Guru Granth Sahib Translation Project

Guru Granth Sahib Hindi Page 796

Page 796

ਐਸਾ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਦੇਉ ॥ हे पावनस्वरूप ! तेरा नाम सर्वसुख व मुक्ति प्रदाता है, अतः यही देना !
ਹਉ ਜਾਚਿਕੁ ਤੂ ਅਲਖ ਅਭੇਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तू अदृष्ट एवं अभेद है और मैं तेरे नाम का याचक हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਧਰਕਟੀ ਨਾਰਿ ॥ माया का मोह उस कुलटा स्त्री के प्रेम जैसा है,
ਭੂੰਡੀ ਕਾਮਣਿ ਕਾਮਣਿਆਰਿ ॥ जो बदशक्ल एवं जादू-टोने करती रहती है।
ਰਾਜੁ ਰੂਪੁ ਝੂਠਾ ਦਿਨ ਚਾਰਿ ॥ राज्य एवं सौन्दर्य झूठे हैं और यह चार दिन ही रहते हैं।
ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਚਾਨਣੁ ਅੰਧਿਆਰਿ ॥੨॥ जिसे नाम मिल जाता है, उसके अंधेरे हृदय में उजाला हो जाता है॥ २॥
ਚਖਿ ਛੋਡੀ ਸਹਸਾ ਨਹੀ ਕੋਇ ॥ मैंने चखकर माया छोड़ दी है और मेरे मन में इस बारे कोई सन्देह नहीं है।
ਬਾਪੁ ਦਿਸੈ ਵੇਜਾਤਿ ਨ ਹੋਇ ॥ जिस बच्चे का पिता पास है, उसे कोई अवैध संतान नहीं कहता।
ਏਕੇ ਕਉ ਨਾਹੀ ਭਉ ਕੋਇ ॥ परमात्मा की भक्ति करने वाले को कोई भय नहीं रहता।
ਕਰਤਾ ਕਰੇ ਕਰਾਵੈ ਸੋਇ ॥੩॥ एक ईश्वर ही सबकुछ करता है और वही दूसरों से करवाता है॥ ३॥
ਸਬਦਿ ਮੁਏ ਮਨੁ ਮਨ ਤੇ ਮਾਰਿਆ ॥ जिनका अभिमान ब्रह्म-शब्द द्वारा समाप्त हो गया है, उसने अपने मन को मन द्वारा नियंत्रण में कर लिया है।
ਠਾਕਿ ਰਹੇ ਮਨੁ ਸਾਚੈ ਧਾਰਿਆ ॥ जिन्होंने मन को विकारों की तरफ से काबू में कर रखा है, उन्होंने अपना मन सत्य में लीन कर लिया है।
ਅਵਰੁ ਨ ਸੂਝੈ ਗੁਰ ਕਉ ਵਾਰਿਆ ॥ मुझे कुछ भी नहीं सूझता, मैं तो गुरु पर ही न्यौछावर हूँ।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਨਿਸਤਾਰਿਆ ॥੪॥੩॥ हे नानक ! प्रभु के नाम में लीन रहने वाले व्यक्ति का संसार से निस्तारा हो जाता है। ४॥ ३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੧ ॥ बिलावलु महला १ ॥
ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਮਨੁ ਸਹਜ ਧਿਆਨੇ ॥ गुरु के वचनों द्वारा मन सहज ही परमात्मा के ध्यान में मग्न हो गया है और
ਹਰਿ ਕੈ ਰੰਗਿ ਰਤਾ ਮਨੁ ਮਾਨੇ ॥ हरि के रंग में लीन हुआ मेरा मन आनंदित हो गया है।
ਮਨਮੁਖ ਭਰਮਿ ਭੁਲੇ ਬਉਰਾਨੇ ॥ स्वेच्छाचारी व्यक्ति भ्रम में भूलकर पगले हो गए हैं।
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਰਹੀਐ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਪਛਾਨੇ ॥੧॥ परमात्मा के चिंतन बिना में कैसे रहूँ? गुरु के शब्द द्वारा उसकी पहचान हो गई है॥ १॥
ਬਿਨੁ ਦਰਸਨ ਕੈਸੇ ਜੀਵਉ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥ हे माई ! भगवान् के दर्शन बिना मैं कैसे जिंदा रहूँ।
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਜੀਅਰਾ ਰਹਿ ਨ ਸਕੈ ਖਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ परमात्मा के सिमरन बिना मेरी जीवन साँसें क्षण भर के लिए रह नहीं सकती, चूंकि सतगुरु ने मुझे यह सूझ बता दी है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਬਿਸਰੈ ਹਉ ਮਰਉ ਦੁਖਾਲੀ ॥ मेरा प्रभु मुझे विस्मृत हो जाता है तो मैं बहुत दुखी होकर मरती हूँ।
ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ਜਪਉ ਅਪੁਨੇ ਹਰਿ ਭਾਲੀ ॥ मैं अपने हरि को ढूंढती और श्वास-ग्रास से उसे ही जपती रहती हूँ।
ਸਦ ਬੈਰਾਗਨਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨਿਹਾਲੀ ॥ मैं सदैव के लिए वैरागिन बनकर हरि नाम आनंदित रहती हूँ।
ਅਬ ਜਾਨੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਨਾਲੀ ॥੨॥ गुरु के माध्यम से अब मैंने जान लिया है कि हरि मेरे साथ ही रहता है॥ २॥
