Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 798

Page 798

ਕਹਤ ਨਾਨਕੁ ਸਚੇ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਏ ਚੂਕੈ ਮਨਿ ਅਭਿਮਾਨਾ ॥ कहत नानकु सचे सिउ प्रीति लाए चूकै मनि अभिमाना ॥ नानक कहते हैं कि जो सत्यस्वरुप परमात्मा से प्रीति लगाते है, उनके मन का अभिमान समाप्त हो जाता है।
ਕਹਤ ਸੁਣਤ ਸਭੇ ਸੁਖ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨਤ ਪਾਹਿ ਨਿਧਾਨਾ ॥੪॥੪॥ कहत सुणत सभे सुख पावहि मानत पाहि निधाना ॥४॥४॥ नाम को सुनने एवं मुँह से जपने वाले सभी सुख प्राप्त करते हैं परन्तु निष्ठापूर्वक मनन करने वाले गुणों के भण्डार को ही पा लेते हैं॥ ४॥ ४॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ बिलावलु महला ३ ॥ राग बिलावल, तृतीय गुरु: ३ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਜਿਸ ਨੋ ਆਪੇ ਲਾਏ ॥ गुरमुखि प्रीति जिस नो आपे लाए ॥ गुरु के ज्ञान द्वारा भगवान् जिसे अपनी प्रीति लगा देते है,
ਤਿਤੁ ਘਰਿ ਬਿਲਾਵਲੁ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਏ ॥ तितु घरि बिलावलु गुर सबदि सुहाए ॥ उसके हृदय-घर में आनंद पैदा हो जाता है और गुरु के शब्द द्वारा वह सुन्दर बन जाता है।
ਮੰਗਲੁ ਨਾਰੀ ਗਾਵਹਿ ਆਏ ॥ मंगलु नारी गावहि आए ॥ उसकी सत्संगी रूपी नारियाँ आकर मंगल गान करती हैं और
ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥੧॥ मिलि प्रीतम सदा सुखु पाए ॥१॥ वह अपने प्रियतम प्रभु से मिलकर सदैव सुख प्राप्त करता है॥ १॥
ਹਉ ਤਿਨ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਿਨ੍ਹ੍ਹ ਹਰਿ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥ हउ तिन बलिहारै जिन्ह हरि मंनि वसाए ॥ मैं उन पर सदा बलिहारी जाता हूँ, जिन्होंने हरि को अपने मन में बसा लिया है।
ਹਰਿ ਜਨ ਕਉ ਮਿਲਿਆ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हरि जन कउ मिलिआ सुखु पाईऐ हरि गुण गावै सहजि सुभाए ॥१॥ रहाउ ॥ भक्त को मिलकर बड़ा सुख प्राप्त होता है, जो सहज-स्वभाव भगवान् का गुणगान करने में ही मग्न रहता है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਤੇਰੈ ਚਾਏ ॥ सदा रंगि राते तेरै चाए ॥ हे श्री हरि ! आपको मिलने की उमंग में भक्त आपके ही रंग में लीन रहते हैं।
ਹਰਿ ਜੀਉ ਆਪਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਏ ॥ हरि जीउ आपि वसै मनि आए ॥ पर आप स्वयं उनके मन में आकर निवास करते है।
ਆਪੇ ਸੋਭਾ ਸਦ ਹੀ ਪਾਏ ॥ आपे सोभा सद ही पाए ॥ ऐसे भक्तजन स्वयं सदैव शोभा प्राप्त करते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੇਲੈ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥੨॥ गुरमुखि मेलै मेलि मिलाए ॥२॥ फिर भगवान् उन्हें गुरु के सम्पर्क में मिलाकर अपने साथ मिला लेता है॥ २॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਾਤੇ ਸਬਦਿ ਰੰਗਾਏ ॥ गुरमुखि राते सबदि रंगाए ॥ गुरुमुख शब्द में रंगकर लीन रहते हैं और
ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥ निज घरि वासा हरि गुण गाए ॥ भगवान् का यशोगान करने से उनका आत्मस्वरूप में निवास हो जाता है।
