिन्धु समाया हुआ है॥ १॥
ਐਸਾ ਸੰਮ੍ਰਥੁ ਹਰਿ ਜੀਉ ਆਪਿ ॥
परमेश्वर सर्वकला समर्थ है,
ਨਿਮਖ ਨ ਬਿਸਰੈ ਜੀਅ ਭਗਤਨ ਕੈ ਆਠ ਪਹਰ ਮਨ ਤਾ ਕਉ ਜਾਪਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भक्तों को एक पल भी अपने दिल से वह नहीं भूलता, मन में आठों प्रहर उसका जाप करना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਮਾਖਨੁ ਪਾਛੈ ਦੂਧੁ ॥
सर्वप्रथम परमात्मा रूपी माखन था और तदुपरांत जगत् रूपी दूध पैदा हुआ है।
ਮੈਲੂ ਕੀਨੋ ਸਾਬੁਨੁ ਸੂਧੁ ॥
बालक के पीने के लिए माता के स्तनों के रक्त ने साबुन जैसा सफेद शुद्ध दूध पैदा किया है।
ਭੈ ਤੇ ਨਿਰਭਉ ਡਰਤਾ ਫਿਰੈ ॥
परमात्मा का अंश जीवात्मा निडर है किन्तु मृत्यु से डरता है।
ਹੋਂਦੀ ਕਉ ਅਣਹੋਂਦੀ ਹਿਰੈ ॥੨॥
होनी को अनहोनी ले जाती है॥ २॥
ਦੇਹੀ ਗੁਪਤ ਬਿਦੇਹੀ ਦੀਸੈ ॥
मनुष्य के शरीर में रहने वाली आत्मा गुप्त है, पर शरीर ही नजर आता है।
ਸਗਲੇ ਸਾਜਿ ਕਰਤ ਜਗਦੀਸੈ ॥
सब को बनाकर जगदीश्वर लीला करता रहता है।
ਠਗਣਹਾਰ ਅਣਠਗਦਾ ਠਾਗੈ ॥
छलने वाली माया न छले जाने वाले जीव को छल लेती हैं।
ਬਿਨੁ ਵਖਰ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਉਠਿ ਲਾਗੈ ॥੩॥
नाम रूपी धन के बिना जीव बार-बार जन्म-मरण के चक्र में पड़ता है। ३॥
ਸੰਤ ਸਭਾ ਮਿਲਿ ਕਰਹੁ ਬਖਿਆਣ ॥
चाहे संतों की सभा में मिलकर
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਬੇਦ ਪੁਰਾਣ ॥
स्मृतियाँ, शास्त्र एवं वेद-पुराणों का बखान करके देख लो।
ਬ੍ਰਹਮ ਬੀਚਾਰੁ ਬੀਚਾਰੇ ਕੋਇ ॥
जो ब्रह्म की महिमा का विचार करता है,
ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੀ ਪਰਮ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥੪॥੪੩॥੫੪॥
हे नानक ! उसकी परमगति हो जाती है।॥ ४ ॥ ४३॥ ५४ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥੀਆ ॥
जो ईश्वर को उपयुक्त लगा है, वही हुआ है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਹਰਿ ਕੀ ਸਰਣਾਈ ਪ੍ਰਭ ਬਿਨੁ ਨਾਹੀ ਆਨ ਬੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सदैव भगवान की शरण ग्रहण करो, उसके अतिरिक्त अन्य कोई नहीं है॥ १॥ रहाउ॥
ਪੁਤੁ ਕਲਤ੍ਰੁ ਲਖਿਮੀ ਦੀਸੈ ਇਨ ਮਹਿ ਕਿਛੂ ਨ ਸੰਗਿ ਲੀਆ ॥
पुत्र, स्त्री एवं लक्ष्मी जो कुछ नजर आता है, इन में से कुछ भी जीव अपने साथ नहीं लेकर गया।
ਬਿਖੈ ਠਗਉਰੀ ਖਾਇ ਭੁਲਾਨਾ ਮਾਇਆ ਮੰਦਰੁ ਤਿਆਗਿ ਗਇਆ ॥੧॥
माया रूपी ठग बूटी को खाकर जीव भूला हुआ है, लेकिन अन्त में माया एवं घर इत्यादि सबकुछ त्याग वह चला जाता है॥ १॥
ਨਿੰਦਾ ਕਰਿ ਕਰਿ ਬਹੁਤੁ ਵਿਗੂਤਾ ਗਰਭ ਜੋਨਿ ਮਹਿ ਕਿਰਤਿ ਪਇਆ ॥
दूसरों की निंदा कर करके जीव बहुत दुखी हुआ है एवं अपने कर्मों के अनुसार गर्भ योनियों में पड़ता रहा है।
ਪੁਰਬ ਕਮਾਣੇ ਛੋਡਹਿ ਨਾਹੀ ਜਮਦੂਤਿ ਗ੍ਰਾਸਿਓ ਮਹਾ ਭਇਆ ॥੨॥
पूर्व जन्म में किए कर्म जीव का साथ नहीं छोड़ते और भयानक यमदूत उसे अपना ग्रास बना लेते हैं।॥ २॥
ਬੋਲੈ ਝੂਠੁ ਕਮਾਵੈ ਅਵਰਾ ਤ੍ਰਿਸਨ ਨ ਬੂਝੈ ਬਹੁਤੁ ਹਇਆ ॥