ਅਕਥ ਕਥਾ ਕਹੀਐ ਗੁਰ ਭਾਇ ॥ हरि की अकथनीय कथा गुरु के प्रेम द्वारा ही कही जाती है।
ਪ੍ਰਭੁ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਦੇਇ ਦਿਖਾਇ ॥ गुरु ने अगम्य, अगोचर प्रभु दिखा दिया है।
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਕਰਣੀ ਕਿਆ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥ गुरु की करनी बिना आदमी क्या कार्य कर सकता है ?
ਹਉਮੈ ਮੇਟਿ ਚਲੈ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਸਮਾਇ ॥੩॥ जो अपना अभिमान मिटाकर गुरु के निर्देशानुसार चलता है, वह गुरु-शब्द में ही समा जाता है॥ ३॥
ਮਨਮੁਖੁ ਵਿਛੁੜੈ ਖੋਟੀ ਰਾਸਿ ॥ मनमुख आदमी परमात्मा से बिछुड़ जाता है और वह झूठी पूंजी संचित करता रहता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਮਿਲੈ ਸਾਬਾਸਿ ॥ मगर गुरुमुख को सत्य के दरबार में शाबाश मिलती है, जो नाम का लाभ हासिल करता है।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ॥ हरि ने कृपा करके अपने दासों का दास बना लिया है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਨਾਮ ਧਨੁ ਰਾਸਿ ॥੪॥੪॥ हे नानक ! हरि नाम धन ही मेरी जीवन-पूंजी है।॥ ४॥ ४॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧ बिलावलु महला ३ घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਖਾਇਆ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਸੋਇਆ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਕਾਪੜੁ ਅੰਗਿ ਚੜਾਇਆ ॥ उस आदमी का खाना, सोना, शरीर पर कपड़े इत्यादि पहनना सब धिक्कार योग्य है और
ਧ੍ਰਿਗੁ ਸਰੀਰੁ ਕੁਟੰਬ ਸਹਿਤ ਸਿਉ ਜਿਤੁ ਹੁਣਿ ਖਸਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ॥ परिवार सहित उसका शरीर भी धिक्कार योग्य है, जिसने अब इस जन्म में परमेश्वर को नहीं पाया।
ਪਉੜੀ ਛੁੜਕੀ ਫਿਰਿ ਹਾਥਿ ਨ ਆਵੈ ਅਹਿਲਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ॥੧॥ हाथों से छूटी हुई पौड़ी पुनः हाथ में नहीं आती और उसने अपना दुर्लभ जन्म व्यर्थ ही गंवा लिया है॥ १॥
ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਨ ਦੇਈ ਲਿਵ ਲਾਗਣਿ ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਣ ਵਿਸਾਰੇ ॥ जिसने भगवान् के सुन्दर चरण भुला दिए हैं, द्वैतभाव उसकी वृति भगवान् में लगने नहीं देता।
ਜਗਜੀਵਨ ਦਾਤਾ ਜਨ ਸੇਵਕ ਤੇਰੇ ਤਿਨ ਕੇ ਤੈ ਦੂਖ ਨਿਵਾਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ हे जग के जीवन दाता ! जो तेरे भक्त एवं सेवक हैं, तूने उनके सब दुख समाप्त कर दिए हैं।॥ १॥ रहाउ॥
ਤੂ ਦਇਆਲੁ ਦਇਆਪਤਿ ਦਾਤਾ ਕਿਆ ਏਹਿ ਜੰਤ ਵਿਚਾਰੇ ॥ हे प्रभु ! तू बड़ा दयालु है, दयापति है और सबका दाता है। किन्तु ये जीव बेचारे कुछ भी करने में असमर्थ हैं।
ਮੁਕਤ ਬੰਧ ਸਭਿ ਤੁਝ ਤੇ ਹੋਏ ਐਸਾ ਆਖਿ ਵਖਾਣੇ ॥ गुरु ने यह सत्य ही बखान किया है कि प्राणियों का मुक्ति-बन्धन तेरे हुक्म से ही होता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋ ਮੁਕਤੁ ਕਹੀਐ ਮਨਮੁਖ ਬੰਧ ਵਿਚਾਰੇ ॥੨॥ जो गुरुमुख बन जाता है, उसे बन्धनों से मुक्त कहीं-जाता है किन्तु बेचारे मनमुखी इन्सान बन्धनों में फॅसे रहते हैं।॥ २॥
ਸੋ ਜਨੁ ਮੁਕਤੁ ਜਿਸੁ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਸਦਾ ਰਹੈ ਹਰਿ ਨਾਲੇ ॥ वही आदमी मुक्त हैं, जिनकी वृति ईश्वर से लग चुकी है और वे सदैव हरि में लीन रहते हैं।
ਤਿਨ ਕੀ ਗਹਣ ਗਤਿ ਕਹੀ ਨ ਜਾਈ ਸਚੈ ਆਪਿ ਸਵਾਰੇ ॥ सत्यस्वरूप परमात्मा ने उनका जीवन संवार दिया है और उनकी गहन गति वर्णन नहीं की जा सकती।


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