ਰੰਗਿ ਚਲੂਲੈ ਹਰਿ ਰਸਿ ਭਾਏ ॥ रंगि चलूलै हरि रसि भाए ॥ वे परमात्मा के प्रेम रूपी गहरे लाल रंग में अनुरक्त रहते हैं और उन्हें तो हरि-रस ही भाता है।
ਇਹੁ ਰੰਗੁ ਕਦੇ ਨ ਉਤਰੈ ਸਾਚਿ ਸਮਾਏ ॥੩॥ इहु रंगु कदे न उतरै साचि समाए ॥३॥ यह प्रेम रूपी रंग कभी नहीं उतरता और वह सत्य में ही विलीन हुए रहते है ॥ ३॥
ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਮਿਟਿਆ ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰਾ ॥ अंतरि सबदु मिटिआ अगिआनु अंधेरा ॥ उनके अंतर्मन में शब्द के निवास से अज्ञान रूपी अँधेरा मिट गया है।
ਸਤਿਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਮਿਲਿਆ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਮੇਰਾ ॥ सतिगुर गिआनु मिलिआ प्रीतमु मेरा ॥ सतगुरु का ज्ञान प्राप्त होने से मेरे प्रियतम प्रभु मुझे मिल गए है।
ਜੋ ਸਚਿ ਰਾਤੇ ਤਿਨ ਬਹੁੜਿ ਨ ਫੇਰਾ ॥ जो सचि राते तिन बहुड़ि न फेरा ॥ जो सत्य में लीन रहते हैं, उनका पुनः जन्म-मरण का चक्र नहीं पड़ता।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਏ ਪੂਰਾ ਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ॥੪॥੫॥ नानक नामु द्रिड़ाए पूरा गुरु मेरा ॥४॥५॥ हे नानक ! मेरे गुरु पूर्ण है, जो प्रभु का नाम मन में बसाते है ॥४॥५॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੩ ॥ बिलावलु महला ३ ॥ राग बिलावल, तृतीय गुरु: ३ ॥
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਵਡਿਆਈ ਪਾਈ ॥ पूरे गुर ते वडिआई पाई ॥ जब पूर्ण गुरु से प्रतिष्ठा मिली तो
ਅਚਿੰਤ ਨਾਮੁ ਵਸਿਆ ਮਨਿ ਆਈ ॥ अचिंत नामु वसिआ मनि आई ॥ परमात्मा का नाम मन में आकर स्थित हो गया।
ਹਉਮੈ ਮਾਇਆ ਸਬਦਿ ਜਲਾਈ ॥ हउमै माइआ सबदि जलाई ॥ मैंने माया रूपी अहंकार को शब्द द्वारा जला दिया है और
ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਗੁਰ ਤੇ ਸੋਭਾ ਪਾਈ ॥੧॥ दरि साचै गुर ते सोभा पाई ॥१॥ गुरु द्वारा सत्य के दरबार में बड़ी शोभा प्राप्त हुई है॥ १॥
ਜਗਦੀਸ ਸੇਵਉ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਕਾਜਾ ॥ जगदीस सेवउ मै अवरु न काजा ॥ अब मैं ईश्वर की उपासना करता रहता हूँ एवं मुझे अन्य कोई कार्य नहीं है।
ਅਨਦਿਨੁ ਅਨਦੁ ਹੋਵੈ ਮਨਿ ਮੇਰੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਾਗਉ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਨਿਵਾਜਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ अनदिनु अनदु होवै मनि मेरै गुरमुखि मागउ तेरा नामु निवाजा ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्रभु! मैं आपका नाम ही माँगता हूँ चूंकि मेरे मन में हर समय आनंद ही आनंद बना रहे ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਨ ਕੀ ਪਰਤੀਤਿ ਮਨ ਤੇ ਪਾਈ ॥ ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਸਬਦਿ ਬੁਝਾਈ ॥ मन की परतीति मन ते पाई ॥ पूरे गुर ते सबदि बुझाई ॥ जिसने पूर्ण गुरु के वचनों का मनन करके आध्यात्मिक जीवन का मार्ग समझ लिया, उसके हृदय में स्वयं ही ईश्वर के प्रति आस्था जाग उठती है।
ਜੀਵਣ ਮਰਣੁ ਕੋ ਸਮਸਰਿ ਵੇਖੈ ॥ जीवण मरणु को समसरि वेखै ॥ जो व्यक्ति जीवन मृत्यु को एक समान समझ लेता है।