मनुष्य झूठ बोलता है, वह बताता कुछ और है और करता कुछ अन्य है, यह बड़ी शर्म की बात है कि उसकी तृष्णा नहीं बुझती।
ਅਸਾਧ ਰੋਗੁ ਉਪਜਿਆ ਸੰਤ ਦੂਖਨਿ ਦੇਹ ਬਿਨਾਸੀ ਮਹਾ ਖਇਆ ॥੩॥
संतों पर झूठे दोष लगाने से उसके शरीर में असाध्य रोग पैदा हो जाता है, जिससे उसका शरीर नष्ट हो जाता है॥ ३ ॥
ਜਿਨਹਿ ਨਿਵਾਜੇ ਤਿਨ ਹੀ ਸਾਜੇ ਆਪੇ ਕੀਨੇ ਸੰਤ ਜਇਆ ॥
जिस परमात्मा ने संतों को यश प्रदान किया है, उसने ही उन्हें पैदा किया है और स्वयं ही संतों की जय-जयकार करवाई है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਕੰਠਿ ਲਾਇ ਰਾਖੇ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਮਇਆ ॥੪॥੪੪॥੫੫॥
हे नानक ! परब्रह्म ने अपनी कृपा करके संतों को गले से लगाकर रखा हुआ है॥ ४॥ ४४॥ ५५॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਐਸਾ ਪੂਰਾ ਗੁਰਦੇਉ ਸਹਾਈ ॥
मेरा पूर्ण गुरुदेव ऐसा सहायक है,
ਜਾ ਕਾ ਸਿਮਰਨੁ ਬਿਰਥਾ ਨ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिसका सिमरन कभी व्यर्थ नहीं जाता ॥ १॥ रहाउ ॥
ਦਰਸਨੁ ਪੇਖਤ ਹੋਇ ਨਿਹਾਲੁ ॥
उसके दर्शन करने से मन निहाल हो जाता है,
ਜਾ ਕੀ ਧੂਰਿ ਕਾਟੈ ਜਮ ਜਾਲੁ ॥
उसकी चरण-धूलि मृत्यु का जाल काट देती है।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਬਸੇ ਮੇਰੇ ਮਨ ਕੇ ॥
उसके चरण-कमल मेरे मन में बसे हुए हैं,
ਕਾਰਜ ਸਵਾਰੇ ਸਗਲੇ ਤਨ ਕੇ ॥੧॥
उसने मेरे तन के सभी कार्य संवार दिए हैं।॥ १॥
ਜਾ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਰਾਖੈ ਹਾਥੁ ॥
जिसके मस्तक पर मेरा प्रभु हाथ रख देता है,
ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰੋ ਅਨਾਥ ਕੋ ਨਾਥੁ ॥
वह अनाथ भी सनाथ बन जाता है।
ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਣੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਨਿਧਾਨੁ ॥
वह पतितों का उद्धार करने वाला एवं कृपा का भण्डार है,
ਸਦਾ ਸਦਾ ਜਾਈਐ ਕੁਰਬਾਨੁ ॥੨॥
इसलिए सदैव उस पर कुर्बान जाना चाहिए॥ २॥
ਨਿਰਮਲ ਮੰਤੁ ਦੇਇ ਜਿਸੁ ਦਾਨੁ ॥
वह जिसे निर्मल नाम मंत्र का दान देता है,
ਤਜਹਿ ਬਿਕਾਰ ਬਿਨਸੈ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
उसका अभिमान नष्ट हो जाता है और वह विकारो को त्याग देता है।
ਏਕੁ ਧਿਆਈਐ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਿ ॥
साधुओं की संगति में केवल परमात्मा का ही ध्यान करना चाहिए।
ਪਾਪ ਬਿਨਾਸੇ ਨਾਮ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥੩॥
नाम के रंग से सब पापों का नाश हो जाता है॥ ३॥
ਗੁਰ ਪਰਮੇਸੁਰ ਸਗਲ ਨਿਵਾਸ ॥
सब जीवों में गुरु-परमेश्वर का ही निवास है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਗੁਣਤਾਸ ॥
वह गुणों का भण्डार घट-घट में व्यापक है।
ਦਰਸੁ ਦੇਹਿ ਧਾਰਉ ਪ੍ਰਭ ਆਸ ॥
हे प्रभु ! तेरी ही आशा है, अपने दर्शन दीजिए।
ਨਿਤ ਨਾਨਕੁ ਚਿਤਵੈ ਸਚੁ ਅਰਦਾਸਿ ॥੪॥੪੫॥੫੬॥
मेरी यही सच्ची प्रार्थना है कि नानक नित्य तुझे स्मरण करता रहे॥ ४॥ ४५॥ ५६॥