Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 803

Page 803

ਨਾਨਕ ਸੇ ਦਰਿ ਸੋਭਾਵੰਤੇ ਜੋ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੈ ਕੀਓ ॥੧॥ हे नानक ! प्रभु के द्वार पर वही शोभा के पात्र बनते हैं, जिन्हें उसने अपना बना लिया है॥ १॥
ਹਰਿਚੰਦਉਰੀ ਚਿਤ ਭ੍ਰਮੁ ਸਖੀਏ ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਦ੍ਰੁਮ ਛਾਇਆ ॥ हे सखी ! यह माया राजा हरिचंद्र की नगरी के समान है, मृगतृष्णा है, पेड़ की छाया है और यह मनुष्य के चित्त का भ्रम है।
ਚੰਚਲਿ ਸੰਗਿ ਨ ਚਾਲਤੀ ਸਖੀਏ ਅੰਤਿ ਤਜਿ ਜਾਵਤ ਮਾਇਆ ॥ यह चंचल माया मृत्यु के समय मनुष्य के साथ नहीं जाती तथा अन्तिम क्षणों में साथ छोड़ जाती है।
ਰਸਿ ਭੋਗਣ ਅਤਿ ਰੂਪ ਰਸ ਮਾਤੇ ਇਨ ਸੰਗਿ ਸੂਖੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ रसों के भोग एवं रस-रूप में अत्यंत मस्त होने से कभी सुख उपलब्ध नहीं होता।
ਧੰਨਿ ਧੰਨਿ ਹਰਿ ਸਾਧ ਜਨ ਸਖੀਏ ਨਾਨਕ ਜਿਨੀ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥੨॥ हे सखी ! साधुजन धन्य-धन्य हैं, जिन्होंने भगवन्नाम का ध्यान किया है॥ २॥
ਜਾਇ ਬਸਹੁ ਵਡਭਾਗਣੀ ਸਖੀਏ ਸੰਤਾ ਸੰਗਿ ਸਮਾਈਐ ॥ हे खुशनसीब सखी ! संतों के संग लीन रहना चाहिए, जाकर उनकी संगति में बस जाओ।
ਤਹ ਦੂਖ ਨ ਭੂਖ ਨ ਰੋਗੁ ਬਿਆਪੈ ਚਰਨ ਕਮਲ ਲਿਵ ਲਾਈਐ ॥ वहाँ प्रभु के चरण कमल में वृति लगाई जाती है तथा वहाँ पर कोई दुख, भूख और कोई रोग नहीं लगता।
ਤਹ ਜਨਮ ਨ ਮਰਣੁ ਨ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਨਿਹਚਲੁ ਸਰਣੀ ਪਾਈਐ ॥ वहाँ जन्म मरण एवं आवागमन छूट जाता है और निश्चल शरण प्राप्त हो जाती है।
ਪ੍ਰੇਮ ਬਿਛੋਹੁ ਨ ਮੋਹੁ ਬਿਆਪੈ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਏਕੁ ਧਿਆਈਐ ॥੩॥ हे नानक ! एक ईश्वर का ध्यान करने से प्रेम वियोग व मोह इत्यादि प्रभावित नहीं करते॥ ३ ॥
ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਧਾਰਿ ਮਨੁ ਬੇਧਿਆ ਪਿਆਰੇ ਰਤੜੇ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥ प्रिय-प्रभु ने करुणा-दृष्टि करके मन को भेद दिया है और सहज स्वभाव ही उसमें लीन रहता है।
ਸੇਜ ਸੁਹਾਵੀ ਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਅਨਦ ਮੰਗਲ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥ प्रभु से मिलकर उनकी ह्रदय रूपी सेज सुन्दर हो गई है और वह उसका गुणगान करके आनंद एवं मंगल प्राप्त करता है।
ਸਖੀ ਸਹੇਲੀ ਰਾਮ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਮਨ ਤਨ ਇਛ ਪੁਜਾਏ ॥ सभी सखियाँ एवं सहेलियाँ राम के रंग में मग्न रहती हैं और उसने उनके मन एवं तन की सभी मनोकामनाएँ पूरी कर दी हैं।
ਨਾਨਕ ਅਚਰਜੁ ਅਚਰਜ ਸਿਉ ਮਿਲਿਆ ਕਹਣਾ ਕਛੂ ਨ ਜਾਏ ॥੪॥੨॥੫॥ हे नानक ! जीव की अद्भुत आत्म-ज्योति परमात्मा की अद्भुत ज्योति में विलीन हो गई है और इस बारे अन्य कुछ कहा नहीं जा सकता ॥४॥२॥५॥
ਰਾਗੁ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੪ रागु बिलावलु महला ५ घरु ४
