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ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਣੇ ਸਿ ਮਨਮੁਖ ਕਹੀਅਹਿ ਨਾ ਉਰਵਾਰਿ ਨ ਪਾਰੇ ॥੩॥
उन्हें मनमुख कहा जाता है, जो भ्रम में फँसकर कुमार्गगामी हो गए हैं और इस तरह के व्यक्ति लोक-परलोक कहीं के भी नहीं रहते॥ ३॥
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋਈ ਜਨੁ ਪਾਏ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ॥
जिस पर परमात्मा अपनी करुणा-दृष्टि करता है वही उसे पा लेता है और गुरु का शब्द स्मरण करता रहता है।
ਹਰਿ ਜਨ ਮਾਇਆ ਮਾਹਿ ਨਿਸਤਾਰੇ ॥
ऐसे भक्तजन माया से मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं।
ਨਾਨਕ ਭਾਗੁ ਹੋਵੈ ਜਿਸੁ ਮਸਤਕਿ ਕਾਲਹਿ ਮਾਰਿ ਬਿਦਾਰੇ ॥੪॥੧॥
हे नानक ! जिसके मस्तक पर उत्तम भाग्य लिखा होता है, वह मौत पर विजय पाकर आवागमन से छूट जाता है॥ ४॥ १॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
बिलावलु महला ३ ॥
ਅਤੁਲੁ ਕਿਉ ਤੋਲਿਆ ਜਾਇ ॥
परमात्मा अतुलनीय है, फिर उसे कैसे तोला जा सकता है ?
ਦੂਜਾ ਹੋਇ ਤ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥
यदि कोई दूसरा उस जैसा हो तो ही वह उसकी सूझ डाले।
ਤਿਸ ਤੇ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ਕੋਇ ॥
सत्य तो यही है कि उसके सिवा दूसरा कोई नहीं है।
ਤਿਸ ਦੀ ਕੀਮਤਿ ਕਿਕੂ ਹੋਇ ॥੧॥
अतः उसकी कीमत कैसे आंकी जाए॥ १॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥
गुरु की कृपा से वह मन में आकर बस जाता है और
ਤਾ ਕੋ ਜਾਣੈ ਦੁਬਿਧਾ ਜਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उसे वही जानता है, जिसकी दुविधा दूर हो जाती है। १ ॥ रहाउ ॥
ਆਪਿ ਸਰਾਫੁ ਕਸਵਟੀ ਲਾਏ ॥
परमात्मा स्वयं ही सर्राफ है और स्वयं ही जीवों को परखने के लिए कसौटी लगाता है।
ਆਪੇ ਪਰਖੇ ਆਪਿ ਚਲਾਏ ॥
वह स्वयं उनके गुण-अवगुण की परख करके सन्मार्ग पर चलाता है।
ਆਪੇ ਤੋਲੇ ਪੂਰਾ ਹੋਇ ॥
वही पूर्ण होता है, जिसे वह स्वयं तोलता है और
ਆਪੇ ਜਾਣੈ ਏਕੋ ਸੋਇ ॥੨॥
एक परमात्मा ही सबकुछ जानता है॥ २॥
ਮਾਇਆ ਕਾ ਰੂਪੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਤੇ ਹੋਇ ॥
यह जगत् माया का रूप है और सभी जीव उससे ही उत्पन्न हुए हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਮੇਲੇ ਸੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਇ ॥
जिसे वह अपने साथ मिला लेता है, वह निर्मल हो जाता है।
ਜਿਸ ਨੋ ਲਾਏ ਲਗੈ ਤਿਸੁ ਆਇ ॥
जिसे वह माया का मोह लगता है वह उसे ही आकर लग जाती है।
ਸਭੁ ਸਚੁ ਦਿਖਾਲੇ ਤਾ ਸਚਿ ਸਮਾਇ ॥੩॥
जब वह अपना सत्यस्वरूप दिखाता है तो जीव उस सत्य में ही विलीन हो जाता है।॥ ३॥
ਆਪੇ ਲਿਵ ਧਾਤੁ ਹੈ ਆਪੇ ॥
वह स्वयं ही वृति है और स्वयं ही माया है।
ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ਆਪੇ ਜਾਪੇ ॥
वह स्वयं ही जीव को सूझ प्रदान करता है और स्वयं ही जीव रूप में अपना नाम जपता रहता है।
ਆਪੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਬਦੁ ਹੈ ਆਪੇ ॥
वह स्वयं ही सतगुरु है और स्वयं ही शब्द है!
ਨਾਨਕ ਆਖਿ ਸੁਣਾਏ ਆਪੇ ॥੪॥੨॥
हे नानक ! ईश्वर स्वयं ही कहकर जीवों को अपना नाम सुनाता है॥ ४ ॥ २॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
बिलावलु महला ३ ॥
ਸਾਹਿਬ ਤੇ ਸੇਵਕੁ ਸੇਵ ਸਾਹਿਬ ਤੇ ਕਿਆ ਕੋ ਕਹੈ ਬਹਾਨਾ ॥
मालिक का बनाया हुआ ही कोई उसका सेवक बनता है और उसे सेवा भी मालिक से ही मिली होती है, फिर कोई यूं ही क्या बहाना बना सकता है ?
