Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 804

Page 804

ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਮਨੁ ਲੀਨਾ ॥ मेरा मन काम, क्रोध, लोभ, मोह में लीन रहता था,
ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਮੁਕਤਿ ਗੁਰਿ ਕੀਨਾ ॥੨॥ मगर गुरु ने मेरे सारे बन्धन काटकर मुझे मुक्त कर दिया है॥ २॥
ਦੁਖ ਸੁਖ ਕਰਤ ਜਨਮਿ ਫੁਨਿ ਮੂਆ ॥ दुख एवं सुख भोगता हुआ मैं कभी जन्म ले रहा था और कभी पुनः मृत्यु को प्राप्त हो रहा था।
ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰਿ ਆਸ੍ਰਮੁ ਦੀਆ ॥੩॥ किन्तु गुरु ने मुझे अपने चरण कमल में आश्रय दे दिया है॥ ३॥
ਅਗਨਿ ਸਾਗਰ ਬੂਡਤ ਸੰਸਾਰਾ ॥ समूचा संसार तृष्णा रूपी अग्नि सागर में डूब रहा है।
ਨਾਨਕ ਬਾਹ ਪਕਰਿ ਸਤਿਗੁਰਿ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥੪॥੩॥੮॥ हे नानक ! सतगुरु ने मेरी बाँह पकड़ कर मेरा निस्तारा (छुटकारा) कर दिया है॥ ४॥ ३ ॥ ८ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥
ਤਨੁ ਮਨੁ ਧਨੁ ਅਰਪਉ ਸਭੁ ਅਪਨਾ ॥ मैं अपना तन, मन एवं धन इत्यादि सबकुछ अर्पण कर दूँगा।
ਕਵਨ ਸੁ ਮਤਿ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਨਾ ॥੧॥ वह कौन-सी सुमति है, जिससे मैं हरि का जाप करता रहूँ॥ १॥
ਕਰਿ ਆਸਾ ਆਇਓ ਪ੍ਰਭ ਮਾਗਨਿ ॥ हे प्रभु! मैं बड़ी आशा करके तुझ से माँगने आया हूँ,
ਤੁਮ੍ਹ੍ਹ ਪੇਖਤ ਸੋਭਾ ਮੇਰੈ ਆਗਨਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तुझे देखकर मेरे हृदय रूपी आंगन में शोभा हो जाती है।॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਿਕ ਜੁਗਤਿ ਕਰਿ ਬਹੁਤੁ ਬੀਚਾਰਉ ॥ मैंने अनेक युक्तियों द्वारा बहुत विचार किया है कि
ਸਾਧਸੰਗਿ ਇਸੁ ਮਨਹਿ ਉਧਾਰਉ ॥੨॥ सत्संग में ही इस मन का उद्धार होता है।॥ २॥
ਮਤਿ ਬੁਧਿ ਸੁਰਤਿ ਨਾਹੀ ਚਤੁਰਾਈ ॥ मुझ में कोई मति, बुद्धि,चेतना अथवा चतुराई नहीं है,
ਤਾ ਮਿਲੀਐ ਜਾ ਲਏ ਮਿਲਾਈ ॥੩॥ तू तभी मिल सकता है, यद्यपि तू स्वयं ही मुझे अपने साथ मिला ले॥ ३॥
ਨੈਨ ਸੰਤੋਖੇ ਪ੍ਰਭ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਆ ॥ प्रभु के दर्शन पाकर जिसके नयनों को संतोष हो गया है,
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸਫਲੁ ਸੋ ਆਇਆ ॥੪॥੪॥੯॥ हे नानक ! उस व्यक्ति का दुनिया में आना सफल हो गया है॥ ४ ॥ ४ ॥६ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥
ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਸਾਥਿ ਨ ਮਾਇਆ ॥ माता-पिता, पुत्र एवं धन-दौलत कोई भी साथ देने वाला नहीं है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਸਭੁ ਦੂਖੁ ਮਿਟਾਇਆ ॥੧॥ अतः साधुओं की संगति में सारा दुख मिटा लिया है॥ १॥
ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਸਭ ਮਹਿ ਆਪੇ ॥ प्रभु स्वयं ही सब जीवों में समाया हुआ है।
ਹਰਿ ਜਪੁ ਰਸਨਾ ਦੁਖੁ ਨ ਵਿਆਪੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जीभ से हरि का जाप करने से कोई दुख प्रभावित नहीं करता ॥ १॥ रहाउ॥
ਤਿਖਾ ਭੂਖ ਬਹੁ ਤਪਤਿ ਵਿਆਪਿਆ ॥ तृष्णा एवं भूख की तपस मन को बड़ा जला रही थी लेकिन
ਸੀਤਲ ਭਏ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਜਾਪਿਆ ॥੨॥ भगवान का यशगान करने से मन शीतल हो गया है॥ २ ॥
ਕੋਟਿ ਜਤਨ ਸੰਤੋਖੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ करोड़ों यत्न करने से भी संतोष नहीं मिला,
ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਾਨਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥੩॥ परन्तु भगवान का गुणगान करने से मन तृप्त हो गया है॥ ३॥
ਦੇਹੁ ਭਗਤਿ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥ हे अन्तर्यामी प्रभु! मुझे अपनी भक्ति दीजिए।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਬੇਨੰਤੀ ਸੁਆਮੀ ॥੪॥੫॥੧੦॥ नानक की अपने स्वामी से केवल यही विनती है॥ ४॥ ५॥ १०॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਈਐ ॥ पूर्ण गुरु सौभाग्य से ही मिलता है।
ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥ साधु के साथ मिलकर हरि-नाम का ध्यान करते रहना चाहिए॥ १॥
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੀ ਸਰਨਾ ॥ हे परब्रह्म प्रभु ! तेरी शरण में आया हूँ।
ਕਿਲਬਿਖ ਕਾਟੈ ਭਜੁ ਗੁਰ ਕੇ ਚਰਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ गुरु के चरणों का भजन करने से सारे पाप नाश हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਅਵਰਿ ਕਰਮ ਸਭਿ ਲੋਕਾਚਾਰ ॥ अन्य सभी कर्म केवल लोकाचार ही हैं।
ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਹੋਇ ਉਧਾਰ ॥੨॥ अत:साधु की संगति में मिलकर ही उद्धार होता है।॥ २ ॥
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸਾਸਤ ਬੇਦ ਬੀਚਾਰੇ ॥ मैंने स्मृतियाँ, शास्त्र एवं वेद विचार कर देखे हैं,
ਜਪੀਐ ਨਾਮੁ ਜਿਤੁ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੇ ॥੩॥ लेकिन भगवान् का नाम जपने से ही जीव को मोक्ष मिलता है॥ ३
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਕਰੀਐ ॥ हे प्रभु ! दास नानक पर कृपा कीजिए,
ਸਾਧੂ ਧੂਰਿ ਮਿਲੈ ਨਿਸਤਰੀਐ ॥੪॥੬॥੧੧॥ यदि साधु की चरण-धूलि मिल जाए तो निस्तारा हो जाए॥ ४॥ ६॥ ११॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਰਿਦੇ ਮਹਿ ਚੀਨਾ ॥ गुरु का शब्द हृदय में पहचान लिया है,
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰਨ ਆਸੀਨਾ ॥੧॥ इससे मेरे सारे मनोरथ एवं आशाएँ पूरी हो गई हैं।॥ १॥
ਸੰਤ ਜਨਾ ਕਾ ਮੁਖੁ ਊਜਲੁ ਕੀਨਾ ॥ भगवान् ने संतजनों का मुख उज्जवल कर दिया है और
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਅਪੁਨਾ ਨਾਮੁ ਦੀਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ कृपा करके उन्हें अपना नाम दे दिया है॥ १॥ रहाउ॥
ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੀਨਾ ॥ भगवान् ने उनका हाथ पकड़कर उन्हें अज्ञान के अंधकृप में से बाहर निकाल लिया है।
ਜੈ ਜੈ ਕਾਰੁ ਜਗਤਿ ਪ੍ਰਗਟੀਨਾ ॥੨॥ वह सारे जगत् में लोकप्रिय हो गए हैं और सब जगह उनकी जय-जयकार हो रही है॥ २॥
ਨੀਚਾ ਤੇ ਊਚ ਊਨ ਪੂਰੀਨਾ ॥ वह नीचों को ऊँचा कर देता है और गुणविहीन को गुणवान् बना देता है।
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਮਹਾ ਰਸੁ ਲੀਨਾ ॥੩॥ मैंने अमृत नाम का महारस लिया है॥ ३॥
ਮਨ ਤਨ ਨਿਰਮਲ ਪਾਪ ਜਲਿ ਖੀਨਾ ॥ मेरा मन-तन निर्मल हो गया है और सारे पाप जलकर क्षीण हो गए हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਭਏ ਪ੍ਰਸੀਨਾ ॥੪॥੭॥੧੨॥ हे नानक ! प्रभु मुझ पर प्रसन्न हो गया है॥ ४॥ ७ ॥ १२ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥
ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪਾਈਅਹਿ ਮੀਤਾ ॥ हे मेरे मित्र ! तब सारे मनोरथ प्राप्त हो जाते हैं


© 2017 SGGS ONLINE
error: Content is protected !!
Scroll to Top