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਏਕ ਰੂਪ ਸਗਲੋ ਪਾਸਾਰਾ ॥ यह समूचा जगत्-प्रसार एक ईश्वर का ही रूप है।
ਆਪੇ ਬਨਜੁ ਆਪਿ ਬਿਉਹਾਰਾ ॥੧॥ वह स्वयं ही वाणिज्य है और स्वयं ही व्यवहार है॥ १ ॥
ਐਸੋ ਗਿਆਨੁ ਬਿਰਲੋ ਈ ਪਾਏ ॥ ऐसा ज्ञान कोई विरला ही प्राप्त करता है।
ਜਤ ਜਤ ਜਾਈਐ ਤਤ ਦ੍ਰਿਸਟਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ जहाँ-जहाँ भी जाते हैं, उधर ही वह नजर आता है ॥१॥ रहाउ ॥
ਅਨਿਕ ਰੰਗ ਨਿਰਗੁਨ ਇਕ ਰੰਗਾ ॥ निर्गुण ईश्वर का एक रंग है किन्तु यह अनेक रंगों वाला बन गया है।
ਆਪੇ ਜਲੁ ਆਪ ਹੀ ਤਰੰਗਾ ॥੨॥ वह स्वयं ही जल है और स्वयं ही तरंग है॥ २ ॥
ਆਪ ਹੀ ਮੰਦਰੁ ਆਪਹਿ ਸੇਵਾ ॥ वह स्वयं ही मन्दिर है और स्वयं ही पूजा-अर्चना व स्तुति है।
ਆਪ ਹੀ ਪੂਜਾਰੀ ਆਪ ਹੀ ਦੇਵਾ ॥੩॥ वह स्वयं ही पुजारी है और स्वयं ही देव है॥ ३॥
ਆਪਹਿ ਜੋਗ ਆਪ ਹੀ ਜੁਗਤਾ ॥ वह स्वयं ही योग-विद्या है और स्वयं ही विधि है।
ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਸਦ ਹੀ ਮੁਕਤਾ ॥੪॥੧॥੬॥ नानक का प्रभु सदैव सब बन्धनों से मुक्त है॥ ४॥ १॥ ६ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ रागु बिलावलु महला ५ ॥
ਆਪਿ ਉਪਾਵਨ ਆਪਿ ਸਧਰਨਾ ॥ ईश्वर स्वयं ही उत्पन्न करने वाला है और स्वयं ही सहारा देने वाला है।
ਆਪਿ ਕਰਾਵਨ ਦੋਸੁ ਨ ਲੈਨਾ ॥੧॥ वह स्वयं ही जीवों से कर्म करवाता है परन्तु इन कर्मों का दोष अपने ऊपर नहीं लेता ॥ १॥
ਆਪਨ ਬਚਨੁ ਆਪ ਹੀ ਕਰਨਾ ॥ वह स्वयं ही वचन देता है और स्वयं ही वचन पूरा करता है।
ਆਪਨ ਬਿਭਉ ਆਪ ਹੀ ਜਰਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ वह स्वयं ही विभूति है और स्वयं ही इसे सहन करता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਆਪ ਹੀ ਮਸਟਿ ਆਪ ਹੀ ਬੁਲਨਾ ॥ वह खुद ही मौनधारी है और खुद ही बोलता है।
ਆਪ ਹੀ ਅਛਲੁ ਨ ਜਾਈ ਛਲਨਾ ॥੨॥ वह छल-रहित है और कोई भी उससे छल नहीं कर सकता ॥ २॥
ਆਪ ਹੀ ਗੁਪਤ ਆਪਿ ਪਰਗਟਨਾ ॥ वह स्वयं ही गुप्त है और स्वयं ही प्रगट है।
ਆਪ ਹੀ ਘਟਿ ਘਟਿ ਆਪਿ ਅਲਿਪਨਾ ॥੩॥ वह हरेक जीव में बसा हुआ है परन्तु फिर भी सबसे निर्लिप्त है॥ ३॥
ਆਪੇ ਅਵਿਗਤੁ ਆਪ ਸੰਗਿ ਰਚਨਾ ॥ परमात्मा अविगत है लेकिन वह स्वयं ही अपनी रचना के साथ मिला हुआ है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸਭਿ ਜਚਨਾ ॥੪॥੨॥੭॥ हे नानक ! प्रभु की सभी लीलाएँ अच्छी हैं।॥ ४॥ २॥ ७॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥ बिलावलु महला ५ ॥
ਭੂਲੇ ਮਾਰਗੁ ਜਿਨਹਿ ਬਤਾਇਆ ॥ जिसने मुझ भूले हुए को मार्ग बताया है,
ਐਸਾ ਗੁਰੁ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਇਆ ॥੧॥ ऐसा गुरु मुझे बड़ी किस्मत से मिला है॥ १॥
ਸਿਮਰਿ ਮਨਾ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰੇ ॥ हे मेरे मन ! राम नाम याद करके उसका सिमरन किया कर।
ਬਸਿ ਰਹੇ ਹਿਰਦੈ ਗੁਰ ਚਰਨ ਪਿਆਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ प्यारे गुरु के चरण हृदय में बस रहे हैं।॥ १ ॥ रहाउ॥


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