Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 815

Page 815

ਨਾਨਕ ਕਉ ਕਿਰਪਾ ਭਈ ਦਾਸੁ ਅਪਨਾ ਕੀਨੁ ॥੪॥੨੫॥੫੫॥ नानक कउ किरपा भई दासु अपना कीनु ॥४॥२५॥५५॥ लेकिन दास नानक पर प्रभु की कृपा हो गई है और उन्होंने उन्हें अपना दास बना लिया है ॥४॥२५॥५५॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਹਰਿ ਭਗਤਾ ਕਾ ਆਸਰਾ ਅਨ ਨਾਹੀ ਠਾਉ ॥ हरि भगता का आसरा अन नाही ठाउ ॥ परमात्मा ही भक्तों का सहारा है, उनके लिए अन्य कोई ठिकाना नहीं।
ਤਾਣੁ ਦੀਬਾਣੁ ਪਰਵਾਰ ਧਨੁ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰਾ ਨਾਉ ॥੧॥ ताणु दीबाणु परवार धनु प्रभ तेरा नाउ ॥१॥ हे प्रभु ! आपका नाम ही उनका बल, दीवान, परिवार एवं धन है॥ १॥
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਆਪਣੀ ਅਪਨੇ ਦਾਸ ਰਖਿ ਲੀਏ ॥ करि किरपा प्रभि आपणी अपने दास रखि लीए ॥ प्रभु ने कृपा करके सदा अपने भक्तों की रक्षा की है।
ਨਿੰਦਕ ਨਿੰਦਾ ਕਰਿ ਪਚੇ ਜਮਕਾਲਿ ਗ੍ਰਸੀਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ निंदक निंदा करि पचे जमकालि ग्रसीए ॥१॥ रहाउ ॥ जो निंदक भगवान् के भक्तों की निंदा कर रहे थे और उन्हें काल रूपी यम ने अपना ग्रास बना लिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਤਾ ਏਕੁ ਧਿਆਵਨਾ ਦੂਸਰ ਕੋ ਨਾਹਿ ॥ संता एकु धिआवना दूसर को नाहि ॥ संत सदैव परमात्मा के ध्यान-मनन में लीन रहते हैं तथा उनके लिए अन्य कोई नहीं।
ਏਕਸੁ ਆਗੈ ਬੇਨਤੀ ਰਵਿਆ ਸ੍ਰਬ ਥਾਇ ॥੨॥ एकसु आगै बेनती रविआ स्रब थाइ ॥२॥ उनकी प्रार्थना केवल उस ईश्वर के समक्ष होती है, जो सर्वत्र विद्यमान है॥ २॥
ਕਥਾ ਪੁਰਾਤਨ ਇਉ ਸੁਣੀ ਭਗਤਨ ਕੀ ਬਾਨੀ ॥ कथा पुरातन इउ सुणी भगतन की बानी ॥ भक्तों के मुख से शाश्वत सत्य का उद्घाटन हो रहा है।
ਸਗਲ ਦੁਸਟ ਖੰਡ ਖੰਡ ਕੀਏ ਜਨ ਲੀਏ ਮਾਨੀ ॥੩॥ सगल दुसट खंड खंड कीए जन लीए मानी ॥३॥ प्रभु ने सब दुष्टों को मार कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया है और अपने भक्तजनों को सम्मान दिया है॥ ३॥
ਸਤਿ ਬਚਨ ਨਾਨਕੁ ਕਹੈ ਪਰਗਟ ਸਭ ਮਾਹਿ ॥ सति बचन नानकु कहै परगट सभ माहि ॥ नानक सत्य वचन कहते हैं जो सारी दुनिया में लोकप्रिय हो गया है कि
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਸਰਣਿ ਪ੍ਰਭ ਤਿਨ ਕਉ ਭਉ ਨਾਹਿ ॥੪॥੨੬॥੫੬॥ प्रभ के सेवक सरणि प्रभ तिन कउ भउ नाहि ॥४॥२६॥५६॥ प्रभु के सेवक प्रभु की की शरण में ही रहते हैं और उन्हें किसी प्रकार का कोई भय नहीं ॥ ४॥ २६ ॥ ५६ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਬੰਧਨ ਕਾਟੈ ਸੋ ਪ੍ਰਭੂ ਜਾ ਕੈ ਕਲ ਹਾਥ ॥ बंधन काटै सो प्रभू जा कै कल हाथ ॥ जिस प्रभु के हाथ में सर्व शक्तियाँ हैं, वह समस्त बन्धन काट देते है।