ਐਸਾ ਇਕੁ ਤੇਰਾ ਖੇਲੁ ਬਨਿਆ ਹੈ ਸਭ ਮਹਿ ਏਕੁ ਸਮਾਨਾ ॥੧॥
हे प्रभु ! तेरा एक ऐसा खेल बना हुआ है कि एक तू ही सब जीवों में समाया हुआ है।॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰਿ ਪਰਚੈ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਨਾ ॥
जब मन सतगुरु से संतुष्ट हो जाता है तो हरि-नाम में लीन हो जाता है।
ਜਿਸੁ ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਸੋ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਏ ਅਨਦਿਨੁ ਲਾਗੈ ਸਹਜ ਧਿਆਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
लेकिन सतगुरु उसे ही मिलता है, जिस पर परमात्मा मेहर करता है और फिर जीव का रात-दिन परमात्मा में ध्यान लगा रहता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਕਿਆ ਕੋਈ ਤੇਰੀ ਸੇਵਾ ਕਰੇ ਕਿਆ ਕੋ ਕਰੇ ਅਭਿਮਾਨਾ ॥
हे परमपिता ! कोई तेरी सेवा क्या कर सकता है और कोई सेवा का क्या अभिमान कर सकता है ?
ਜਬ ਅਪੁਨੀ ਜੋਤਿ ਖਿੰਚਹਿ ਤੂ ਸੁਆਮੀ ਤਬ ਕੋਈ ਕਰਉ ਦਿਖਾ ਵਖਿਆਨਾ ॥੨॥
हे स्वामी ! जब तू शरीर में से अपनी प्राण रूपी ज्योति खींच लेता है, तब कोई सेवा करके बखान तो करके दिखाए ॥२॥
ਆਪੇ ਗੁਰੁ ਚੇਲਾ ਹੈ ਆਪੇ ਆਪੇ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨਾ ॥
गुरु एवं चेला स्वयं परमात्मा ही है और स्वयं गुणों का भण्डार है।
ਜਿਉ ਆਪਿ ਚਲਾਏ ਤਿਵੈ ਕੋਈ ਚਾਲੈ ਜਿਉ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਭਗਵਾਨਾ ॥੩॥
हे भगवान् ! जैसे तुझे उपयुक्त लगता है, वैसे ही तेरी इच्छानुसार कोई चलता है॥ ३॥
ਕਹਤ ਨਾਨਕੁ ਤੂ ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਕਉਣੁ ਜਾਣੈ ਤੇਰੇ ਕਾਮਾਂ ॥
नानक का कथन है कि हे जगत्पालक ! तू सच्चा मालिक है और तेरे विलक्षण कार्यों को कौन जानता है ?
ਇਕਨਾ ਘਰ ਮਹਿ ਦੇ ਵਡਿਆਈ ਇਕਿ ਭਰਮਿ ਭਵਹਿ ਅਭਿਮਾਨਾ ॥੪॥੩॥
तू किसी को घर बैठे ही यश प्रदान कर देता है और कोई अभिमानी बनकर भ्रम में ही भटकता रहता है॥ ४॥ ३ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥
बिलावलु महला ३ ॥
ਪੂਰਾ ਥਾਟੁ ਬਣਾਇਆ ਪੂਰੈ ਵੇਖਹੁ ਏਕ ਸਮਾਨਾ ॥
हे जिज्ञासु! देख लो, पूर्ण परमेश्वर ने पूर्ण ही जगप्रपंच बनाया है और यही सब में समाया हुआ है।
ਇਸੁ ਪਰਪੰਚ ਮਹਿ ਸਾਚੇ ਨਾਮ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਮਤੁ ਕੋ ਧਰਹੁ ਗੁਮਾਨਾ ॥੧॥
इस जगत् प्रपंच में सत्य -नाम की ही कीर्ति है, अतः मन में किसी प्रकार का घमण्ड मत करो॥ १॥
ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਜਿਸ ਨੋ ਮਤਿ ਆਵੈ ਸੋ ਸਤਿਗੁਰ ਮਾਹਿ ਸਮਾਨਾ ॥
जिसे सतगुरु की मत (बुध्धि) आ जाती है, वह उस में लीन हुआ रहता है,
ਇਹ ਬਾਣੀ ਜੋ ਜੀਅਹੁ ਜਾਣੈ ਤਿਸੁ ਅੰਤਰਿ ਰਵੈ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जो इस वाणी को अपने मन में श्रद्धापूर्वक जान लेता है, उसके अन्तर्मन में हरि-नाम स्थित हो जाता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਚਹੁ ਜੁਗਾ ਕਾ ਹੁਣਿ ਨਿਬੇੜਾ ਨਰ ਮਨੁਖਾ ਨੋ ਏਕੁ ਨਿਧਾਨਾ ॥
चहुं युगों का अब यही निष्कर्ष है कि मनुष्यों के लिए एक नाम ही अमूल्य भण्डार है।
ਜਤੁ ਸੰਜਮ ਤੀਰਥ ਓਨਾ ਜੁਗਾ ਕਾ ਧਰਮੁ ਹੈ ਕਲਿ ਮਹਿ ਕੀਰਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ॥੨॥
सतियुग, त्रैता एवं द्वापर-उन युगों में ब्रह्मचार्य, संयम तथा तीर्थ स्नान ही धर्म था परन्तु कलियुग में हरि नाम की कीर्ति करना ही विशेष धर्म है॥ २॥
ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਆਪੋ ਆਪਣਾ ਧਰਮੁ ਹੈ ਸੋਧਿ ਦੇਖਹੁ ਬੇਦ ਪੁਰਾਨਾ ॥
प्रत्येक युग में अपना अपना भिन्न धर्म है। चाहे वेदों एवं पुराणों का अध्ययन करके देख लो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਿਨੀ ਧਿਆਇਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਗਿ ਤੇ ਪੂਰੇ ਪਰਵਾਨਾ ॥੩॥
जिन्होंने गुरु के माध्यम से हरि का मनन किया है, वे जगत् में पूर्ण और स्वीकार हो गए हैं।॥ ३॥