ਬਹੁੜਿ ਨ ਮਰੈ ਨਾ ਜਮੁ ਪੇਖੈ ॥੨॥ बहुड़ि न मरै ना जमु पेखै ॥२॥ फिर वह बार-बार मृत्यु को प्राप्त नहीं होता और न ही यम को देखता है॥ २॥
ਘਰ ਹੀ ਮਹਿ ਸਭਿ ਕੋਟ ਨਿਧਾਨ ॥ घर ही महि सभि कोट निधान ॥ हृदय-घर में अनेक प्रकार के करोड़ों ही खजाने हैं।
ਸਤਿਗੁਰਿ ਦਿਖਾਏ ਗਇਆ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥ सतिगुरि दिखाए गइआ अभिमानु ॥ जब गुरु ने मुझे यह खजाने दिखाए तो मेरा अभिमान दूर हो गया।
ਸਦ ਹੀ ਲਾਗਾ ਸਹਜਿ ਧਿਆਨ ॥ सद ही लागा सहजि धिआन ॥ अब सदैव ही परमात्मा में ध्यान लगा रहता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਗਾਵੈ ਏਕੋ ਨਾਮ ॥੩॥ अनदिनु गावै एको नाम ॥३॥ मैं रात-दिन भगवान् के नाम का ही गुणगान करता रहता हूँ ॥३॥
ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਵਡਿਆਈ ਪਾਈ ॥ इसु जुग महि वडिआई पाई ॥ तब संसार में ख्याति मिलती है,
ਪੂਰੇ ਗੁਰ ਤੇ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ॥ पूरे गुर ते नामु धिआई ॥ जब पूर्ण गुरु द्वारा परमात्मा के नाम का ध्यान किया जाता है।
ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥ जह देखा तह रहिआ समाई ॥ मैं जहाँ भी देखता हूँ, उधर ही परमात्मा व्याप्त है।
ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥੪॥ सदा सुखदाता कीमति नही पाई ॥४॥ वह सदा शान्ति दाता है; उसकी कीमत का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। ॥ ४॥
ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥ पूरै भागि गुरु पूरा पाइआ ॥ जो कोई भी, पूर्ण भाग्य से, पूर्ण गुरु की शिक्षाओं का पालन करता है,
ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥ अंतरि नामु निधानु दिखाइआ ॥ उसने अन्तर्मन में ही नाम रूपी निधि के दर्शन करा दिए हैं।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਅਤਿ ਮੀਠਾ ਲਾਇਆ ॥ गुर का सबदु अति मीठा लाइआ ॥ हे नानक ! गुरु का शब्द मुझे अत्यंत मीठा लगा है,
ਨਾਨਕ ਤ੍ਰਿਸਨ ਬੁਝੀ ਮਨਿ ਤਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੫॥੬॥੪॥੬॥੧੦॥ नानक त्रिसन बुझी मनि तनि सुखु पाइआ ॥५॥६॥४॥६॥१०॥ जिससे सारी तृष्णा बुझ गई है और मन एवं तन को सुख प्राप्त हो गया है ॥५॥६॥४॥६॥१०॥
ਰਾਗੁ ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ਘਰੁ ੩ रागु बिलावलु महला ४ घरु ३ राग बिलावल, चतुर्थ गुरु, तृतीय ताल:
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ईश्वर एक है जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ॥
ਉਦਮ ਮਤਿ ਪ੍ਰਭ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜਿਉ ਪ੍ਰੇਰੇ ਤਿਉ ਕਰਨਾ ॥ उदम मति प्रभ अंतरजामी जिउ प्रेरे तिउ करना ॥ अन्तर्यामी प्रभु उद्यम करने की समझ देता है, जैसे प्रेरित करता है, वैसे ही हम करते हैं।
ਜਿਉ ਨਟੂਆ ਤੰਤੁ ਵਜਾਏ ਤੰਤੀ ਤਿਉ ਵਾਜਹਿ ਜੰਤ ਜਨਾ ॥੧॥ जिउ नटूआ तंतु वजाए तंती तिउ वाजहि जंत जना ॥१॥ जिस प्रकार एक वायलिन वादक जब तारों को छेड़ता है, तो स्वर उसी के अनुसार निकलते हैं; उसी प्रकार सभी प्राणी वही कर्म करते हैं, जिसकी प्रेरणा उन्हें परमात्मा से प्राप्त होती है। १॥


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