ਅਵਰ ਕਰਮ ਨਹੀ ਛੂਟੀਐ ਰਾਖਹੁ ਹਰਿ ਨਾਥ ॥੧॥ अवर करम नही छूटीऐ राखहु हरि नाथ ॥१॥ हे नाथ ! हमारी रक्षा करो, क्योंकि अन्य धर्म-कर्म द्वारा हम छूट नहीं सकते ॥ १॥
ਤਉ ਸਰਣਾਗਤਿ ਮਾਧਵੇ ਪੂਰਨ ਦਇਆਲ ॥ तउ सरणागति माधवे पूरन दइआल ॥ हे ईश्वर ! आप पूर्ण दयालु है, अतः मैं आपकी शरण में ही आया हूँ,
ਛੂਟਿ ਜਾਇ ਸੰਸਾਰ ਤੇ ਰਾਖੈ ਗੋਪਾਲ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ छूटि जाइ संसार ते राखै गोपाल ॥१॥ रहाउ ॥ जिसकी आप रक्षा करते हैं, वह संसार की उलझनों से मुक्त हो जाता है॥ १॥ रहाउ॥
ਆਸਾ ਭਰਮ ਬਿਕਾਰ ਮੋਹ ਇਨ ਮਹਿ ਲੋਭਾਨਾ ॥ आसा भरम बिकार मोह इन महि लोभाना ॥ जीव तो आशा, भ्रम, विकारों एवं मोह में फँसा रहता है।
ਝੂਠੁ ਸਮਗ੍ਰੀ ਮਨਿ ਵਸੀ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਨ ਜਾਨਾ ॥੨॥ झूठु समग्री मनि वसी पारब्रहमु न जाना ॥२॥ जिसके मन में मिथ्या सांसारिक पदार्थों, विशेषतः धन की आसक्ति बसी होती है, वह परमात्मा की सच्ची अनुभूति नहीं कर पाता। ॥ २॥
ਪਰਮ ਜੋਤਿ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖ ਸਭਿ ਜੀਅ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੇ ॥ परम जोति पूरन पुरख सभि जीअ तुम्हारे ॥ हे ज्योति स्वरूप, सर्वगुण संपन्न परमेश्वर ! सभी जीव आपके ही हैं।
ਜਿਉ ਤੂ ਰਾਖਹਿ ਤਿਉ ਰਹਾ ਪ੍ਰਭ ਅਗਮ ਅਪਾਰੇ ॥੩॥ जिउ तू राखहि तिउ रहा प्रभ अगम अपारे ॥३॥ हे अगम्य, अपार प्रभु ! जैसे आप रखते है, वैसे ही मैं रहता हूँ॥ ३॥
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥ ਪ੍ਰਭ ਦੇਹਿ ਅਪਨਾ ਨਾਉ ॥ करण कारण समरथ प्रभ देहि अपना नाउ ॥ हे प्रभु ! आप करने-करवाने में समर्थ है, मुझे अपने नाम का आर्शीवाद दीजिए।
ਨਾਨਕ ਤਰੀਐ ਸਾਧਸੰਗਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥੪॥੨੭॥੫੭॥ नानक तरीऐ साधसंगि हरि हरि गुण गाउ ॥४॥२७॥५७॥ हे नानक ! साधु-संगति में परमात्मा का यशोगान करने से संसार-सागर से पार हुआ जा सकता है॥ ४॥ २७॥ ५७॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु: ५ ॥
ਕਵਨੁ ਕਵਨੁ ਨਹੀ ਪਤਰਿਆ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੀ ਪਰਤੀਤਿ ॥ कवनु कवनु नही पतरिआ तुम्हरी परतीति ॥ हे मन ! तुझ पर भरोसा करके किस-किस ने धोखा नहीं खाया ?
ਮਹਾ ਮੋਹਨੀ ਮੋਹਿਆ ਨਰਕ ਕੀ ਰੀਤਿ ॥੧॥ महा मोहनी मोहिआ नरक की रीति ॥१॥ महामोहिनी माया ने तुझे मुग्ध किया हुआ है, लेकिन यह तो नरक में जाने का राह है।१॥
ਮਨ ਖੁਟਹਰ ਤੇਰਾ ਨਹੀ ਬਿਸਾਸੁ ਤੂ ਮਹਾ ਉਦਮਾਦਾ ॥ मन खुटहर तेरा नही बिसासु तू महा उदमादा ॥ हे खोटे मन ! तुम विश्वास के योग्य नहीं हो, क्योंकि तुम्हारा समस्त चित्त सांसारिक धन और शक्ति में आकंठ डूबा है।
ਖਰ ਕਾ ਪੈਖਰੁ ਤਉ ਛੁਟੈ ਜਉ ਊਪਰਿ ਲਾਦਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ खर का पैखरु तउ छुटै जउ ऊपरि लादा ॥१॥ रहाउ ॥ जैसे गधे के पैर तभी खुलते हैं जब उस पर बोझ लादा जाए, वैसे ही हे मन! तुझे भी बुरे कर्मों में प्रवृत्त होने से रोकने के लिए भगवान् के नाम का ध्यान और अनुशासन आवश्यक है। ।१॥ रहाउ॥
ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਖੰਡੇ ਜਮ ਕੇ ਦੁਖ ਡਾਂਡ ॥ जप तप संजम तुम्ह खंडे जम के दुख डांड ॥ तूने जप, तप एवं संयम सब नाश कर दिए हैं इसीलिए तू यम के दण्ड का दुःख भोग रहा है।
ਸਿਮਰਹਿ ਨਾਹੀ ਜੋਨਿ ਦੁਖ ਨਿਰਲਜੇ ਭਾਂਡ ॥੨॥ सिमरहि नाही जोनि दुख निरलजे भांड ॥२॥ हे निर्लज्ज मूर्ख ! तू भगवान् का सिमरन नहीं करता, इसलिए योनियों के दुःख भोग रहा है॥ २॥
ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਮਹਾ ਮੀਤੁ ਤਿਸ ਸਿਉ ਤੇਰਾ ਭੇਦੁ ॥ हरि संगि सहाई महा मीतु तिस सिउ तेरा भेदु ॥ भगवान् ही तेरे साथी, हमदर्द एवं घनिष्ठ मित्र है परन्तु तेरा उसके साथ मतभेद है।
ਬੀਧਾ ਪੰਚ ਬਟਵਾਰਈ ਉਪਜਿਓ ਮਹਾ ਖੇਦੁ ॥੩॥ बीधा पंच बटवारई उपजिओ महा खेदु ॥३॥ कामादिक पाँचों लुटेरों ने तुझे लूटकर अपने वश में कर लिया है, जिस कारण तेरे मन में भारी दुःख पैदा हो गया है॥ ३॥
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਸੰਤਨ ਸਰਣਾਗਤੀ ਜਿਨ ਮਨੁ ਵਸਿ ਕੀਨਾ ॥ नानक तिन संतन सरणागती जिन मनु वसि कीना ॥ हे नानक ! मैं उन संतजनों की शरण में हूँ, जिन्होंने अपने मन को वश में कर लिया है।
ਤਨੁ ਧਨੁ ਸਰਬਸੁ ਆਪਣਾ ਪ੍ਰਭਿ ਜਨ ਕਉ ਦੀਨ੍ਹ੍ਹਾ ॥੪॥੨੮॥੫੮॥ तनु धनु सरबसु आपणा प्रभि जन कउ दीन्हा ॥४॥२८॥५८॥ मैंने अपना तन-धन सर्वस्व प्रभु के संतजनों को अर्पण कर दिया है ॥४॥२८॥५८॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥ राग बिलावल, पाँचवें गुरु:५ ॥
ਉਦਮੁ ਕਰਤ ਆਨਦੁ ਭਇਆ ਸਿਮਰਤ ਸੁਖ ਸਾਰੁ ॥ उदमु करत आनदु भइआ सिमरत सुख सारु ॥ भक्ति का उद्यम करने से आनंद हो गया है एवं नाम सिमरन से सुख ही सुख उपलब्ध हो गए है।
ਜਪਿ ਜਪਿ ਨਾਮੁ ਗੋਬਿੰਦ ਕਾ ਪੂਰਨ ਬੀਚਾਰੁ ॥੧॥ जपि जपि नामु गोबिंद का पूरन बीचारु ॥१॥ पूर्ण विचार यही है कि गोविंद का नाम जपते रहो ॥ १॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰ ਕੇ ਜਪਤ ਹਰਿ ਜਪਿ ਹਉ ਜੀਵਾ ॥ चरन कमल गुर के जपत हरि जपि हउ जीवा ॥ गुरु की उत्कृष्ट शिक्षाओं पर मनन करने और प्रेमभरी भक्ति के साथ भगवान् का स्मरण करने से मेरा अंतःकरण आध्यात्मिक रूप से आनंदित और जीवित हो उठता है।
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਆਰਾਧਤੇ ਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ पारब्रहमु आराधते मुखि अम्रितु पीवा ॥१॥ रहाउ ॥ पारब्रह्म की आराधना कर अपने मुँह द्वारा नामामृत पी रहा हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਸੁਖਿ ਬਸੇ ਸਭ ਕੈ ਮਨਿ ਲੋਚ ॥ जीअ जंत सभि सुखि बसे सभ कै मनि लोच ॥ सभी जीव-जन्तु सुखी बस रहे हैं और सभी के मन में प्रभु को पाने की तीव्र लालसा बनी हुई है।
ਪਰਉਪਕਾਰੁ ਨਿਤ ਚਿਤਵਤੇ ਨਾਹੀ ਕਛੁ ਪੋਚ ॥੨॥ परउपकारु नित चितवते नाही कछु पोच ॥२॥ वे नित्य परोपकार करने के बारे में सोचते रहते हैं और किसी का बुरा नहीं चाहते ॥ २ ॥


© 2025 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top